मुंबई: शिवसेना, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) और कांग्रेस के महा विकास अघाड़ी (एमवीए) और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के बीच एक कड़ी रस्साकशी, जो बुधवार को तीन-दलों की गठबंधन सरकार के गिरने के साथ खत्म हुई, के बाद अब महाराष्ट्र एक और राजनीतिक घमासान के लिए तैयार है.
शिवसेना बनाम शिवसेना वाले इस असामान्य टकराव में भाजपा एक तमाशबीन और सबसे ज्यादा फायदा उठाने वाली पार्टी होगी.
इस जंग में एक तरफ वो समूह है जो शिवसेना के बागी विधायक और नए मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे का समर्थक है, जो पूरी जोरदारी से पार्टी के 55 विधायकों में से 38 के अपने साथ होने का दावा करते हैं और खुद को असली शिवसेना बताते हैं. वहीं, दूसरी तरफ शिवसेना के वे सदस्य हैं जो पूर्व मुख्यमंत्री और शिवसेना अध्यक्ष उद्धव ठाकरे के प्रति निष्ठावान हैं.
पिछले दिनों एकनाथ शिंदे ने एमवीए सरकार के खिलाफ बागी शिवसेना विधायकों के एक समूह का नेतृत्व किया, और इसका नतीजा पार्टी के महाराष्ट्र विधानसभा में बहुमत गंवा देने के तौर पर सामने आया. इसने शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे को एक फ्लोर टेस्ट से पहले ही मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़ने पर बाध्य कर दिया, क्योंकि उन्हें पता था कि उनकी सरकार को हार का सामना करना पड़ेगा.
अब, मुख्यमंत्री शिंदे और उनके खेमे के 38 विधायक भाजपा के साथ सत्तारूढ़ गठबंधन का हिस्सा बन गए हैं, जबकि 16 अन्य विधायक विपक्ष का हिस्सा होंगे. दोनों ही पक्षों का दावा है कि वे असली शिवसेना हैं.
गौरतलब है कि पार्टी में इस दरार का असर सीधे तौर पर उसके जमीनी जनाधार पर भी पड़ेगा, कुछ कैडर अपने निर्वाचन क्षेत्र के विधायकों के साथ जा सकता है, और कुछ जगह बागी विधायक ठाकरे का समर्थन करने वालों का भरोसा गंवा सकते हैं.
ठाकरे खेमे के कई लोगों का कहना है कि यह टकराव इस साल मुंबई सहित कई प्रमुख नगर निगमों के आगामी चुनावों को एक कड़े मुकाबले में तब्दील कर देगा.
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शिवसेना और भाजपा समर्थित शिवसेना
भाजपा नेता और पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने गुरुवार को शिंदे के साथ एक संयुक्त प्रेस कांफ्रेंस को संबोधित करते हुए कहा कि उनकी पार्टी, जिसके पास शिंदे के 39 के मुकाबले 106 विधायक हैं, ने पूर्व एमवीए सरकार के शहरी विकास मंत्री को मुख्यमंत्री का पद देने का फैसला किया है.
इसके साथ ही, फडणवीस ने शिंदे के डिप्टी के रूप में शपथ ग्रहण की है.
राजनीतिक टिप्पणीकार प्रकाश बल ने दिप्रिंट को बताया, ‘शिंदे के लिए मुख्यमंत्री पद छोड़ने के पीछे भाजपा की असली रणनीति उद्धव ठाकरे को अलग-थलग करने की हो सकती है. माना जा रहा है कि एकनाथ शिंदे को मुख्यमंत्री बनाए जाने से विधायिका के अंदर और बाहर कई और शिवसैनिक उनके समर्थन में आ सकते हैं.’
उन्होंने कहा, ‘भाजपा यह भी कह सकती है कि उसने बालासाहेब के शिवसैनिक को मुख्यमंत्री बनाकर बाल ठाकरे के सपने को कैसे पूरा किया है और इसका इस्तेमाल वह शिवसेना पर कटाक्ष के लिए भी कर सकती है.’
