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Friday, 22 November, 2024
होमएजुकेशनअनफिट टीचर और इन्फ्रा- मुंबई में है 239 Unrecognised स्कूल, बंद हुए तो 5,000 बच्चों की पढ़ाई पर खतरा

अनफिट टीचर और इन्फ्रा- मुंबई में है 239 Unrecognised स्कूल, बंद हुए तो 5,000 बच्चों की पढ़ाई पर खतरा

बीएमसी ने कहा, ऐसे स्कूलों को नोटिस भेजे जाएंगे और 'जल्द ही कार्रवाई' की जाएगी. गरीब तबके के बच्चों को पढ़ाने वाले कुछ स्कूलों के मुताबिक, उन्होंने मान्यता के लिए आवेदन तो किया है लेकिन प्रक्रिया काफी धीमी है.

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मुंबई: मुंबई के उपनगरीय मानखुर्द इलाके के एक छोटे से स्कूल के 200-250 छात्रों के लिए क्लास तक जाने के लिए पहले एक संकरे गलियारे से नीचे उतरना होता और फिर एक लोहे की सीढ़ी पर चढ़ना पड़ता है. क्लासरूम के नाम पर एक छोटा, बिना हवादार कमरा है जहां 30 बच्चे स्कूल की ड्रेस में एक साथ बैठे हैं. एस्बेस्टस शीट की छत ने कमरे को गर्म किया हुआ है, और यहां तक कि चारों ओर घूम रही पंखे की हवा भी गर्म थपेड़ों से कम नहीं लग रही.

पूरे स्कूल में एक जैसे बने हर कमरे में 30 बच्चे भयंकर गर्मी के बीच सीखने की कोशिश करने में लगे हैं. और साथ ही है इन कमरों से अलग नजर आता इसका एक छोटा सा ऑफिस.

हैरानी की बात तो यह है कि यह स्कूल अभी भी चल रहा है, जबकि महाराष्ट्र सरकार और शहर के नागरिक निकाय, बृहन्मुंबई नगर निगम (बीएमसी) ने इसे ‘गैर-मान्यता प्राप्त’ माना है, जिसे संचालित करने की अनुमति नहीं है.

हर साल राज्य शिक्षा विभाग ‘गैर-मान्यता प्राप्त’ स्कूलों की एक सूची निकालता है. जिसका मतलब है कि उन स्कूलों के पास स्कूल चलाने का सरकारी लाइसेंस या अधिकार नहीं है. इनमें से ज्यादातर स्कूल सुरक्षित बुनियादी ढांचे, क्लासरूम का साइज, छात्र और शिक्षक का अनुपात आदि के लिए न्यूनतम मानकों को पूरा नहीं करते हैं.

इस जनवरी में विभाग द्वारा एक सरकारी प्रस्ताव जारी किया गया है. दिप्रिंट ने इस प्रस्ताव को पढ़ा है. इसमें कहा गया है कि 2020-21 में पूरे महाराष्ट्र में 674 स्कूलों को अनधिकृत माना गया है.

मुंबई में ऐसे स्कूलों की संख्या सबसे अधिक यानी 239 है, जिनमें लगभग 5,000 छात्र पढ़ाई करते हैं. इसके बाद ठाणे (149 ) और पालघर (143) का नंबर आता है.

राज्य शिक्षा विभाग के एक अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया, ‘हम UDISE (यूनिफाइड डिस्ट्रिक्ट इनफार्मेशन सिस्टम फॉर एजुकेशन, एक केंद्र सरकार द्वारा संचालित स्कूलों के लिए डेटाबेस) वेबसाइट पर डेटा एकत्र करते हैं. उसके बाद जिला स्तर के अधिकारियों से इन स्कूलों की जांच करने के लिए कहा जाता है कि क्या वे वास्तव में गैर-मान्यता प्राप्त हैं. उनकी पुष्टि कर लेने के बाद ही हम एक अंतिम सूची तैयार करते हैं.’

अधिकारी ने कहा, ‘ उसके बाद बच्चों के माता-पिता को जानकारी देने के लिए अखबारों में विज्ञापन दिया जाता है ताकि वे इस तरह के स्कूल में अपने बच्चों का एडमिशन कराने से बच सकें. आरटीई (शिक्षा का अधिकार अधिनियम) के अनुसार, अगर उसके बावजूद भी स्कूल चलाए जा रहे हैं, तो उन्हें एक लाख रुपये का जुर्माना देना होता है.’

