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Friday, 22 November, 2024
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UP में सबसे प्रभावशाली अधिकारी कौन है? योगी की कोर टीम के नए चेहरों से मिलिए

सीएम आदित्यनाथ के दूसरे कार्यकाल का फोकस 'ट्रिलियन-डॉलर' अर्थव्यवस्था और इसे सुगम बनाने के लिए कानून-व्यवस्था में सुधार करना है. कुछ शीर्ष अधिकारियों पर एक नज़र जो उनकी कोर टीम बनाते हैं.

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लखनऊ: सात महीने पहले जिस दिन से योगी 2.0 ने कार्यभार संभाला है, तब से वह मिशन मोड मे हैं. अपने दूसरे कार्यकाल में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के लिए राज्य में कानून और व्यवस्था एक प्राथमिकता बनी हुई है, तो वहीं दूसरी तरफ लखनऊ में सत्ता के गलियारों में चर्चा उत्तर प्रदेश को एक ट्रिलियन-डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने की भी है. यूपी को इन्वेस्टमेंट हब के तौर पर दिखाने के लिए दो डिप्टी सीएम और मंत्री नवंबर से करीब एक दर्जन शहरों में रोड शो करना शुरू कर देंगे. इनमें सीएम के शामिल होने की भी संभावना है. अगले फरवरी में तीन दिवसीय निवेशक शिखर सम्मेलन के दौरान 10 ट्रिलियन रुपये के निवेश को आकर्षित करने की योजना है.

इन सभी पहलों का नेतृत्व मुख्यमंत्री कार्यालय (सीएमओ) कर रहा है, जो एक केंद्रीय कमांड-एंड-कंट्रोल सिस्टम बन गया है. योगी का पहला कार्यकाल विवादों से भरा रहा था, चाहे वह ‘एंटी-रोमियो’ दस्तों का गठन हो या अवैध बूचड़खानों को बंद करना, मुठभेड़ हत्याएं, बुलडोजर बाबा, और निश्चित रूप से ध्रुवीकरण को लेकर की गईं उनकी टिप्पणियां और भाषण. लेकिन अपने दूसरे कार्यकाल में योगी का पूरा ध्यान यूपी की अर्थव्यवस्था और ट्रिलियन-डॉलर के लक्ष्य को पाने के लिए कानून और व्यवस्था में सुधार करने पर है.

एक नए लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए मुख्यमंत्री ने भरोसेमंद नौकरशाहों की अपनी टीम में भी कुछ बदलाव किए हैं. 31 अगस्त को तत्कालीन अतिरिक्त मुख्य सचिव (गृह) अवनीश अवस्थी का कार्यकाल समाप्त हो गया और योगी 2.0 में पहला बड़ा फेरबदल हुआ. अवस्थी को यूपी में सबसे शक्तिशाली अधिकारी माना जाता है.

मायावती से लेकर अखिलेश यादव और खुद योगी तक लगातार मुख्यमंत्रियों का विश्वास हासिल करने वाले पूर्व अतिरिक्त मुख्य सचिव (सूचना) नवनीत सहगल को यूपी के सबसे प्रभावशाली आईएएस अधिकारियों में से एक के रूप में देखा जाता था. लेकिन एक बड़े फेरबदल में उनसे महत्वपूर्ण विभागों का प्रभार ले लिया गया. वह पहले सूचना एवं जनसंपर्क, एमएसएमई एवं निर्यात संवर्धन, हथकरघा एवं वस्त्र, खादी और ग्रामोद्योग सहित कई महत्वपूर्ण विभागों को संभाले हुए थे. अब उनके पास सिर्फ अपेक्षाकृत कम महत्वपूर्ण खेल विभाग की जिम्मेदारी है.

जहां अवस्थी रिटायरमेंट के 15 दिन बाद सलाहकार की भूमिका में वापस आ गए, वहीं टीम योगी में कुछ बदलाव भी किए गए हैं. दिप्रिंट उन आधा दर्जन अधिकारियों पर एक नज़र डाल रहा है जो इस कोर टीम का हिस्सा हैं.


