नई दिल्ली: देश भर के 200 से अधिक किसान संगठनों की ओर से आयोजित दो दिवसीय किसान मुक्ति मार्च 29 नवंबर को दिल्ली पहुंचा. किसानों ने दिल्ली में प्रवेश किया तो वे एक पर्चा बांट रहे थे. इस पर्चे में लिखा था:
‘माफ कीजिएगा, हमारे मार्च से आपको परेशानी हुई होगी. हम किसान हैं. आपको तंग करने का इरादा नहीं है. हम खुद बहुत परेशान हैं. सरकार को और आपको अपनी बात सुनाने बहुत दूर से आए हैं.‘
‘आपको पता है कि दाल, सब्ज़ी, फल के लिए हमें क्या भाव मिलता है और आप क्या दाम देते हैं? मूंग का 46 दाम रुपये और आप देते हैं 120 रुपये, टमाटर 5 रुपये और आप देते हैं 30 रुपये, सेब 10 रुपये और आप देते हैं 110 रुपये, दूध 20 रुपये और आप देते हैं 42रुपये… यह है हमारी परेशानी.‘
‘हम हर चीज़ महंगी खरीदते हैं और सस्ती बेचते हैं. हमारी जान भी सस्ती है. पिछले बीस साल में तीन लाख से ज़्यादा किसान आत्महत्या कर चुके हैं. हमारी मुसीबत की चाबी सरकार के पास है, वो सुनती नहीं, मीडिया के पास है वो देखता नहीं. उम्मीद है कि आप सुनेंगे इसलिए आपको सुनाने आए हैं. हम चाहते हैं कि संसद का विशेष अधिवेशन बुलाकर दो कानून पास किये जाए जिसमें फसलों के उचित दाम की गारंटी हो और किसानों को कर्ज़ से पूर्णत: मुक्त किया जाए. कुछ गलत तो नहीं मांग नहीं रहे हम?’
पूर्ण कर्ज़ मुक्ति और फसलों के उचित दाम
अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति, जो 200 से अधिक किसान संगठनों का मोर्चा है, के नेतृत्व में जब किसानों का हुजूम दिल्ली पहुंचा तो हर नेता और हर कार्यकर्ता के ज़ुबान यह दो बातें थीं- पूर्ण कर्ज़ मुक्ति और फसलों के उचित दाम. क्या इन दो मांगों को मान लेने से किसानों की समस्या सुलझ जाएगी? इसका जवाब काफी जटिल है.
किसान नेता अशोक दवले कहते हैं, ‘सरकार जीएसटी लागू करने के लिए, कॉरपोरेट के लिए आधी रात को संसद बुला सकती है तो देश के लिए अनाज उगाने वाले किसानों के सवाल पर कभी सत्र बुलाकर गंभीर चर्चा क्यों नहीं कर सकती?’
उत्तर प्रदेश के बिजनौर से आए 55 वर्षीय काविंदर सिंह की समस्या कृषि कर्ज़ तो है ही, लेकिन उससे बड़ी समस्या है कि उनका गन्ने का भुगतान नहीं हुआ है. उन्होंने बैंक से दो लाख का कर्ज़ लिया था जो अब बढ़कर तीन लाख के करीब हो गया है. वे एक एकड़ खेत के काश्तकार हैं. वे कहते हैं, ‘सरकार ने वादा किया था कि स्वामीनाथन कमेटी की रिपोर्ट लागू करेंगे. लेकिन लागू नहीं किया. अगर स्वामीनाथन कमेटी की रिपोर्ट लागू हो जाए तो भी हमारी काफी समस्या हल हो जाएगी.‘
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लेकिन महाराष्ट्र के किसानों की समस्या इससे अलग है. महाराष्ट्र के सांगली से आए हनुमंत कहते हैं, ‘हमारे यहां मज़दूरी नहीं मिल रही है. किसान को फसल का सही दाम नहीं मिल रहा है. उज्जवला योजना में गैस दे दिया, लेकिन महंगाई बढ़ गई, उसका दाम भी बढ़ गया. मेरे पास खेती नहीं है, मैं खेत मज़दूर हूं. दिहाड़ी मज़दूरी 100 से लेकर 120 रुपये तक मिल जाता है. यह बहुत कम है. हम खाना खाएं, बच्चों को पढ़ाएं या क्या करें? उस पर अब सूखा की वजह से मज़दूरी भी नहीं मिल रही.‘ उनके साथ आए देवराम की भी यही समस्या है. देवराम कहते हैं कि सरकार ने हमसे झूठ बोला, वादा पूरा नहीं किया. इसलिए हम यहां धरना लगाने आए हैं.
