नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार को लाल किले की प्राचीर से दिए गए अपने स्वतंत्रता दिवस वाले भाषण में ‘परिवारवाद’ और ‘भाई भतीजावाद’ का हवाला देते हुए – वंशवाद की राजनीति और भाई-भतीजावाद के संदर्भ में – इसे भारत के सामने मौजूद दो प्रमुख चुनौतियों में से एक के रूप में बताया.
प्रधानमंत्री ने अपने लाल किले से दिए गए संबोधन में कहा, ‘भाई-भतीजावाद भारत की संस्थाओं को खोखला कर रहा है और वंशवाद की राजनीति केवल वंश के लाभ के लिए है, देश के लिए नहीं.’
हालांकि, उनका भाषण समाप्त होने के तुरंत बाद, उनके करीबी सहयोगी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के बेटे जय शाह सोशल मीडिया पर ट्रेंड करने लगे थे, और कई यूजर्स भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) का सचिव बनने के लिए जय शाह की योग्यता पर सवाल उठा रहे थे.
नरेंद्र मोदी ने स्वतंत्रता दिवस पर वादा किया है कि वह भारतीय राजनीति और संस्थानों में भाई-भतीजावाद को खत्म कर देंगे.
उम्मीद है कि वह जल्द ही जय शाह, पीयूष गोयल, अनुराग ठाकुर, देव फडणवीस और कई अन्य को हटा देंगे.
Narendra Modi has promised today on Independence day he will end Nepotism in Indian politics and institutions.
Hopefully he will soon remove Jay Shah , Piyush Goyal , Anurag Thakur , Dev Fadnavis and many more. pic.twitter.com/lp3GjWf39b
— Ravinder Kapur (@RavinderKapur2) August 15, 2022
Jay shah came to my mind. 🙏🙏 https://t.co/k0epZYHPlq
— Vins (@vinayverma99) August 15, 2022
विपक्ष ने भी प्रधानमंत्री मोदी को उनकी इस टिप्पणी के लिए निशाने पर लिया, और उन्होंने इस तरफ इशारा किया कि भाजपा में भी ‘वंशवादियों की भरमार’ है और यह कहा कि ये आम लोग हैं जो नेताओं को चुनते हैं.
कांग्रेस की राष्ट्रीय प्रवक्ता शमा मोहम्मद ने सवाल किया, ‘वंशवाद की राजनीति पर उनकी बात खोखली लगती है, क्योंकि भाजपा के भीतर अपने खुद के, और अन्य दलों से आयात किये गए, ऐसे वंशवादियों की एक लंबी सूची है. जब वह वंशवादी राजनीति की बात करते हैं तो वह अपनी ही पार्टी के पीयूष गोयल, अनुराग ठाकुर और यहां तक कि सुवेंदु अधिकारी जैसे लोग, जो अन्य दलों से इसमें शामिल हुए हैं, के वंशों को क्यों भूल जाते हैं?’
वास्तव में, जहां प्रधानमंत्री मोदी ने इस मुद्दे को लेकर लगातार और निरंतर रूप से विपक्षी दलों पर हमला किया है, मगर भाजपा भी नियमित रूप से अन्य दलों के ऐसे नेताओं को शामिल करती आ रही है और उन्हें पार्टी और सरकार में अहम पद भी दिए गए हैं.
ऐसा ही एक उदाहरण हरियाणा कांग्रेस के पूर्व नेता और पूर्व मुख्यमंत्री भजन लाल के बेटे कुलदीप बिश्नोई और उनकी पत्नी और पूर्व विधायक रेणुका बिश्नोई का है, जो इसी महीने की शुरुआत में भाजपा में शामिल हुए थे.
भाजपा में शामिल होने से एक ही दिन पहले बिश्नोई ने घोषणा की कि उनके निर्वाचन क्षेत्र के लोग चाहते हैं कि उनके बेटे भव्या, उस आदमपुर विधानसभा सीट से भाजपा के उम्मीदवार के रूप में लड़ें जिसे वह खाली कर रहे थे.
केंद्रीय मंत्री राजनाथ सिंह के बेटे पंकज सिंह नोएडा से विधायक हैं और भाजपा की यूपी इकाई के उपाध्यक्ष भी हैं. इसी तरह राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के बेटे दुष्यंत सिंह भी भाजपा सांसद हैं.
भाजपा के वंशवादियों की सूची काफी लंबी है, और इसमें कर्नाटक के मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई, पंजाब के नेता सुनील जाखड़ और केंद्रीय गृह मंत्रालय में पूर्व राज्य मंत्री आर.पी.एन. सिंह के नाम शामिल हैं.
