scorecardresearch
Sunday, 3 November, 2024
होमदेशIAS की जगह नहीं भरी जा सकती, मोदी सरकार ने लेटरल एंट्री से आए 7 अधिकारियों का कार्यकाल बढ़ाया

IAS की जगह नहीं भरी जा सकती, मोदी सरकार ने लेटरल एंट्री से आए 7 अधिकारियों का कार्यकाल बढ़ाया

लेटरल एंट्री वाली भर्ती के माध्यम से अब तक 37 अधिकारी नियुक्त किए गए हैं. 2019 में 7 और 2021 में 30. इसके माध्यम से आने वाले अधिकारियों को 3 साल के एक अनुबंध पर हस्ताक्षर करने की आवश्यकता होती है, जिसे उनके प्रदर्शन के आधार पर और 2 साल तक बढ़ाया जा सकता है.

Text Size:

नई दिल्ली: साल 2019 में केंद्र सरकार के मंत्रालयों में संयुक्त सचिव के रूप में शामिल किए गए सात लेटरल एंट्री के माध्यम से आने वाले अधिकारियों का कार्यकाल दो साल के लिए बढ़ा दिया गया है. दिप्रिंट को यह जानकारी मिली है

भारतीय लोक प्रशासन संस्थान (आईआईपीए), जो लेटरल एंट्री वाले अधिकारियों को उनके मंत्रालयों में शामिल होने से पहले प्रशिक्षित करता है, के महानिदेशक सुरेंद्र नाथ त्रिपाठी ने कहा, ‘सरकार उनसे खुश दिखती है. इसके प्राथमिक उद्देश्यों में से एक बाजार से विशेषज्ञता वाले लोगों को हासिल करना और उन्हें संबंधित मंत्रालयों में रखना था. वह उद्देश्य पूरा हो गया है.’

दिप्रिंट ने इनमें से कुछ लेटरल एंट्री वाले अधिकारियों से बात की, जिन्होंने इस बात की पुष्टि की कि हालांकि उन्हें अभी तक आधिकारिक कागजात नहीं मिले हैं, मगर उनके सेवा विस्तार की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है.

लेटरल एंट्री वाली भर्ती के माध्यम से अब तक 37 अधिकारी नियुक्त किए गए हैं- 2019 में 7 और 2021 में 30. लेटरल एंट्री के माध्यम से आने वाले अधिकारियों को 3 साल के एक अनुबंध पर हस्ताक्षर करने की आवश्यकता होती है, जिसे उनके प्रदर्शन के आधार पर और 2 साल तक बढ़ाया जा सकता है.

त्रिपाठी ने कहा कि सात संयुक्त सचिवों के प्रदर्शन की समीक्षा अभी बाकी है.

त्रिपाठी ने कहा, ‘सरकार लेटरल एंट्री वाले अधिकारियों के लिए एक समग्र प्रदर्शन समीक्षा की प्रक्रिया शुरू कर सकती है, लेकिन अभी तक पहले बैच से किसी भी अधिकारी को प्रशिक्षण के लिए संस्थान में वापस नहीं भेजा गया है. मेरी जानकारी के अनुसार केवल एक व्यक्ति ने सरकार के साथ काम करना छोड़ा है, बाकी सब अच्छे से काम कर रहे हैं.‘

कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग के एक वरिष्ठ आईएएस अधिकारी ने कहा, ‘संबंधित मंत्रालयों ने लेटरल एंट्री वाले अधिकारियों के लिए एक वार्षिक मूल्यांकन प्रणाली तैयार की है और उनके प्रदर्शन के आधार पर, उन्हें रेट किया गया है.’

हालांकि, लेटरल एंट्री वाली प्रक्रिया के माध्यम से विशेषज्ञों को सरकारी सेवा में लाकर सिविल सेवाओं में सुधार करने की मोदी सरकार की योजना द्वारा केंद्र में आईएएस अधिकारियों की भारी कमी को दूर करने के लिए बहुत कुछ करने की संभावना नहीं है.

एक डीओपीटी अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया कि सरकार तकनीकी और विशिष्ट क्षेत्रों के विशेषज्ञों के रूप में लेटरल एंट्री वाली भर्ती जारी रखेगी लेकिन उन्हें डीओपीटी या गृह मंत्रालय जैसे मुख्य प्रशासनिक मंत्रालयों में शामिल नहीं किया जाएगा. उन्होंने कहा, ‘लेटरल एंट्री की योजना की भी जल्द ही समीक्षा की जाएगी.’

