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Thursday, 21 November, 2024
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भारत की प्राइवेट सेक्टर को सलाह- चीन समर्थित 14$ बिलियन वाले कोलंबो पोर्ट सिटी प्रोजेक्ट से दूर रहें

पोर्ट सिटी कोलंबो परियोजना का उद्देश्य समुद्र से प्राप्त भूमि पर आवासीय, खुदरा व्यापार और व्यावसायिक ठिकाने बनाने का है. भारत इसके ढीले-ढाले अधिकार क्षेत्र' और बढ़ती चीनी उपस्थिति को लेकर चिंतित है’

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नई दिल्ली: दिप्रिंट को मिली जानकारी के अनुसार भारत चीन समर्थित 14 अरब डॉलर की पोर्ट सिटी कोलंबो (पीसीसी) परियोजना में शामिल होने का इच्छुक नहीं है और इसने अपने निजी क्षेत्र के हितधारकों को बता दिया है कि इसमें उनकी ‘किसी भी भागीदारी’ को ‘प्रतिकूल रूप से’ देखा जाएगा.

हिंद महासागर से पुनः प्राप्त की गयी (रेक्लाइमेड) 269 हेक्टेयर भूमि पर बनाई जा रही पीसीसी को कोलंबो के सेंट्रल बिज़नेस डिस्ट्रिक्ट के विस्तार के रूप में विकसित किया जा रहा है. साल 2014 में चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की श्री लंका यात्रा के दौरान इस परियोजना का अनावरण किया गया था और यह श्रीलंका में अब तक का सबसे बड़ा प्रत्यक्ष विदेशी निवेश है. बीजिंग ने पहले ही इस परियोजना के लिए समुद्र से भूमि को पुनः प्राप्त करने के लिए $1.4 बिलियन का निवेश किया हुआ है.

सीएचईसी पोर्ट सिटी कोलंबो प्राइवेट लिमिटेड की आधिकारिक वेबसाइट के अनुसार, इस परियोजना की परिकल्पना दक्षिण एशिया के प्रमुख आवासीय, खुदरा व्यापार और व्यावसायिक ठिकाने के रूप में की गई है. इसमें पांच अलग-अलग परिसर शामिल होंगे – ‘वित्तीय जिला (फाइनेंसियल डिस्ट्रिक्ट), सेंट्रल पार्क में आवासीय स्थान, द्वीप पर आवासीय स्थान, मरीना और अंतरराष्ट्रीय द्वीप.

इस बीच, भारत के वरिष्ठ सरकारी अधिकारियों ने दिप्रिंट को बताया कि विगत 1 जुलाई को उप राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार विक्रम मिश्री की अध्यक्षता में हुई एक उच्च स्तरीय अंतर-मंत्रालयी बैठक में इस परियोजना पर चर्चा हुई थी.

इस बैठक में लिए गए फैसलों के बारे में जानकारी रखने वाले सरकारी अधिकारियों के अनुसार कोलंबो के साथ आर्थिक संबंधों को बढ़ाने के अवसरों पर विचार करने के लिए बुलाई गई इस बैठक में कड़ा रुख यह था कि यदि (भारत के) निजी हितधारक किसी भी रूप में पीसीसी में शामिल होने का निर्णय लेते हैं, तो वे ‘पूरी तरह से अपने दम पर’ ऐसा कर रहे होंगे.

दिप्रिंट द्वारा देखे गए इस बैठक के संक्षिप्त विवरण (मिनट्स) के अनुसार भारत इस बात से चिंतित है कि अपने ‘एक्स्ट्रा-टेरीटोरियल (राज्य के क्षेत्र से परे) और ढीले-ढाले अधिकार क्षेत्र’ के साथ, पीसीसी ‘मनी लॉन्ड्रिंग और कानूनी से इतर होने वाली गतिविधियों (एक्स्ट्रा-लीगल एक्टिविटीज) के लिए एक केंद्र बन जाने की आशंका पैदा करता है और ‘वहां निवेश करने वाली भारतीय कंपनियां संबंधित एजेंसियों की गहन जांच का सामना कर सकती हैं.

इसके अलावा, यह भी महसूस किया गया कि पीसीसी, जिसे एक वित्तीय केंद्र के रूप में देखा जा रहा है, गुजरात में बनायी जा रही गिफ्ट सिटी की तरह की भारत की अपनी योजनाओं को टक्कर दे सकता है.

एक बार पूरा होने के बाद, गुजरात इंटरनेशनल फाइनेंस टेक (गिफ्ट) सिटी भारत का पहला ऐसा व्यावसायिक जिला होगा, जिसमें एक अंतरराष्ट्रीय वित्त सेवा केंद्र और घरेलू और अंतरराष्ट्रीय वित्तीय सेवाओं के लिए विशेष आर्थिक क्षेत्र होगा.

1 जुलाई को हुई इस बैठक के दौरान भारत ने श्रीलंका को दी जा रही अपनी सहायता को और बढ़ाने, महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे को बढ़ावा देने और दोनों पडोसी देशों के बीच के पारंपरिक संबंधों को मजबूत करने हेतु इस अवसर का उपयोग करने के लिए एक व्यापक योजना भी तैयार की. आगे उठाए जाने वाले कुछ कदमों में त्रिंकोमाली बंदरगाह का विकास, बिजली परियोजनाएं, उड़ानों की फ्रीक्वेंसी को बढ़ाना और नौका सेवाओं को फिर से शुरू करना आदि शामिल है.


