नई दिल्ली: पिछली तीन जनगणनाओं से मिले आंकड़ों के अनुसार, भारत की 29 वर्ष और उससे नीचे की युवा आबादी, 30 वर्ष या उससे अधिक की आबादी से आगे बढ़ गई है. लेकिन ऐसा लगता है कि स्थिति में बदलाव होने जा रहा है.
भारत में युवा 2022 नामक रिपोर्ट के अनुसार, जिसे पिछले महीने सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (एमओएसपीआई) ने जारी किया, वर्ष 2036 तक देश की अधिकांश आबादी 30 की उम्र के पार हो जाएगी. रिपोर्ट में ‘युवा’ से आशय 15 से 29 वर्ष आयु वर्ग के लोगों से है, जैसा कि केंद्र की राष्ट्रीय युवा नीति 2014 में परिभाषित किया गया है.
ये रिपोर्ट जनसंख्या अनुमानों पर तकनीकी समूह (टीजीपीपी) द्वारा उपलब्ध कराए गए आंकड़ों पर आधारित है, जिसका गठन स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय (एमओएचएफडब्लू) ने किया था. टीजीपीपी ने 2011 की जनगणना को अपना आधार बनाते हुए, वर्ष 2036 तक भारत और उसके राज्यों की आबादी के अनुमान लगाए हैं.
2011 की जनगणना के अनुसार, देश की 58.3 प्रतिशत से अधिक आबादी 29 वर्ष या उससे कम की है, जबकि 41.4 प्रतिशत 30 वर्ष से अधिक के वर्ग में आते हैं (बाक़ी .3 प्रतिशत ने जनगणना के दौरान अपनी उम्र नहीं बताई थी).
अब एमओएसपीआई रिपोर्ट के जनसंख्या अनुमानों से पता चलता है, कि 2021-2030 का दशक देश की जनसंख्या के लिए संभावित रूप से एक नया मोड़ लेकर आ सकता है.
रिपोर्ट में कहा गया है कि कुल मिलाकर, अगले 15 वर्षों में भारत की युवा आबादी में 10 प्रतिशत अंकों (पीपी) की कमी आ सकती है- 2021 में 52.9 प्रतिशत से घटकर 2036 में 42.9 प्रतिशत.
2021 के लिए अनुमानों में भारत की आधी से अधिक 53 प्रतिशत आबादी में 29 वर्ष या उससे कम आयु के युवा शामिल है, जबकि बाक़ी 47 प्रतिशत 30 वर्ष या उससे अधिक के हैं.
एमओएसपीआई रिपोर्ट में कहा गया है कि अगले दशक के आरंभ तक, ये वर्ग देश की कुल आबादी का क्रमश: 46 और 54 प्रतिशत होंगे; और 2036 तक क्रमश: 44 और 57 प्रतिशत हो जाएंगे.
आंकड़ों के एक विस्तृत ब्रेक-अप से पता चलता है कि 2036 तक भारत में युवा वर्ग समूह में भी, संभावित रूप से 0 से 14 वर्ष के बच्चों की संख्या कम हो जाएगी, और ‘युवा’ वर्ग में ज़्यादा लोग हो जाएंगे.
2011 की जनगणना में भारत की 30.8 प्रतिशत आबादी 0-14 आयु वर्ग में थी, जिसका मतलब था कि हर तीन में से एक भारतीय के 14 वर्ष से कम का होने की संभावना थी. 15-29 आयु वर्ग के लोग कुल आबादी का 27.5 प्रतिशत थे.
एमओएसपीआई रिपोर्ट के अनुमानों के अनुसार, इन दोनों श्रेणियों की हिस्सेदारी घटकर क्रमश: 25.2 प्रतिशत और 27.3 प्रतिशत रह गई है. 2036 तक, देश की आबादी में 0-14 आयु वर्ग के लोगों की संख्या केवल 20 प्रतिशत रह जाएगी, जब हर पांच में एक व्यक्ति 14 वर्ष या उससे कम आयु का होगा, और 15-29 आयु वर्ग कुल आबादी का 22.7 प्रतिशत होगा.
एमओएसपीआई रिपोर्ट के अनुमानों के अनुसार, ‘अधेड़-उम्र’ आबादी की हिस्सेदारी, जिसमें 30 से 59 वर्ष के लोग शामिल होते हैं, बढ़ने की प्रवृत्ति दिखा रही है. अनुमान लगाया गया है कि 2021 तक, ये समूह बढ़कर भारत की आबादी का 37 प्रतिशत हो जाएगा, और 2036 तक इसके 42 प्रतिशत तक पहुंच जाने की अपेक्षा है.
अनुमान लगाया गया था कि 2021 में कुल आबादी में, वरिष्ठ नागरिकों (60 से अधिक उम्र) की हिस्सेदारी 10.1 प्रतिशत होगी, और फिर 2026 तक ये 15 प्रतिशत हो जाएगी.
बैंगलुरू-स्थित एक शोध संस्था, आर्थिक और सामाजिक परिवर्तन संस्थान में जनसंख्या अनुसंधान केंद्र के प्रोफेसर, डॉ सीएम लक्षमण के अनुसार इसमें अभी और सुधार की गुंजाइश है.
लक्षमण का मानना है कि भारत को अब अपनी युवा आबादी का फायदा उठाना चाहिए, क्योंकि उनके अपने अनुमानों के अनुसार, देश की 65 प्रतिशत आबादी अभी भी 35 वर्ष से नीचे की है.