विगत 28 जून को संसद के पटल पर दिए गए एक लिखित उत्तर में डीओपीटी के राज्य मंत्री जितेंद्र सिंह ने कहा था कि सरकार ने उन मंत्रालयों और विभागों में लेटरल एंट्री के माध्यम से भर्तियां करने का फैसला किया है, जिन्हें निजी क्षेत्र के साथ मिलकर काम करने की आवश्यकता होती है, जैसे कि नागरिक उड्डयन, आर्थिक मामलों के विभाग, पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन, वित्तीय सेवाएं और नवीकरणीय ऊर्जा.

फिलहाल सेवारत लेटरल एंट्री वाले अधिकारी संयुक्त सचिव, निदेशक और उप सचिव के रैंक पर 21 मंत्रालयों और विभागों में विभिन्न पदों पर हैं. इनमें से 10 संयुक्त सचिव (2019 में सात और 2021 में तीन नियुक्त) हैं, जिनमें से चार राज्य सेवाओं या सार्वजनिक क्षेत्र से प्रतिनियुक्ति पर आये हैं और बाकी छह कॉर्पोरेट क्षेत्रों से हैं.


यह भी पढ़ें: P75I टेंडर में ‘महत्वपूर्ण बदलाव’ की जरूरत – भारतीय नौसेना की पनडुब्बी योजनाओं पर रूस


‘हमें पता था कि हम क्या करने जा रहे हैं’

साल 2019 में, संयुक्त सचिव के रूप में काम करने के लिए कुल नौ लेटरल एंट्री वाले अधिकारियों का चयन किया गया था, जिनमें से सात- अंबर दुबे, राजीव सक्सेना, सुजीत कुमार बाजपेयी, दिनेश दयानंद जगदाले, भूषण कुमार, सौरभ मिश्रा और सुमन प्रसाद सिंह- वर्तमान में सेवारत हैं. दिसंबर 2020 में, अरुण गोयल ने निजी क्षेत्र में वापस लौटने के लिए इस्तीफा दे दिया था, जबकि काकोली घोष चयन किये जाने के बावजूद कभी भी सरकार में शामिल ही नहीं हुईं थी.

लेटरल एंट्री वाले अधिकारियों के 2021 बैच के तीन संयुक्त सचिव हैं- सैमुअल प्रवीण कुमार (जो प्रतिनियुक्ति पर आये हैं) और बालासुब्रमण्यम कृष्णमूर्ति तथा मनीष चड्ढा जो तीन साल के अनुबंध पर हैं.

दिप्रिंट के साथ बात करते हुए नागरिक उड्डयन मंत्रालय के संयुक्त सचिव, अंबर दुबे ने कहा कि उन्होंने अन्य अधिकारियों के साथ ‘सामान्य हिचकिचाहट’ का अनुभव किया लेकिन चूंकि उन्हें ‘पूरी तरह से पूर्वाभास’ करवा दिया गया था, इसलिए वे इसके साथ तालमेल बिठाने में सक्षम रहे थे.

Amber Dubey is one of the seven lateral entry joint secretaries whose tenure is to be extended | Photo: Twitter/@MoCA_GoI
अंबर दुबे उन सात लेटरल एंट्री से आए लोगों में से एक हैं जिन्हें सेवा विस्तार दिया गया है | फोटो: ट्विटर/@MoCA_GoI

आईआईटी बॉम्बे के पूर्व छात्र और व्यापार सलाहकार संस्था (बिज़नेस एडवाइजरी फर्म) केपीएमजी इंडिया में एयरोस्पेस और रक्षा के पूर्व प्रमुख रहे, दुबे ने कहा, ‘हर किसी को बस एक सैनिक की तरह आगे बढ़ना होता है, क्योंकि मिशन के उद्देश्य उसके रास्ते में आने वाली बाधाओं से कहीं अधिक बड़े होते हैं. इसके अलावा, आलोचक, संदेह करने वाले और नकारात्मक व्यक्ति- मुझे पिछले तीन वर्षों में ऐसे बहुत लोग मिले हैं- अप्रत्यक्ष वरदान की तरह होते हैं. वे हमें सावधान बनाये रखते हैं तथा हमें तेज, बेहतर और अधिक दृढ़ बनाते हैं.’