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सीएम के अपर मुख्य सचिव शशि प्रकाश गोयल

1989 बैच के आईएएस अधिकारी गोयल लखनऊ आने से पहले केंद्र सरकार में उच्च शिक्षा विभाग में संयुक्त सचिव के रूप में कार्यरत थे. 19 मई 2017 को गोयल को मुख्यमंत्री का प्रमुख सचिव नियुक्त किया गया और उन्हें नागरिक उड्डयन के साथ-साथ संपत्ति और प्रोटोकॉल विभागों का प्रभार भी सौंपा गया था.

राज्य सरकार में सेवारत एक वरिष्ठ आईएएस अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया, ‘गोयल हमेशा यूपी के सबसे प्रभावशाली नौकरशाहों में से एक रहे हैं. जहां अन्य नौकरशाहों ने सीएम के करीबी और प्रभावशाली होने की छवि बनाई हुई हैं, वहीं गोयल लो प्रोफाइल बने रहे हैं. इससे उन्हें (उनके करियर में) मदद मिली है. हकीकत यह है कि सभी जरूरी फाइलें गोयल से होकर गुजरती हैं. वह निर्विवाद रूप से आज उत्तर प्रदेश में सबसे शक्तिशाली ब्यूरोक्रेट हैं.’

राज्य सरकार की वेबसाइट बताती है कि गोयल अतिरिक्त निवासी आयुक्त का प्रभार भी संभाल हुए हैं.

गोयल उन 21 सीनियर आईएएस अधिकारियों में शामिल थे, जिन्हें यूपी सरकार ने उस साल इन पदों के सृजन के बाद 2020 में अतिरिक्त मुख्य सचिव (एसीएस) रैंक पर पदोन्नत किया था. अब वह सीएम के अतिरिक्त मुख्य सचिव का पदभार संभाले हुए हैं.

सीएम के प्रधान सचिव संजय प्रसाद

1995 बैच के आईएएस अधिकारी प्रसाद मुख्यमंत्री के प्रमुख सचिव हैं और प्रमुख विभागों के प्रभारी हैं, जिनमें गृह, गोपनीय और वीजा एवं पासपोर्ट शामिल हैं. इनमें से अधिकांश विभाग अपने रिटायरमेंट से पहले अवस्थी के पास थे, जबकि सूचना और पीआर को सहगल संभाल रहे थे.

प्रसाद ने पहले प्रयागराज और महाराजगंज के बतौर जिला मजिस्ट्रेट कार्य कर रहे थे. यह इलाका योगी के निर्वाचन क्षेत्र गोरखपुर से जुड़ा हुआ है. प्रसाद अयोध्या के संभागीय आयुक्त के पद पर भी रह चुके हैं.

प्रसाद जून 2015 से मार्च 2019 तक लगभग चार साल केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर रहे. इसके बाद वह लोकसभा चुनाव से पहले यानी मार्च 2019 में उत्तर प्रदेश लौट आए. प्रसाद को दो सितंबर 2019 को सीएम का सचिव नियुक्त किया गया था और वह अभी भी सीएमओ में कार्यरत हैं.


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सीएम के सलाहकार अवनीश अवस्थी

अवस्थी के लिए 16 सितंबर को ‘सीएम के सलाहकार’ का एक ‘अस्थायी’ पद बनाया गया था. अपने इस पद पर वह अगले साल 28 फरवरी तक बने रहेंगे.

योगी की टीम में योजना बनाने वालों में आज भी वह एक प्रमुख खिलाड़ी हैं, यह उनके और प्रमुख सचिव (पर्यटन और संस्कृति) मुकेश कुमार मेश्राम की पिछले मंगलवार को अयोध्या की यात्रा से साफ नजर आता है. ये दोनों शहर के दिवाली की तैयारियों, दीपोत्सव का जायजा लेने के लिए वहां पहुंचे थे. रविवार को पहली बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उस कार्यक्रम में शामिल हुए थे.

