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Friday, 22 November, 2024
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महिला विधायकों की सर्वाधिक हिस्सेदारी वाले 10 में से 5 राज्य पूर्वोत्तर के हैं, क्या है इसकी वजह

2020-2021 के लिए पीरियोडिक लेबर फोर्स सर्वे से पता चलता है कि भारत में विधायकों, वरिष्ठ अधिकारियों और प्रबंधकों में मामले में पुरुषों की तुलना में सबसे अधिक महिला अनुपात मिजोरम, सिक्किम, मणिपुर और मेघालय में है.

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गुवाहाटी: जुलाई 2020 से जून 2021 की अवधि के लिए पीरिऑडिक लेबर फोर्स सर्वे के मुताबिक, विधायकों, वरिष्ठ अधिकारियों और प्रबंधकों में मामले में पुरुषों की तुलना में सबसे अधिक महिला अनुपात पांच पूर्वोत्तर राज्यों—मिजोरम, सिक्किम, मणिपुर, मेघालय और अरुणाचल प्रदेश में पाया गया है.

पिछले माह जारी पीएलएफएस सर्वेक्षण में पाया गया कि 70.9 प्रतिशत के साथ महिला-से-पुरुष श्रमिकों का शीर्ष अनुपात (प्रतिशत में मापा गया) मिजोरम में पाया गया है जो देश में विधायक, वरिष्ठ अधिकारी और प्रबंधक आदि हैं.

अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) उन लोगों को ‘विधायकों, वरिष्ठ अधिकारियों और प्रबंधकों’ के तौर पर परिभाषित करता है जो ‘सरकारी नीतियों के अलावा विशेष-रुचि वाले संगठनों से जुड़े फैसले लेते हैं, उन्हें तैयार करते हैं या निर्देशित अथवा सलाह देते हैं, कानून तथा सार्वजनिक नियम-कायदे तैयार करते हैं, सरकारों का प्रतिनिधित्व करते हैं या उनकी ओर से कार्य करते हैं, सरकारी नीतियों और कानूनों की व्याख्या और उन पर कार्यान्वयन की जिम्मेदारी संभालते हैं और उद्यमों या संगठनों, या उनके आंतरिक विभागों या अनुभागों की नीतियों और गतिविधियों की योजना बनाते हैं, उनका निर्देशन और समन्वय करते हैं.’

अप्रैल 2017 में राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) की तरफ से शुरू किए गए पीएलएफएस का उद्देश्य देश में रोजगार और बेरोजगारी की स्थिति का पता लगाना है.

मनीषा यादव | दिप्रिंट

ताजा सर्वेक्षण से पता चलता है कि शीर्ष 10 राज्यों में से पांच पूर्वोत्तर से हैं. शेष तीन पूर्वोत्तर राज्यों -असम, त्रिपुरा और नागालैंड – ने अपेक्षाकृत खराब प्रदर्शन किया है, जिसमें महिला-पुरुष अनुपात राष्ट्रीय औसत 22.2 प्रतिशत से कम है.

केंद्रीय वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर दिप्रिंट को बताया कि मिजोरम में श्रम बल में महिलाओं की भागीदारी आम तौर पर अधिक रही है.

अधिकारी ने कहा, ‘मिजोरम में सरकारी और निजी दोनों ही तरह की नौकरियों में पुरुषों और महिलाओं के बीच अंतर आमतौर पर काफी कम है, जो कि हमें भारत के अन्य हिस्सों में कहीं नहीं नजर आता.’

सिक्किम यूनिवर्सिटी में समाजशास्त्र की प्रोफेसर संध्या थापा ने कहा कि हालांकि, राज्य में महिलाओं को पारंपरिक तौर पर सार्वजनिक क्षेत्र से किसी तरह प्रतिबंधित नहीं किया गया है, लेकिन उनका ऐसी जगहों पर पहुंचना आम बात नहीं रही है.

उन्होंने कहा कि यह नीतिगत हस्तक्षेप है जिसने लैंगिक अंतर को घटाने में मदद की है.

उन्होंने दिप्रिंट से कहा, ‘यदि आप वास्तव में (शासन में महिलाओं के) आंकड़ों पर नजर डालें तो (सिक्किम में) पंचायत में 50 प्रतिशत से अधिक आरक्षण का प्रावधान है. (फिर) सरकारी सेवाओं में 30 प्रतिशत आरक्षण है.’


