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Wednesday, 3 December, 2025
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‘आतंकवादी तमगा’- पुरी-गृह मंत्रालय विवाद से परे दिल्ली के कैंप्स में रहने वाले रोहिंग्या ‘शरणार्थियों’ की ऐसी है जिंदगी

हाल ही में भारत की रोहिंग्या नीति के जांच के दायरे में आने के साथ हीं मदनपुर खादर के एक रेफ्यूजी कैंप में रहने वाले करीबन 1,000 रोहिंग्या शरणार्थियों ने खुद को एक विचित्र विवाद के रूप में सुर्खियों में पाया.

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नई दिल्ली: वह चार मंजिला इमारत एकदम से जर्जर दिखती है. राष्ट्रीय राजधानी के सराय रोहिल्ला क्षेत्र में स्थित यह इमारत दिल्ली सरकार द्वारा चलाए जा रहे उन दो डिटेंशन सेंटर्स (नज़रबंदी वाले केंद्रों) में से एक है, जहां रोहिंग्या और बांग्लादेशियों सहित ‘अवैध’ अप्रवासियों को पकड़ने के बाद लाया जाता है और फिर हिरासत में रखा जाता है.

इसके गेट बंद हैं. दो पुलिसकर्मी और कुछ सरकारी कार्यवाहक अधिकारी इस परिसर की रखवाली कर रहे हैं, लेकिन उनका कहना है कि उन्हें किसी से भी बात करने की अनुमति नहीं है.

परिसर के अधिकारियों ने बताया कि अंदर रहने वाले रोहिंग्याओं को बाहरी लोगों के साथ बातचीत करने की भी अनुमति नहीं है, और जब दिप्रिंट ने इस सप्ताह वहां का दौरा किया तो किसी को भी इमारत के बाहर नहीं देखा जा सकता था.

अंदर होने वाली गतिविधियों का एकमात्र संकेत खिड़कियों के ज़रिए ही देखा जा सकता था.

अब्दुल नाम के शख़्श (जिन्होंने अपना अंतिम नाम नहीं बताया), जो इस कैंप के ठीक बगल में स्थित एक औद्योगिक इकाई में काम करते हैं, ने कहा, ‘कई बार अंदर रहने वालों से मिलने की लिए आने वाले लोग गेट के ठीक बाहर आकर रोते और सुबकते हैं, लेकिन उन्हें मिलने नहीं दिया जाता है.’

ये रोहिंग्या पड़ोसी देश म्यांमार में रहने वाले उत्पीड़ित अल्पसंख्यक हैं, और कहा जाता है कि सैकड़ों की संख्या में ऐसे लोग अपने देश को छोड़कर भारत में रहते हैं.

भारत में फिलहाल हजारों शरणार्थी रहते हैं, लेकिन इसने आधिकारिक तौर पर संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी प्राधार (यूनाइटेड नेशन्स रिफ्यूजी फ्रेम्वर्क) पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं और न ही इस संबंध में हमारी कोई राष्ट्रीय नीति है. भारत ने न तो संयुक्त राष्ट्र 1951 के रिफ्यूजी कन्वेंशन (शरणार्थी समझौते) और न ही इसके 1967 के प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर किए हैं.

संयुक्त राष्ट्र ने अपनी एक रिपोर्ट में उल्लेख किया है, ‘हालांकि, भारत सरकार विभिन्न शरणार्थी समूहों के साथ अलग-अलग व्यवहार करती है, मगर सामान्य तौर पर यह यूएनएचसीआर (यूएन की शरणार्थी एजेंसी) के डॉक्युमेंटेशन रखने वाले के प्रति नों-रफौलेमेंट (शरणार्थियों या शरण चाहने वालों को उत्पीड़ित क्षेत्रों में वापस नहीं भेजना) के सिद्धांत का सम्मान करती है.’

