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Sunday, 22 December, 2024
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‘क्या गुजरात सरकार ने बिलकीस की सुरक्षा का सोचा?’– उर्दू प्रेस की सुर्खियां अभी भी बलात्कारियों की रिहाई पर

दिप्रिंट का जायज़ा कि उर्दू मीडिया ने हफ्ते भर की ख़बरों को किस तरह कवर किया, और उनमें से कुछ ने क्या संपादकीय रुख़ इख़्तियार किया.

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नई दिल्ली: बिलक़ीस बानो केस में 11 दोषियों की सज़ा में छूट देने के गुजरात सरकार के फैसले पर उठा विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है, और ये विषय इस हफ्ते भी उर्दू अख़बारों की सुर्ख़ियां बना रहा.

दूसरे मुद्दे जिन्हें पहने पन्नों पर जगह मिली वो थे- दिल्ली आबकारी नीति में कथित अनियमितताओं पर दिल्ली के उप-मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया की मुसीबतें, किसानों के प्रदर्शन, और एक बीजेपी विधायक का ईशनिंदात्मक बयान जिसने हैदराबाद को हिला दिया है.

दिप्रिंट आपके लिए लाया है उर्दू प्रेस का साप्ताहिक राउण्डअप.

बिलक़ीस बानो केस

गोधरा के बाद गुजरात की जिस घटना की दहशत 11 दोषियों की रिहाई के बाद राष्ट्रीय सुर्ख़ियों में लौट आई, वही बिलक़ीस बानो केस सप्ताह के लगभग हर दिन उर्दू अख़बारों के पहले पन्नों पर बना रहा.

24 अगस्त को रेज़नामा राष्ट्रीय सहारा ने अपने पहले पन्ने पर ख़बर दी, कि सुप्रीम कोर्ट मामले की सुनवाई को तैयार हो गया है.

दो दिन बाद उसके पहले पन्ने पर कहा गया, कि शीर्ष अदालत ने एक कड़ा रुख़ इख़्तियार करते हुए, केंद्र और गुजरात सरकारों को नोटिस जारी किए थे, और रिहा हुए दोषियों को केस में एक पक्ष बनाए जाने के लिए कहा था. उसने आगे कहा कि इस मामले में केंद्र और राज्य की राय अलग अलग हैं.

एक इंसेट में, पेपर ने जस्टिस (रिटायर्ड) यूडी साल्वी का ये कहते हुए हवाला दिया, कि इन 11 दोषियों की उम्र क़ैद की सज़ा में छूट न्याय और धर्म के लिए शर्म की बात है.

एक दूसरे इंसेट में, उसने कांग्रेस नेताओं राहुल और प्रियंका गांधी के हवाले दिए, जिनमें राहुल ने सरकार पर दोषियों को बचाने का आरोप लगाया था, और उनकी बहन ने बिलक़ीस बानो के लिए इंसाफ की मांग की थी.

सहारा ने 23 अगस्त को अपने पहले पन्ने पर मेघालय के प्रगतिशील लोगों के एक समूह थमा यू रंगली-जुकी (टीयूआर) के बारे में ख़बर छापी, जिसने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को पत्र लिखकर उनसे इस मामले में दख़ल देने, और फैसले को वापस लेने की अपील की थी.

20 अगस्त को अपने संपादकीय में, इनक़लाब ने दोषियों की रिहाई को दुर्भाग्यपूर्ण और निराशाजनक घटना क़रार दिया, जिसने कई क़ानूनी सवाल खड़े कर दिए थे. अख़बार ने पूछा कि क्या रिहाई की तैयारी करते हुए गुजरात सरकार ने उस महिला की सुरक्षा सुनिश्चित करने का प्रावधान किया था, जिसने इंसाफ पाने के लिए बरसों तक संघर्ष किया था.