मुंबई के मामले में बीएमसी राज्य सरकार को स्कूलों के बारे में डेटा उपलब्ध करती है. पिछले साल से बीएमसी की सूची में शामिल कुछ स्कूल राज्य सरकार के राउंड-अप में फिर से दिखाई दिए हैं.

दिप्रिंट ने मुंबई के शिवाजी नगर इलाके में मानखुर्द का दौरा किया. वहां जाकर पता चला कि ‘गैर-मान्यता प्राप्त’ सूची में से कम से कम 10 स्कूल अभी भी काम कर रहे हैं. सभी स्कूलों में कम से कम क्लासरूम थे और बुनियादी ढांचे की हालत दयनीय थी. लेकिन अपनी कम फीस और कम आय वाले इलाकों के आस-पास बने होने के कारण अभी भी डिमांड में थे.

हालांकि, इनमें से कुछ स्कूलों के मैनेजमेंट ने दावा किया कि उन्होंने मान्यता के लिए आवेदन किया हुआ है. लेकिन यह प्रक्रिया काफी धीमी है. वे वंचित समुदायों के बच्चों को शिक्षा दे रहे हैं.

दिप्रिंट से बात करते हुए बीएमसी शिक्षा विभाग के अधिकारी राजू तडवी ने कहा कि इन स्कूलों को नोटिस भेजे जाएंगे और जल्द ही कार्रवाई की जाएगी. उन्होंने बताया, ‘हम इन स्कूलों को शैक्षणिक वर्ष के बीच में बंद नहीं कर सकते है. क्योंकि इनमें लगभग 5,000 बच्चे पढ़ते हैं और उनका भविष्य इनके साथ जुड़ा हुआ है. वैसे हम अब इन स्कूलों को दंडित करना शुरू कर देंगे.’

अयोग्य शिक्षक, खराब शिक्षा परिणाम

मुंबई के लिए सूचीबद्ध अधिकांश गैर-मान्यता प्राप्त निजी स्कूल घनी आबादी वाले स्लम क्षेत्रों में स्थित हैं. माता-पिता के लिए उनकी तरफ जाने का कारण कम फीस और यह तथ्य है कि वे निकटतम सरकारी स्कूलों की तुलना में घर के करीब हैं.

उमर शेख मानखुर्द इलाके में एक स्थानीय एनजीओ चलाते हैं. इसके साथ ही वह बीच में स्कूल छोड़ चुके और वंचित तबके के बच्चों को पढ़ाने के लिए सामुदायिक कक्षाएं भी आयोजित करते हैं. उन्होंने कहा, ‘इन निजी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों के माता-पिता रोज कमाने और खाने वाले लोग हैं. उनके पास अच्छे स्कूलों की फीस देने के लिए पैसे नहीं हैं.’

शेख ने कहा कि इन स्कूलों में पढ़ाने वाले अधिकांश शिक्षकों के पास बी.एड डिग्री या औपचारिक प्रशिक्षण नहीं है. जिस वजह से बच्चों की सीखने की क्षमता पर काफी असर पड़ता है.

शेख ने कहा, ‘आठवीं में पढ़ने वाला एक छात्र पांचवीं कक्षा के गणित की समस्या को भी नहीं समझ पाता है और हमें उसे फिर से सब कुछ पढ़ाना पड़ता है.’

दिप्रिंट ने इन स्कूलों के कुछ शिक्षकों से बात की और पाया कि अधिकांश टीचर बच्चों को पढ़ाने के काबिल नहीं थे.

ऐसे ही एक 23 साल के टीचर थे,जिन्होंने हाल ही में होटल मैनेजमेंट का कोर्स पूरा किया था. नाम न छापने की शर्त पर उन्होंने स्वीकार किया कि उनके पास शिक्षण की डिग्री या अनुभव नहीं है. उन्होंने अपनी होटल प्रबंधन की डिग्री पर खर्च किए गए ‘पैसे वापस कमाने’ के लिए नौकरी की है.

वह कक्षा 7 से 10 तक के छात्रों को 6,000 रुपये प्रति माह के मामूली वेतन पर इंग्लिश, इतिहास और भूगोल पढ़ाते हैं.

एक अन्य शिक्षिका पिछले एक साल से 5000 रुपये के मासिक वेतन पर नौकरी कर रहीं थीं. लेकिन जब एक साल के बाद भी उनकी सैलरी नहीं बढ़ाई गई तो उन्होंने नौकरी छोड़ दी. उन्होंने कहा कि जब वह 11 वीं कक्षा में थी, तब पढ़ाना शुरू किया था. वह पहली क्लास को संभाल रही थीं.

उन्होंने स्वीकार किया कि जिस तरह के ‘गैर-मान्यता प्राप्त’ स्कूल में वह पढ़ा रहीं थीं, वहां से निकलने वाले बच्चों को आगे सफलता मिलनी मुश्किल है.

उन्होंने बताया, ‘अगर ये छात्र उच्च शिक्षा के लिए जाना चाहते हैं, तो उन्हें कहीं भी एडमिशन नहीं मिलेगा क्योंकि स्कूल मान्यता प्राप्त नहीं है.’

वह कहती हैं, ‘ एग्जाम में शिक्षक खुद पेपर सेट करते हैं और छात्रों को नंबर देते हैं. वे सरकार से संबद्ध नहीं हैं, इसलिए छात्रों को उन्हीं नंबरों के आधार पर अगली क्लास में प्रमोट कर दिया जाता है.’

एक फटे पुराने पोस्टर ‘गैर-मान्यता प्राप्त’ मर्सी इंग्लिश स्कूल में उपलब्ध आकर्षक शुल्क पैकेजों की घोषणा करता है/ पूर्वा चिटणीस/दिप्रिंट

‘कम से कम फीस तो हमारी पहुंच के अंदर हैं’

जिन बच्चों के माता-पिता ने दिप्रिंट से बात की थी, उन्होंने प्रतिक्रिया के डर से अपना नाम न छापने का अनुरोध किया.

कई लोगों ने कहा कि उन्हें इस बात की जानकारी नहीं थी कि उनके बच्चों के स्कूलों को राज्य सरकार ने मान्यता दी है या नहीं. उनके लिए पहली प्राथमिकता स्कूल का नजदीक होना और फीस का कम होना था.

तीन बच्चों के माता-पिता, जिनके दो बच्चे ‘गैर-मान्यता प्राप्त’ स्कूल में पढ़ रहे हैं और एक सरकारी स्कूल में, ने कहा, ‘हम नहीं जानते (स्कूल को मान्यता दी गई है या नहीं), लेकिन फीस लगभग 300 रुपये प्रति माह है. इसलिए हमने अपने बच्चों को इन स्कूलों में भेजा है. ये हमारे घर के 300 मीटर के दायरे में हैं.’

तीन बच्चों की एक मां ने कहा ‘हम क्या करें? पास में कोई सरकारी स्कूल नहीं है… एक देवनार में है, लेकिन यह यहां से लगभग 3-4 किमी दूर है. हम अपने बच्चों को इतनी दूर कैसे ले जाते?’ उनके तीन बच्चों की उम्र 7,9 और 11 साल है. तीनों ही सरकार की सूची में शामिल किसी मान्यता प्राप्त स्कूल में पढ़ते हैं. उसका पति एक बढ़ई है और प्रतिदिन के आधार पर कमाते हैं.

कई माता-पिता ने माना कि उनका बच्चा स्कूल में कैसा कर रहा है, उन्हें इसकी जानकारी नहीं है. वह खुद शिक्षित नहीं हैं.

एक महिला ने बताया कि स्कूल में पीटीएम नहीं होती हैं. वह कहती है ‘उन्हें हमसे बात करनी चाहिए और हमें बताना चाहिए कि क्या हो रहा है. मुझे नहीं पता कि बच्चों को कुछ आता भी है या नहीं.’ उनका पति एक फूड स्टाल लगाते हैं.

किसी स्कूल को मान्यता पाने के लिए क्या करना पड़ता है?

पहले उद्धृत राज्य के शिक्षा विभाग के अधिकारी के अनुसार, एक नए स्कूल को मान्यता प्राप्त करने के लिए महाराष्ट्र सेल्फ-फाइनेंस स्कूल (स्थापना और विनियमन) अधिनियम, 2012 की आवश्यकताओं को पूरा करना होगा.

