नई दिल्ली: पाकिस्तान की शक्तिशाली सैन्य इकाई इंटर-सर्विसेज पब्लिक रिलेशन (आईएसपीआर) के नए प्रमुख के पिता एक परमाणु वैज्ञानिक हैं जिन पर संयुक्त राष्ट्र की तरफ से इसलिए प्रतिबंध लगाया गया था क्योंकि उन्होंने तालिबान और अल-कायदा को ‘रासायनिक, जैविक और परमाणु हथियारों के बारे में जानकारी’ मुहैया कराई थी. सरकारी सूत्रों ने दिप्रिंट को यह जानकारी दी है.
आईएसपीआर प्रमुख बने मेजर जनरल अहमद शरीफ के पिता सुल्तान बशीरुद्दीन महमूद को विज्ञान पर सनकी विचारों के लिए भी जाना जाता है. ये वही वैज्ञानिक हैं जिन्होंने कभी कहा था कि बिजली उत्पादन के लिए जिन्नों का इस्तेमाल किया जा सकता है.
अहमद शरीफ को पिछले महीने पाकिस्तान के नए सेना प्रमुख जनरल आसिम मुनीर ने इंटर-सर्विसेज पब्लिक रिलेशन के नेतृत्व की जिम्मेदारी सौंपी थी.
शरीफ ने लेफ्टिनेंट जनरल बाबर इफ्तिखार की जगह ली, जिन पर पूर्व पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान ने राजनीति में दखल देने का आरोप लगाया था.
संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि बशीरुद्दीन ने अल-कायदा प्रमुख ओसामा बिन लादेन के साथ मुलाकात की थी और ‘परमाणु हथियार कार्यक्रम के लिए आवश्यक बुनियादी ढांचे और परमाणु हथियारों के प्रभावों के बारे में जानकारी प्रदान की थी.’ वैज्ञानिक पर यह आरोप भी लगाया गया था कि उसने एक कट्टरपंथी समूह उम्मा तामीर-ए-नऊ के लिए धन जुटाया था.
एक वैज्ञानिक का बेटा
जर्मनी और ब्रिटेन की यूनिवर्सिटी में शिक्षित बशीरुद्दीन को पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की तरफ से पाकिस्तान के तीसरे सबसे बड़े नागरिक सम्मान सितारा-ए-इम्तियाज से सम्मानित किया गया था. हालांकि, बाद में बशीरुद्दीन उनके मुखर आलोचक बन गए, और अफगानिस्तान में जिहादियों के समर्थक.
सैन्य मामलों की जानकारी रखने वाले इस्लामाबाद स्थित एक सूत्र ने बताया कि इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस (आईएसआई) निदेशालय ने एक युवा मेजर-रैंक अधिकारी शरीफ से उनके पिता की जिहादी गतिविधियों के संभावित लिंक के बारे में थोड़ी पूछताछ भी की थी. सूत्र ने आगे बताया कि यद्यपि जांच के बाद शरीफ को संदेह के दायरे से बाहर कर दिया गया. यह स्पष्ट नहीं है कि क्या वह तालिबान शासन के लिए अपने पिता की तरफ से धन जुटाए जाने वाली गतिविधियों से वाकिफ थे या नहीं.
माना जाता है कि आईएसआई के अधिकारियों ने शरीफ के भाई आसिम महमूद से भी पूछताछ की है जो पेशे से एक डॉक्टर हैं.
शरीफ के करियर के बारे में थोड़ी-बहुत जानकारी ही उपलब्ध है. लेकिन माना जाता है कि पूर्व में वह डिफेंस साइंस एंड टेक्नोलॉजी ऑर्गनाइजेशन (डेस्टो) के महानिदेशक के तौर पर भी काम कर चुके हैं जो कि गोपनीय अनुसंधान संस्थान है और उन्नत सैन्य प्रणालियों के डेवलपमेंट से जुड़ा है. पाकिस्तान के परमाणु हथियार परीक्षणों के बाद डेस्टो पर अमेरिकी प्रौद्योगिकी प्रतिबंध लागू कर दिया गया था लेकिन 9/11 के बाद के बाद इस्लामाबाद के साथ संबंधों को बढ़ाने के प्रयास के दौरान इसे प्रतिबंधों के दायरे से बाहर कर दिया गया.
इलेक्ट्रिकल और मैकेनिकल इंजीनियरिंग कोर के एक अधिकारी शरीफ ने मिलिट्री ऑपरेशन्स डायरेक्टरेट में भी सेवाएं दी हैं.