यूपी में सबसे शक्तिशाली ब्यूरोक्रेट के रूप में देखे जाने वाले 1987-बैच के आईएएस अधिकारी को 31 अगस्त को सेवानिवृत्त होने से पहले गृह, गोपनीय, वीजा एवं पासपोर्ट, जेल प्रशासन, सतर्कता और ऊर्जा सहित महत्वपूर्ण विभागों को संभाल रहे थे.

अतिरिक्त मुख्य सचिव (गृह) के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान अवस्थी ने 2020 में नागरिकता विरोधी (संशोधन) अधिनियम के प्रदर्शनकारियों पर कार्रवाई, अतिक्रमण करने वालों और जून में प्रयागराज में हुई हिंसा के आरोपियों के खिलाफ बुलडोजर की तैनाती का निरीक्षण कर रहे थे.

एक वरिष्ठ आईएएस अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया, ‘अवस्थी अभी तक सीएम के विश्वासपात्र बने हुए हैं और सीएम की इच्छा के अनुरूप कुछ विशेष परियोजनाओं और गतिविधियों की देखरेख करते हैं. हालांकि शक्ति का केंद्रीकरण कहीं और है, लेकिन बदलाव धीरे-धीरे होता है.’

दुर्गा शंकर मिश्रा, मुख्य सचिव

केंद्रीय कार्मिक मंत्रालय ने पिछले साल 29 दिसंबर को उनके रिटायरमेंट से दो दिन पहले एक साल का विस्तार देते हुए मिश्रा को यूपी का मुख्य सचिव नियुक्त किया था.

यूपी सरकार के एक अधिकारी ने कहा, ‘कई आईएएस अधिकारी हैं जिन्हें सेवा में विस्तार मिला है, लेकिन इस तरह के पद के लिए एक साल काफी कम है.’

वह यूपी में केंद्र सरकार के खास व्यक्ति माने जाते हैं. 1984 बैच के आईएएस अधिकारी को जुलाई में यूपी का मुख्य निवासी आयुक्त भी बनाया गया था. अधिकारियों का कहना है कि भले ही मिश्रा शीर्ष पद पर हों, लेकिन फिर भी वह सीएमओ में प्रमुख परियोजनाओं को संभालने वालों में से एक बने हुए हैं.

एक वरिष्ठ आईएएस अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया, ‘उनकी नियुक्ति को पीएमओ का समर्थन मिला क्योंकि उन्हें मोदी के भरोसेमंद नौकरशाहों में से एक के रूप में देखा जाता है. यूपी के मुख्य सचिव के रूप में उनकी नियुक्ति के लिए उन्हें एक साल का सेवा विस्तार दिया गया है. अधिक महत्वपूर्ण फाइलें सीधे एस. पी. गोयल के कार्यालय में जाती हैं. मुख्य सचिव हर मंगलवार को अधिकारियों के साथ बैठक करते हैं. उनके पद के आधार पर उनके पास जाने वाली फाइलें उनके पास ही आतीं हैं, जबकि प्रमुख परियोजनाओं की देखरेख सीएमओ के लोग कर रहे हैं.’

मिश्रा खासकर जिलाधिकारियों और अन्य अधिकारियों के साथ वाली बैठकों में अपनी मोटिवेशनल बातचीत के लिए जाने जाते हैं.

ऊपर उद्धृत अधिकारी ने कहा, ‘वह एक डायनमिक अधिकारी हैं. उनसे उनके पूर्ववर्ती आर के तिवारी की तुलना में अधिक प्रभावशाली होने की उम्मीद की जा रही थी क्योंकि उन पर केंद्र की मुहर लगी हुई है. लेकिन उन्हें बैठकें करने तक ही सीमित कर दिया गया हैं. ज्यादातर ब्रीफिंग में जहां सीएम मौजूद होते हैं, वहां सीएम और उनके भरोसेमंद सहयोगी ही बातचीत को आगे बढ़ाते हैं, न कि वह.’

