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Friday, 22 November, 2024
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धारावी के विकास के लिए आगे आई शिंदे सरकार, पर वादों से थक चुके निवासी खुद बनाना चाहते हैं अपनी सोसायटी

यहां के निवासी चाहते हैं कि पूरी स्लम बस्ती के विकास के बजाये उन्हें अपने स्तर पर सोसाइटी का सेल्फ-डेवलपमेंट करने दिया जाए. सरकार ने नई बोलियां आमंत्रित कीं, लेकिन स्थानीय निवासियों का कहना है कि हमेशा केवल चुनाव से पहले इस तरह की कवायद की जाती है.

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मुंबई: महाराष्ट्र की एकनाथ शिंदे सरकार ने एक बार फिर बहुप्रतीक्षित धारावी पुनर्विकास परियोजना को हरी झंडी दिखाई है, लेकिन इस स्लम में रहने वालों के बीच सामूहिक तौर पर पूरे क्षेत्र के बजाय अलग-अलग सोसाइटी में सेल्फ-डेवलपमेंट की मांग बढ़ रही है.

एशिया की सबसे बड़ी मलिन बस्तियों में से एक धारावी की आबादी लगभग 6.5 लाख है और करीब एक लाख लोग विभिन्न कुटीर उद्योगों और छोटे व्यवसायों से जुड़े हैं. धारावी निवासियों ने दिप्रिंट को बताया कि 2003 से हर बार चुनावों के समय सरकारों की तरफ से इसके पुनर्विकास का मुद्दा उठाया जाता है, लेकिन अब तक यह परियोजना अमल में नहीं आ पाई है.

पिछले 46 साल से धारावी में रह रहे रवि वोरा ने कहा, ‘यह राजनेताओं के लिए सिर्फ एक चुनावी मुद्दा बन गया है. लेकिन कभी कोई समाधान नहीं निकला.’

करीब 2.8 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैली इस झोपड़पट्टी के पुनर्विकास का प्रोजेक्ट पहली बार 1999 में तत्कालीन भारतीय जनता पार्टी (भाजपा)-शिवसेना सरकार की तरफ से पेश किया गया था. राज्य सरकार ने 2003-04 में परियोजना को आगे बढ़ाने का फैसला किया. उस समय, इसकी परिकल्पना क्लस्टर पुनर्विकास परियोजना के तौर पर की गई थी—यानी सुव्यवस्थित टाउनशिप की तरह पूरी झुग्गी का पुनर्विकास.

लेकिन विभिन्न कारणों से परियोजना कभी आगे नहीं बढ़ पाई, इसमें त्रुटिपूर्ण बिड से लेकर डेवलपर्स में इतनी बड़ी परियोजना लेने का जोखिम उठाने की क्षमता नहीं होना भी शामिल है. इसके अलावा धारावी की बसावट भी बेहद जटिल किस्म की है, और झुग्गी-झोपड़ियों, इमारतों, दुकानों के बीच चर्मशोधन कारखाने और घरेलू उद्योग भी साथ ही चल रहे हैं.

महाराष्ट्र कैबिनेट ने पिछले हफ्ते एक बैठक में परियोजना के लिए नए सिरे से टेंडर का फैसला किया. यह कदम ऐसे समय उठाया गया है जब कुछ ही महीनों में बेहद अहम माने जाने वाले बृहन्मुंबई नगर निगम (बीएमसी) चुनाव होने वाले हैं. यह चुनाव इस साल के अंत में या अगले साल के शुरू में होने की संभावना है.

गैर-सरकारी संगठन धारावी बचाओ आंदोलन के कार्यकर्ता राजू कोराडे ने कहा कि परियोजना पूरी करने का वादा चुनाव से पूर्व ही किया जाता है.

उन्होंने दिप्रिंट को बताया, ‘विधानसभा, लोकसभा चुनाव हों, या फिर नगरपालिका चुनाव, निविदाएं मंगाई जाती हैं और चुनाव खत्म होते ही इन निविदाओं को रद्द करने का कोई न कोई कारण बता दिया जाता है. निवासियों को अब लगने लगा है कि यह सिर्फ एक ‘चुनावी पुलाव’ है.’

पूर्व में उद्धृत धारावी निवासी वोरा ने कहा, ‘जनता तो यही चाहती है कि सेल्फ-डेवलपमेंट हो. हम जो सोचते हैं, उसे करने दिया जाए.’

वोरा ने कहा, सेल्फ-डेवलपमेंट से उनका मतलब है कि निवासियों को धारावी के भीतर अलग-अलग सोसाइटी के पुनर्विकास की अनुमति देना, न कि पूरी झुग्गी को एक क्लस्टर के तौर पर विकसित करना.

