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Friday, 22 November, 2024
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शिक्षाविदों को हुई चिंता, UGC के नए नियमों की वजह से बिना रिसर्च अनुभव के ही PhD हो जाएंगे छात्र

यूजीसी ने इस हफ्ते के शुरू में ही पीएचडी प्रोग्राम के नए नियमों को अधिसूचित किया है जिसमें प्रवेश और मूल्यांकन संबंधी योग्यताओं समेत कई महत्वपूर्ण संशोधन किए गए हैं.

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नई दिल्ली: विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के उन नए नियमों को लेकर तमाम शिक्षाविद संदेह की स्थिति में हैं, जिनमें कहा गया है कि चार साल का स्नातक पाठ्यक्रम पूरा कर लेने वाले छात्र सीधे डॉक्टरेट की डिग्री हासिल करने के लिए आवेदन कर सकते हैं. शिक्षाविदों का कहना है कि इन छात्रों के पास रिसर्च का कोई अनुभव नहीं होगा और ऐसे में अध्ययन के पहले कुछ साल उनके लिए काफी कठिन हो जाएंगे.

यूजीसी ने इस हफ्ते के शुरू में ही पीएचडी प्रोग्राम के नए नियमों को अधिसूचित किया है जिसमें प्रवेश और मूल्यांकन संबंधी योग्यताओं समेत कई महत्वपूर्ण संशोधन किए गए हैं.

शिक्षाविदों की तरफ से एक और तर्क यह भी दिया जा रहा है कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) के तहत तैयार चार वर्षीय स्नातक कार्यक्रम अभी सभी यूनिवर्सिटी में लागू नहीं किया गया है. और, चूंकि स्नातक स्तर का यह प्रोग्राम पीएचडी के लिए सीधे आवेदन की एक पूर्व शर्त है, इसलिए मौजूदा छात्रों को पीएचडी प्रोग्राम की पात्रता के लिए मास्टर डिग्री हासिल करना जारी रखना होगा.

जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी (जेएनयू) में सहायक प्रोफेसर रोहित ने कहा कि देश की उच्च शिक्षा प्रणाली में हर प्रोग्राम किसी खास उद्देश्य के साथ बनाया गया है. मसलन, स्नातक पाठ्यक्रम छात्रों को किसी विषय विशेष से परिचित कराता है, मास्टर डिग्री उसे उस विषय में विशेषज्ञता प्रदान करती है, फिर एम.फिल डिग्री की डिग्री के जरिये रिसर्च का अंतरिम प्रशिक्षण हासिल होता है और अंततः पीएचडी प्रोग्राम उन्हें उस विषय के विशेषज्ञ के तौर पर स्थापित करने में मदद करता है. नए नियम इस पूरे स्ट्रक्चर को बाधित करने वाले हैं.

उन्होंने कहा, ‘ऐसा लगता है कि यूजीसी इंट्रीग्रेटेड पीएचडी वाला अमेरिकी सिस्टम अपनाने की कोशिश कर रहा है, लेकिन इसके फायदे कम और नुकसान ज्यादा हैं. चाहे ह्यूमैनिटी हो या विज्ञान, कोई भी छात्र किसी भी विषय में विशेषज्ञता हासिल किए बिना डॉक्टरेट वाला रिसर्च पेपर नहीं लिख सकता है.

उन्होंने कहा कि यह कदम छात्रों को डॉक्टरेट प्रोग्राम में शामिल होने से हतोत्साहित करेगा. इस संदर्भ में उनका तर्क है, ‘जेएनयू में हमने समय और डिग्री के साथ छात्रों की शैक्षणिक काबिलियत में सुधार देखा है. ऐसे में लगता है कि जो छात्र अपनी स्नातक डिग्री में उत्कृष्ट शिक्षा हासिल नहीं कर पाएंगे, स्वाभाविक तौर पर डॉक्टरेट प्रोग्राम में आगे बढ़ने से कतराएंगे, क्योंकि वे खुद को स्नातक डिग्री कोर्स या मास्टर्स कोर्स वाले अपने साथी छात्रों के बराबर प्रदर्शन में सक्षम नहीं पाएंगे.