रोहिल्ला स्थित डिटेंशन सेंटर दिल्ली सरकार की उन दो सुविधाओं में से एक है, जिनके बारे में माना जाता है कि जो रोहिंग्या अवैध रूप से भारत में हैं उन्हें वहां पकड़ के रखा जाता है. दूसरा केंद्र लमपुर स्थित सेवा सदन निर्वासन केंद्र (डिपोर्टेशन सेंटर) है, जिसमें कई अन्य देशों के ‘अवैध’ विदेशी नागरिक भी रहते हैं.

गृह मंत्रालय (एमएचए) के दिशानिर्देशों के अनुरूप स्थापित ये केंद्र तब तक के लिए एक अस्थायी आधार शिविर के रूप में कार्य करते हैं जब तक कि सरकार उन निवासियों की स्थिति निर्धारित नहीं करती है. यदि रोहिंग्याओं का यहां रहना अवैध साबित हो जाता है, तो उन्हें निर्वासित कर दिया जाता है; अन्यथा उन्हें यहीं रहने की अनुमति दी जाती है.

पिछले साल मार्च में, केंद्र सरकार ने राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेशों के प्रशासन को अपनी- अपनी कानून प्रवर्तन और खुफिया एजेंसियों को ‘अवैध प्रवासियों की त्वरित पहचान के लिए उचित कदम उठाने, कानून के प्रावधानों के अनुसार निर्दिष्ट स्थानों पर उनको सीमित रखने, उनके जैविक और बायोमेट्रिक विवरण जुटाने, उनके द्वारा हासिल किए गये नकली भारतीय दस्तावेजों को रद्द करने और ज़रूरी कानूनी कार्यवाही करने के लिए( जिसमें कानून के प्रावधानों के अनुसार निर्वासन की कार्यवाही शुरू करना भी शामिल है) के बारे में संवेदनशील बनाने के निर्देश जारी किए थे.

करीब 1,000 से अधिक रोहिंग्या मदनपुर खादर के एक शिविर में रहते हैं, उन्होंने हाल में भारत की रोहिंग्या नीति के जांच के दायरे में आने के साथ हीं खुद को एक विचित्र विवाद के रूप में सुर्खियों में पाया.

बुधवार को, केंद्रीय आवास और शहरी मामलों के मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने उस मीडिया रिपोर्ट को रीट्वीट किया जिसमें दावा किया गया था कि ‘सभी रोहिंग्या शरणार्थियों को दिल्ली के बक्करवाला इलाके में ईडब्ल्यूएस फ्लैटों में स्थानांतरित कर दिया जाएगा. उन्हें बुनियादी सुविधाएं, यूएनएचसीआर की आईडी और चौबीसों घंटे @Delhi Police की सुरक्षा प्रदान की जाएगी.’

इस ख़बर में मदनपुर खादर में रहने वाले अनुमानित रूप से 1,100 रोहिंग्याओं के कथित स्थानांतरण के बारे में बात की गई थी.

इसके कुछ ही घंटों बाद, गृह मंत्रालय (एमएचए) ने एक खंडन जारी करते हुए कहा कि उसने ‘नई दिल्ली के बक्करवाला में रोहिंग्या अवैध प्रवासियों को ईडब्ल्यूएस फ्लैट प्रदान करने के लिए कोई निर्देश नहीं दिया है’.

इसमें कहा गया है, ‘एमएचए ने दिल्ली सरकार को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया है कि अवैध रोहिंग्या विदेशी नागरिक कंचन कुंज, मदनपुर खादर स्थित वर्तमान स्थानों पर रहना जारी रहेंगे क्योंकि एमएचए पहले ही विदेश मंत्रालय के माध्यम से संबंधित देश के साथ अवैध विदेशियों के निर्वासन का मामला उठा चुका है.’

एक ओर जहां भारत उनकी किस्मत का फैसला करने के लिए काम कर रहा है, वहीं दिल्ली-यूपी सीमा के करीब स्थित मदनपुर खादर शिविर के निवासी उस देश में अपने लिए एक कठिन अस्तित्व की बात करते हैं जहां उन्हें कुछ विशेष वर्गों द्वारा कथित तौर पर संदेह की नजर से देखा जाता है.