जहां बसवराज के पिता एस.आर. बोम्मई 1988-89 में कर्नाटक के मुख्यमंत्री थे, जिससे उन्हें एच.डी. देवेगौड़ा और एच.डी. कुमारस्वामी के रूप में राज्य में मुख्यमंत्री की कुर्सी पर कब्जा करने वाले पिता- पुत्र की जोड़ी के सामान दर्जा मिलता है, वहीं जाखड़- जो इस साल मई में भाजपा में शामिल हुए थे – उन बलराम जाखड़ के बेटे हैं, जो कांग्रेस के एक सक्रिय सदस्य थे और जो 1980 और 1989 के बीच लोकसभा के अध्यक्ष भी रहे थे.
इसी तरह, आर.पी.एन. सिंह, जो उत्तर प्रदेश में इस साल हुए विधानसभा चुनाव से पहले जनवरी महीने में भाजपा में शामिल हुए थे, कुशीनगर के पडरौना के पूर्व सैंथवार शाही परिवार से संबंधित हैं. उनके पिता, कुंवर चंद्र प्रताप नारायण सिंह, पडरौना लोकसभा क्षेत्र से सांसद रहे थे, जिन्होंने साल 1980 में इंदिरा गांधी कैबिनेट में रक्षा राज्य मंत्री के रूप में कार्य किया था.
वंशवाद की राजनीति के लिए प्रधानमंत्री मोदी की नापसंदगी ऐसे नेताओं को न तो भाजपा में शामिल करने के रास्ते में आड़े आई है और न ही उन्हें उनकी अपनी मंत्रियों की टीम में जगह देने में.
उनके अपने मंत्रिमंडल में शामिल कई प्रमुख चेहरे – पीयूष गोयल, धर्मेंद्र प्रधान, अनुराग ठाकुर, किरेन रिजिजू, ज्योतिरादित्य सिंधिया और अन्य – पुराने राजनीतिक परिवारों के सदस्य हैं.
पिछले साल हुए पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव से पहले, पार्टी ने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के पूर्व सहयोगी, सुवेंदु अधिकारी और उनके पिता एवं पूर्व केंद्रीय मंत्री शिशिर अधिकारी को भाजपा में शामिल कर लिया था.
चुनाव के बाद सुवेंदु पश्चिम बंगाल विधानसभा में विपक्ष के नेता बने.
देवेंद्र फडणवीस, जो फ़िलहाल महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री हैं, महाराष्ट्र विधान परिषद के पूर्व सदस्य गंगाधरपंत फडणवीस के पुत्र हैं. देवेंद्र की चाची शोभा फडणवीस भी राज्य सरकार में मंत्री थीं.
भाजपा ने केंद्र और कई राज्यों में दोनों स्तरों पर राजनीतिक परिवारों के सदस्यों और ऐसे राजनेताओं के नेतृत्व वाली पार्टियों से गठबंधन किया हुआ है.
फिर भी, वह लोगों के मन में यह धारणा पैदा करने में कामयाब रही है कि वह वंशवाद की राजनीति का हिस्सा नहीं है.
सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज के संजय कुमार ने कहा, ‘राजनीति में सब कुछ आम धारणा के बारे में है, जो तथ्यों के बजाय चुनावों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है. हालांकि भाजपा में भी वंशवाद हैं फिर भी आम धारणा यही बनती है कि वंशवाद की राजनीति कांग्रेस और क्षेत्रीय दलों के बारे में है. यही कारण है कि प्रधानमंत्री अभी भी विपक्षी दलों पर हमला करने के लिए वंशवाद के मुद्दे को एक हथियार के रूप में इस्तेमाल करने की कोशिश कर रहे हैं.’
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भाजपा के सहयोगी के रूप में शामिल रहे हैं वंशवादी
केंद्र और कई राज्यों में भाजपा के कई सहयोगी या तो राजनीतिक परिवारों के सदस्य हैं या ऐसे लोगों के नेतृत्व वाले पार्टियों से हैं.
इनका एक उदाहरण जननायक जनता पार्टी के नेता और हरियाणा के उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला हैं, जो देवीलाल-ओम प्रकाश चौटाला के परिवारों से आने वाले चौथी पीढ़ी के नेता हैं.
यूपी और केंद्र में भाजपा की गठबंधन सहयोगी अनुप्रिया पटेल – जो अपना दल के संस्थापक सोन लाल पटेल की बेटी हैं – ऐसी ही एक और नेता हैं.
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के कहने पर रामविलास पासवान के बेटे चिराग को राजग से निकाल बाहर किये जाने के बाद मोदी ने चिराग के चाचा और रामविलास पासवान के भाई पशुपति पारस को केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल कर लिया.
शिरोमणि अकाली दल, शिवसेना, तेदेपा, वंशवादियों के नेतृत्व वाली ऐसी कई अन्य पार्टियों में शामिल हैं, जिन्होंने केंद्र और राज्यों में मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा के साथ कभी न कभी गठबंधन किया है.
