लखनऊ: सोशल मीडिया, टीवी डिबेट्स से लेकर सियासी गलियारों में इन दिनों प्रियंका गांधी की चर्चा है. 2019 लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस ने अपना ‘ट्रंप कार्ड’ चल दिया है. प्रियंका पूर्वी यूपी की कमान संभालेंगी. कांग्रेस द्वारा हर तरह से इसका प्रचार भी किया जा रहा है. कहीं प्रियंका के पोस्टर चिपकाए जा रहे हैं तो कहीं नए स्लोगन तैयार हो रहे हैं, लेकिन इस ‘शोर’ के बीच पश्चिम यूपी के प्रभारी ज्योतिरादित्य सिंधिया की चर्चा थोड़ी कम है, लेकिन उनके सामने चुनौतियां प्रियंका से कम नहीं हैं.
इसके कई कारण हैं , कुछ ऐसे समझें
प्रियंका को पूर्वी यूपी की जिम्मेदारी मिली है, जिसमें अवध क्षेत्र भी आता है जहां कई सीटों पर कांग्रेस की स्थिति बेहतर है. वहीं पार्टी में कई चेहरे भी हैं. इसको इस तरह से समझें कि रायबरेली, अमेठी के अलावा सुल्तानपुर, कानपुर, उन्नाव, लखनऊ, बाराबंकी, फैजाबाद, प्रतापगढ़ जैसी लोकसभा सीटे हैं, जहां कांग्रेस को ठीक-ठाक वोट मिलता रहा है. वहीं पीएल पुनिया, प्रमोद तिवारी, संजय सिंह, श्रीप्रकाश जायसवाल जैसे वरिष्ठ नेता भी इसी क्षेत्र से हैं.
ज्योतिरादित्य को पश्चिम यूपी की कमान मिली है जहां पिछले दो दशक से कांग्रेस की पकड़ बेहद कमजोर है. सहारनपुर, मुरादाबाद जैसे एक-दो जिलों को छोड़ दें तो ज्यादातर जगहों पर कांग्रेस से ज्यादा मजबूत सपा-बसपा या आरएलडी दिखी हैं. हालांकि, राहुल गांधी अपने स्तर से वेस्टर्न यूपी में गंभीर मुद्दे पर सक्रिय रहे. किसानों की जमीन अधिग्रहण के मुद्दे पर भट्टा-पारसौल में आंदोलन का हिस्सा बने. सहारनपुर के दलित उत्पीड़न के मामले में भी आवाज उठाई, लेकिन तमाम प्रयास के बाद भी कांग्रेस को उम्मीद के मुताबिक मजबूती नहीं मिली.
ये है पश्चिम यूपी में कांग्रेस की स्थिति
2014 लोकसभा चुनाव में तो पार्टी एक सीट भी पश्चिम यूपी में नहीं जीत पाई. वहीं 2017 विधानसभा चुनाव में भी प्रदर्शन खराब ही रहा. अगर विधानसभा परिणामों के अनुसार सियासी समीकरण समझें तो अभी सहारनपुर में कांग्रेस के दो विधायक नरेश सैनी और मसूद अहमद हैं. 2012 में भी दो विधायक थे. बाकी इस जिले में किसी विधानसभा में कोई सदस्य नहीं है. इससे पहले 2012 में बुलंदशहर के स्याना से दिलनवाज खां, खुर्जा से बंशी पहाड़िया, शामली से पंकज मलिक, मथुरा से प्रदीप माथुर विधायक रहे. बीते 20 सालों में हापुड़ से गजराज सिंह, गाजियाबाद से सुरेंद्र मुन्नी, रामपुर के बिलासपुर से संजय कपूर और मिलक से काजिम अली खां, एमएलए बने. वहीं बिजनौर, मुरादाबाद, बदायूं, अमरोहा, संभल, बागपत, गौतमबुद्धनगर, मेरठ, मुजफ्फरनगर, अलीगढ़, आगरा आदि जिलों से लंबे वक्त से कोई विधानसभा चुनाव भी नहीं जीत पाया.
