नई दिल्ली: शिक्षा मंत्रालय द्वारा जारी ताजा आंकड़ों के मुताबिक एक साल के अंदर पहली से 8वीं तक की कक्षा के छोटे बच्चों के स्कूल छोड़ने की दर लगभग दोगुनी हो गई है. इसका अर्थ यह है कि पिछले साल की तुलना में इस साल अधिकतर छोटे बच्चों ने बीच में ही स्कूल छोड़ दिया.
हालांकि, रिपोर्ट से पता चला है कि बड़े बच्चों के बीच में स्कूल छोड़ने की दर पिछले वर्ष की तुलना में कम हुई है.
गुरुवार को जारी यूनिफाइड डिस्ट्रिक्ट इंफॉर्मेशन सिस्टम फॉर एजुकेशन (यूडीआईएसई) प्लस 2021-22 की रिपोर्ट से यह आंकड़ा सामने आया है. यह एक व्यापक अध्ययन है जो स्कूली छात्रों के नामांकन और छोड़ने की दर, स्कूलों में शिक्षकों की संख्या और शौचालय, भवन और बिजली जैसी अन्य बुनियादी सुविधाओं के बारे में जानकारी प्रदान करता है.
आंकड़ों के मुताबिक प्राथमिक स्तर (कक्षा 1 से 5) पर स्कूल छोड़ने की दर शैक्षणिक वर्ष 2021-22 में 1.5 प्रतिशत हो गई है, जो 2020-21 में 0.8 प्रतिशत थी. उच्च प्राथमिक स्तर (कक्षा 6-8) पर, वर्ष 2020-21 में 1.9 प्रतिशत की तुलना में 2021-22 में छोड़ने की दर 3 प्रतिशत हो गई है.
दरअसल उच्च प्राथमिक स्तर पर स्कूल छोड़ने की दर तीन साल में सबसे अधिक है. 2019-20 की रिपोर्ट से पता चलता है कि स्कूल छोड़ने की दर 2.6 प्रतिशत थी, जो 2020-21 में घटकर 1.9 प्रतिशत हो गई और फिर 2021-22 में फिर से 3 प्रतिशत हो गई. तीन वर्षो में इस स्तर पर लड़कियों के बीच स्कूल छोड़ने की दर लड़कों की तुलना में अधिक रही है.
बीच में स्कूल छोड़ने वाले बच्चों का प्रतिशत इस बात की ओर इशारा करता है कि बच्चे स्कूल से अनुपस्थित रह रहे हैं. इसका कोई व्यक्तिगत कारण भी हो सकता है. मंत्रालय ने इस साल शुरुआत में ही सभी राज्यों को स्कूल छोड़ने वाले बच्चों की पहचान करने और उन्हें स्कूल सिस्टम में वापस लाने का निर्देश जारी किया था.
हालांकि, माध्यमिक स्तर पर स्कूल छोड़ने की दर पिछले शैक्षणिक वर्ष के 14.6 प्रतिशत की तुलना में घटकर 12.6 प्रतिशत हो गई है.
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नामांकन दर में बढ़ोत्तरी
रिपोर्ट में कहा गया कि भारत में पिछले साल की तुलना में इस साल 19.63 लाख नए छात्र स्कूल से जुड़े. इसमें सरकारी और प्राइवेट, दोनों स्कूल शामिल हैं. छात्रों की संख्या 2020-21 में 25.38 करोड़ से बढ़कर 25.57 करोड़ हो गई है.
वहीं, अगर छात्राओं की बात करें तो इस साल 8.19 लाख से अधिक लड़कियां स्कूल सिस्टम से जुड़ीं. नवीनतम रिपोर्ट से पता चला है कि स्कूल में लड़कियों का प्रतिनिधित्व अब इसी आयु वर्ग में उनकी आबादी के हिसाब से ठीक है.
रिपोर्ट के अनुसार जीईआर (सकल नामांकन अनुपात) का लिंग समानता सूचकांक (जीपीआई) दर्शाता है कि स्कूली शिक्षा में महिलाओं का प्रतिनिधित्व संबंधित आयु समूहों की आबादी में लड़कियों के प्रतिनिधित्व के अनुरूप है. स्कूली शिक्षा के सभी स्तरों पर GPI मापदंड एक या एक से अधिक है जो स्कूली शिक्षा में लड़कियों की अधिक भागदारी को दिखाता है.
रिपोर्ट में कहा गया है कि सकल नामांकन अनुपात (जीईआर) जो भागीदारी के सामान्य स्तर को मापता है, 2020-21 की तुलना में सरकारी शिक्षा में प्राथमिक, उच्च प्राथमिक और उच्च माध्यमिक स्तर पर 2021-22 में सुधार हुआ है. विशेष रूप से उच्चतर माध्यमिक में जीईआर ने 2020-21 में 53.8 प्रतिशत से 2021-22 में 57.6 प्रतिशत तक महत्वपूर्ण सुधार हुआ है.
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