एम.फिल, मास्टर्स प्रोग्राम की जरूरत नहीं

दिल्ली यूनिवर्सिटी के रामजस कॉलेज में एसोसिएट प्रोफेसर देबराज मुखर्जी का कहना है कि छात्रों के लिए अपना रिसर्च पेपर जर्नल में प्रकाशित कराने की बाध्यता को खत्म करना तो एक सकारात्मक कदम है. लेकिन, एम.फिल और मास्टर प्रोग्राम को हटाने का निर्णय छात्रों की मुश्किल थोड़ी बढ़ा देगा क्योंकि उनके डॉक्टरेट अध्ययन के पहले कुछ साल तो सिर्फ रिसर्च मैथडोलॉजी सीखने में लग जाएंगे.

उन्होंने कहा, ‘हमारे देश में स्नातक और स्नातकोत्तर कार्यक्रम इस तरह डिजाइन किए गए हैं जिसमें छात्रों को रिसर्च का कोई मौका नहीं मिलता. जबकि एम.फिल प्रोग्राम ने उन्हें व्यापक रिसर्च करने का अनुभव देता है, इसे हटाने से डॉक्टरेट की डिग्री हासिल करने के इच्छुक छात्रों के लिए एक समस्या खड़ी हो जाएगी. उन्हें अपने डॉक्टरेट के अध्ययन के पहले कुछ साल रिसर्च प्रक्रिया समझने में ही लगाने पर मजबूर होना पड़ेगा.’

स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज के डीन और जेएनयू में चाइना स्टडीज के एक प्रोफेसर श्रीकांत कोंडापल्ली कहते हैं कि यह यूजीसी की तरफ से एनईपी लागू करने की दिशा में उठाया गया एक कदम लगता है, लेकिन चार साल के अंडरग्रेजुएट प्रोग्राम वाले पर्याप्त स्नातक कॉलेज नहीं हैं.

उन्होंने कहा, ‘एम.फिल की डिग्री को खत्म करने की बात तो समझ आती है क्योंकि यूनिवर्सल मानकों के मुताबिक यह एक डॉक्टरेट डिग्री के ही अनुरूप है. हालांकि, जेएनयू में, जहां सभी क्षेत्रों और समाज के सभी वर्गों के छात्र आते हैं, एम.फिल उन छात्रों के लिए एक प्रारंभिक पाठ्यक्रम के तौर पर काफी कारगर है, जो डॉक्टरेट की डिग्री हासिल करने में सक्षम नहीं होते.

उन्होंने कहा, ‘चूंकि एनईपी के तहत चार वर्षीय स्नातक कार्यक्रम देश के सभी विश्वविद्यालयों में लागू नहीं किया गया है, इसलिए यह प्रावधान टेक स्टूडेंट के लिए अधिक मददगार होगा.’

पीयर-रिव्यूड पब्लिकेशन में रिसर्च पेपर प्रकाशित कराने का प्रावधान खत्म किए जाने पर प्रो मुखर्जी ने कहा, ‘पिछले कुछ सालों में हमने देखा है कि फर्जी जर्नल की संख्या काफी बढ़ गई है, जिसमें रिसर्च पेपर पब्लिश कराने के लिए छात्र पैसे भी देते हैं. यह प्रावधान खराब गुणवत्ता वाले रिसर्च पेपर के प्रकाशन पर रोक लगाएगा.’


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सही मेथडोलॉजी सीखना महत्वपूर्ण

इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के प्रो. पंकज कुमार ने कहा कि यूजीसी ने उच्च शिक्षण संस्थानों को नए-नए प्रयोग की लैब बना दिया है. सभी डॉक्टरेट छात्रों के लिए रिसर्च एक ऐसा प्रयास होना चाहिए जिसे वे केवल तभी अपनाए जब उनका इस और अकादमिक झुकाव हो और रिसर्च करने के लिए प्रेरित हों.

उन्होंने कहा, ‘इंटरनेट आने के बाद रिसर्च के प्रति छात्रों का झुकाव खत्म हो गया है. उनका ज्यादातर काम आमतौर पर कॉपी-पेस्ट से ही चलता है. ऐसे में उन कोर्स को हटा देना, जो उन्हें शोध करना सिखाते हैं, छात्रों को रिसर्च करने के काबिल भी नहीं रहने देगा.’

