नई दिल्ली: देश के दूरस्थ ग्रामीण इलाकों के सरकारी स्वास्थ्य केंद्र स्पेशलिस्ट डॉक्टरों की कमी के भारी संकट से जूझ रहे हैं. भले ही केंद्र सरकार अपनी महती स्वास्थ्य सेवा योजना आयुष्मान भारत को मज़बूत करने में जुटी हो.लेकिन स्थिति इतनी विकट है कि ग्रामीण स्वास्थ्य सांख्यिकी 2018 के अनुसार देश भर में सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों (सीएचसी) के लिए स्वीकृत स्पेशलिस्ट डॉक्टरों के कुल पदों में से 74 प्रतिशत पद खाली पड़े हैं.
इन विशेषज्ञ डॉक्टरों में सर्जन, स्त्रीरोग विशेषज्ञ, फिजिशियन और बाल रोग विशेषज्ञ शामिल हैं.
स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार भारत के करीब 5,600 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों के लिए विशेषज्ञ चिकित्सकों के 13,635 पद स्वीकृत हैं. इनमें से वर्तमान में 10,051 पद खाली पड़े हैं.
मिज़ोरम जैसे राज्यों में तो ग्रामीण इलाकों में एक भी स्पेशलिस्ट डॉक्टर उपलब्ध नहीं है – राज्य के सभी 33 स्वीकृत पद खाली पड़े हैं.
बड़े राज्यों में भी कोई अच्छी स्थिति नहीं है. छत्तीसगढ़ में 620 स्वीकृत पदों में से 559 (90 प्रतिशत) खाली पड़े हैं. मध्य प्रदेश के 1,338 स्वीकृत पदों में से 988 पर नियुक्तियां नहीं हुई हैं. इसी तरह राजस्थान और तेलंगाना में विशेषज्ञ चिकित्सकों के 65 प्रतिशत पदों पर नियुक्तियों का इंतज़ार है.
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स्वास्थ्य मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम नहीं बताने की शर्त पर बात करते हुए तीन चौथाई पदों के खाली रहने के लिए डॉक्टरों को ज़िम्मेवार ठहराया है.
अधिकारी ने कहा, ‘हम सभी डॉक्टरों के लिए, खासकर जिन्होंने सरकारी कॉलेजों से पढ़ाई की है, ग्रामीण इलाकों में पोस्टिंग अनिवार्य बनाने की कोशिश कर रहे हैं. ये कॉलेज उन्हें करदाताओं के पैसे से प्रशिक्षित करते हैं, इसलिए वहां मरीजों को बचाना और बुनियादी सुविधाएं स्थापित करना उनकी ज़िम्मेदारी है.’
सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र
सरकार के राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (एनआरएचएम) के तहत ग्रामीण इलाकों में स्वास्थ्य सेवा को एक त्रिस्तरीय व्यवस्था का रूप दिया गया है. स्वास्थ्य उपकेंद्र, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र हैं.
जहां उपकेंद्रों में नर्स और मिडवाइफ होती हैं, प्राथमिक केंद्रों में बुनियादी चिकित्सा के लिए सामान्य डॉक्टरों की तैनाती होती है.
सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र ग्रामीण स्वास्थ्य सेवा संरचना के शीर्ष पर होते हैं. इस स्तर का केंद्र 30 बेड का अस्पताल होता है जहां स्पेशलिस्ट चिकित्सा परामर्श की व्यवस्था होती है और जो ज़िला अस्पतालों के लिए एक रेफरल स्वास्थ्य केंद्र होता है. इन केंद्रों की स्थापना और संचालन राज्य सरकारों के ज़िम्मे आता है.
सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में एक्सरे मशीनों, पैथोलॉजिकल प्रयोगशालाओं, ऑपरेशन थियेटरों और प्रसव कक्षों जैसी आधुनिक स्वास्थ्य सेवाओं की व्यवस्था होती है. उनका उद्देश्य न सिर्फ ग्रामीण आबादी की ज़रूरतों को पूरा करना, बल्कि ज़िला अस्पतालों के बोझ को भी बांटना है.
सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च में फेलो अवनी कपूर कहती हैं, ‘स्पेशलिस्ट डॉक्टरों की उपलब्धता वर्षों से एक बड़ी चिंता का विषय है. यदि हम राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन की शुरुआत के वर्ष 2005 से तुलना करें तो उस समय भी स्वीकृत पदों में से 47 प्रतिशत खाली थे, जबकि तब आबादी के मानदंडों के मुक़ाबले बहुत कम चिकित्सकों की आवश्यकता थी.’
‘सामुदायिक केंद्रों के ढांचे के विकसित होने और इनकी संख्या में बढ़ोत्तरी के बाद भी हम स्वास्थ्य सेवा के इस स्तर पर स्पेशलिस्ट डॉक्टरों की भारी कमी की समस्या का समाधान नहीं ढूंढ पाए हैं.’
डॉक्टरों के लिए कोई प्रोत्साहन नहीं
इस स्तर की नियुक्तियों के प्रति उदासीनता के लिए डॉक्टर अपने और अपने परिजनों के लिए ग्रामीण इलाकों में सुविधाओं के अभाव को दोष देते हैं.
ग्रामीण स्वास्थ्य सांख्यिकी रिपोर्ट काफी हद तक इस कारण को सही ठहराती है.
इस रिपोर्ट के अनुसार देश के प्राथमिक और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में से 10 प्रतिशत में शौचालयों की सुविधा नहीं है. उपकेंद्रों की स्थिति तो और भी बुरी है. आंकड़ों के अनुसार भारत के 1.56 लाख स्वास्थ्य उपकेंद्रों में से करीब 30,000 में कर्मचारियों के लिए शौचालय नहीं हैं, जबकि करीब 43,000 में पुरुष और महिला मरीजों के लिए एक ही शौचालय है.
ग्रामीण इलाकों में नियुक्ति के प्रति उदासीनता के संबंध में डॉक्टर कम वेतन का भी उल्लेख करते हैं.
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इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) के पूर्व अध्यक्ष केके अग्रवाल ने कहा कि पूरे देश में स्पेशलिस्ट डॉक्टरों की कमी आम है क्योंकि एमबीबीएस छात्रों में से आधे ही स्पेशलिस्ट के तौर पर प्रशिक्षण का विकल्प चुनते हैं.
उन्होंने कहा, ‘साथ ही आईएमए में हमने बहुत से स्पेशलिस्ट डॉक्टरों को ग्रामीण इलाकों में मात्र 17,000 रुपये पर या अस्थाई पदों रोज़गार की सुरक्षा के बिना काम करते भी देखा है. ग्रामीण इलाकों में काम करने के लिए कोई प्रोत्साहन नहीं दिया जाता है. हर राज्य की वेतन-भत्तों की अपनी अलग व्यवस्था है और कई राज्य ग्रामीण इलाकों में पोस्टिंग पर 50 प्रतिशत कम वेतन देते हैं.’
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