हालांकि, उन्होंने यह बात स्वीकार की कि सरकार में कागजी कार्रवाई और प्रक्रिया पर ‘अत्यधिक’ ध्यान रहता है.

दुबे ने कहा, ‘इसमें बहुत अधिक समय खर्च होता है और ये काफी अनुत्पादक होते हैं, यहां तक कि नियमित सरकारी अधिकारी भी इसके बारे में शिकायत करते हैं. धीरे-धीरे परिदृश्य बदल रहा है और अधिकांश मंत्रालयों का ध्यान आउटपुट और परिणामों पर केंद्रित हो रहा है. यह एक स्वागत योग्य संकेत है.’

ई-कॉमर्स क्षेत्र से जुड़े पेशेवर अरुण गोयल, जो संयुक्त सचिव (वाणिज्य) के रूप में शामिल हुए थे, ने जब साल 2020 में सरकारी सेवा छोड़ दी थी तो उनके इस्तीफे के लिए ‘नौकरशाही के उलझाव’ वाली खबरें आईं थीं. इस बारे में और जानकारी के लिए दिप्रिंट ने गोयल से संपर्क किया लेकिन उन्होंने इस मुद्दे पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया.

उपरोक्त उलझनों के बारे में पूछे जाने पर दुबे ने कहा कि सरकारी निर्णय लेने के मामले में नौकरशाही से जुडी जटिलताएं दुनिया भर में एक जैसी हैं.

उन्होंने कहा, ‘हमें पता था कि हम क्या करने जा रहे हैं, इसलिए मुझे कोई शिकायत नहीं है. हर किसी को अपना सिर नीचा रखना होता है, अपने वरिष्ठों और साथियों से सलाह लेनी होती है, काम पर ध्यान देना होता है और रास्ते में आने वाली निराशाओं को नजरअंदाज करना होता है. ज्यादातर मामलों में, चीजें चमत्कारी रूप से काम करती हैं.’

हालांकि, एक अन्य मंत्रालय के एक अन्य लेटरल एंट्री वाले अधिकारी ने उनका नाम न छापने की शर्त पर कहा कि उनके पास नीति निर्धारण या निर्णय लेने में योगदान करने के लिए ‘पर्याप्त स्वतंत्रता’ नहीं है.

मगर, दुबे का कहना है कि उनके अनुभव इससे अलग हैं और वे बहुत ‘भाग्यशाली’ महसूस करते हैं कि वह ड्रोन रूल्स, 2021 सहित विभिन्न नीतियों में योगदान करने में सक्षम रहे हैं.

उन्होंने कहा, ‘मुझे विभिन्न मंत्रालयों में वरिष्ठों और साथियों से काफी अधिक स्वतंत्रता, मार्गदर्शन और प्रोत्साहन मिला है.’


यह भी पढ़ें: PM मोदी ने ‘परिवारवाद’ को देश के लिए चुनौती बताया, पर दूसरे दलों के वंशवादियों को गले लगा रही है BJP


‘बाजार के विशेषज्ञ’ लेकिन आईएएस का विकल्प नहीं

पिछले साल संसद में दिए गए एक लिखित उत्तर में राज्य मंत्री जितेंद्र सिंह ने जोर देकर कहा था कि सरकार ने ‘केंद्र सरकार में कुछ स्तरों पर नई प्रतिभा लाने और जन शक्ति को बढ़ाने के दोहरे उद्देश्यों’ के साथ लेटरल एंट्री के तहत भर्तियां की थी.

हालांकि, ऐसा लगता है कि बाद वाला उद्देश्य अभी के लिए ताक पर रख दिया गया है.

केंद्रीय स्तर के आईएएस अधिकारियों की संख्या में आई कमी को दूर करने के लिए इस साल की शुरुआत में गठित डीओपीटी समिति के एक सदस्य ने इसके समाधान के रूप में लेटरल भर्तियों से इनकार किया है.

उन्होंने कहा कि पैनल ने इस बात की सिफारिश की है कि सरकार को लेटरल एंट्री वाले अधिकारियों का उपयोग प्रशासन और नीति निर्माण से जुड़े प्रशासकों के बजाय ‘बाजार विशेषज्ञों’ के रूप में करना चाहिए.