धारावी पुनर्विकास परियोजना स्लम पुनर्विकास योजना (एसआरए) के तहत आती है, जो कि एक वैधानिक निकाय है. सहकारी समितियों के गठन सहित स्लम परियोजनाओं के लिए आवश्यक सभी तरह की मंजूरी के लिए एसआरए एक सिंगल विंडो है.

परियोजना की कमान संभाल रहे धारावी पुनर्विकास बोर्ड के सीईओ एस.वी.आर. श्रीनिवास ने दिप्रिंट को बताया कि धारावी जैसी विशाल बस्ती को विकसित करने में चार गुना चुनौतियां हैं.

श्रीनिवास ने कहा, ‘सबसे पहले, तो यहां की घनी आबादी एक बड़ी समस्या है, यह एक टाउनशिप की तरह है. दूसरा रेजिडेंशियल और कमर्शियल क्षेत्र एकदम मिला-जुला है. निवेश उद्देश्यों के लिए शुरू में काफी बड़ा नकदी प्रवाह चाहिए और फिर पुनर्निर्माण के दौरान लोगों को दूसरी जगह बसाने के काम भी आसान नहीं है क्योंकि धारावी में कहीं भी कोई खाली जगह नहीं बची है.’

उन्होंने कहा, ‘पूर्व में किसी ने भी टेंडर का जवाब नहीं दिया था, निवेशकों को आकृष्ट करने के लिए इसे पांच बार बढ़ाया गया था. हम स्पेशल पर्पज व्हीकल (एसपीवी) के साथ जा रहे हैं, जहां सरकार भी विकास में एक पार्टी है. मुझे उम्मीद है कि इस बार राज्य के समर्थन से प्रोजेक्ट निश्चित तौर पर आगे बढ़ेगा.’

‘कम से कम व्यक्तिगत पुनर्विकास के साथ शुरू तो करें’

एसआरए पुनर्विकास योजना का उद्देश्य जनवरी 2000 से पहले धारावी में रहने वाले झुग्गी वासियों को मुफ्त आवास प्रदान करना था. इसका उद्देश्य निजी बिल्डरों को गरीबों के लिए आवास में निवेश करने के लिए प्रोत्साहित करना है. इसके बदले में बिल्डरों को भूमि का एक हिस्सा विकसित करने या खुले बाजार में अतिरिक्त घर बेचने की अनुमति दी जानी थी ताकि वे मुनाफा कमा सकें और एक हायर फ्लोर स्पेस इंडेक्स (एफएसआई) हासिल कर सकें.

स्थानीय स्तर पर 12 सोसाइटी—जिनमें करीब 500 झुग्गी-झोपड़ियां शामिल हैं—को मिलाकर बनी जन कल्याण समिति के महासचिव अनिल कसारे ने दिप्रिंट को बताया कि धारावी निवासी सरकार से उन्हें सेल्फ-डेवलपमेंट का विकल्प चुनने की अनुमति देने के लिए कह रहे हैं.

धारावी निवासियों ने अपनी खुद की हाउसिंग सोसाइटी बना रखी हैं.

उन्होंने कहा, ‘पिछले करीब 20 सालों में पुनर्विकास परियोजना शुरू नहीं हो पाई है. और इसलिए, देर से ही सही, हमने सरकार से ये मांग करना शुरू कर दिया है कि यदि आप कुछ नहीं कर सकते हैं, तो कम से कम हमें ही अपने स्तर पर पुनर्विकास करने दें. सरकार किसी भी पार्टी की हो, हमने सभी को देख लिया है, लेकिन कोई भी इस मामले में गंभीर नहीं है.’

सेल्फ-डेवलपमेंट या अपने स्तर पर पुनर्विकास का मतलब है कि बिल्डरों के बजाय निवासियों पर सोसायटियों को सुधारने का दायित्व होगा.

यहां रहने वाले लोगों ने स्थानीय विधायकों और सांसदों पर ‘वोट-बैंक की राजनीति’ करने का आरोप भी लगाया है.

कसारे ने कहा, ‘उन्हें डर है कि अगर धारावी का पुनर्विकास होता है, तो लोग उन्हें वोट नहीं देंगे.’

धारावी झुग्गी बस्तियों में रहने के लिहाज से स्थितियां बेहद निराशाजनक हैं. यहां की संकरी गलियों में हर मानसून में बुरी तरह पानी भर जाता है, शौचालय की सुविधा खराब है और सामान्य सफाई का स्तर ही बहुत खराब है.

देवन्ना भंडारी 40 सालों से धारावी में रह रही है और उनमें से 20 सालों से अपने लिए एक नए घर का सपना देख रही हैं.

उन्होंने दिप्रिंट से कहा, ‘हम उपहास के पात्र बन गए हैं. लोग हम पर हंसते हैं और कहते हैं कि यहां कुछ नहीं होगा, और यह कि ये सिर्फ वादे हैं.’

