नई दिल्ली : आज के दौर में निर्वाचन आयोग पर राजनीतिक पार्टियों द्वारा आरोप लगाना आसान हो सकता है, लेकिन टीएन शेषन जब चुनाव आयुक्त थे तो इसके बारे में सोचना भी अकल्पनीय था.
15 दिसंबर को टीएन शेषन 86 वर्ष के हो गए हैं. 1990 से 1996 के बीच भारतीय चुनावी सुधार प्रक्रियाओं को लेकर किए गए उनके कार्य सराहनीय हैं. सुधार प्रक्रियाओं का सारा श्रेय उन्हीं को जाता है.
भारतीय राजनीति में कहा जाता है कि नेता भगवान से या तो टीएन शेषन से डरते थे. आजतक शेषन के कार्यकाल को याद किया जाता है. सुप्रीम कोर्ट ने हाल में ही टीएन शेषन के कार्यकाल के दौरान जो विश्वसनीयता थी उसको बनाये रखने का जिक्र भी किया.
सीईसी के रूप में उनके उत्तराधिकारी वीएस संपथ कहते है, ‘उन्होंने वास्तव चुनाव आयोग को नया आयाम और कद दिया जो कि आज तक कायम है.’
तो, वास्तव में क्या है जो शेषन की विरासत को अद्वितीय बनाता है?
निर्वाचन आयोग में शेषन की विरासत
ऐसा लगता था शेषन के पास छड़ी है और इसे चलाते समय उन्होंने किसी को नहीं बख्शा. पहली बार मॉडल कोड ऑफ कंडक्ट लागू करने, चुनाव में ताकत और धन बल पर लगाम लगाने, मामलों को दर्ज करने और मतदान नियमों का पालन न करने के लिए उम्मीदवारों को गिरफ्तार करने और उम्मीदवारों का साथ देने वाले अधिकारियों को निलंबित करने का श्रेय दिया जाता है.
पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एच. एस ब्रह्मा कहते है, ‘निर्वाचन आयोग उनकी विरासत से लगातार सीख सकता है. 1960 के दौर से 1980 तक निर्वाचन आयोग राम भरोसे चलता था .
‘वह मॉडल कोड ऑफ कंडक्ट और कानून के शासन को वास्तव में लागू करने वाले पहले मुख्य चुनाव आयुक्त थे. उनसे पहले, चुनाव आयुक्त चुनाव परिणामों की घोषणा करने में खुश थे.’
‘चुनावी अनुशासन के बारे में पूरे देश में चुनावी कर्मचारियों को लेकर वह निर्दयी और क्षमाशील थे और इतना ही नहीं, वह राजनेताओं के साथ भी समान रूप से सख्त रहते थे . वह उनकी बात भी नहीं सुनते थे.
1994 में राजनीतिक हलकों में कई लोगों की आंख खुल गयी जब उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव को सलाह दी मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए कैबिनेट से दो मौजूदा कैबिनेट मंत्रियों सामाजिक कल्याण मंत्री सीताराम केसरी और खाद्य मंत्री कल्पनानाथ राय को हटाने के लिए कहा.
जाहिर तौर पर अपने शासनादेश का ज्यादा प्रयोग करने के लिए आलोचना झेलनी के बावजूद, शेषन अपने निर्णय पर अडिग थे.
चुनावों के दौरान उम्मीदवारों के खर्च में कटौती करने के बाद, उन्होंने यह सुनिश्चित किया कि शराब और धन वितरित करने वाले, सरकारी ऋण वाले हेलीकॉप्टरों से गरीबी गांवों में उतरने वाले अमीर राजनेताओं की छवि अतीत की बात बन गई थी.
धर्म और जाति आधारित घृणा का फ़ैलाने वाले अभियान भाषणों के लिए जीरो टॉलरेंस था.
सिविल सेवक और राष्ट्रपति उम्मीदवार
सीईसी के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान शेषन सार्वजनिक सेवा में भी बने रहे. तमिलनाडु कैडर के 1955-बैच आईएएस अधिकारी, शेषन ने अपने गृह राज्य और केंद्र में विभिन्न पदों पर कार्य किया. कैबिनेट सचिव के पद तक काम किया जोकि सिविल सेवा पदानुक्रम में वरिष्ठ स्थान होता है. उन्होंने 1989 में आठ महीने तक इस पद पर सेवा की, स्वतंत्र भारत के इतिहास में सबसे कम समय तक इस पद पर सेवा देने वाले कैबिनेट सचिव हैं.
उन्होंने योजना आयोग के सदस्य के रूप में भी कार्य किया और के आर नारायणन के विपरीत भारत के राष्ट्रपति के लिए 1997 में चुनाव लड़ा और चुनाव हार गए.
उन पर आरोप था कि उन्होंने अपने अंगरक्षकों को रास्ता अवरुद्ध करने वाली कार पर गोली चलाने का आदेश दिया था. लेकिन आरोप सिद्ध नहीं हो सका.
फिर भी, उनकी साफ सुथरी छवि को कमजोर कर सकते है.
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