समर्थन मूल्य 1750, बेचा 800 में
नन्हें लाल उत्तर प्रदेश के उन्नाव से हैं. उनकी परेशानी गन्ने का भुगतान और बैंक का कर्ज़ है. ‘वे कहते हैं कि हमारा जबरन खाता खुलवाया कि कर्ज़ माफ करेंगे लेकिन माफ नहीं किया. डीज़ल का दाम बढ़ गया, बिजली का दाम बढ़ गया, खाद का दाम बढ़ गया. हमें हर तरफ से परेशानी उठानी पड़ती है.‘
नन्हें लाल कहते हैं कि ‘हमारे इलाके में लोग कर्ज़ से दबे लोग आत्महत्याएं कर रहे हैं. सरकार कुछ कर नहीं रही, इसलिए हम लोग संगठन में शामिल हुए. हमने तीन बीघा में धान लगाया था. 18 क्विंटल धान हुआ. हम बाज़ार लेकर गए तो बारिश होने लगी और बनिये ने 900 में खरीदा. हमारे ही गांव के कुछ लोगों ने 1100 में बेचा. सरकार कह रही है कि हमने 1750 रुपये समर्थन मूल्य निर्धारित किया है, लेकिन हमें तो नहीं मिल रहा.‘
नन्हें लाल को 18 क्विंटल धान उगाने के लिए 15000 रुपये की लागत आई. 16000 में धान बिका. मतलब सिर्फ लागत लौट आई. न तो फायदा हुआ और न ही उनकी मेहनत का कोई मूल्य मिला. नन्हें लाल के पड़ोसी दर्शन के साथ और बुरा हुआ. उनका धान बनिए ने सिर्फ 800 में खरीदा.
उनके साथ आए मेघराम बताते हैं, ‘किसान की सब चीज़ सस्ती है, बाज़ार में सब चीज़ महंगी है. किसान को कोई फायदा मिलता नहीं, इससे मुश्किल आती है तो वह कर्ज़ लेता है. कर्ज़ का चक्रवृद्धि ब्याज़ चलता है.‘
न ज़मीन, न ही मज़दूरी
महाराष्ट्र के पालघर के चंद्रकात हाल ही में मुंबई में किसानों के आंदोलन में शामिल हुए थे. वे खेत मज़दूर हैं. वे बताते हैं, ‘हमारे इलाके में लोग गरीब हैं. आंदोलन में देवेंद्र फडनवीस ने लिखकर वादा किया था, लेकिन पूरा नहीं किया. हम लोगों के पास ज़मीन भी नहीं है और मज़दूरी भी नहीं मिलती. सरकार हमारे लिए कुछ करती नहीं. वन ज़मीन का पट्टा देने का वादा किया था, वह भी नहीं किया. हमारे पूरे तालुके में बिजली नहीं है. पालघर पूरे महाराष्ट्र में सबसे कुपोषित है. हम लोगों को 100 रुपये दिन की मज़दूरी मिलती है. हमारे सामने जीने का संकट है.‘
तमिलनाडु के कुछ ज़िलों के किसान हाथों में उन लोगों के कंकाल लेकर मार्च में शामिल हुए जो हाल ही में कर्ज़ के चलते आत्महत्या कर चुके हैं. उनका नेतृत्व कर रहे अय्याकन्नू कहते हैं, ‘हमारी मांग है कि पूर्ण कर्ज़ मुक्ति हो, सिंचाई के लिए पानी दिया जाए और फसल का सही दाम मिले. हम सबने पिछले साल दिल्ली में तीन महीने से ज़्यादा अनशन किया, तमिलनाडु में भी अनशन किया लेकिन हमारी बात न राज्य सरकार सुन रही है, न ही केंद्र सरकार सुन रही है.‘
कर्ज़ चुकाने का दबाव और हार्टअटैक
उत्तर प्रदेश में बरेली निवासी महिपाल दावा करते हैं कि उनके पिता ने बैंक से कर्ज़ लिया था. बैंक की तरफ से कर्ज़ चुकाने का दबाव आया, कर्ज़ वे चुका नहीं सकते थे, इस दबाव के चलते तीन महीने पहले उनको हार्टअटैक आया और उनकी मौत हो गई. उनके ज़िले में कर्ज़ के चलते कई मौतें हो चुकी हैं.