मदनपुर खादर कैंप में रोहिंग्या शरणार्थी | अमोघ रोहमेत्रा/ दिप्रिंट

जब दिप्रिंट ने इस इलाक़े के कुछ लोगों से उनकी टिप्पणी के लिए संपर्क किया, तो उन्होंने एक ऐसे व्यक्ति की ओर इशारा किया जो किसी ‘नेता’ की तरह लगता था और कहा कि वही शख्स बात करने के लिए सबसे अच्छा व्यक्ति है.

यह व्यक्ति सलीम था और उसने अपना अंतिम नाम नहीं बताया. वह पेशे से एक चौकीदार है जो यहां पांच लोगों के परिवार के साथ रहता है. उन्होंने दिप्रिंट को बताया, ‘पहले भी समस्याएं थीं लेकिन पिछले डेढ़ सालों में, चीजें खास तौर पर खराब हो गई हैं.’


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‘कुछ लोग हमें आतंकवादी कहते हैं’

दिप्रिंट ने जिन निवासियों से बात की, उनके अनुसार, 2012 से प्रत्येक घर में लगभग पांच से छह परिवार के सदस्यों के साथ इस छोटे से इलाक़े लगभग 250 लोग रहते हैं.

यह कैंप पक्के घरों और कुछ हद तक अच्छी हैसियत वाले पास-पड़ोस से घिरा हुआ है. हालांकि, यहां के शरणार्थी बांस की डंडियों के सहारे खरे कैनवास की चादरों के नीचे रहते हैं.

कैंप में लगे तंबू इस कदर आपस में सटे हुए हैं कि दोपहर के समय भी सूरज की रोशनी मुश्किल से गुजरती है. इन तंबुओं के बीच ही उनकी बुनियादी ज़रूरतों को पूरा करने वाली दुकान है.

कैंप में रहने वाले ज्यादातर बच्चे दो से 10 साल की उम्र के हैं और सरकारी स्कूलों में पढ़ते हैं.

सलीम ने कहा, ‘हालांकि हम अभी तक यहां परेशान नहीं किया गया हैं, लेकिन कई जगहों पर हमें भेदभाव का सामना करना पड़ता है. अगर हम कैमरों के सामने आते हैं, तो हमारे लिए एक सुरक्षा की समस्या भी पैदा हो जाती है. सबको अपनी-अपनी राजनीति करनी है.’

साफ-सफाई की समुचित सुविधा न होने और चारों ओर मच्छरों के फैले होने से, यहां के निवासियों के लिए बुनियादी स्वास्थ्य एक अतिरिक्त चिंता का सबब बन गया है.

कैंप के निवासियों के सामने आने वाली चुनौतियों के बारे में बात करते हुए, सलीम ने कहा, ‘नौकरी मिलना बहुत मुश्किल है’.

उन्होंने कहा, ‘कुछ लोग हमें ‘आतंकवादी’ कहते हैं. जब नौकरी देने वालों को पता चलता है कि हम (शरणार्थी) शिविरों से हैं, तो वे हमें बहुत बार नौकरी देने से मना कर देते हैं.’

सराय रोहिल्ला डिटेंशन सेंटर के ऊपर रहन-सहन की खराब स्थिति का आरोप भी लगाया गया है. अब्दुल ने कहा, ‘लगभग एक महीने पहले मैंने सुना था कि पानी या बिजली से संबंधित मुद्दों के कारण एक सप्ताह के लिए खाने-पीने की कमी हो गई थी.’

हालांकि, एक कर्मचारी ने ऑफ द रिकॉर्ड (बिना अधिकारिक अनुमति के) बोलते हुए कहा कि शरणार्थियों को ‘प्रतिदिन चार बार भोजन दिया जाता है और उन्हें चौबीसों घंटे बिजली की आपूर्ति होती है.’

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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