व्यक्तिगत तौर पर शरीफ का वैचारिक झुकाव किस तरह है, इस पर बहुत मामूली जानकारी ही उपलब्ध है. स्कॉलर और दिप्रिंट की स्तंभकार आयशा सिद्दीकी के मुताबिक, ‘यह एक ऐसी पीढ़ी है जो तानाशाह जनरल मुहम्मद जिया-उल-हक के शासनकाल में पैदा हुई और बड़ी हुई थी. वे अल्ट्रा-नेशनलिस्ट विचारों से जुड़े थे.’
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प्रॉफेट ऑफ डूम्सडे
पाकिस्तान परमाणु ऊर्जा आयोग से सेवानिवृत्त होने के बाद बशीरुद्दीन ने कयामत आने की थीम पर आधारित कई किताबें लिखीं, जिसमें विज्ञान को धर्मग्रंथों के साथ जोड़ने पर जोर दिया गया था. ऐसी ही एक किताब मैकेनिक्स ऑफ द डूम्सडे एंड लाइफ ऑफ डेथ में उन्होंने मानव जाति को चेताया था कि कयामत का दिन बहुत दूर नहीं है. उन्होंने लिखा है, ‘कुछ सौ साल, और अंत होना तय है. इस तरह होगा या उस तरह, ये बहुत मायने नहीं रखता.’
पुस्तक ने फिजिक्स पर बशीरुद्दीन के अपरंपरागत विचारों को भी दोहराया. उन्होंने पुस्तक में लिखा था कि एनर्जी में ‘फायर से निर्मित जिन्न, (द प्लाज्मा ऑफ हॉट गैस्स)’ शामिल हैं. उनका कहना था, ‘फरिश्ते एक अन्य तरह की ऊर्जा का निर्माण करते हैं जो आग की तुलना में बहुत फाइन और अधिक सूक्ष्म है.’
पत्रकार डेविड सैंगर ने अपनी एक रिपोर्ट में बताया है कि बशीरुद्दीन जब पाकिस्तान परमाणु ऊर्जा आयोग में काम कर रहे थे, तभी उनके साथ काम करने वाले सहयोगी ‘फ्रांसीसी और रूसी विद्रोहों, द्वितीय विश्व युद्ध और औपनिवेशवाद के खिलाफ बगावत की शुरुआत में सनस्पॉट्स की भूमिका पर उनके विचारों को लेकर थोड़े स्तब्ध और थोड़े आशंकित रहते थे.’
एक अमेरिकी खुफिया अधिकारी ने सैंगर को बताया, ‘वह जानता था कि क्या कर रहा है. और पूरी तरह से अपने दिमागी नियंत्रण से बाहर था.
आतंकवाद के लिए धन जुटाया
पाकिस्तान परमाणु ऊर्जा आयोग के एक पूर्व वरिष्ठ वैज्ञानिक चौधरी अब्दुल मजीद के साथ मिलकर बशीरुद्दीन ने 2000 में उम्मा तामीर-ए-नऊ (यूटीएन) स्थापना की थी जो कि एक स्वयंसेवी संगठन था और तालिबान-शासित अफगानिस्तान में कल्याणकारी कार्यों के लिए धन जुटाता था.
यूटीएन की सदस्यों में आईएसआई के पूर्व महानिदेशक सेवानिवृत्त लेफ्टिनेंट जनरल हामिद गुल, परमाणु विज्ञानी मिर्जा यूसुफ बैग और सेवानिवृत्त एडमिरल हुमायूं नियाज भी शामिल रहे हैं.
अन्य बातों के अलावा यूटीएन ने फ्लायर्स वालंटियर तैनात किए जो अफगानिस्तान में डॉक्टरों के तौर पर अपनी सेवाएं देते थे. इसके पैम्फलेट्स पर कांटैक्स के लिए आसिम महमूद का नंबर दिया गया था. संगठन ने कंधार में स्कूल बनवाने के अलावा एक फ्लोर मिल भी लगवाई.
2001 में अपनी गिरफ्तारी के बाद बशीरुद्दीन ने ओसामा बिन लादेन के साथ बैठक करने की बात स्वीकारी थी, लेकिन जोर देकर कहा कि वह केवल अफगानिस्तान में एक तकनीकी कॉलेज के लिए धन जुटाने पर चर्चा के लिए मिले थे. आईएसआई ने निष्कर्ष निकाला कि बशीरुद्दीन के पास अल-कायदा को परमाणु हथियारों के बारे में गोपनीय जानकारी मुहैया कराने के लिए पर्याप्त तकनीकी जानकारी नहीं थी, जिसकी वजह से ही वैज्ञानिक की रिहाई हो पाई थी.
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(अनुवाद- रावी द्विवेदी)
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