नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश चुनाव आयोग द्वारा यूपी नगर निकाय चुनाव के लिए समता पार्टी को उसका पुराना चुनाव चिन्ह ‘मशाल ‘आवंटित करने के एक हफ्ते बाद, पार्टी ने शुक्रवार को कहा कि वह भारत के निर्वाचन आयोग के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाएगी. दरअसल चुनाव आयोग ने महाराष्ट्र में आगामी उपचुनाव के लिए अक्टूबर में उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना- उद्धव बालासाहेब ठाकरे (UBT) पार्टी को यही चुनाव चिन्ह आवंटित किया था.
समता पार्टी- 1994 में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और दिवंगत नेता जॉर्ज फर्नांडिस द्वारा गठित-ने पहले ठाकरे की पार्टी के चुनाव चिन्ह के आवंटन के खिलाफ चुनाव आयोग से शिकायत की थी और इसके खिलाफ दिल्ली उच्च न्यायालय का रुख किया था, लेकिन हाईकोर्ट ने इस मामले को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि मान्यता रद्द होने के बाद से पार्टी ने चुनाव चिह्न पर कोई अधिकार नहीं दिखाया है.
2004 में चुनाव आयोग ने समता पार्टी की मान्यता रद्द कर दी थी.
समता पार्टी के प्रमुख उदय मंडल ने दिप्रिंट को बताया कि पार्टी को 28 दिसंबर को होने वाले निकाय चुनावों के लिए यूपी चुनाव आयोग उन्हें पार्टी का मूल चुनाव चिन्ह आवंटित कर दिया है. इसके लिए वह आयोग के शुक्रगुजार हैं. लेकिन वे चाहते हैं कि उनका मूल चिन्ह उन्हें अन्य चुनावों के लिए भी आवंटित किया जाए.
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मंडल ने कहा, ‘बिहार और अन्य राज्यों में भी हमें हमारा चुनाव चिन्ह ‘मशाल’ आवंटित किया जाना चाहिए. हम 2025 के बिहार विधानसभा चुनाव की तैयारी कर रहे हैं. बिहार में हमारा एक जनाधार है क्योंकि समता पार्टी कभी वहां सत्ता में थी. जरूरत पड़ी तो हम सुप्रीम कोर्ट जाएंगे.’
इस बीच, शिवसेना (यूबीटी) ने कहा है कि वह शिवसेना के मूल धनुष और तीर के प्रतीक को पाने के लिए अपनी लड़ाई जारी रखेगी. इस चिन्ह का इस्तेमाल पार्टी इस साल की शुरुआत में दो हिस्सों में हुए विभाजन से पहले किया करती थी.
शिवसेना के प्रवक्ता और सांसद अरविंद सावंत ने कहा कि उन्हें इस बात की जानकारी नहीं है कि किसी चुनाव के लिए समता पार्टी को जलती मशाल का चुनाव चिह्न आवंटित किया गया है. वे तो सिर्फ ‘धनुष और तीर’ चुनाव चिन्ह को वापस चाहते हैं. सावंत ने कहा, ‘समता पार्टी ने बहुत पहले इसका (मशाल चिन्ह) इस्तेमाल किया था, लेकिन उनका वोट शेयर कम हो गया, इसलिए प्रतीक अमान्य हो गया.’
उन्होंने कहा, ‘हालांकि, यह (पिछले महीने) अंधेरी उपचुनाव के लिए सिर्फ अस्थायी रूप से शिवसेना को दिया गया था. हम अपने पुराने सिंबल के लिए लड़ रहे हैं. चुनाव आयोग बीजेपी के निर्देश पर काम करता है, इसलिए (चिन्ह तय करने के लिए) तारीख टालता रहा है. अब हमें 9 दिसंबर को बुलाया गया है.’
हालांकि मशाल चिन्ह के आवंटन से शिवसेना (यूबीटी) पर कोई तत्काल प्रभाव पड़ने की संभावना नहीं है, क्योंकि मौजूदा समय में महाराष्ट्र में कोई चुनाव निर्धारित नहीं हैं.