यूपी सरकार में कार्यरत रहे एक रिटायर्ड आईएएस अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया कि यूपी में सत्ता में काम करने का तरीका बदल गया है. उन्होंने कहा, ‘यह साफ है कि सीएम के प्रति निष्ठा और निकटता स्पष्ट रूप से किसी भी अन्य विशेषता को प्रभावित करती है जो एक अधिकारी के पास हो सकती है. तथ्य यह है कि मिश्रा के पास दिल्ली की मुहर है, जिससे उनकी स्थिति असहज हो जाती है.’


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डीएस चौहान, कार्यवाहक डीजीपी

भले ही राज्य सरकार और संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) अगले पुलिस महानिदेशक की तलाश करने में लगे हों, लेकिन कार्यवाहक पुलिस प्रमुख देवेंद्र सिंह चौहान इस पद के लिए योगी की पसंद बने हुए हैं. उनके पास महानिदेशक, खुफिया एवं मुख्यालय और निदेशक, सतर्कता का प्रभार भी है.

1988 बैच के आईपीएस अधिकारी ने अपने पूर्ववर्ती मुकुल गोयल को कथित तौर पर ‘सरकारी कर्तव्य की उपेक्षा’ और ‘विभागीय कार्यों में रुचि की कमी’ के कारण हटाए जाने के दो दिन बाद 13 मई को कार्यवाहक डीजीपी के रूप में पदभार ग्रहण किया था.

यूपी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया, ‘मामला अधर में है. अगर यूपीएससी ने तब तक अपनी कोई सिफारिश नहीं भेजी तो संभावना है कि चौहान मार्च 2023 में अपने रिटायरमेंट तक इस पद पर बने रहेंगे. कार्यवाहक डीजीपी होने और इस पद के लिए सरकार की पसंद होने के कारण चौहान एक महत्वपूर्ण व्यक्ति हैं, जिनके कंधों पर तीन लाख पुलिस बल की जिम्मेदारी है.’

प्रशांत कुमार, एडीजी (लॉ एंड ऑर्डर)

अपराध पर पुलिस की 24×7 निगरानी के लिए जाने जाने वाले कुमार चौहान के बाद राज्य के सबसे प्रभावशाली पुलिस अधिकारियों में से एक हैं. हलांकि आईपीएस ग्रेडेशन सूची में वह 27वें स्थान पर हैं. बिहार के 1990 बैच के आईपीएस अधिकारी को शुरू में तमिलनाडु कैडर के लिए चुना गया था, लेकिन बाद में 1994 में उनका चयन यूपी कैडर के लिए किया गया.

एडीजी (मेरठ) के रूप में कुमार का तीन साल का कार्यकाल अपराध के लिए ‘जीरो टोलरेंस’ वाली यूपी पुलिस की बदलती छवि के साथ मेल खाता है. उन्हें मई 2020 में एडीजी (लॉ एंड ऑर्डर) नियुक्त किया गया था.

घनी मूंछ वाले इस अधिकारी ने अक्टूबर 2020 में उस समय सुर्खियां बटोरीं जब उन्होंने एक फोरेंसिक रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा था कि हाथरस गैंगरेप और हत्या मामले में पीड़िता का बलात्कार नहीं किया गया है.

बाद में केंद्रीय जांच ब्यूरो ने चार आरोपियों के खिलाफ एससी / एसटी अधिनियम के तहत अन्य आरोपों के साथ सामूहिक बलात्कार और हत्या के लिए भारतीय दंड संहिता की धारा लगाते हुए एक आरोप पत्र दायर किया था. इसमें यूपी पुलिस की ओर से कई खामियां पाई गईं, जिसमें पीड़िता के बयान दर्ज करने में देरी के साथ-साथ उसकी मेडिकल जांच भी शामिल है.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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