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Thursday, 21 November, 2024
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अमेरिका को अपने यहां चुनाव कराने का ज़िम्मा भारतीय चुनाव आयोग को सौंपना चाहिए

अगर आप यह जान लेंगे कि अमेरिका में चुनाव किस तरह होते हैं तो आपको भारतीय लोकतंत्र पर गर्व होगा.

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भारत का चुनाव आयोग हर चुनाव के साथ मतदाताओं के लिए मतदान आसान बनाता जा रहा है. हर एक मतदाता तक पहुंचना वह अपने लिए एक मिशन मानता है और इसी उत्साह से काम करता है. इतने दशकों में उसने मतदाताओं की कतार छोटी करने के लिए मतदान केंद्रों की संख्या बढ़ाई है, उनकी आसानी से पहचान करने के लिए मतदाता सूचियों में उनके फोटो छापने लगा है, और वृद्ध तथा अपंग मतदाताओं को मतदान केंद्रों तक लाने के लिए कार तक भेजने को तैयार है.

लेकिन अमेरिका में चुनाव प्रक्रिया इससे उलटी है. सबसे पहले तो उनके यहां कोई चुनाव आयोग है ही नहीं. चुनाव सत्ता में बैठी सरकार करवाती है. भारत में चुनाव सत्ता में बैठी सरकार करवाए, यह सोच कर ही डर लगने लगता है.


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अमेरिका में सरकारें पूरी कोशिश करती हैं कि लोग वोट न दे पाएं, खासकर वे तो नहीं ही दे पाएं, जो उसे दोबारा सत्ता नहीं सौंपना चाहते. आप हैरत करेंगे कि इस तरह की दोषपूर्ण चुनाव प्रक्रिया के बूते अमेरिका खुद को “दुनिया का सबसे महान लोकतंत्र” कैसे कह सकता है. भारत सहित कई देशों में चुनाव प्रक्रिया अमेरिकी चुनाव प्रक्रिया से कहीं ज़्यादा दोषमुक्त है. ज़ाहिर है, बाकी दुनिया को लोकतंत्र का पाठ पढ़ाने से पहले अमेरिका को अपनी चुनाव व्यवस्था को दुरुस्त कर लेना चाहिए.

अमेरिका के 50 राज्यों में से हरेक में चुनाव संबंधी नियम और प्रक्रियाएं अलग-अलग हैं, इसलिए पूरे देश के बारे में एक बात कहना मुश्किल है. फिर भी यह तो साफ है ही कि समग्र व्यवस्था अलग-अलग दिशाओं में बिखरी हुई है.

चुनावी चालबाज़ी: चुनाव क्षेत्रों के परिसीमन का मामला भारत में भी विवादों से मुक्त नहीं रहा है. लेकिन यहां कम-से-कम एक स्वतंत्र परिसीमन आयोग का गठन तो किया गया है. अमेरिका में परिसीमन की प्रक्रिया खुल्लमखुल्ला पक्षपातपूर्ण है. जो भी सत्ता में होता है, वह जीतते रहने के लिए चुनाव क्षेत्रों की सीमाएं बदलता रहता है. इसे चुनावी चाल कहा जाता है. यही वजह है कि वहां कई राज्यों के चुनाव नतीजे पहले से स्पष्ट होते हैं, और चुनाव बेमानी ही होते हैं.

गिनते रहो: वहां मध्यावधि चुनाव के लिए मतदान के छह दिन बीत चुके हैं और अभी तक फ्लॉरिडा तथा जॉर्जिया के गवर्नरों, और सीनेट की फ्लॉरिडा तथा एरिज़ोना सीटों के अंतिम नतीजे नहीं आए हैं.

सूची से गायब: जॉर्जिया में स्थिति खास खराब है. वहां राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के सहायक ब्रायन केंप पर आरोप है कि उन्होंने स्टेसी एब्रम को अमेरिका का प्रथम अश्वेत गवर्नर न बनने देने के लिए “मतदाता का किताबी तरीके से दमन” किया. तरीका क्या था? मतदाता सूची से असुविधाजनक वोटरों को बाहर करना, और एक नया कानून बनाना जिसके तहत आपको मतदान करने से वंचित किया जा सकता है अगर आपके पहचानपत्र पर दर्ज़ नाम और सूची में दर्ज़ नाम में एक शब्द का भी अंतर पाया गया. इसी तरह, नॉर्थ डकोटा में सत्ताधारी रिपब्लिकनों ने मतदान क़ानूनों में ऐसा बदलाव कर दिया कि हज़ारों नेटिव अमेरिकी वोट न दे सकें.

