scorecardresearch
Thursday, 7 November, 2024
होमदेशअर्थजगतआरबीआई का स्वायत्त ढांचा नष्ट करना चाहती है सरकार: कांग्रेस

आरबीआई का स्वायत्त ढांचा नष्ट करना चाहती है सरकार: कांग्रेस

Text Size:

कांग्रेस ने कहा, मोदी और भाजपा देश के स्वायत्त संस्थानों को नुकसान पहुंचा रहे हैं. जेटली ने कहा, बैंकों के अंधाधुंध कर्ज बांटने की आरबीआई ने अनदेखी की.

नई दिल्ली: वित्त मंत्री अरुण जेटली पर हमले को तेज करते हुए, कांग्रेस ने मंगलवार को सरकार पर स्वायत्त संस्था जैसे रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (आरबीआई) को क्षति पहुंचाने की कोशिश करने का आरोप लगाया.

कांग्रेस ने इसके साथ ही उनपर केंद्रीय बैंक के कार्य में हस्तक्षेप करने का भी आरोप लगाया. कांग्रेस नेता आनंद शर्मा ने यहां पत्रकारों से कहा, ‘मैं आज वित्त मंत्री की ओर से आरबीआई और इसके प्रदर्शन पर तीखे हमले से आश्चर्यचकित हूं. केंद्रीय बैंक स्वायत्त और स्वतंत्र है.’

उन्होंने कहा कि यह भारत और अर्थव्यवस्था के हित में है कि आरबीआई ऋण देने और बैंकों की दरों को तय करने के लिए एकमात्र नियामक संस्था बना रहे.

शर्मा ने कहा, ‘केवल आरबीआई के पास ही सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को विनियमित करने की शक्ति होनी चाहिए और किसी के पास नहीं. सरकार ने पहले दिन से ही लगातार हस्तक्षेप करके आग लगाने का काम किया है. अब सरकार की ओर से मौद्रिक नीति पर नियंत्रण करने की कोशिश बेहद अशुभ कदम है.’

कांग्रेस नेता ने कहा, ‘आरबीआई पर हमले को स्वीकार नहीं किया जा सकता. इसका अवश्य ही विरोध किया जाना चाहिए. इसके साथ ही यह याद रखने की जरूरत है कि भुगतान नियामक के रूप में आरबीआई की भूमिका को समाप्त नहीं किया जा सकता.’

जेटली ने मंगलवार को डूबे कर्ज (बैड लोन) के बढ़ने के लिए केंद्रीय बैंक को जिम्मेदार ठहराया, जिसके बाद शर्मा ने यह टिप्पणी की है.

शर्मा ने कहा, ‘मोदी और भाजपा के शासन में, वे लोग देश के सभी स्वायत्त संस्था को नुकसान पहुंचा रहे हैं, जिसकी भूमिका सीबीआई, ईडी, आईटी, डीआरआई, केंद्रीय विश्वविद्यालयों जैसी संस्थाओं के शासन और प्रशासन को बनाए रखने की है.’

बैंकों के अंधाधुंध कर्ज बांटने की आरबीआई ने अनदेखी की: जेटली

केंद्रीय वित्तमंत्री अरुण जेटली ने मंगलवार को कहा कि बैंकों के फंसे हुए विशाल कर्जों के लिए केंद्रीय बैंक जिम्मेदार है और जब बैंक साल 2008 से 2014 के दौरान अंधाधुंध कर्ज बांट रहे थे, तब आरबीआई इसकी अनदेखी कर रहा था, जिसके कारण अर्थव्यवस्था आज कराह रही है.

जेटली का यह बयान आरबीआई और सरकार के बीच चल रही तनातनी की पुष्टि करता है. एक दिन पहले केंद्रीय बैंक के डिप्टी गर्वनर विरल आचार्य ने सरकार से कहा था कि बैंकिंग नियामक की कार्यप्रणाली की स्वायत्तता बरकरार रखी जानी चाहिए.

वित्तमंत्री ने कहा कि साल 2008 का वैश्विक संकट 2014 तक जारी रहा था और इस दौरान बैकों से कहा गया कि वे अर्थव्यवस्था को ‘कृत्रिम रूप से’ बढ़ाने के लिए खुल कर कर्ज बांटें.

जेटली ने एक आयोजन में कहा, ‘जब अंधाधुंध कर्ज बांटे जा रहे थे, तब केंद्रीय बैंक उसकी अनदेखी कर रहा था.. साल 2008 में बैंकों ने कुल 18 लाख करोड़ रुपये के कर्ज बांटे थे, जो साल 2014 में बढ़कर 55 लाख करोड़ रुपये हो गया. और यह इतनी बड़ी रकम थी, जिसे संभालना बैंकों के बस से बाहर था. इसे संभालना कर्ज लेने वालों (बड़ी कंपनियों) के बस के बाहर था और इसी कारण एनपीए (फंसे हुए कर्जे) की समस्या पैदा हुई है.’

उन्होंने कहा, ‘मुझे आश्चर्य है कि उस समय सरकार ने इस पर ध्यान नहीं दिया, बैंकों ने इस पर ध्यान नहीं दिया. उस समय केंद्रीय बैंक क्या कर रहा था. नियामक होने के बावजूद वह सच्चाई पर परदा डाल रहा था.’

उन्होंने कहा, ‘और हमें बताया गया कि कुल एनपीए 2.5 लाख करोड़ रुपये है.लेकिन जब हमने 2015 में समीक्षा की तो यह 8.5 लाख करोड़ रुपये निकला.’

(समाचार एजेंसी आईएएनएस के इनपुट के साथ)

share & View comments