पंजाब ऐसा राज्य रहा जो हरित क्रांति रूपी रेल का इंजन बना था जिसके बाद भारत अनाज उत्पादन में आत्मनिर्भर हुआ. किसान संगठनों का दावा है कि पंजाब के किसान इतना ज़्यादा कर्ज़ में डूब गए हैं कि चार लोग रोज़ आत्महत्या कर रहे हैं. अमृतसर के सतवीर सिंह ने कहा, ‘हम जितने किसान यहां पर आए हैं, हम सभी पर कर्ज़ है. खेती से हमसे कोई लाभ मिल नही रहा. हम चाहते हैं कि सरकार हमारा कर्ज़ माफ करे, हमें उपज का सही दाम दिलवाए और खेती में लागत को कम किया जाए.‘
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तेलंगाना से आए किसानों के जत्थे में बड़ी संख्या में ऐसी महिलाएं थीं जिनके पतियों ने कृषि कर्ज़ के चलते आत्महत्या कर ली है. वे हाथ में आत्महत्या कर चुके पति की तस्वीरें लिए मार्च में शामिल थीं. इनमें से एक सूर्याराधा ने बताया, ‘मेरे पति पर बहुत कर्ज़ हो गया था. कर्ज़ देने वाले लोग उनको बहुत परेशान कर रहे थे, लेकिन कर्ज़ लौटाने के लिए पैसा ही नहीं था. मेरे पति ने परेशान होकर आत्महत्या कर ली.‘
उन्नाव, उत्तर प्रदेश के आए एक किसान ने बताया, ‘न तो सरकार ने कर्ज़ माफ किया, न ही दूसरी समस्याओं पर ध्यान दिया. मेरे पिता जी पर डेढ़ लाख के करीब कर्ज़ था. फिर सूखा पड़ गया. इस चिंता में उन्हें हार्ट अटैक आया और उनकी मौत हो गई. सरकार से हमारी मांग है कि जो वादे किए गए वे दिए जाएं वरना हम सब अगले चुनाव में सबक सिखाएंगे.‘
भूमि अधिग्रहण कानून-2013 लागू नहीं
सांगली, महाराष्ट्र के दिगंबर कांबले की शिकायत भूमि अधिग्रहण कानून से है. उनका कहना है कि ‘भूमि अधिग्रहण का 2013 का कानून सरकार लागू नहीं कर रही है. पूरे देश में भूमि अधिग्रहण हो रहा है. हमारे महाराष्ट्र में राष्ट्रीय राजमार्ग के लिए ज़मीन ली गई, लेकिन उसमें कानून का पालन नहीं किया. हम लोगों को नोटिस तक नहीं दिया गया.‘
अकेले महाराष्ट्र के किसानों के साथ ही बहुस्तरीय समस्याएं हैं. सूखा, फसलों का खराब होना, कृषि कर्ज़, उचित दाम न मिलना, मज़दूरी न मिलने, खेती की ज़मीन न होना, खेत मज़दूरों को काम न मिलने जैसी समस्याएं हैं. कांबले कहते हैं, ‘हमारे महाराष्ट्र में सबसे ज़्यादा आत्महत्याएं होती हैं. हम जैसे किसान के पास ज़मीन ही नहीं है. मज़दूरी भी नहीं है. बटाई की ज़मीन पर जो कुछ उगाते हैं, उसका उचित दाम नहीं मिलता. भाजपा की सरकार में हम लोगों के लिए कुछ नहीं किया. फडनवीस ने कर्ज़मुक्ति की घोषणा की लेकिन आधे किसानों को मिला ही नहीं.‘
लखनऊ के रहने वाले लालता सिंह चौहान आवारा जानवरों की समस्या उठाते हुए कहते हैं, ‘मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ बात करते हैं, लेकिन काम कुछ नहीं करते. आवारा जानवर किसानों का खेत तबाह कर रहें हैं. ये कह रहे हैं कि किसानों की आय दोगुनी करेंगे. लेकिन कैसे करेंगे ये आज तक नहीं बताया. न धान खरीद हो पा रही, न खाद मिल रही. सरकार कह रही है कि धान का समर्थन मूल्य 1750 कर दिया है, लेकिन इस दाम में सरकार बनियों से खरीद रही. किसानों को पूरे उत्तर प्रदेश में इतना दाम कहीं नहीं मिल पा रहा. किसानों को बेवकूफ बनाया जा रहा है.‘