एमवीए से अलग होने के बाद से ही शिवसेना के संस्थापक बाल ठाकरे की विचारधारा को आगे बढ़ाने का दावा कर रहे शिंदे ने फडणवीस के इस ऐलान के साथ ही एक बार फिर बाल ठाकरे की विरासत पर दावेदारी जताने की कोशिश की.
उन्होंने प्रेस कांफ्रेंस में कहा, ‘संख्या बल के लिहाज से भाजपा मुख्यमंत्री का पद ले सकती थी, लेकिन उन्होंने (भाजपा ने) उदारता दिखाई और बालासाहेब के एक शिव सैनिक को मुख्यमंत्री बना दिया.’
हालांकि, शिंदे खेमे ने इस बात को भी रेखांकित किया कि उद्धव ठाकरे को दरकिनार करने या फिर उन्हें मुख्यमंत्री पद से हटाने का उनका कोई इरादा नहीं था.
गोवा, जहां बागी विधायकों ने अभी डेरा डाल रखा है, में एक प्रेस कांफ्रेंस मेंविधायक दीपक केसरकर ने कहा, ‘सभी विधायकों के मन में अभी भी उद्धव साहब के लिए वही प्यार और सम्मान है जो हमेशा रहा है. हमारा मुद्दा सिद्धांतों की राजनीति से जुड़ा था. हमारा मकसद उद्धव ठाकरे को मुख्यमंत्री पद से हटाना नहीं था. यह सब एमवीए के खिलाफ था.’
केसरकर ने जोर देकर कहा कि ‘उद्धव साहब को किसी तरह की चोट पहुंचाने का हमारा कोई इरादा नहीं था.’
उन्होंने कहा, ‘हमारा हर विधायक इस बात से बेहद व्यथित है कि कांग्रेस और एनसीपी के खिलाफ हमारी लड़ाई में हमें परोक्ष रूप से अपने ही नेता से लड़ना पड़ा.’
हालांकि, शिवसेना सांसद विनायक राउत ने कहा कि बागी हमेशा मुख्य पार्टी के लिए ‘विद्रोही’ ही रहेंगे. उन्होंने कहा, ‘यह सब भाजपा का गेम प्लान था और दुर्भाग्य से हमारे कुछ नेता इसके शिकार हो गए हैं. चाहे वे वहां बैठें या हमारे साथ, ये हमारे लिए विद्रोही ही रहेंगे.’
राउत ने दावा किया कि भाजपा यह सब आगामी मुंबई निकाय चुनावों को ध्यान में रखकर कर रही है. उन्होंने कहा, ‘एक बार अपना उद्देश्य पूरा हो जाने के बाद वे न केवल बागी समूह बल्कि एकनाथ शिंदे का सियासी करियर भी खत्म कर देंगे.’
उन्होंने दिप्रिंट को बताया, ‘तथ्य यह है कि अधिकांश विधायकों के उनके साथ चले जाने का मतलब यह नहीं है कि शिवसेना चली गई है. हम अब भी अस्तित्व में हैं और एक बार फिर से अपने दम पर खड़े होने के लिए कड़ी मेहनत करेंगे.’
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शिवसेना पर दावेदारी
चुनाव चिह्न (आरक्षण और आवंटन) आदेश, 1968 के मुताबिक, चुनाव आयोग किसी पार्टी के अलग हुए धड़े के पक्ष में फैसला ले सकता है और उसे पार्टी के चुनाव चिन्ह अपनाने की अनुमति दे सकता है, या फिर ‘मामले में सभी उपलब्ध तथ्यों और परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए और ऐसे समूहों के प्रतिनिधियों और अन्य व्यक्तियों का पक्ष सुनने के बाद इसके उलट फैसला भी ले सकता है.’
इसके मुताबिक, ‘आयोग का निर्णय ऐसे सभी प्रतिद्वंद्वियों या समूहों के लिए बाध्यकारी होगा.’
