नई दिल्ली: हिंदी पट्टी पर कांग्रेस जीत की ओर अग्रसर दिख रही है. इन राज्यों में बीजेपी के खिलाफ मत पड़ा है. मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में तीन बार से शासन में रही भाजपा को एंटी इंकम्बेंसी की मार झेलनी पड़ रही है. हालांकि मध्य प्रदेश में टक्कर कांटे की बनी हुई है. भाजपा लंबे समय से ‘कांग्रेस मुक्त भारत’ का नारा देती रही है, लेकिन अब यह नारा हवा होता दिख रहा है.
राजस्थान ने अपनी रवायत को बरकरार रखते हुए हर चुनाव में सरकार बदलने का क्रम जारी रखा है. वसुंधरा राजे सरकार के खिलाफ जो माहौल बना था, वो मतदान में नज़र आया.
और जनता का मत स्पष्ट है उसने – सीधा मैंडेट दिया है और छोटे दलों की भूमिका को नगण्य कर दिया.
तेलंगाना में टीआरएस अपना गढ़ बचाने में सफल रहा और मिज़ोरम में एमएनएफ ने भारी जीत की और बढ़ रहा है.
पर इन चुनावों में जो बात निकल कर आ रही है वह राज्यों में सरकारों से लोगों की नाराज़गी तो है ही, साथ ही मोदी का जादू भी फीका पड़ता दिख रहा है.
साथ ही ये कांग्रेस में आई नई उर्जा और आपसी महत्वाकांक्षा के इतर चुनाव में एक संगठन के रूप में आगे आना इस सफलता के पीछे सबसे बड़ी कामयाबी रही है.
पार्टी ने किसी भी राज्य में मुख्यमंत्री पद का चेहरा पेश नहीं किया था फिर भी राजस्थान में सचिन पायलेट और अशोक गहलोत और मध्य प्रदेश में कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया ने चुनावी माहौल तैयार किया. छत्तीसगढ़ में भी भूपेश बघेल, ताम्रध्वज साहू और टीएस सिंह देव ने मिल कर चुनाव की कमान संभाली.
साथ ही ये भी दिख रहा है कि योगी आदित्यनाथ जो स्टार प्रचारक के रूप में उभरे थे वे शायद भाजपा के लिए फायदे के बजाय नुकसान का कारण बने. उनकी 70 से ज्यादा रैलिया क्या भाजपा के लिए नुकसानदेह साबित हुई – इसका जायजा पार्टी को लेना पड़ेगा और सोचना होगा कि उनके ब्रांड की राजनीति को जनता पसंद नहीं कर रहीं.
पर इन चुनावों में जो सबसे स्पष्ट नतीजे हैं वो हैं छत्तीसगढ के जहां भाजपा शासन को पूरी तरह से नकार दिया. हालांकि जो तस्वीर एक्सिट पोल दिखा रहे थे वो राजस्थान में भाजपा का सूपड़ा साफ होता दिखा रहा था और ‘महारानी के खिलाफ’ भारी आक्रोश की बात कर रहा था. पर शायद अंतिम समय की मोदी शाह की रैलियों ने भाजपा की थोड़ी नाक बचा ली.
विश्लेषक इसे कांग्रेस की जीत के रूप में देख रहे हैं और भाजपा के खिलाफ मूड की बात कर रहे हैं. अब ये देखना होगा कि जो उर्जा कांग्रेस में आई है वो 2019 में भाजपा को कितनी बड़ी चुनौती देती है. राजनीति में कुछ भी हो सकता है, और हर चुनाव ये संदेश लाता है. इसे जनतंत्र में जनता की बादशाहत की जीत के रूप में देखा जा सकता है.