नेताओं के भाषण और किसानों की समस्या
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी किसानों पर केंद्रित भाषण देते हैं. राहुल गांधी सत्ता में आते ही दस दिन में कर्ज़ माफ करने का दावा करते हैं. लेकिन असल में देखा जाए तो नेताओं के भाषणों का किसानों की समस्या से कुछ ज़्यादा लेना देना नहीं है. अगर नरेंद्र मोदी सरकार ने कुछ ठोस उपाय किए होते तो देश भर में किसान आंदोलन न होते. अगर कांग्रेस के नेतृत्व वाली मनमोहन सरकार ने ठोस कृषि नीति बनाई होती, तो मोदी के करने के लिए ज़्यादा कुछ बचा न होता.
पंजाब और उत्तर प्रदेश जैसे कुछ राज्यों में किसान संगठन चलाने वाले किसान नेता बीएम सिंह अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति के संयोजक हैं. उन्होंने बताया, ‘इस आंदोलन की दो प्रमुख मांगें हैं कि किसानों को एक झटके में कर्ज़ से पूरी तरह मुक्त किया जाए और फसल की लागत का डेढ़ गुना मूल्य सुनिश्चित किया जाए. इसके लिए सरकार संसद का विशेष सत्र बुलाए और ये दोनों कानून पारित करे.‘
किसान आंदोलनों में बढ़चढ़ कर हिस्सा ले रहे स्वराज इंडिया के अध्यक्ष योगेंद्र यादव ने बताया, ‘अभी तक किसान सिर्फ अपनी समस्या कहता रहा है. लेकिन इस बार 200 से ज़्यादा संगठन एक मंच पर आए और हमने अपनी दो मांगों के लिए कानून का मसौदा तैयार किया है. उस मसौदे पर कानून के जानकार लोगों से राय ली गई है. महाराष्ट्र के सांसद राजू शेट्टी ने इसे प्राइवेट मेंबर बिल के रूप में संसद में पेश किया है. अब हमारी सरकार से मांग है कि सरकार संसद का विशेष अधिवेशन बुलाकर ये दोनों बिल पास करे.‘
सरकार ने किसानों पर हमला किया
केरल से आए किसान नेता विजूकृष्णन ने बताया, ‘नरेंद्र मोदी से केंद्र सरकार से जो वादे किए थे, वे सभी वादे बहुत अच्छे और लुभावने थे. लेकिन उनमें से एक भी वादा पूरा नहीं हुआ. किसानों के साथ धोखा हुआ है. हम इस धोखे के खिलाफ आए हैं. सरकार किसानों की आमदनी बढ़ाने का दावा कर रही है लेकिन इस सरकार के कार्यकाल में किसानों का दुख दोगुना हो गया है. सरकार ने करोड़ों किसानों की जीविका पर हमला किया.‘
अगर ये दोनों बिल पास भी हो जाएं तो उसके बाद क्या? आत्महत्याएं तो न्यूनतम समर्थन मूल्य बढ़ाने के बाद भी हो रहीं. पंजाब, महाराष्ट्र जैसे कुछ राज्यों में कर्ज़ माफ किया गया, फिर भी आत्महत्याएं जारी हैं. मध्य प्रदेश को पांच बार कृषि कर्मण पुरस्कार पुरस्कार मिल गया है, फिर भी वहां महाराष्ट्र के बाद सबसे ज़्यादा आत्महत्याएं हो रही हैं. फिर समाधान क्या है?
