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Sunday, 24 November, 2024
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‘मनुस्मृति के अनुसार सभी महिलाएं शूद्र हैं’ – JNU की कुलपति ने जातिगत भेदभाव को ‘अमानवीय’ बताया

‘डॉ. बी आर आंबेडकर्स थॉट्स ऑन जेंडर जस्टिस: डिकोडिंग द यूनिफॉर्म सिविल कोड’ शीर्षक वाले डॉ. बी आर आंबेडकर व्याख्यान श्रृंखला में शांतिश्री ने कहा कि महिलाओं की कोई जाति नहीं होती है.

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नई दिल्ली: जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) की कुलपति शांतिश्री धूलिपुड़ी पंडित ने सोमवार को कहा कि मनुस्मृति सभी महिलाओं को ‘शूद्र’ का दर्जा देती है.

‘डॉ. बी आर आंबेडकर्स थॉट्स ऑन जेंडर जस्टिस: डिकोडिंग द यूनिफॉर्म सिविल कोड’ शीर्षक वाले डॉ. बी आर आंबेडकर व्याख्यान श्रृंखला में शांतिश्री ने कहा कि महिलाओं की कोई जाति नहीं होती है.

उन्होने आगे कहा, ‘कोई महिला यह दावा नहीं कर सकती है कि वो ब्राह्मण है या कुछ और है.’

शांतिश्री ने कहा, ‘मेरा मानना ​​है कि शादी से ही आपको पति या पिता की जाति मिलती है. मुझे लगता है कि यह कुछ असाधारण तौर पर पिछड़ी है. ‘

उन्होंने आगे कहा कि पुरुषों ने सभी धर्मों को हाईजैक कर लिया है. ‘जब महिलाएं अपने अधिकार मांगती हैं, तो सभी धर्म कमजोर हो जाते हैं. सभी देवता और भी नाजुक हो जाते हैं. आपको लगता है कि अगर कोई महिला 60 रुपए से 125 रुपए तक भरण-पोषण चाहती है, तो धर्म खतरे में पड़ जाता है. ऐसा कैसे हो सकता है कि जब कोई महिला अपना हक मांगती है तो सभी एकजुट हो जाते हैं?’

शांतिश्री ने कहा, आंबेडकर एक प्रख्यात, विचारक और महिला अधिकारों के पैरोकार थे, जो अपने समय से आगे थे. ‘सिमोन डी बेवॉयर ने कहा था, ‘महिलाएं पैदा नहीं होती हैं, बनाई जाती हैं. आंबेडकर के भी इसी तरह के विचार के थे.

वहीं देश में जाति-संबंधी हिंसा की घटनाओं के बीच शांतिश्री ने कहा कि ‘मानव-विज्ञान की दृष्टि से’ देवता उच्च जाति से नहीं हैं और यहां तक ​​कि भगवान शिव भी अनुसूचित जाति या जनजाति से हो सकते हैं.

नौ साल के एक दलित लड़के के साथ हाल ही में हुई जातीय हिंसा की घटना का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि ‘कोई भी भगवान ऊंची जाति का नहीं है.’

उन्होंने कहा, ‘आप में से अधिकांश को हमारे देवताओं की उत्पत्ति को मानव विज्ञान की दृष्टि से जानना चाहिए. कोई भी देवता ब्राह्मण नहीं है, सबसे ऊंचा क्षत्रिय है. भगवान शिव अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति से होने चाहिए क्योंकि वह एक सांप के साथ एक श्मशान में बैठते हैं और उनके पास पहनने के लिए बहुत कम कपड़े हैं. मुझे नहीं लगता कि ब्राह्मण श्मशान में बैठ सकते हैं.’

उन्होंने कहा कि लक्ष्मी, शक्ति, या यहां तक ​​कि जगन्नाथ सहित देवता ‘मानव विज्ञान की दृष्टि से’उच्च जाति से नहीं हैं. उन्होंने कहा कि वास्तव में, जगन्नाथ का मूल आदिवासी है.

उन्होंने कहा, ‘तो हम अभी भी इस भेदभाव को क्यों जारी रखे हुए हैं जो बहुत ही अमानवीय है. यह बहुत महत्वपूर्ण है कि हम बाबा साहेब के विचारों पर फिर से सोच रहे हैं. हमारे यहां आधुनिक भारत का कोई नेता नहीं है जो इतना महान विचारक था.’

उन्होंने कहा, ‘हिंदू कोई धर्म नहीं है, यह जीवन जीने की एक पद्धति है और अगर यह जीवन जीने का तरीका है तो हम आलोचना से क्यों डरते हैं.’

उन्होंने कहा, ‘गौतम बुद्ध हमारे समाज में अंतर्निहित, संरचित भेदभाव पर हमें जगाने वाले पहले लोगों में से एक थे.’

जेएनयू कुलपति शांतिश्री ने साथ ही कहा कि विश्वविद्यालय में कुलपति की जगह ‘कुलगुरु’ शब्द का इस्तेमाल शुरू किया जा सकता है. उन्होंने व्याख्यान में कहा कि कुलगुरु शब्द के उपयोग का प्रस्ताव और अधिक लैंगिक तटस्थता लाने के उद्देश्य से किया गया है.


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समान नागरिक संहिता

शांतिश्री ने सोमवार को कहा कि समान नागरिक संहिता लागू करना लैंगिक न्याय के प्रति सबसे बड़ा उपकार होगा.

जेएनयू कुलपति ने कहा कि आंबेडकर समान नागरिक संहिता लागू करना चाहते थे. उन्होंने कहा, ‘गोवा में समान नागरिक संहिता है जो पुर्तगालियों द्वारा लागू की गई थी, इसलिए वहां हिंदू, ईसाई और बौद्ध सभी ने इसे स्वीकार किया है, तो ऐसा क्यों नहीं किया जा रहा.’

उन्होंने कहा, ‘जब तक हमारे पास सामाजिक लोकतंत्र नहीं है, हमारा राजनीतिक लोकतंत्र एक मृगतृष्णा है. यह सही बात है, ऐसा नहीं हो सकता कि अल्पसंख्यकों को सारे अधिकार दे दिए जाएं लेकिन बहुसंख्यकों को वे सभी अधिकार ना मिलें. कभी न कभी आपको ये इतना उल्टा पड़ जाएगा कि आप उसे संभाल नहीं पाएंगे.’

उन्होंने कहा, ‘लैंगिक न्याय के प्रति सबसे बड़ा सम्मान बाबा साहेब की महत्वाकांक्षा के अनुरूप समान नागरिक संहिता को लागू करना होगा.’

उन्होंने महिलाओं के लिए आरक्षण की आवश्यकता के बारे में कहा कि अधिकांश इसके पक्ष में होंगे, लेकिन आज भी 54 विश्वविद्यालयों में से केवल छह में महिला कुलपति हैं, जबकि केवल एक आरक्षित वर्ग से है.

सोनिया अग्रवाल और भाषा के इनपुट से


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