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Friday, 22 November, 2024
होमडिफेंसLAC पर चीन के 5G रोल आउट के बाद भारतीय सेना भी पहाड़ी इलाकों तक हाई-स्पीड नेटवर्क पहुंचाने में जुटी

LAC पर चीन के 5G रोल आउट के बाद भारतीय सेना भी पहाड़ी इलाकों तक हाई-स्पीड नेटवर्क पहुंचाने में जुटी

सेना ने 4जी और 5जी आधारित नेटवर्क के लिए कंपनियों से निविदाएं आमंत्रित की हैं, जो 18,000 फीट तक की ऊंचाई पर विश्वसनीय और सुरक्षित वॉयस, मैसेज और डेटा सेवाएं प्रदान करने में सक्षम हो.

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नई दिल्ली: चीन की तरफ से अपने संचार और डेटा नेटवर्क को बेहतर बनाने के लिए वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के किनारे 5जी सेवाएं शुरू करने के बाद भारतीय सेना भी अपना खुद का 4जी और 5जी आधारित मोबाइल सेलुलर नेटवर्क बढ़ाने की कोशिश में लगी, जिसे पहाड़ी इलाकों में 18,000 फीट तक की ऊंचाई पर इस्तेमाल किया जा सकता हो.

सेना ने इसके लिए ओपन रिक्वेस्ट फॉर इंफॉर्मेशन (आरएफआई) जारी किया है, जिसमें कंपनियों से ऐसे दुर्गम इलाके में तकनीक मुहैया कराने के लिए निविदाएं मांगी गई हैं.

ऐसा माना जा रहा है कि यह नेटवर्क दुर्गम इलाकों में स्थित सैन्य ठिकानों की जरूरत के मुताबिक विश्वसनीय और सुरक्षित वॉयस, मैसेज और डेटा सेवाएं प्रदान करेगा.

सेना करार पर हस्ताक्षर के 12 महीनों के भीतर ऐसा नेटवर्क उपलब्ध होने और उसकी सेवाएं शुरू हो जाने की संभावनाओं पर विचार कर रही है.

2020 में पूर्वी लद्दाख में भारत-चीन के बीच गतिरोध उत्पन्न होने के तुरंत बाद चीनियों की तरफ से निर्माण संबंधी जो पहली गतिविधि शुरू की गई थी. वह सुचारू संचार लिंक सुनिश्चित करने के लिए अपनी तरफ फाइबर-ऑप्टिक केबल बिछाने से ही जुड़ी थी.

उसके बाद ही चीन ने 5जी नेटवर्क भी शुरू किया है. रक्षा सूत्रों के मुताबिक, चीनी पहले ही इसे एलएसी के पास शुरू कर चुके हैं और अपनी सभी संचार और निगरानी प्रणालियां उसी से जोड़ने की प्रक्रिया में हैं.

सेना ने अपने आरएफआई में स्पष्ट किया है कि नेटवर्क इस तरह का होना चाहिए जो किसी विशेष मूल उपकरण निर्माता (ओईएम) पर केंद्रित न हो जिससे बाद में वेंडर लॉक-इन जैसी कोई समस्या पेश आए और इसे विश्व स्तर पर स्वीकृत मानकों के अनुरूप होना चाहिए.

इसके साथ ही नेटवर्क गोपनीयता संबंधी जरूरतों को पूरा करने वाला होना चाहिए, इसके लिए जरूरी है कि सिस्टम की क्षमता खरीददार के पास उपलब्ध उपकरणों के साथ एन्क्रिप्शन डिवाइस को जोड़ने की होनी चाहिए.

सेना को ऊंचाई वाले क्षेत्रों में अग्रिम मोर्चों पर मोबाइल संचार संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है.

रक्षा और सुरक्षा प्रतिष्ठान से जुड़े सूत्रों ने कहा कि जहां सैटेलाइट मोड के साथ एक सुरक्षित रेडियो फ्रीक्वेंसी उपलब्ध है, वहीं 4जी और 5जी नेटवर्क समय की जरूरत है क्योंकि इससे तेजी से संचार और डेटा ट्रांसफर में मदद मिलेगी.


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मार्च 2023 तक भारत को मिल सकती हैं 5जी सेवाएं

भारत में मंगलवार का दिन 5जी रोलआउट प्रक्रिया के लिए पहला अहम चरण भी है.

चार कॉर्पोरेट दिग्गज—अडानी एंटरप्राइजेज, भारती एयरटेल, रिलायंस जियो और वीआई (वोडाफोन आइडिया) मंगलवार को दिन में शुरू हुई 5जी की नीलामी में बोली लगा रहे हैं. माना जा रहा है कि उक्त कंपनियों की तरफ से ही सेना के आरएफआई पर बोली लगाई जाएगी.

केंद्रीय संचार मंत्री अश्विनी वैष्णव ने पिछले माह एक कार्यक्रम में कहा था कि भारत को मार्च 2023 तक पूर्ण रूप से 5जी सेवाएं मिलना शुरू हो जाने की उम्मीद है.

देश के सीमावर्ती इलाकों खासकर लद्दाख के निवासी- जो पिछले दो वर्षों से भारत-चीन के बीच तनावपूर्ण गतिरोध देख रहे हैं- भी बेहतर मोबाइल संचार की मांग कर रहे हैं, जो कम से कम 4जी हो.

पिछले साल नवंबर में लेह में लद्दाख स्वायत्त पर्वतीय विकास परिषद में चुशुल का प्रतिनिधित्व करने वाले पार्षद कोंचोक स्टैनजिन ने रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह को इस मांग के साथ तीन पन्नों का एक ज्ञापन सौंपा था. राजनाथ सिंह गांव में पुनर्निर्मित रेजांग ला युद्ध स्मारक का उद्घाटन करने आए थे.

स्टैनजिन ने फाइबर-ऑप्टिक केबल और अन्य मांगों के अलावा चुशुल के नौ गांवों में से हर एक के लिए 4जी टॉवर की मांग की थी.

इस साल जून में ही लद्दाख के कुछ अग्रिम सीमावर्ती इलाकों में 4जी नेटवर्क शुरू किया गया था.

रिलायंस जियो ने स्पांग्मिक गांव में एक मोबाइल टावर स्थापित करके लद्दाख क्षेत्र में अपनी 4जी सेवाओं की पहुंच पैंगोंग झील- जो भारत-चीन के बीच गतिरोध का एक बिंदु रही है- के नजदीक एक गांव तक बढ़ा दी है.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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