अख़बार ने लिखा कि ऐसा लगता है कि वो इंसाफ वापस ले लिया गया है. अख़बार ने मांग की कि राज्य सरकार अपने फैसले को वापस ले.

अगले दिन पहले पन्ने पर अपनी ख़बर में, इनक़लाब ने लिखा कि विश्व स्तर पर आवाज़ें उठाई जा रही हैं, और उसने अमेरिका के कमीशन ऑन इंटरनेशनल रिलीजियस फ्रीडम के एक बयान का हवाला दिया, जिसमें दोषियों की रिहाई की आलोचना की गई थी. अख़बार ने ये भी लिखा कि मुस्लिम सामाजिक-धार्मिक संगठन जमीयत उलमा-ए-हिंद ने बानो का केस लड़ने की पेशकश की थी.

24 अगस्त को इनक़लाब ने जस्टिस साल्वी का ये कहते हुए हवाला दिया, जिसमें उन्होंने अनुरोध किया था कि ‘जिसने भी ये फैसला लिया है’, उसपर फिर से विचार करे.

उसी दिन सियासत ने भी अपने पहले पन्ने पर ऐलान किया, कि बिलक़ीस बानो केस को सुप्रीम कोर्ट में सुना जाएगा. उसी के साथ लगी एक ख़बर में गुजरात बीजेपी विधायक भरत पटेल का ये कहते हुए हवाला दिया गया, कि वो किसी भी समय दंगे करा सकते हैं. पटेल ने ये टिप्पणी उस समय की थी, जब पुलिस ने वलसाड़ में एक गणेश यात्रा को रोक दिया था.


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किसान आंदोलन

राष्ट्रीय राजधानी में किसान आंदोलन की वापसी पहले पन्नों की सुर्ख़ियां बनी.

22 अगस्त को अपने पहले पन्ने पर इनक़लाब ने जंतर मंतर पर रैली और धरने की तैयारियों के बारे में लिखा, और इसपर रोशनी डाली कि सुरक्षा कड़ी कर दी गई है. अख़बार ने लिखा कि किसान बिजली बिल में कमी, अपनी फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी), और लखीमपुर खीरी केस में इंसाफ चाहते हैं, जिसमें कथित रूप से किसानों को कुचलने के आरोप में, एक केंद्रीय मंत्री का बेटा फिलहाल जेल में है.

सहारा ने भी अपने पहले पन्ने पर ख़बर दी, कि किसानों का इरादा 6 सितंबर को एक बैठक के लिए दिल्ली लौटने का है, जहां आगे की कार्रवाई के बारे में फैसला लिया जाएगा. उसी दिन, सियासत की पहले पन्ने की ख़बर में भी इस पर रोशनी डाली गई, कि किसान नेता राकेश टिकैत को कुछ देर के लिए हिरासत में लिया गया था.

23 अगस्त को, इनक़लाब के पहले पन्ने की लीड ख़बर में ऐलान किया गया, कि जंतर मंतर पर किसानों की महापंचायत ने सरकार को एक चेतावनी जारी की है.

24 को अपने संपादकीय में,सहारा ने आंदोलनकारी किसानों के प्रति समर्थन का इज़हार किया, और लिखा कि एमएसपी कोई अहसान नहीं है जो सरकार किसानों के साथ करेगी, क्योंकि ये उस रक़म का केवल डेढ़ गुना है जिसका किसानों ने निवेश किया है.

अख़बार ने लिखा कि सरकार के दावों के बरतरफ, खाद्यान्नों की कमी के मामले में भारत का विश्व में फिलहाल 102वां स्थान है. उसने लिखा कि अगर किसानों को न्यूनतम मूल्य की गारंटी मिले, तो वो उपज बढ़ाने का प्रयास कर सकते हैं.

‘ईशनिंदा’

बीजेपी विधायक राजा सिंह द्वारा पैग़म्बर मोहम्मद पर कथित रूप से दिए गए ईशनिंदात्मक बयानों के बाद, हैदराबाद में फैली अशांति ने पहले पन्नों को व्यस्त रखा.