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क्यों इस परियोजना को लेकर आशंकित है भारत?

श्रीलंका सरकार द्वारा भारत से इस परियोजना में पर्याप्त मात्रा में निवेश करने की इच्छा व्यक्त किये जाने के बावजूद भारत पीसीसी में शामिल होने के प्रति हमेशा से आशंकित रहा है. हिंद महासागर क्षेत्र में चीन की बढ़ती उपस्थिति के साथ, भारत इस परियोजना को अपनी समुद्री सुरक्षा के लिए एक ‘गंभीर खतरे’ के रूप में देखता है. इस परियोजना का पहला चरण 2027 तक पूरा होने की संभावना है, हालांकि इसकी कुल निर्माण अवधि 25 वर्ष की है.

भारत सरकार की इस अनिच्छा के बारे में विस्तार से बताते हुए, श्रीलंका में भारत के पूर्व उच्चायुक्त और चीन में राजदूत रहे अशोक के. कांथा ने कहा कि इस परियोजना की प्रकृति को देखते हुए, भारत की इसके बारे में लंबे समय से आपत्तियां रहीं है और वह भारतीय कंपनियों के इसमें शामिल होने को लेकर भी सावधान है.

कांथा, जो दिल्ली स्थित चीनी अध्ययन संस्थान के निदेशक हैं, ने कहा कि इस परियोजना को अलग-थलग करके नहीं देखा जा सकता है. उन्होंने कहा, ‘यह इस द्वीपीय राष्ट्र में कई क्षेत्रों में चीन की घुसपैठ के एक बड़े पैटर्न का हिस्सा है, कुछ मामलों में तो चीनी संस्थाओं ने रणनीतिक संपत्ति (स्ट्रेटेजिक एसेट्स) भी हासिल कर ली है.’

इस सेवानिवृत्त राजनयिक ने उदाहरण के तौर पर हंबनटोटा बंदरगाह का हवाला दिया उन्होंने कहा, ‘चीनी कंपनियों ने इसे 99 साल के पट्टे पर ले लिया था क्योंकि श्रीलंका सरकार इस घाटे में चल रही परियोजना, जो आर्थिक रूप से भी एकदम अव्यवहारिक थी, के लिए कर्ज चुकाने में असमर्थ रही थी. साल 2016 के अंत तक इस बंदरगाह परियोजना को 300 मिलियन डॉलर का घाटा हो चूका था. इसके बाद, जुलाई 2017 में, श्रीलंका सरकार को इस बंदरगाह चीन को सौंपने के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर करने के लिए बाध्य किया गया था.’

उन्होंने आगे कहा कि श्रीलंका द्वारा चीनी कर्ज के साथ शुरू की गईं बुनियादी ढांचे के क्षेत्र में आर्थिक रूप से अव्यवहारिक परियोजनाओं की एक लंबी सूची है. अक्सर ये कर्ज वाणिज्यिक शर्तों पर दिए गए है और इस कारण परियोजना की बढ़ी हुई लागत ने कोलंबो को कर्ज के जाल में फंसाने में अपना योगदान दिया है.’

उन्होंने कहा कि कोलंबो पोर्ट सिटी के मामले में भी चाइना हार्बर इंजीनियरिंग कंपनी (सीएचईसी) वित्तीय सहायता प्रदान कर रही है, लेकिन इसके बदले पुनः प्राप्त की गई भूमि के 43 प्रतिशत हिस्से को इस चीनी इकाई को 99 साल के पट्टे पर सौंप दिया गया है.’

कांथा के अनुसार, जो चीज इसे खतरनाक बना देती है, वह यह है कि सीएचईसी चीन की बुनियादी ढांचा से संबंधित प्रमुख सरकारी कंपनी चाइना कम्युनिकेशंस कंस्ट्रक्शन कंपनी, जो राष्ट्रपति शी की महत्वाकांक्षी ‘बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव’ की अगुवाई कर रही है, की एक सहायक कंपनी है,

यह कहते हुए कि इस परियोजना के मनी लॉन्ड्रिंग के लिए एक अवैध अड्डा बनने के बारे में वाजिब चिंताएं हैं, कांथा ने बताया, ‘श्रीलंका के भीतर भी, इस परियोजना के लिए दी गई लंबी अवधि वाली करों की छूट (टैक्स हॉलिडे) के साथ-साथ इसके पर्यावरणीय प्रभाव के बारे में भी कड़ा विरोध व्यक्त किया गया है. जिस तरह के रियायत वाले समझौते पर हस्ताक्षर किए गए हैं, उससे श्रीलंका सरकार को ज्यादा राजस्व नहीं मिलता है.’

कांथा कहते हैं, ‘इसकी कुल निर्माण अवधि कम-से-कम 25 साल की है’ मैं यह नहीं देखता कि यह परियोजना श्रीलंका के लिए आर्थिक रूप से लाभदायक होने जा रही है. हालांकि, चीनी संस्थाओं ने दीर्घकालिक पट्टे पर उसी तरह से एक रणनीतिक संपत्ति हासिल कर ली है जैसा कि उन्होंने हंबनटोटा बंदरगाह के मामले में किया था.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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