भारत में 2019 का लोकसभा चुनाव मंडल और कमंडल के बीच का संघर्ष साबित हो सकता है. यह 1980 और 1990 के दशक के दौर की सामाजिक न्याय बनाम सांप्रदायिकता की लड़ाई एक अलग कड़ी हो सकता है. लेकिन वो नेता जिसने तीन दशक पहले इस लड़ाई की शुरुआत की थी वे पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह थे. जिनका जन्म 27 जून 1931 को हुआ था और उनकी मृत्यु 27 नवम्बर 2008 को हुई थी.
समकालीन भारतीय राजनीति को दिशा देने के लिए वीपी सिंह के योगदान और स्थायी प्रासंगिकता एवं विरासत को एक बार फिर याद किया जाना चाहिए. सांप्रदायिक ताकतों के खिलाफ लड़ाई उनकी समृद्ध विरासत को पुनर्जीवित किए बिना अपूर्ण होगी. जिसे महात्मा गांधी, बाबासाहेब आंबेडकर और राम मनोहर लोहिया के आदर्शों के संयोजन से बनाया गया था. समानता, सामाजिक न्याय, समाजवाद, धर्मनिरपेक्षता और पारदर्शिता इसके अंश थे.
एक सच्चे गांधीवादी के रूप में वीपी सिंह मांडा (इलाहाबाद) के अंतिम राजा और ऊपरी जाति के थे. सामंतवाद के खिलाफ खड़े होने वाले और 1950 के दशक के दौरान भूदान आंदोलन में भूमिहीन गरीबों को अपनी उपजाऊ भूमि को दान में दे दी थी.
आंबेडकर और लोहिया के दृष्टिकोण को प्रचारित करते हुए वीपी सिंह ने ‘कुछ लोगों का एकाधिकार’ शब्द को चुनौती दी. जिसे आंबेडकर द्वारा संविधान सभा में उनके अंतिम भाषण में इस्तेमाल किया गया था. सबसे पहले पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की सरकार के मंत्री के रूप में वीपी सिंह ने कॉरपोरेट संरक्षण को चुनौती देने और राजनीतिक भ्रष्टाचार को टारगेट किया.
दूसरा प्रधानमंत्री के रूप में आंबेडकर को भारत रत्न प्रदान करने और मंडल आयोग को लागू करने के बाद उन्होंने भारत की निचली जातियों की आकांक्षाओं का साथ दिया और सबसे बड़ी चुनौती जाति व्यवस्था को उजागर किया.
तीसरा भारत के सामाजिक न्याय और धर्मनिरपेक्षता के लिए सिंह की प्रतिबद्धता ऐसी थी कि उन्होंने सांप्रदायिक हिंसा के खिलाफ भूख हड़ताल पर बैठे और अपने किडनी को भी कुर्बान कर दिया.
मंडल नीति की व्याख्या करते हुए वीपी सिंह ने एक बार टिप्पणी की थी, ‘मंडल के माध्यम से, मुझे पता था कि हम सत्ता की मूल प्रवित्ति में बदलाव लाने जा रहे थे. मुझे पता था कि मैं नौकरियां नहीं दे रहा. मंडल रोजगार योजना नहीं है, लेकिन मैं चाहता हूं सरकारी शक्तियों का प्रयोग करके लोग सत्ता में भागीदारी बन सके.’
इसने वीपी सिंह को सबसे बड़ा विलेन बना दिया था. ऊपरी जातियों, सांप्रदायिक ताकतों और कॉरपोरेट वर्चस्व का नेक्सस वीपी सिंह को कभी माफ़ नहीं कर सकता क्योंकि उन्होंने उनके पॉवर को छीना था.
इस नेक्सस ने यह भी सुनिश्चित किया कि वीपी सिंह को हमेशा मुख्यधारा में एक खलनायक के रूप में चित्रित किया जाना चाहिए. जिन्होंने वोट बैंक की राजनीति को बढ़ावा दिया. वीपी सिंह इस बारे में जानते थे. जैसेकि उन्होंने यह महसूस करते हुए कहा ‘आप देख सकते हैं कि मंडल के पहले की गई हर कार्रवाई महान और उत्कृष्ट थी और उसके बाद भारत के लिए जो कुछ भी किया उसने भारत को नुकसान पहुंचाया.’
लेकिन सामाजिक न्याय आंदोलन के राजनीतिक उत्तराधिकारी मंडल के मसीहा की विरासत की रक्षा करने में विफल रहे हैं. वे बेहद पिछड़ी जातियों को शामिल करने में नाकाम रहे जो तुलनात्मक रूप से कम संख्या है. बीजेपी-आरएसएस ने इस अवसर का लाभ उठाया और राजनीतिक पैंतरेबाजी से उन जातियों और सामाजिक समूहों को अपने गुट में शामिल कर दिया. जिसने अंततः 2014 और 2017 में उनकी विशाल चुनावी जीत का नेतृत्व किया.
आज के दौर में विपक्ष को मजबूत काउंटर नैरेटिव की जरूरत है. उन्हें एक ऐसे आइकॉन की आवश्यकता है जिसका उपयोग दलितों, ओबीसी और अन्य उत्पीड़ित समूहों को सांप्रदायिक-कॉरपोरेट नेक्सस से लड़ा जा सके. वीपी सिंह की विरासत को सामाजिक परिवर्तन और न्याय के प्रतीक के रूप में पुनर्जीवित किया जा सकता है. इसके बावजूद बाद वीपी सिंह ने एक स्थिर सरकार देने के बीजेपी के दावे का सामना किया था. उन्होंने कहा कि ‘स्थिरता का ब्रांड देश की एकता और एकजुटता के लिए हानिकारक था.’
वीपी सिंह की विरासत को जरूरत है कि सामाजिक न्याय की ताकत को कोटा राजनीति या पहचान के मुद्दों तक सीमित न करें बल्कि श्रमिकों और किसानों के अधिकार, राजनीतिक पारदर्शिता और भूमि अधिकार जैसे बड़े मुद्दों को भी उजागर करें.
गांधी और लोहिया की तरह वीपी सिंह की विरासत ऊपरी जातियों के लिए निरंतर नैतिक अनुस्मारक होगी कि उन्हें समाज की शक्ति संरचना में बदलाव के आंदोलन का हिस्सा बनना चाहिए.
1995 में हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के एक संबोधन में वीपी सिंह ने कहा,’यहां तक कि अंतिम संस्कार में भी जाति व्यवस्था लागू होती है. हम आग के दरिया में बैठे हैं. जोकि बाहर से अच्छा दिखता है. लेकिन अंदर आग से भरा है.’
उन्होंने फिर कहा कि ‘जाति व्यवस्था का ख़ात्मा जल्द होना चाहिए क्योंकि कई भारतीय राजनीतिक दलों ने सामाजिक न्याय को लाने की शपथ ली थी.’
वीपी सिंह सबसे योग्य थे जिनकी भारत को अभी जरूरत है. उनके योगदान को भुलाया नहीं जाना चाहिए.
(लेखक हार्वर्ड लॉ स्कूल में एलएलएम के छात्र हैं.)
इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें