देहरादून: देश के प्रमुख इंजीनियरिंग संस्थानों में से एक IIT-रुड़की विवादों में फंसता नजर आ रहा है. छात्रों के एक वर्ग ने हाल ही में अपने मेन्यू में मांसाहारी भोजन को शामिल करने पर आपत्ति जताई है. ये सभी स्टुडेंट आजाद भवन होस्टल के हैं, जहां पिछले रविवार तक सिर्फ शाकाहारी खाना परोसा जा रहा था. उसके बाद से इस होस्टल में भी नॉन वेज को मेन्यू में शामिल कर लिया गया. जिस वजह से ये छात्र विरोध कर रहे हैं. होस्टल में मांसाहारी खाना परोसे जाने वाले दिनों में इन छात्रों ने मेस में खाना खाना बंद कर दिया है.
प्रदर्शनकारी छात्रों ने आरोप लगाया कि रॉ चिकन को खुले में रखा और पकाया जाता है. उन्होंने कहा कि आजाद भवन होस्टल मेस में वेज और नॉन वेज खाने वाले छात्रों के लिए अलग से बैठने की व्यवस्था भी नहीं है.
आजाद भवन छात्रावास के छात्रों ने मेस के बाहर 24 और 25 अगस्त को दो दिन तक अपने मेन्यू में मांसाहारी खाना शामिल करने के खिलाफ धरना दिया और इसे तत्काल बंद करने की मांग की.
दिप्रिंट ने आईआईटी परिसर का दौरा किया था. विरोध में शामिल छात्रों ने दावा किया कि मैनेजमेंट उनकी चिंताओं को दूर करने के लिए जरूरी कदम उठाए बिना अपना ‘फूड प्लान’ थोपने की कोशिश कर रहा है. पश्चिमी उत्तर प्रदेश के रहने वाले एक पीएचडी छात्र और प्रदर्शनकारी ने कहा, ‘डाइनिंग हॉल और किचन में साफ-सफाई बनाए रखने के लिए मेस प्रबंधन पूरी तरह से तैयार नहीं है. रॉ चिकन को वेजिटेरियन फूड किचन के पास खुले में रखा और पकाया जाता है. इसके अलावा जगह की कमी, पीने के पानी के लिए अलग से बर्तन और बैठने की व्यवस्था भी बड़ी समस्या है.’
उन्होंने कहा, ‘हम मैनेजमेंट के फैसले से हैरान हैं. हॉस्टल मेस कमेटी को भी इसकी जानकारी नहीं दी गई. हम चाहते हैं कि आजाद भवन मेस में नॉन वेज फूड सर्विस तब तक बंद रहे जब तक चीजें ठीक नहीं हो जातीं.
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‘नॉन-वेज खाने वाले छात्रों की संख्या प्रदर्शनकारियों से ज्यादा’
हालांकि छात्रावास के नॉन वेज खाने वाले छात्रों ने कहा कि यह बिना मतलब का विवाद है. होस्टल में मांस खाने वाले छात्रों की संख्या विरोध करने वाले छात्रों की तुलना में बेहद ज्यादा है. यूपी के आजमगढ़ के एमटेक के छात्र कुलदीप गौर और आजाद भवन में रहने वाले उनके दोस्त अभिषेक जादव ने कहा, ‘मेस में नॉन वेज खाना न होने पर भी हम खुश थे लेकिन अब चीजें पहले से ज्यादा बेहतर हैं क्योंकि भारत के अलग-अलग हिस्सों से आने वाले सभी स्टूडेंट की पसंद का ध्यान रखा जा रहा है. अंडे तो पहले से ही मिल रहे थे. मेन्यू में अब सिर्फ चिकन को शामिल किया गया है. चिकन को लेकर इतना विवाद क्यों?
यह ध्यान रखना जरूरी है कि आईआईटी-रुड़की में 2015 तक, अपने 12 होस्टल में से किसी भी एक में नॉन वेज फूड के लिए कोई जगह नहीं थी. इसे दूसरे राज्यों से आए छात्रों और फैकल्टी सदस्यों की लगातार मांगों के बाद नॉन वेज फूड शुरू किया गया था. इसके बाद से 11 छात्रावास में सप्ताह में दो बार नॉन वेज- चिकन और अंडे – को मेन्यू में जगह दे दी गई. वैसे वेजिटेरियन छात्रों ने मेनू में पहली बार नॉन वेज फूड रखे जाने पर भी विरोध किया था लेकिन मैनेजमेंट ने इसका परवाह नहीं की और अपने फैसले को आगे बढ़ाया.
पिछले रविवार 21 अगस्त को आजाद भवन होस्टल के मेस में छात्रों को चिकन परोसा गया था. प्रदर्शन कर रहे छात्रों से कहा गया कि बुधवार को भी नॉन वेज दिया जाएगा. जिसके बाद बुधवार को हॉस्टल के बाहर खाली थाली लेकर छात्रों के धरने पर बैठे छात्रों की संख्या बढ़ गई. जब नॉन वेज खाने वाले छात्रों ने धरने पर बैठे छात्रों का विरोध किया तो मामला हिंसक रूप लेने की तरफ जाने लगा. गनीमत रही कि सीनियर छात्रों ने समय रहते मामले को संभाल लिया.