इसके विपरीत, भारत का चुनाव आयोग अंतिम चुनाव नतीजों की घोषणा फटाफट करता है और मतदाता सूची से अनुचित तरीके से नाम हटाए जाने जैसी गड़बड़ियों को रोकने के हर मुमकिन उपाय करता है. इन दिनों आयोग के कर्मचारी घर-घर जाकर जांच करते हैं कि किसी का नाम गलत तरीके से सूची से हटा तो नहीं दिया गया है.

अपराधी को अधिकार नहीं: भारत की तरह अमेरिका के कई राज्यों में भी गंभीर अपराध के लिए जेल की सज़ा भुगत रहे अपराधियों को मतदान का अधिकार नहीं होता. अमेरिका के तीन राज्यों में तो जेल की सज़ा काट चुके लोगों को भी वोट देने का अधिकार नहीं है. यह अश्वेतों को मताधिकार से वंचित करने के लंबे इतिहास की ही एक देन है. वहां आपराधिक न्याय व्यवस्था ऐसी है कि वह अश्वेतों को ज़्यादा तादाद में जेलों में बंद करती है, और यह उन्हें मताधिकार से वंचित करने का साधन बन जाता है.

ताज़ा मध्यावधि चुनाव में फ्लॉरिडा में वोटरों ने जेल की सज़ा काट चुके लोगों को भी वोट देने का अधिकार देने के पक्ष में वोट दिया, सिवाय उनके जिन्होंने हत्या या यौन अपराध किए हों. अपराधियों को सुधारने और उन्हें समाज में पुनर्स्थापित करने का शायद यह बड़ा उपाय है. बहरहाल, इससे फ्लॉरिडा में 14 लाख नए वोटर जुड़ जाते, जो कि 2020 में राष्ट्रपति चुनाव के नतीजे को बदलने के लिए काफी होते. आयोवा और केंट को भी इसी सुधार का इंतज़ार है.

कोई छुट्टी नहीं: दुनिया में हर जगह लोग वोट देने के लिए कतार में खड़े होना नहीं चाहते, उन्हें लगता है कि उनके एक वोट से भला क्या फर्क पड़ जाएगा. इसलिए मतदान को आसान बनाना महत्वपूर्ण हो गया है. इसके लिए एक बुनियादी उपाय यह हो सकता है कि मतदान के दिन सार्वजनिक अवकाश घोषित किया जाए, ताकि लोग इस दुविधा में न पड़ें कि रोज़ी कमाने जाएं कि सरकार बनाने के लिए वोट देने जाएं. भारत समेत कई जगहों में कोशिश यही की जाती है कि इतवार को ही मतदान का दिन रखा जाए ताकि किसी को हानि न हो.

अमेरिका में मतदान के दिन सार्वजनिक छुट्टी नहीं होती. इसलिए कामगार तबके के लिए मतदान करना कठिन हो जाता है. सो, जिस देश में रोज़ी को घंटे से तय किया जाता है, वहां मतदान के लिए समय निकालना अमीरों की विलासिता ही मानी जाएगी.

टूटी मशीन: हां, इलेक्ट्रोनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) भारत में भी खराब होती है. लेकिन लगता है, अमेरिका में यह खराबी अश्वेत वोटरों के बहुमत वाले बूथों पर ही ज़्यादा होती है. कुछ राज्यों में वोटिंग मशीन चलती है, तो कुछ में मतदानपात्र चलते हैं. कुछ जगहों पर न तो पर्याप्त मशीनें थीं और न पर्याप्त मतपत्र थे, नतीजतन लंबी कतारें थीं, जो कई वोटरों को हतोत्साहित करती हैं.

भारत में ईवीएम को लेकर बहस चल रही है कि कहीं भाजपा को फायदा पहुंचाने के लिए उनका दुरुपयोग तो नहीं हो रहा. वैसे, इस आशंका की पुष्टि के लिए अभी कोई सबूत नहीं उपलब्ध हैं. लेकिन अमेरिका में मतदान केन्द्रों पर जो गड़बड़ियां होती हैं उनके बारे में जानेंगे तो आप भारत में चुनाव प्रक्रिया को लेकर बेहतर अनुभव करने लगेंगे, जो कम-से-कम एक स्वायत्त तथा निष्पक्ष संस्था द्वारा चलाई जाती है.

इन तमाम मुद्दों के बावजूद, अमेरिका में इस बार मध्यावधि चुनाव में मतदान के प्रतिशत ने पिछले 50 वर्षों के रेकॉर्ड को तोड़ दिया. कितना था वह? केवल 47 प्रतिशत. यह अंतिम आंकड़ा नहीं है क्योंकि मतगणना बेशक अभी जारी है.

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