उनकी तरह रेखा गजपस भी खोखले वादों से आजिज आ चुकी हैं. वह पुनर्विकास परियोजना के बारे में तबसे सुन रही है जब उनके बच्चे छोटे थे लेकिन अब तक निराशा के अलावा कुछ भी नहीं मिला है.

25 साल से वहां रह रही रेखा ने दिप्रिंट को बताया, ‘सरकार को हमें समय पर घर तो मुहैया करा देने चाहिए थे. यहां चारों ओर बहुत गंदगी है. वे कुछ नहीं कर रहे तो कम से कम हमें ही अपने दम पर कुछ करने दें.’

चुनावी वादे

इस परियोजना को पहली बार 2003-04 में आम चुनावों से ठीक पहले अधिसूचित किया गया था. तबसे, निवासियों ने कम से कम नौ चुनाव देखे हैं—तीन लोकसभा चुनाव, तीन विधानसभा, और तीन नगरपालिका चुनाव.

2006 में नगर निकाय चुनावों से ठीक पहले पूर्व मुख्यमंत्री विलासराव देशमुख ने परियोजना को पुनर्जीवित करते हुए बोली दस्तावेज आमंत्रित किए थे. 2008 में, एक विशेषज्ञ समिति ने बोली प्रक्रिया को त्रुटिपूर्ण पाया, लेकिन 2009 के आम चुनावों के समय एक बार फिर परियोजना को आगे बढ़ाया गया.

इस परियोजना के क्रम में पूरे क्षेत्र को एसआरए योजना के तहत अधिसूचित किया गया और उन लोगों को मुफ्त आवास देने की प्रतिबद्धता जताई गई जिनके पास 1 जनवरी 2000 से पहले यहां पर झोपड़ी होने का कोई साक्ष्य था. इसके अलावा 2000 और 2011 के बीच धारावी आकर बसे लोगों रियायती मूल्य पर आवास उपलब्ध कराए जाने थे.

परियोजना के लिए मास्टर प्लान 2011 में तैयार किया गया था, यह घटनाक्रम 2012 के नागरिक निकाय चुनावों से ठीक पहले का था. हालांकि 2014 के आम चुनावों से पहले कुछ काम पूरा हो गया, लेकिन परियोजना अंततः ठप पड़ गई. 2017 के मुंबई नगर निकाय चुनाव से पूर्व 2016 में एक नई योजना तैयार की गई थी, लेकिन इसे भी बाद में रद्द कर दिया गया.

2018 में सीएम देवेंद्र फडणवीस के नेतृत्व वाली तत्कालीन भाजपा-शिवसेना सरकार पूरे क्षेत्र को विकसित करने के लिए एक स्पेशल पर्पज़ वीकल एसपीवी के साथ आई और यहां तक कि ग्लोबल टेंडर भी आमंत्रित किए गए. जनवरी 2019 में आम और महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों से ठीक पहले दुबई स्थित इन्फ्रास्ट्रक्चर फर्म सेकलिंक टेक्नोलॉजी ने अडानी रियल्टी के खिलाफ सफलतापूर्वक निविदा हासिल की. हालांकि, केंद्र सरकार की तरफ से पुनर्विकास परियोजना में रेलवे भूमि को शामिल करने का निर्णय लिए जाने के बाद अनुबंध नहीं किया जा सका.

2020 में महाविकास अघाड़ी (एमवीए) सरकार ने रेलवे भूमि पर केंद्र के साथ मतभेदों का हवाला देते हुए एक निविदा प्रक्रिया को रद्द कर दिया. उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली राज्य सरकार ने वादा किया था कि परियोजना के लिए नई निविदाएं मांगी जाएंगी, लेकिन केंद्र सरकार की तरफ से इसमें देरी होती रही.

धारावी निवासी कोराडे ने दिप्रिंट को बताया कि लोग खोखले चुनावी वादों से थक चुके हैं.

उन्होंने कहा, ‘धारावी की हालत बहुत खराब है और कोई विकास नहीं होने से स्थिति और बिगड़ ही रही है. चूंकि कोई पुनर्विकास नहीं हो रहा है, लोग मलिन बस्तियों में अपनी जमीन बढ़ाने के लिए मजबूर हैं और यह काफी खतरनाक हो सकता है.’

पूर्व में उद्धृत देवन्ना भंडारी के लिए किसी इमारत में रहना एक सपना भर है. देवन्ना ने कहा, ‘यही सपना देखते-देखते हमारे पिता चल बसे थे और अब हमारी बारी है. कम से कम अगर हम अभी शुरुआत कर दें तो हमारे बच्चों का भविष्य तो सुरक्षित होगा.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)

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