नई दिल्ली: केंद्र सरकार की तरफ से एक नया नेशनल करिकुलम फ्रेमवर्क (एनसीएफ) तैयार करने के लिए पिछले साल गठित विभिन्न समिति धार्मिक संगठनों के साथ विचार-विमर्श कर रही है ताकि पाठ्यक्रम ढांचे में उनके ‘सर्वोत्तम तरीकों’ को शामिल किया जा सके. दिप्रिंट को मिली जानकारी में यह बात सामने आई है.
इसके अलावा जिन अन्य समूहों के साथ परामर्श किया जा रहा है उनमें गैरसरकारी संगठन, कॉर्पोरेट जगत, शिक्षक, प्रशिक्षक और माता-पिता शामिल हैं.
एनसीएफ पूरे देश में स्कूली पाठ्यक्रम का एक खाका होगा. मौजूदा समय में भारत में संदर्भित करिकुलम फ्रेमवर्क 2005 का दस्तावेज है. 2020 में केंद्रीय कैबिनेट की तरफ से स्वीकृत नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) में एक नया एनसीएफ तैयार करने को कहा गया था.
एनसीएफ समिति का नेतृत्व भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के पूर्व अध्यक्ष के. कस्तूरीरंगन कर रहे हैं जिन्होंने एनईपी 2020 तैयार करने वाली इकाई का भी नेतृत्व किया था. यह सारी कवायद राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) की देखरेख में चल रही है जिस पर स्कूल स्तर का पाठ्यक्रम तय करने की जिम्मेदारी है.
एनसीईआरटी सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि समिति अब तक कम से कम 20 धार्मिक समूहों के साथ विचार-विमर्श कर चुकी है, जिनमें रामकृष्ण मिशन, चिन्मय मिशन, अरबिंदो आश्रम, सरस्वती विद्या मंदिर, चेन्नई स्थित दो ईसाई मिशनरी संगठन, देशभर में पंजीकृत मदरसों को चलाने वाला आलिम मदरसा और शैक्षणिक संस्थानों को चलाने वाले अन्य धार्मिक संगठन शामिल हैं.
इसकी पुष्टि करते हुए एनसीईआरटी के निदेशक दिनेश प्रसाद सकलानी ने दिप्रिंट को बताया, ‘एनसीएफ तैयार करना एक विस्तृत कवायद है और अधिक से अधिक समूहों के साथ चर्चा की जा रही है. समिति ने हाल में कई धार्मिक समूहों के साथ चर्चा की है ताकि पढ़ाई से जुड़े उनके श्रेष्ठ अभ्यासों को अपनाया जा सके.’
एनसीएफ की संचालन समिति ने अब तक ऐसी दो बैठकें की हैं. ताजा बैठक 28 जून को बेंगलुरु में की गई थी.
बैठक में मौजूद एक सूत्र के मुताबिक, विभिन्न धार्मिक समूहों ने अपने स्कूलों में अपनाए जाने वाले पढ़ाई के ‘सर्वोत्तम तरीकों’ पर प्रेजेंटेशन दिए, जैसे कि ‘वे सीधे समुदाय से कैसे जुड़ते हैं और किस तरह अपने छात्रों को पढ़ाते हैं.’
सूत्र ने कहा, ‘ये समूह बहुत-सी ऐसी चीजें लागू कर रहे हैं, जो पहले से ही एनईपी 2020 के अनुरूप हैं, जैसे कि छात्रों के संज्ञानात्मक कौशल पर ध्यान केंद्रित करना और उन्हें आध्यात्मिकता और नैतिक मूल्य सिखाना.’ साथ ही जोड़ा कि एनसीएफ संचालन समिति ऐसे विचारों को ‘समाहित’ करने पर विचार कर रहा है.
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फ्रेमवर्क तैयार करने का रोडमैप
अप्रैल में जारी एक मैंडेट डॉक्यूमेंट, जो एनसीएफ तैयार करने संबंधी रोडमैप है, में कहा गया कि नए पाठ्यक्रम का उद्देश्य ‘बुनियादी साक्षरता और संख्यात्मकता, संवैधानिक और अन्य मानवीय मूल्यों, जिसमें लैंगिक समानता शामिल है, 21वीं सदी की क्षमताएं, जैसे स्पीकिंग, राइटिंग, बहुभाषावाद, वैज्ञानिक सोच, कलात्मकता और सौंदर्यशास्त्र, प्रॉब्लम सॉल्विंग, सतत जीवन, सांस्कृतिक साक्षरता, सामाजिक-भावनात्मक क्षमताएं और जीवन भर सीखने की क्षमता विकसित करने और उच्च शिक्षा की तैयारी और लाभकारी रोजगार’ में छात्रों की मदद करने वाला होना चाहिए.’
रविवार को जारी एक प्रेस रिलीज में शिक्षा मंत्रालय ने बताया कि इस मामले में उसका जनता का फीडबैक लेने का भी इरादा है.
प्रेस नोट के मुताबिक, ‘भारत सरकार ने एक ऑनलाइन पब्लिक कंसल्टेशन सर्वे के माध्यम से विभिन्न हितधारकों के विचार आमंत्रित करने की योजना बनाई है, जो नेशनल करिकुलम फ्रेमवर्क तैयार करने और बाद में सिलेबस, पाठ्यपुस्तकों और अन्य निर्देशात्मक सामग्री को डिजाइन करने में बेहद उपयोगी और महत्वपूर्ण इनपुट मुहैया कराने वाला होगा.’
इसमें आगे कहा गया है, ‘शिक्षकों, प्रधानाध्यापकों/प्राचार्यों, स्कूल लीडर, शिक्षाविदों, अभिभावकों, छात्रों, सामुदायिक सदस्यों, गैरसरकारी संगठनों, विशेषज्ञों, जनप्रतिनिधियों, कलाकारों, कारीगरों, किसानों और स्कूली शिक्षा और टीचर एजुकेशन में रुचि रखने वाले किसी भी व्यक्ति सहित सभी हितधारकों को इस ऑनलाइन सर्वेक्षण में भाग लेने के लिए आमंत्रित किया जाता है.’
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