डीओपीटी में कार्यरत एक दूसरे वरिष्ठ आईएएस अधिकारी ने कहा कि लेटरल एंट्री वाले अधिकारियों की नियुक्ति राष्ट्रीय या अंतरराष्ट्रीय बाजारों और इनसे जुड़े मामलों से संबंधित मंत्रालयों तक ही सीमित है. उन्होंने कहा कि लेटरल एंट्री वाले अधिकारियों को डीओपीटी जैसे मुख्य प्रशासनिक विभागों में नहीं रखा जा रहा था और न ही उन्हें उन मंत्रालयों में रखा जा रहा जो राज्य सरकारों के साथ काम करते हैं, जैसे कि गृह मंत्रालय.

जितेंद्र सिंह ने पिछले महीने संसद में यह भी कहा था कि संवैधानिक निकायों में लेटरल एंट्री वाले अधिकारियों को नियुक्त करने की कोई योजना नहीं है क्योंकि ये प्रशासनिक पद आईएएस अधिकारियों के लिए आरक्षित हैं.


यह भी पढ़ें: उदयपुर में लंपी स्किन रोग पर काबू पाने में कैसे मददगार साबित हो रहा कोविड-स्टाइल का कंट्रोल रूम


लेटरल एंट्री वाले अधिकारी क्यों?

वरिष्ठ आईएएस अधिकारियों को लगता है कि सरकार लेटरल एंट्री के माध्यम से आईएएस अधिकारियों की कमी को हल नहीं कर सकती है क्योंकि इस तरह से भर्ती किये गए लोगों, विशेष रूप से जो निजी क्षेत्र से आये हैं, के पास संघीय कामकाज से संबंधित मामलों को संभालने और राज्य और जिले स्तर के अधिकारियों से निपटने के लिए आवश्यक प्रशिक्षण नहीं होता है.

लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय प्रशासन अकादमी के निदेशक पद से सेवानिवृत होने वाले एक आईएएस अधिकारी डॉ. संजीव चोपड़ा ने कहा, ‘जो लेटरल एंट्री वाले अधिकारी संयुक्त सचिव के रूप में तैनात हैं, वे अपने साथ निजी क्षेत्रों से जुड़े कुछ नवीनतम कौशल लाए हैं लेकिन देश या किसी राज्य को चलाने के लिए बहुत अधिक प्रशासनिक कौशल की आवश्यकता होती है.’

उन्होंने कहा, ‘सिविल सेवा में कमांड की एक श्रृंखला है- इसमें कई प्रशासनिक, लॉजिस्टिक और कई अन्य संबंधित मुद्दे शामिल हैं. केंद्र सरकार में कार्यरत एक सिविल सेवा अधिकारी को हर समय, विभागों और मंत्रालयों में राज्यों और जिलों के साथ बहुत अधिक समन्वय बिठाने की आवश्यकता होती है.’

उन्होंने कहा कि संयुक्त सचिव स्तर के लेटरल एंट्री वाले अधिकारियों को उनकी वर्तमान नियुक्तियों में अपने राज्य स्तर के समकक्षों के साथ नियमित रूप से संपर्क में रहने की कोई आवश्यकता नहीं है.

एक अन्य वरिष्ठ आईएएस अधिकारी, जो हाल ही में मुख्य सचिव के रूप में सेवानिवृत्त हुए, ने भी इसी तरह की बात कही.

उन्होंने कहा, ‘मेरा मानना है कि तकनीकी विशेषज्ञता वाले मामलों के लिए, जो अत्यधिक विशिष्ट होती हैं, सरकार लेटरल एंट्री वाले अधिकारियों को रख सकती है. लेकिन इस काम का सबसे मुश्किल हिस्सा उन्हें भारतीय नौकरशाही की किसी रेजीमेंट की तरह बनी व्यवस्था के साथ सम्मिलित करना है.’

इन वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ‘संयुक्त सचिव स्तर का एक अधिकारी अपनी 15 साल की सेवा के माध्यम से अनुभव अर्जित करता है. लेटरल एंट्री वाले अधिकारियों के मामले में कोई भी 15-दिवसीय फाउंडेशन कोर्स उस अनुभव की जगह नहीं ले सकता है.’

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें: सरकारी आंकड़े बताते हैं कि कोविड के दौरान भारत का ‘वेतनभोगी वर्ग’ सिकुड़ा, मुस्लिमों पर सबसे ज्यादा असर


 

share & View comments