24 अगस्त को आठ कॉलम की एक लीड में सियासत ने लिखा, कि मुस्लिम युवा बिना किसी राजनीतिक या धार्मिक नेतृत्व के, ‘दुःसाहसी’ बीजेपी विधायक की टिप्पणियों के खिलाफ सड़कों पर उतर आए थे. अख़बार ने लिखा कि चारमीनार के आसपास कई इलाक़ों में एक बंद का आह्वान किया गया था.

उसी दिन के संपादकीय में सियासत ने लिखा, कि भारत में इतनी अधिक धार्मिक भावनाओं को हवा दी गई है, और लोगों के बीच इतना ज़्यादा ज़हर बोया गया है, कि उन्हें सांप्रदायिक तनाव के अलावा कुछ और संझ ही नहीं आता.

संपादकीय ने अफसोस ज़ाहिर किया कि ये इस हद तक बढ़ गया है, कि जनता के नुमाइंदे न सिर्फ सक्रिय रूप से इस आग को हवा दे रहे हैं, बल्कि मुसलमानों को मानसिक रूप से भी प्रताड़ित कर रहे हैं.

24 अगस्त को, इनक़लाब के पहले पन्ने पर ख़बर दी गई, कि पैग़म्बर का एक बार फिर से अपमान किया गया था, और गुमराह विधायक को गिरफ्तार कर लिया गया था. अख़बार ने आगे लिखा कि उसका निलंबन तब हुआ, जब मुसलमानों में भारी रोष और दुख के बाद सड़कों पर भारी प्रदर्शन होने लगे.

दिल्ली में AAP-BJP खींचतान

रोज़नामा और इनक़लाब दोनों ने 22 अगस्त को पहले पन्ने पर ख़बर दी, कि दिल्ली के उप-मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने दावा किया, कि सीबीआई ने आबकारी नीति मामले में उनके खिलाफ एक लुक-आउट नोटिस जारी कर दिया था.

अगले दिन इसी से जुड़ी ख़बर को तीन उर्दू अख़बारों के पहले पन्नों पर जगह दी गई.

इनक़लाब, सियासत और इनक़लाब ने ख़बर दी कि सीबीआई छापों और लुक-आउट नोटिस की ख़बरों के बाद, सिसोदिया ने दावा किया कि बीजेपी ने उन्हें पेशकश की थी कि अगर वो आप को तोड़कर उनके साथ शामिल हो जाएं, तो उनके खिलाफ सीबीआई और ईडी मामले बंद कर दिए जाएंगे.

23 अगस्त को एक और कॉलम में इनक़लाब ने गुजरात में आप प्रमुख अरविंद केजरीवाल के उस बयान के बारे में ख़बर दी, कि वो प्रधानमंत्री बनने के लिए राज्य में नहीं आए थे.

रोज़नामा ने भी केजरीवाल का बयान छापा, जिसमें उन्होंने दावा किया कि बीजेपी दिल्ली में उनकी सरकार को गिराना चाहती है. उसने बीजेपी नेता गौरव भाटिया के बयान को भी जगह दी, जिसमें उन्होंने आप के लगाए आरोपों का खंडन किया था.

सियासत ने ख़बर दी कि केजरीवाल ने दावा किया है कि उन्हें गुजरात चुनाव से पहले गिरफ्तार किया जा सकता है.

25 अगस्त को सहारा ने पहले पन्ने पर ख़बर दी, कि आम आदमी पार्टी (आप) ने भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) पर आरोप लगाया है, कि उसने उनके चार विधायकों को पार्टी में शामिल होने के लिए 20-20 करोड़ रुपए दोने की पेशकश की थी. उसने आप के राज्यसभा सांसद संजय सिंह का ये दावा करते हुए हवाला दिया, कि उनके विधायकों को धमकी दी गई थी कि केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) और प्रवर्त्तन निदेशालय (ईडी) को उनके पीछे लगा दिया जाएगा.