इस बारे में बात करते हुए कि क्यों मोदी अभी भी इस मुद्दे पर विपक्ष को निशाना बना कर बच निकलने में सफल हो जाते हैं, कुमार ने कहा, ‘एक और महत्वपूर्ण अंतर यह है कि कांग्रेस या क्षेत्रीय दलों के मामले में सत्ता एक विशेष परिवार के हाथ में केंद्रित है. अगर कांग्रेस के मामले में यह गांधी परिवार है, तो राजद के मामले में यह लालू प्रसाद यादव का परिवार है. समाजवादी पार्टी में यही हाल अखिलेश यादव का है. एनसीपी के मामले में शरद यादव और अकाली दल के मामले में बादल परिवार सर्वेसर्वा है. इसलिए, यदि किसी दल का नेतृत्व एक ही परिवार करता है या उसके ही द्वारा नियंत्रित होता है तो यह एक अलग मुद्दा बन जाता है.’
उन्होंने कहा कि भाजपा के मामले में ऐसा नहीं है.
पार्टी ने खुद अपनी तरफ से प्रधानमंत्री की टिप्पणी को सही ठहराते हुए कहा कि भाजपा की दलीय व्यवस्था में कोई वंशवाद नहीं है.
वरिष्ठ भाजपा नेता अमित मालवीय ने कहा, ‘एक वंशवादी वह होता है जो एक विशेष परिवार में पैदा होने के आधार पर कोई पद प्राप्त करता है और आपके पास लालू प्रसाद यादव के परिवार या फिर गांधी परिवार का उदाहरण है, जहां अध्यक्ष का पद सोनिया गांधी और राहुल गांधी के बीच डोलता रहता है.’
उन्होंने कहा: ‘वहीँ आपके पास टीआरएस, डीएमके, समाजवादी पार्टी सहित क्षेत्रीय दल हैं, जहां एक विशेष परिवार ही हमेशा से सत्ता में रहा है या पार्टी को नियंत्रित करता है. उदहारण के तौर पर करुणानिधि के बाद स्टालिन द्रमुक के नेता बने हैं.‘
यह दावा करते हुए कि वंशवादी उत्तराधिकार की राजनीति प्रतिभा को उभरने से रोकती है और भाजपा के पास कोई ऐसा वंश नहीं है, मालवीय ने कहा, ‘हमारे पास भी कई नेताओं के बच्चे हैं, लेकिन उन्हें अपने परिवार के सदस्यों के कारण ये पद विरासत में नहीं मिलते हैं. अरुण जेटली के बेटे भाजपा में नहीं हैं, वाजपेयी जी का विस्तारित परिवार एक और उदाहरण है. जब राजनाथ सिंह अध्यक्ष थे, तो उनके बाद उनके बेटे इस पद पर काबिज नहीं हुए, बल्कि वे अपने योग्यता के आधार पर विधायक बने. इसलिए प्रधानमंत्री जिस चीज के बारे में बात कर रहे हैं वह न केवल राजनीति में बल्कि अन्य संस्थानों में भी भाई-भतीजावाद का बढ़ना है क्योंकि यह योग्यता से समझौता करता है.‘
इस बीच कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पवन खेड़ा ने सोमवार को मीडिया से कहा कि प्रधानमंत्री का हमला उनकी ही पार्टी के ‘भाई-भतीजावाद’ से संबंधित हो सकता है.
खेड़ा ने कहा, ‘हो सकता है वे वह अपनी ही पार्टी के अंदर चल रहे भाई-भतीजावाद पर हमला कर रहे हों. प्रधानमंत्री जी ने आज पूरे देश और अपने समर्थकों को निराश किया है..उन्हें आज अपना रिपोर्ट कार्ड पेश करना चाहिए था, उन्होंने जो वादे किये थे, उनके बारे में बात करनी चाहिए थी.’
कांग्रेस नेता अलका लांबा ने भी ‘एक परिवार’ से लड़ने के लिए मोदी सरकार और भाजपा की आलोचना की.
लांबा ने कहा कि भाजपा केवल एक ऐसे परिवार – गांधी परिवार के सन्दर्भ में – से लड़ रही है, जो देश में महंगाई और बेरोजगारी के खिलाफ लड़ रहा है.
वो सब मिलकर मात्र "एक #परिवार" से लड़ेंगे,
तुम सब भी मिलकर उस "एक परिवार को ताकत देते रहना,
ताकि वो" एक परिवार" 130 करोड़ के परिवार के लिए #महँगाई और #बेरोज़गारी की लड़ाई पूरी ताकत से लड़ता रहे,
अंत में जीत 130 करोड़ के परिवार के सदस्यों की होनी निश्चित है.#IndependenceDayIndia— Alka Lamba (@LambaAlka) August 15, 2022
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