कृषि संकट पर लंबे समय से काम कर रहे वरिष्ठ पत्रकार पी साईनाथ कहते हैं, ‘ये दोनों उपाय तुरंत राहत प्रदान करने के लिए मददगार हो सकते हैं ताकि जो लोग आत्महत्या करने पर मजबूर हैं, वे आत्महत्या न करें. बाकी सरकार को अगला कदम तुरंत उठाना चाहिए कि खेती की लागत घटाए. बिजली, पानी, डीजल और डीएपी महंगे होते जा रहे हैं, किसानों को मिलने वाला उपज का मूल्य सुनिश्चित नहीं है, इसलिए किसानों को लागत से भी कम दाम मिल पा रहा है.‘
वे कहते हैं, ‘सरकारें किसानों के बारे में सोचती ही नहीं हैं. इसके पहले की सरकार ने भी कोई ठोस काम नहीं किया. मौजूदा सरकार ने अपनी नीतियों से किसानों को और संकट में डाल दिया. नोटबंदी ने किसानों की अर्थव्यस्था को तबाह किया. फिर गोरक्षा के नाम पर पशु बाज़ार को तोड़ दिया गया. किसानों की अतिरिक्त आय तो बंद हुई ही, उल्टा आवारा जानवर किसानों की फसलों को बर्बाद कर रहे हैं.‘
‘आय दोगुनी करने का दावा झूठा है’
साईनाथ सरकारी आंकड़ों के हवाले से कहते हैं, ‘पिछले दो दशक में तीन लाख से ज़्यादा किसानों ने आत्महत्या की. सरकार ने किसानों के लिए कुछ करने की जगह आत्महत्याओं का आंकड़ा देना ही बंद कर दिया.‘
ऑल इंडिया किसान सभा के एक नेता ने कहा, ‘मोदी सरकार ने बड़े पूंजीपतियों को साढ़े तीन लाख करोड़ रुपये का एनपीए यानी फंसा हुआ माफ कर दिया. लेकिन किसानों के कर्ज़ को लेकर सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दिया कि वह कर्ज़ माफ नहीं कर सकती. जब किसानों ने आंदोलन शुरू किया तो अब कह रही है कि हमने आय दोगुनी कर दी है लेकिन यह झूठ है.‘
किसान आंदोलनों ने जुड़े डॉ सुनीलम ने निज़ामुद्दीन में किसानों का मार्च शुरू होने से पहले सभा को संबोधित करते हुए कहा, ‘ऐसा नहीं है कि पहले की सरकारों ने किसानों के लिए बहुत अच्छा काम किया था. लेकिन नरेंद्र मोदी की सरकार ने किसानों की कमर तोड़ने का काम किया है. जितने किसान संगठनों के संगठनों के नेता हैं, उन सबने अपने संबोधनों में यह बात अगल अलग तरह से कही कि ‘नरेंद्र मोदी सरकार पिछले 70 सालों सबसे ज़्यादा किसान विरोधी सरकार है. इसने किसानों पर जानबूझ कर अपनी नीतियों के जरिये हमला किया है.‘
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हालांकि, इतने सारे संकटों के बीच, कृषि मामलों के जानकार डॉ अशोक गुलाटी का मानना है कि इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि किसान संकट में हैं. लेकिन सरकार को अपनी नीतियों में और ठोस काम करने की ज़रूरत है. सरकार को चाहिए कि किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य देने की जगह न्यूनतम सुनिश्चित करे. दूसरे, कृषि पर निर्भरता को कम किया जाए, दूसरे क्षेत्र में किसानों के परिवारों को काम मिले, नौकरियां सृजित की जाएं. गैरकृषि क्षेत्र को बढ़ावा देकर खेती के संकट से किसानों को बचाया जा सकता है.
असल सवाल तो यह है कि जब सरकार किसानों की आय दोगुनी कर देने का दावा कर रही है, तब देश भर के किसानों में उबाल क्यों है? देश भर में कृषि का संकट जितना विविध समस्याओं से भरा हुआ और जितना जटिल है, क्या अपना कार्यकाल पूरा कर रही सरकार अब कुछ महीनों में कोई ठोस कार्यक्रम बना पाएगी? शायद किसानों को राहत के लिए अगली सरकार का इंतज़ार करना होगा.