इसमें स्कूल के लिए एक सोसायटी या ट्रस्ट की स्थापना करना और फिर उसके लिए एक पंजीकरण प्रमाण पत्र देना होगा. साथ ही इसमें मेमोरेंडम ऑफ एसोसिएशन या ट्रस्ट डीड / योजना की एक प्रति शामिल है. अधिकारी ने कहा कि एक बैंक स्टेटमेंट, पिछले तीन वर्षों की ऑडिट रिपोर्ट, जमीन के दस्तावेज और ‘स्कूल प्लान का ब्लूप्रिंट’ भी जरूरी है.

आवेदन पत्र के अनुसार, स्कूल प्लान डिटेल में क्लास रूम की संख्या, उनका साइज, लड़कों और लड़कियों के लिए अलग-अलग शौचालयों की व्यवस्था, पीने के पानी की सुविधा, कंप्यूटर और खेल का मैदान, अन्य चीजें शामिल हैं.

मानखुर्द, मुंबई में एक ‘गैर-मान्यता प्राप्त’ स्कूल में एक माता-पिता ने अपने बच्चे को प्रवेश देने के लिए पंजीकरण कराते हुए/ पूर्वा चिटणीस/दिप्रिंट

इनमें से कुछ स्कूलों के प्रबंधन ने अपना पूरा नाम न छापने की शर्त पर बताया कि उन्होंने आवेदन जमा कर दिए है लेकिन प्रक्रिया बहुत धीमी और जटिल है.

गैर मान्यता प्राप्त मर्सी इंग्लिश स्कूल के प्रबंधन की सदस्य शेखा ने कहा कि आवेदन जमा कर दिया गया है, लेकिन कार्रवाई में समय लग रहा है.

उन्होंने कहा, ‘जब भी हम सरकार से संबंधित किसी भी चीज़ के लिए आवेदन करते हैं, तो एक लंबी प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है. हमारे पास यूडीआईएसई नंबर है लेकिन प्रक्रिया में काफी समय लग रहा है. हमने दस्तावेज जमा कर दिए हैं, लेकिन अभी तक कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली है.’ उन्होंने दावा किया कि उनका स्कूल 2016 से काम कर रहा है.

लिटिल एंजल इंग्लिश स्कूल की नज़्म ने दिप्रिंट को बताया कि उन्हें अपने सेकेंडरी सेक्शन के लिए मान्यता मिल गई है. लेकिन प्राइमरी विंग के लिए मामला लटका पड़ा है. उन्होंने बड़बड़ाते हुए कहा, कुछ आवश्यकताओं को पूरा करना मुश्किल है.

उन्होंने कहा, ‘मेरे खाते में फिक्स्ड डिपॉजिट के लिए 12-15 लाख रुपये होने चाहिए. हमें इसके साथ सरकारी फीस भी देनी होगी. अब इतना पैसा मेरे पास कैसे होगा? हम गरीब लोगों के लिए एक स्कूल चलाते हैं. बिल्डर और राजनेता जैसे बहुत सारे पैसे वाले लोग आसानी से स्कूल खोल सकते हैं और मान्यता ले सकते हैं ” उनका स्कूल 2003 से चल रहा है.

‘दिसंबर तक कार्रवाई करेंगे’

सरकारी अधिकारियों ने बताया कि राज्य सरकार द्वारा गैर-मान्यता प्राप्त स्कूलों की सूची जारी करने के बाद, जरूरी कार्रवाई जिला अधिकारियों (या मुंबई के मामले में बीएमसी) की जिम्मेदारी है.

इस बारे में पूछे जाने पर बीएमसी शिक्षा विभाग के अधिकारी राजू तडवी ने दिप्रिंट को बताया कि नगर निकाय मामले को गंभीरता से ले रहा है और दिसंबर तक आरटीई के प्रावधानों के अनुसार कार्रवाई की जाएगी.

तड़वी ने कहा, ‘उनके पास या तो महाराष्ट्र सरकार या बीएमसी से मान्यता लेने या फिर स्कूल को बंद करने का विकल्प होगा.’

झुग्गी-झोपड़ी क्षेत्रों के कुछ स्कूलों के बारे में पूछे जाने पर जो विशेष रूप से असुरक्षित परिस्थितियों में काम कर रहे हैं, तडवी ने कहा कि जिन स्कूलों के पास उचित बुनियादी ढांचा नहीं है, उन्हें कोई मान्यता नहीं मिलेगी. उन्होंने कहा,‘हम ऐसे स्कूलों के खिलाफ कार्रवाई करेंगे.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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