प्रकाश बल ने कहा, ‘व्यापक स्तर पर पार्टी अभी भी उद्धव ठाकरे के साथ है. तकनीकी तौर पर असली शिवसेना कौन है अब एक लंबी लड़ाई होगी जिसे केवल अदालत में सुलझाया जा सकता है.’
राजनीतिक टिप्पणीकार ने कहा, ‘तब तक सरकार अस्थिर बनी रहेगी. शिंदे के साथ आए विधायक अधर में होंगे या उन्हें किसी पार्टी में विलय करना होगा.’
ठाकरे के इस्तीफे और शिंदे के मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ लेने से पहले शिवसेना ने पिछले हफ्ते कुछ बागी विधायकों को अयोग्य घोषित करने की मांग की थी. सुप्रीम कोर्ट ने अयोग्यता की कार्यवाही पर 11 जुलाई तक रोक लगा रखी है.
ठाकरे खेमे से शिवसेना के एक सूत्र ने कहा कि शिंदे सरकार का अपना अध्यक्ष होगा जो अयोग्यता याचिकाओं पर बागियों के पक्ष में फैसला कर सकता है. उन्होंने कहा, ‘इससे भी बड़ी बात यह है कि वे हमारे 16 विधायकों को पार्टी व्हिप का पालन नहीं करने के लिए अयोग्य घोषित करार देने जैसा कदम उठा सकते हैं. हमें देखना होगा कि आगे सब चीजें कैसे चलती हैं.’
शिवसेना सांसद विनायक राउत ने कहा कि बागियों की अयोग्यता का मुद्दा अभी सुप्रीम कोर्ट में है और पार्टी को न्यायपालिका में पूरा भरोसा है. उन्होंने कहा, ‘उनके पास अपना स्पीकर हो सकता है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि पूरी न्यायिक व्यवस्था ध्वस्त हो गई है.’
पार्टी पर क्या होगा असर
पार्टी नेताओं का कहना है कि बगावत निश्चित तौर पर शिवसेना के लिए वापसी और यहां तक कि आगामी निकाय चुनावों की तैयारी को कठिन बना देगी, लेकिन उद्धव ठाकरे के पक्ष में सहानुभूति लहर मददगार हो सकती है.
शिवसेना के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने दिप्रिंट को बताया, ‘एक दिन सुबह तक विधायक रवींद्र फाटक हमारे साथ बैठे थे. और शाम को पता लगा कि वह बागी विधायकों के खेमे में चले गए हैं. यह सब हमारे लिए अपने लोगों, अपने कैडर पर भरोसा करना मुश्किल बना रहा है. चुनावी तैयारी में हमें पहले यह ठीक से पता करना होगा कि कौन हमारे साथ है और कौन उनके (शिंदे कैंप) के साथ है.’
नाम न छापने की शर्त पर मुंबई के एक अन्य पार्टी नेता ने कहा कि मुंबई का पूरा कैडर उद्धव के साथ है, लेकिन ठाणे, जो शिंदे का गढ़ है और मराठवाड़ा जैसी जगहों पर थोड़ी मुश्किल होगी, जहां अच्छा-खासा दबदबा रखने वाले तमाम विधायकों ने बगावत कर दी है.
नेता ने कहा, ‘मराठवाड़ा में औरंगाबाद का नाम संभाजीनगर करने जैसे एमवीए सरकार के आखिरी कैबिनेट फैसलों से नुकसान की कुछ भरपाई तो हो जाएगी, लेकिन कुल मिलाकर महाराष्ट्र भर में आगामी नगरपालिका चुनाव काफी महत्वपूर्ण होंगे.’
उन्होंने आगे कहा, ‘लेकिन सबने देखा है कि उद्धव साहब के साथ कैसा व्यवहार किया गया, और इस्तीफे के मौके पर उनके भाषण ने न केवल शिवसैनिकों को बल्कि एक बड़ी आबादी को भी भावुक कर दिया. लोग यह सब याद रखेंगे.’
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