उन्होंने आगे कहा कि अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप प्री-डॉक्टोरल कोर्स समय की जरूरत है ताकि इच्छुक छात्र डॉक्टरेट की डिग्री हासिल करने के लिए सही मेथडोलॉजी और डिजाइन सीख सकें.

क्या कहते हैं नए नियम

पीएचडी के लिए नए नियम यानी ‘यूनिवर्सिटी ग्रांट कमीशन (मिनिमम स्टैंडर्ड फॉर प्रोसीजर्स फॉर अवार्ड ऑफ पीएचडी डिग्री) रेग्युलेशन, 2022’ में कहा गया है जहां ग्रेडिंग सिस्टम का पालन किया जाता है, उम्मीदवार को ‘कुल या इसके समकक्ष ग्रेड में एक प्वाइंट स्केल पर न्यूनतम 75 प्रतिशत अंक हासिल होने चाहिए.’

यदि ऐसा न हो तो छात्र को एक वर्षीय मास्टर प्रोग्राम में हिस्सा लेना होगा और कम से कम 55 प्रतिशत अंक हासिल करने होंगे.

नियम आगे कहते हैं, ‘जहां भी ग्रेडिंग सिस्टम का पालन किया जाता है, एक प्वाइंट स्केल पर कुल या इसके समकक्ष ग्रेड में कम से कम 55 प्रतिशत अंकों के साथ 4 साल के स्नातक डिग्री प्रोग्राम के बाद एक साल का मास्टर डिग्री प्रोग्राम, या 3 साल के स्नातक डिग्री प्रोग्राम के बाद 2 साल का मास्टर डिग्री प्रोग्राम, या संबंधित वैधानिक नियामक निकाय की तरफ से मास्टर डिग्री के बराबर क्वालीफिकेशन इसकी पात्रता प्रदान करेगी.’

यूजीसी ने पीएचडी के लिए अनिवार्य रहे ‘पीयर-रिव्यू जर्नल में पेपर पब्लिश करने’ के क्लॉज को हटा दिया है. 2016 के नियमों में कहा गया था कि पीएचडी स्कॉलर को डिग्री पर ‘अंतिम निर्णय के लिए शोध/थीसिस जमा करने से पहले एक रेफरीड जर्नल में कम से कम एक रिसर्च पेपर प्रकाशित कराना चाहिए और सम्मेलनों/सेमिनारों में उनके दो पेपर प्रस्तुत हो चुके होने चाहिए.’

यूजीसी के नए नियमों में छात्रों की रिसर्च क्वालिटी सुधारने और उनके मेंटर/गाइड की तरफ से दी जाने वाली सहायता के संबंध में कई प्रावधान किए गए हैं. महिला उम्मीदवारों और दिव्यांगों को अपना शोध पूरा करने के लिए अतिरिक्त समय मिलेगा.

स्कॉलर्स को जहां पहले हर छह महीने में एक बार अपने निष्कर्ष और प्रगति की जानकारी देने के लिए रिसर्च एडवाइजरी कमेटी के सामने पेश होना पड़ता था, उन्हें अब हर सेमेस्टर में ऐसा करना होगा.

नए नियम के तहत सेवानिवृत्ति से पहले तीन साल से कम की सेवा वाले फैकल्टी सदस्यों को नए छात्रों को लेने से रोक दिया गया है. पीएचडी प्रोग्राम में प्रवेश लेने वाले छात्रों की संख्या बढ़ाने को प्रोत्साहित करने की कवायद के बीच पूर्व में पीएचडी के लिए प्रस्तावित सामान्य प्रवेश परीक्षा का प्रस्ताव छोड़ दिया गया है.

नए नियम के तहत हर सुपरवाइजर को अपने घरेलू छात्रों के अलावा दो अंतरराष्ट्रीय शोध स्कॉलर को गाइड करने की अनुमति है.

(संपादनः शिव पाण्डेय)
(अनुवादः रावी द्विवेदी)

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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