उसी दिन, रोज़नामा के संपादकीय में कहा गया कि कांग्रेस मुक्त भारत का नारा अब विपक्ष मुक्त भारत में बदल गया है.

उसमें कहा गया, ‘हर दिन, कहीं से ख़बर आ जाती है कि विपक्षी सदस्यों को ख़रीदने की कोशिश की जा रही है, और कुछ लोग उन्हें डरा धमकाकर और केंद्रीय एजेंसियों द्वारा गिरफ्तारी का डर दिखाकर, अपनी ओर लाने की कोशिश कर रहे हैं. ये कोशिश बहुत से सूबों में कामयाब रही, और वहां सरकारें बदल दी गईं’.

‘मीडिया ने सरकारों को बदलने की इस कार्रवाई कोऑपरेशन लोटस का नाम दिया है. इस ऑपरेशन लोटस के अंतर्गत भारतीय जनता पार्टी राज्यों में अपने राजनीतिक समीकरणों को ठीक करने की कोशिश करती है. इस प्रयास को सफल बनाने के लिए हर रणनीति अपनाई जाती है. ‘साम दाम दंड भेद’ के हिंदी मुहावरे पर मिश्रित रूप में अमल किया जाता है’.

इसी तरह के विषय को सियासत ने 25 अगस्त को अपने संपादकीय में उठाया, जिसमें उसने दावा किया कि बीजेपी के सत्ता में आने के बाद से जम्हूरियत के मायने बदल गए हैं.

उसमें कहा गया, ‘सत्ता को जन सेवा के लिए इस्तेमाल करने की बजाय, ताक़त हासिल करने और विपक्ष को अपमानित करके उनकी सरकारों को गिराने के लिए, पैसे और केंद्रीय एजेंसियों का अंधाधुंध इस्तेमाल किया जा रहा है. देश के बहुत से सूबों में ऐसी स्पष्ट मिसालें हैं, जहां लोकप्रिय वोट से सत्ता पाने में नाकाम रहने के बाद, बीजेपी पिछले दरवाज़े से सत्ता पर क़ाबिज़ होने में कामयाब हो गई है’.

अज़ान विवाद और ज्ञानवापी केस

24 अगस्त को इनक़लाब ने लिखा कि अज़ान के शब्दों को विवादास्पद बनाने की कोशिश, जिनमें अल्लाह के एक होने की बात कही गई है, नाकाम हो गई है चूंकि कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा है कि इससे दूसरे धर्मों के लोगों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन नहीं होता. याचिकाकर्त्ता मंजुनाथ एस हालावर ने तर्क दिया था, कि अज़ान के शब्दों से दूसरे धर्मों के मानने वाले आहत होते हैं.

अगले दिन,रोज़नामा ने अपने पहले पन्ने पर ख़बर छापी, कि वाराणसी ज़िला अदालत ने अंजुमन इंतज़ामिया कमेटी की उस अर्ज़ी पर 12 सितंबर तक के लिए फैसला सुरक्षित रख लिया है, जिसमें उसने ज्ञानवापी मस्जिद मामले को सुने जाने को चुनौती दी थी.

क़ुतुब मीनार स्वामित्व विवाद

25 अगस्त को रोज़नामा ने ख़बर दी कि भारतीय पुरातत्व विभाग (एएसआई) ने साकेत कोर्ट में कहा है, कि अब से क़रीब 150 साल पहले तक मालिकाना हक़ की कोई दावेदारी पेश नहीं की गई. सरकारी एजेंसी ने कोर्ट से कहा कि इसलिए एक व्यक्ति की याचिका, जिसने आगे बढ़कर इसके पुश्तैनी संपत्ति होने का दावा जताया है, ख़ारिज कर दी जानी चाहिए.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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