गुरुवार को विरोध कर रहे छात्रों ने डीन ऑफ स्टूडेंट वेलफेयर प्रोफेसर एमके बरुआ को पत्र लिखकर मांग की कि हॉस्टल में नॉनवेज खाना बंद किया जाए और इसके लिए अलग से मेस बनाया जाए. उन्होंने धमकी दी कि जब तक उनकी मांगें पूरी नहीं हो जातीं, तब तक वे नॉन वेज फूड वाले दिन होस्टल के मेस में खाना नहीं खाएंगे.
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बाकी के होस्टल में छात्रों को नहीं कोई दिक्कत
आईआईटी परिसर के अन्य होस्टल के छात्रों ने दिप्रिंट को बताया कि उनके मेस में दोनों तरह का खाना सर्व किया जाता है. कहीं कोई दिक्कत नहीं है. सब ठीक चल रहा है. जम्मू और कश्मीर के जवाहर भवन होस्टल के रहने वाले छात्र शोएब रफीक ने बताया, ‘मैं नॉन वेज खाता हूं, लेकिन वेज खाने वाले मेरे साथियों को इससे कोई आपत्ति नहीं है. डाइनिंग हॉल में खाना अलग से रखा जाता है. मेस में खाना खाते समय भी हम अलग बैठते हैं.’ रफीक एम टेक के छात्र हैं.
आंध्र प्रदेश के गोविंद भवन छात्रावास के बीटेक अंतिम वर्ष के छात्र अभिषेक नायडू ने कहा, ‘मैं नॉन वेजिटेरियन हूं लेकिन मेरे वेजीटेरियन दोस्तों को इससे कोई समस्या नहीं है. हम मेस में अलग-अलग बैठते हैं. यहां तक कि हमारी प्लेट भी अलग रखी जाती है. जिन थालियों में नॉन वेज परोसा जाता है उन्हे सप्ताह में सिर्फ दो बार ही बाहर निकाला जाता है. प्लेट मिक्स न हों जाएं, इस बात का भी पूरा ख्याल रखा जाता है.’
आंध्र प्रदेश के बीटेक तृतीय वर्ष के छात्र श्री हर्षा ने कहा, ‘मैं शुद्ध शाकाहारी हूं लेकिन मुझे नॉन वेज खाने वाले अपने दोस्तों से कोई दिक्कत नहीं है. हर व्यक्ति की अपनी पसंद होती है. यह उसका अधिकार है. मैं अन्य होस्टल के बारे में तो नहीं कह सकता लेकिन हमारे होस्टल में तो सब कुछ ठीक है. यहां हर तरफ शांति है.’
मैनेजमेंट ने कहा ‘समस्या का समाधान हो जाएगा’
दिप्रिंट ने डीन बरुआ से इस मामले पर टिप्पणी करने के लिए संपर्क किया था. उन्होंने इस पर कुछ भी कहने से इनकार करते हुए कहा कि मैनेजमेंट इस मसले को सुलझा लेगा. उन्होंने कहा, ‘मैं इस मसले पर कोई टिप्पणी नहीं कर सकता क्योंकि हमारे पास मीडिया के लिए अधिकृत प्रतिनिधि और प्रवक्ता हैं. सिर्फ वही प्रेस से बात करने के लिए अधिकृत है. वैसे सब कुछ आसानी से सुलझा लिया जाएगा.’
संस्थान के एक अन्य अधिकारी ने कहा, ‘छात्रावास के कुछ मांसाहारी छात्रों की लगातार मांग आ रही थी कि मेस में सप्ताह में दो बार नॉन वेज फूड दिया जाए. मैनेजमेंट को उनकी पसंद का भी ध्यान रखना होगा. विरोध करने वाले ज्यादातर छात्र एमटेक, पीएचडी और एमबीए विभागों से हैं. वे प्रबंधन को फैसले को बेहतर तरीके से समझ सकते हैं.’
IIT-रुड़की मीडिया सेल की प्रमुख और प्रवक्ता सोनिका श्रीवास्तव ने कहा, ‘प्रबंधन मामले को देख रहा है और जो भी फैसला होगा, उसके बारे में प्रेस को खबर दी जाएगी. इस मुद्दे पर तब तक कोई टिप्पणी करना मुश्किल है जब तक कि हमें इसके बारे में डायरेक्टर से कोई सूचना नहीं मिल जाती.’
छात्र संघ के पदाधिकारियों के एक समूह ने शुक्रवार को बरुआ से बात की थी. उन्होंने प्रबंधन को अपना निर्णय वापस लेने का आग्रह किया था लेकिन डीन इसके लिए तैयार नहीं हैं.
प्रदर्शनकारियों ने मेस में नहीं खाने का फैसला किया
विरोध कर रहे छात्रों के अनुसार, आजाद भवन में मांसाहारी भोजन शुरू करने का कोई मतलब नहीं था क्योंकि अधिकांश छात्र शाकाहारी हैं. उनके अनुसार, अन्य होस्टल के वेजीटेरियन छात्र भी आजाद भवन आकर खाना पसंद करते थे क्योंकि यहां नॉन वेज नहीं बनता था.
आजाद भवन के एक पीएचडी छात्र ने कहा, ‘अगर एक होस्टल में मांसाहारी खाना नहीं भी परोसा जाएगा तो इसमें क्या हर्ज है. खासकर जब वहां के लगभग सभी छात्र शाकाहारी हैं?’ उनके अनुसार, प्रदर्शन कर रहे छात्र अपनी मांग पूरी होने तक हॉस्टल मेस में नॉन वेज फूड वाले दिनों में भोजन नहीं करने के अपने फैसले पर कायम हैं.
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