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पूर्वोत्तर राज्यों में कैसा रहा प्रदर्शन

सर्वेक्षण से पता चला है कि सिक्किम (48.2 प्रतिशत के साथ) विधायकों, वरिष्ठ अधिकारियों और प्रबंधकों के रूप में काम करने वाली महिलाओं के अनुपात के मामले में दूसरे शीर्ष स्थान पर है, जबकि मणिपुर (45.1 प्रतिशत) तीसरे और मेघालय (44.8 प्रतिशत) चौथे स्थान पर है.

शीर्ष 10 में शामिल होने वाला एक और पूर्वोत्तर राज्य अरुणाचल प्रदेश (29.7 प्रतिशत) है.

इस बीच, त्रिपुरा में ये अनुपात 21.1 फीसदी, असम में 16.1 फीसदी और नगालैंड में 9.1 फीसदी पाया गया है, जहां जमीनी स्तर पर महिलाओं के नेतृत्व की स्थिति में रहने की संभावना कम होती है.

शीर्ष 10 में शामिल अन्य राज्य/केंद्र शासित प्रदेश आंध्र प्रदेश (43.4 फीसदी), कर्नाटक (36 फीसदी), पुडुचेरी (35.3 फीसदी), तमिलनाडु (28.6 फीसदी) और गोवा (28.3 फीसदी) हैं.

सर्वे बताता है कि मिजोरम (40.8 प्रतिशत), सिक्किम (32.5 प्रतिशत) और मेघालय (31 प्रतिशत) में प्रबंधकीय पदों पर कार्यरत महिला श्रमिकों का अनुपात सबसे अधिक है.

मनीषा यादव | दिप्रिंट

तो, कुछ राज्य दूसरों की तुलना में बेहतर प्रदर्शन क्यों करते है? इसका जवाब शायद कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी में निहित है.

ऊपर उद्धृत केंद्रीय वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के अधिकारी ने कहा कि मिजोरम में ‘केवल सफेदपोश नौकरियों में ही नहीं बल्कि हर तरह के कार्यों में महिलाओं और पुरुषों के बीच कोई भेदभाव नहीं किया जाता है.’

उन्होंने कहा, ‘वेतन पैकेज भी बराबर होते हैं.’

मणिपुर और मेघालय दोनों में इस तरह का ट्रेंड नजर आता है.

इम्फाल की सामाजिक कार्यकर्ता नंदिनी थॉकचोम ने कहा, ‘मणिपुर में महिलाएं, सभी महिलाएं, काम करती हैं…वे गृहिणी बनना पसंद नहीं करती हैं. पढ़ी-लिखी होंगी तो दफ्तर में काम करेंगी, और शिक्षित न होने पर भी बाजार में काम करेंगी या हथकरघा पर कपड़े बनाएंगी.’

इंफाल स्थित जाकिर हुसैन कॉलेज में एसोसिएट प्रोफेसर बिधान लैशराम ने कहा कि सांस्कृतिक और ऐतिहासिक रूप से मणिपुर का सार्वजनिक क्षेत्र—कार्यालयों की जगहों समेत—आम तौर पर महिलाओं के लिए खुला रहा है.

उन्होंने कहा, ‘विशेष तौर पर पुरुष प्रधान सार्वजनिक स्थल मणिपुरी संस्कृति का हिस्सा नहीं है. ऑफिस स्पेस को आम तौर पर सार्वजनिक क्षेत्र माना जाता है और महिलाओं की (यहां) सहज पहुंच होती है. ऐतिहासिक रूप से आप देख सकते हैं कि मणिपुर में औपनिवेशिक कब्जे के खिलाफ लड़ने में महिलाओं ने सक्रिय भूमिका निभाई है. इसलिए, यहां पर शिक्षा को आम तौर पर काफी प्रोत्साहित किया गया है.’

शिलॉन्ग टाइम्स की संपादक पेट्रीसिया मुखिम ने कहा कि मेघालय में महिलाएं ‘आर्थिक और सामाजिक तौर पर सक्रिय’ रही हैं. उन्हें आजीविका के लिए जो करना होता है, कोई उससे रोकता नहीं है. इस मामले में वह काफी मुक्त हैं.’

इसके बावजूद उनका मानना है कि जमीनी स्थिति काफी गंभीर बनी हुई है.

उन्होंने कहा, ‘अब (मेघालय में) 60 सदस्यीय सदन में चार महिला विधायक हैं. आपके पास इस संख्या से आगे कभी कुछ नहीं रहा. यदि आप कहते हैं कि हम कई अन्य राज्यों की तुलना में बेहतर कर रहे हैं, तो अन्य राज्य तो बहुत ही खराब स्थिति में हैं. राजनीति में अब भी पितृसत्ता का ही दबदबा है.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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