लक्षमण ने दिप्रिंट से कहा, ‘आगे बढ़ने के लिए हमें अपने युवाओं की मौजूदा शक्ति का इस्तेमाल करना चाहिए. हमें अपने पास उपलब्ध युवाओं का फायदा उठाना चाहिए. कुशल कर्मी बनाकर हमें संगठित क्षेत्र में काम करने के लिए उनकी सहायता करनी चाहिए. हमें अंतर्राष्ट्रीय प्रवास या ब्रेन ड्रेन को रोकना चाहिए, जो भारत के लिए बेहद हानिकारक है, लेकिन पश्चिमी देश के भविष्य के लिए बहुत लाभकारी है’.
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उत्तरपूर्वी राज्यों तथा जम्मू-कश्मीर में सबसे अधिक गिरावट
एमओएसपीआई रिपोर्ट में राज्यों तथा केंद्र-शासित क्षेत्रों के लिए आबादी के अनुमान लगाए गए हैं, जिनमें से कई में आयु जनसांख्यिकी के मामले में काफी बदलाव होने की अपेक्षा है.
एमओएसपीआई डेटाबेस के अनुसार, अगले 10-15 सालों में सबसे अधिक बदलाव केंद्र-शासित जम्मू-कश्मीर क्षेत्र में देखने में आएगा. अनुमान है कि 2021 में, जेएंके की आबादी में 29 वर्ष या उससे कम आयु के लोगों की हिस्सेदारी तक़रीबन 53 प्रतिशत होगी, लेकिन 2036 तक आते आते ये संख्या गिरकर 39 प्रतिशत पर आ सकती है- जो 14 प्रतिशत अंकों की एक अच्छी-ख़ासी गिरावट है.
रिपोर्ट में उत्तरपूर्वी राज्यों (सिक्किम समेत लेकिन असम से अलग) की आबादी को मिला लिया गया, और उनमें भी जोएंडके जैसी ही प्रवृत्ति देखी गई.
अनुमान था कि 2021 में उत्तरपूर्वी राज्यों की क़रीब 53 प्रतिशत आबादी 29 वर्ष से कम की होगी. 2036 तक, इसके सिकुड़कर 13 प्रतिशत रह जाने का अनुमान है.
भारत के सबसे अधिक आबादी वाले सूबे उत्तर प्रदेश में, जहां 2021 के अनुमानों के अनुसार 60 प्रतिशत आबादी 29 वर्ष से कम थी, युवाओं की आबादी में 13 प्रतिशत अंकों की कमी आ सकती है- जिसका मतलब है कि 2036 तक सिर्फ राज्य की लगभग 47 प्रतिशत आबादी ही ‘युवा’ समझी जाएगी.
2021 और 2036 के बीच कई दूसरे राज्यों में भी युवा आबादी में, 10 प्रतिशत से अधिक अंकों की गिरावट आ सकती है- उत्तराखंड में 12.2 पीपी, पश्चिम बंगाल में 11.5 पीपी, तेलंगाना में 11.5 पीपी, राजस्थान में 11.2 पीपी, झारखंड में में 11.2 पीपी, पंजाब में 10.7 पीपी, असम में 10.5 पीपी, हिमाचल प्रदेश में 10.4 पीपी, और महाराष्ट्र में 10.1 पीपी.
भारत के सबसे युवा प्रांत बिहार में, जहां 2021 में हर तीन में एक व्यक्ति की आयु 29 वर्ष या उससे कम होने का अनुमान है, युवाओं की आबादी में 9.3 पीपी की कमी आ सकती है- जो 2021 के 62.4 से घटकर 2036 में 53 प्रतिशत रह जाएगी.
अनुमान के मुताबिक़ ये गिरावट तमिलनाडु और केरल में सबसे धीमी रहेगी, जहां कुल जनसंख्या में युवाओं की हिस्सेदारी पहले ही सबसे कम है. अनुमान है कि तमिलनाडु में ये 2021 के 43.1 प्रतिशत से घटकर 2036 तक 34.6 प्रतिशत रह जाएगी, और केरल में 42.5 प्रतिशत से घटकर 36.9 प्रतिशत हो जाएगी.
इन दो प्रांतों में वरिष्ठ नागरिकों की हिस्सेदारीभी सबसे अधिक रहने का अनुमान है. रिपोर्ट में कहा गया है कि 2036 तक केरल में क़रीब 22.8 प्रतिशत, और तमिलनाडु में 20.8 प्रतिशत लोग 60 वर्ष या उससे अधिक के हो सकते हैं.
लक्षमण के अनुसार, भारत के लिए ज़रूरी है कि वो अपनी युवा आबादी का फायदा उठाए, जिसकी शुरुआत उन्हें कौशल और रोज़ागार उपलब्ध कराकर की जा सकती है.
लक्षमण ने कहा, ‘इतनी विशाल आबादी को रोज़गार मुहैया कराने के लिए, ख़ासकर प्रौद्योगिकी और संचार के क्षेत्रों में, प्रशिक्षण केंद्रों को अपग्रेड करने की ज़रूरत है. हमें अभी इस युवा लाभांश को भुनाने की ज़रूरत है’. उन्होंने आगे कहा कि देश में फिलहाल संगठित क्षेत्र में कुशल कामगारों की कमी है.
लक्षमण ने कहा कि रोज़गार अवसर बढ़ाने के लिए क़दम न उठाना, सामान्य रूप से समाज के लिए हानिकारक साबित हो सकता है: ‘बेरोज़गार युवा लोगों का एक विशाल रिज़र्व रखना कोई अच्छा विचार नहीं है. बेरोज़ार युवकों की संख्या बहुत अधिक होने से, अपराध और उनसे जुड़ी गतिविधियों की संभावना भी बढ़ जाती है’.
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