अगर लोकसभा चुनाव की बात करें तो पिछले दो दशक में रामपुर से नूर बानो, गाजियाबाद से सुरेंद्र गोयल, मेरठ से अवतार सिंह भड़ाना, मुरादाबाद से पूर्व क्रिकेटर अजहरुद्दीन जरूर जीते, लेकिन 2014 में इस क्षेत्र में पार्टी का खाता तक नहीं खुला. कांग्रेस के ज्यादातार प्रत्याशी तीसरे या चौथे नंबर पर रहे. कई सीटों पर तो जमानत तक जब्त हो गई.
सिंधिया के पक्ष में क्या है
ज्योतिरादित्य सिंधिया मध्य प्रदेश के ग्वालियर के हैं, जो कि पश्चिम यूपी के आगरा जिले के पास है. उन्हें पश्चिम यूपी में भी लोग जानते हैं. हाल ही में मध्य प्रदेश में मिली जीत से युवा नेता के तौर पर उनकी लोकप्रियता भी बढ़ी है. वह राहुल गांधी के बहुत करीबी हैं. या यू कहें कि पार्टी में पहली पंक्ति के असरदार नेता हैं. सोशल मीडिया पर भी काफी एक्टिव रहते हैं.
जो फैक्टर नहीं हैं पक्ष में
प्रियंका रायबरेली, अमेठी में पिछले कई साल से चुनाव प्रचार कर रहीं हैं. इस कारण उनकी पकड़ आस-पास के इलाकों में भी है. ज्योतिरादित्य सिंधिया यूपी की सियासत में नए होंगे. पश्चिम यूपी में उनका लोकल कनेक्ट भी नहीं. यही नहीं पश्चिम यूपी में कांग्रेस का संगठन भी कमजोर है. पूर्वी यूपी की तुलना में उतने बड़े चेहरे भी पश्चिम में नहीं हैं.
जातीय समीकरण साधने की चुनौती
पश्चिम यूपी में किसी जमाने में दलित, मुस्लिम और ब्राह्मण को कांग्रेस का कोर वोटर माना जाता था, जिसका भरोसा कांग्रेस दोबारा हासिल करना चाहेगी. ऐसा माना जाता है कि दलित बीएसपी, ब्राह्म्ण बीजेपी और मुस्लिम, एसपी तथा बीएसपी की तरफ खिसक गया. कांग्रेस के नेताओं का कहना है कि पुराना वोटबैंक साधने की पूरी कोशिश रहेगी. वहीं ज्योतिरादित्य की युवाओं के बीच प्रसिद्धि को देखते हुए नौजवान और किसानों को भी आकर्षित करने पर जोर रहेगा. पश्चिम यूपी में कांग्रेस को खड़ा करने के लिए यहां के जनाधार वाले नेताओं को संगठन में तरजीह देने की तैयारी है. हर जिले से चर्चित और पुराने चेहरों की तलाश शुरू हो गई है.
ये सीटें हैं अहम
पश्चिम यूपी में यूं तो लगभग सभी सीटों पर कांग्रेस चुनाव लड़ेगी, लेकिन कुछ सीटों पर विशेष फोकस होगा. जैसे सहारनपुर, गाजियाबाद, मेरठ, बरेली, मुरादाबाद, धौरारा, फतेहपुर सीकरी, फर्रुखाबाद, फिरोजाबाद, अलीगढ़. इनमें से अधिकतर सीटें वो हैं जिन पर कांग्रेस ने 2009 में जीत हासिल की थी या फिर 2014 में ठीक-ठाक वोट मिले थे.
कांग्रेस से जुड़े सूत्रों के मुताबिक ज्योतिरादित्य सिंधिया फरवरी के पहले सप्ताह से कार्यभार संभाल सकते हैं. वह पश्चिम के सभी जिलाध्यक्षों के साथ जल्द ही बैठक करेंगे. उन्हें मध्य प्रदेश से लोकसभा चुनाव भी लड़ना है और अब पश्चिम यूपी में कांग्रेस को मजबूत भी करना है. ऐसे में यूपी में प्रियंका के ‘शोर’ के बीच ज्योतिरादित्य सिंधिया के लिए अधिक चुनौतियां दिख रही हैं.