समता पार्टी को नगरपालिका चुनाव के लिए चुनाव चिन्ह क्यों आवंटित किया, इस बारे में उत्तर प्रदेश चुनाव आयोग के प्रमुख सतीश कुमार सिंह ने कहा, ‘समता पार्टी ने बहुत पहले मशाल सिंबल का इस्तेमाल किया था, लेकिन फिर उनका वोट शेयर कम हो गया और चिन्ह के लिए उनके दावे को खारिज कर दिया गया. निकाय चुनाव के पंजीकरण के लिए अलग से आवेदन करना होता है. उन्होंने आवेदन किया और उन्हें सिंबल मिल गया. शिवसेना और समता पार्टी का मामला चुनाव आयोग में है और इसका इन स्थानीय स्तर के चुनावों से कोई लेना-देना नहीं है.’
‘राज्य और राष्ट्रीय दलों के बीच अंतर’
इस साल की शुरुआत में शिवसेना के बंटवारे के बाद मशाल चुनाव चिन्ह को लेकर विवाद शुरू हो गया था.
जून में शिवसेना विधायक एकनाथ शिंदे ने महाराष्ट्र में ठाकरे के नेतृत्व वाली महा विकास अघाड़ी (एमवीए) सरकार को गिराने के लिए शिवसेना के विधायकों के विद्रोह का नेतृत्व किया था और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के साथ साझेदारी में सत्ता में आ गए.
दोनों गुटों ने शिवसेना के नाम और उसके ‘धनुष और तीर’ प्रतीक पर दावा किया था. तब चुनाव आयोग ने दोनों को इस सिंबल की बजाय वैकल्पिक नाम और सिंबल चुनने के लिए कहा था. शिवसेना (यूबीटी) को आखिरकार मशाल चिन्ह दिया गया, जबकि वह सेना के मूल चिन्ह को पाने की उम्मीद कर रही थी. वहीं शिंदे के नेतृत्व वाली बालासाहेबंची शिवसेना को ‘दो तलवार और एक ढाल’ प्रतीक आवंटित किया गया था.
2003 में फर्नांडिसने समता पार्टी का जनता दल (यूनाइटेड) के साथ विलय कर दिया था. लेकिन पार्टी के सांसद ब्रह्मानंद मंडल ने इस विचार का विरोध किया था. चुनाव आयोग ने भी आधिकारिक तौर पर विलय को मान्यता नहीं दी और 2004 में समता पार्टी की मान्यता रद्द कर दी गई.
अगर किसी पार्टी को 6 प्रतिशत से कम वोट मिलते हैं या राज्य के चुनावों में दो से कम सीटें जीतती है तो चुनाव आयोग उस पार्टी की मान्यता रद्द कर सकता है. राष्ट्रीय पार्टियों के लिए कम से कम छह फीसदी वोट हासिल करना और कम से कम चार राज्यों में विधायक होना जरूरी है.
हालांकि, ऐसी स्थिति में पहले गैर-मान्यता प्राप्त पार्टियां अपने प्रतीकों को खो देती थीं, लेकिन चुनाव आयोग ने 1997 में नियमों को संशोधित किया ताकि पार्टियों को अपने चिन्हों को आरक्षित करने की अनुमति मिल सके.
मंडल ने पहले दिप्रिंट को बताया था कि मशाल का चिन्ह समता पार्टी ने आरक्षित कर दिया था. लेकिन पार्टी को बिना कोई सूचना दिए सिर्फ एक दिन में फ्री करते हुए उद्धव ठाकरे की पार्टी को इसे आवंटित कर दिया गया.
मंडल ने आगे कहा, ‘हमें चुनाव आयोग ने इस बारे में कोई सूचना नहीं दी थी. हमारे आरक्षित सिंबल को दूसरी पार्टी को आवंटित कर दिया गया. हम भविष्य में बिहार चुनाव की तैयारी कर रहे हैं और हमें अपने मूल चिन्ह की जरूरत होगी.’
यह समझाते हुए कि कैसे समता पार्टी को यूपी निकाय चुनावों के लिए मशाल चिन्ह दिया गया है, सिंह ने कहा कि चुनाव आयोग राज्य और राष्ट्रीय दलों के बीच अंतर करता है और चुनाव चिन्ह को दो स्तरों पर अलग-अलग आवंटित किया जा सकता है.
सिंह ने कहा, ‘नगर निकाय चुनाव के दौरान चुनाव चिह्न अस्थायी होता है. अगर इन चुनावों में पार्टी को एक प्रतिशत से अधिक वोट मिलते हैं, तो उन्हें राज्य में स्थायी स्टेटस मिल जाता है.’
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