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Friday, 22 November, 2024
होमदेश‘मुआवजा पाना एक संघर्ष है’- श्रीनगर में शहीद पुलिसकर्मी का परिवार मदद के लिए जगह-जगह ठोकरें खा रहा

‘मुआवजा पाना एक संघर्ष है’- श्रीनगर में शहीद पुलिसकर्मी का परिवार मदद के लिए जगह-जगह ठोकरें खा रहा

पुलिस अधिकारी के परिवार को जहां अपना हक पाने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है, वहीं इस तरह की टार्गेट किलिंग की घटनाओं ने घाटी में युवाओं को पुलिस बल में शामिल होने से हतोत्साहित किया है.

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श्रीनगर: इस साल के शुरू में श्रीनगर के बाहरी इलाके में सशस्त्र आतंकवादियों ने दिनदहाड़े एक निहत्थे पुलिस अधिकारी की हत्या कर दी थी. महीनों बीत जाने बाद भी उनके परिवार को सरकार की तरफ से किए गए वादे का आधा मुआवजा भी नहीं मिल पाया है.

पुलिस अधिकारी के परिवार को जहां अपना हक पाने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है, वहीं इस तरह की टार्गेट किलिंग की घटनाओं ने घाटी में न केवल लोगों के मन में डर बैठा दिया है, बल्कि युवाओं को पुलिस बल में शामिल होने से हतोत्साहित किया है.

शहीद पुलिस अधिकारी के परिवार में उनकी पत्नी, एक बेटा और एक बेटी है. बेटे की आयु 20 वर्ष के आसपास है और वह एक दिहाड़ी मजदूर है, जो प्रतिदिन 500-600 रुपये कमाता है.

नाम न छापने की शर्त पर सोमवार को दिप्रिंट से बातचीत में शहीद पुलिस वाले के परिवार के एक सदस्य ने कहा, ‘हमें समझ ही नहीं आ रहा कि उन्हें क्यों निशाना बनाया गया. वह पुलिस विभाग में एक मामूली कर्मचारी थे और हमें अभी तक इसका जवाब नहीं मिला है.’

परिवार का दावा है कि उन्हें बीमा सहित 1 करोड़ रुपये के मुआवजे का आश्वासन दिया गया था, लेकिन अब तक केवल 21 लाख रुपये ही मिले हैं. परिवार के उक्त सदस्य ने बताया, ‘और यह आंशिक राशि पाना भी हमारे लिए किसी संघर्ष और पीड़ा से कम नहीं रहा है. कागजी कार्यवाही इतनी लंबी थी कि हम बमुश्किल घर पर रुक पाते थे.’

यहीं नहीं परिवार को अब तक जो रकम मिली भी है, वो उसी कर्ज को चुकाने में चली गई जो शहीद पुलिसकर्मी ने लिया था. परिवार के सदस्य ने आगे कहा, ‘उन्होंने यह घर अपने दम पर बनाया है. उन्होंने विभाग से 14.9 लाख रुपये और बाजार से 5-6 लाख रुपये का कर्ज लिया था.’


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अनुकंपा के आधार पर नौकरी से किया इनकार

मुआवजे के अलावा, एसआरओ योजना के तहत परिवार के एक सदस्य को अनुकंपा के आधार पर नौकरी मिलनी थी, जिसे अब जम्मू-कश्मीर पुनर्वास सहायता योजना 2022 के रूप में जाना जाता है. हालांकि, मारे गए पुलिसकर्मी के बेटे को यह कहकर नौकरी देने से इनकार कर दिया गया कि वह शादीशुदा है और अब अपने पिता पर निर्भर नहीं था. परिवार ने दावा किया कि उत्तराधिकार प्रमाणपत्र पाने में उन्हें करीब डेढ़ महीने लग गए.

पुलिस बल में भर्ती होने से डर रहे युवा

वहीं, पास के इलाके में ही एक अन्य अधिकारी को भी इसी तरह मार दिए जाने की घटना का जिक्र करते हुए परिवार ने कहा कि उनकी गलती यह थी कि उन्होंने जम्मू-कश्मीर पुलिस की सेवा की. उन्होंने कहा, ‘अब युवाओं के मन में पुलिस बल में शामिल होने को लेकर संदेह है. मुझे तो नहीं लगता कि युवा इसके लिए बहुत ज्यादा उत्साहित होंगे. अब डर बहुत ज्यादा है.’

हालांकि, परिवार का कहना है कि विभाग काफी मददगार रहा और वरिष्ठ पुलिस अधिकारी घटना के बाद परिवार से मिलने आए. उन्होंने कहा, ‘अगले ही दिन क्षेत्र में बंकर स्थापित किए गए. इससे सुरक्षा बढ़ाने में मदद मिली है. लेकिन अगर उन्होंने यही काम पहले किया होता, खासकर यह देखते हुए कि इस क्षेत्र के तमाम लोग पुलिस बल में हैं, तो वह अभी जीवित होते.’

बंकरों के बावजूद इलाके में आतंकी हमले के बाद से दहशत का माहौल बना हुआ है. दिप्रिंट ने जब इलाके का दौरा किया और स्थानीय लोगों के साथ बातचीत की तो उनमें से कई ने यही राय जाहिर की कि इस तरह की हत्याओं ने युवाओं को पुलिस बल में भर्ती से हतोत्साहित किया है.

घर के पास ही एक दुकानदार ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, ‘हर कोई अब और अधिक चौकन्ना है. लोग डरे हुए हैं. नए लोग पुलिस में भर्ती होने से कतरा रहे हैं. शाम की नमाज के बाद बमुश्किल ही कोई बाहर निकलता है,’

पड़ोस में ही टहल रहे दो दोस्तों ने कहा, ‘पहले भी हालात खराब थे, लेकिन अब लोग ज्यादा डरने लगे हैं. बहुत से लोग पुलिस में भर्ती ही नहीं होना चाहते.’


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‘आतंकवाद खत्म हो रहा है’

हालांकि, श्रीनगर के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक राकेश बलवाल कहते हैं कि युवाओं में अभी भी सेना में शामिल होने का उत्साह है. उन्होंने बताया, ‘पिछले हफ्ते जब अग्निवीर शिविर आयोजित किया गया था, तो बड़ी संख्या में युवा यहां आए थे. वह उत्साह अभी भी बना हुआ है.’

उन्होंने मंगलवार को दिप्रिंट से बातचीत में कहा कि इस तरह के हमलों के बाद आम तौर पर कुछ डर बढ़ना स्वाभाविक है, लेकिन पुलिस ने इलाके में सुरक्षा बढ़ा दी है और विश्वास बहाली के कई उपाय किए हैं.’

इसी मुद्दे पर बलवाल यह भी कहते हैं, ‘वे (हमलावर) आसान लक्ष्य तलाशते हैं. क्योंकि आजकल कोई बड़ा हमला नहीं कर पाते. (आतंकवादियों की) भर्ती कम है और यह (आतंकवाद) खात्मे की तरफ है. इसलिए वे टारगेट किलिंग की कोशिश करते हैं.’

बलवाल ने इन आरोपों को निराधार बता खारिज कर दिया कि अधिकारी को इसलिए निशाना बनाया गया क्योंकि उसने घाटी में विरोध-प्रदर्शनों के दौरान लोगों को प्रताड़ित किया और उनकी हत्या की थी. उन्होंने कहा, ‘लोग इस तरह की बातें सिर्फ आरोप लगाने और ऐसे कृत्यों को जायज ठहराने के लिए करते हैं’.

(अनुवाद: रावी द्विवेदी)
(संपादनः अलमिना खातून)

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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