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Friday, 22 November, 2024
होममत-विमत#मीटू के इस दौर में अंग्रेजों के जमाने वाले आपराधिक मानहानि कानून को भी ख़त्म किया जाय

#मीटू के इस दौर में अंग्रेजों के जमाने वाले आपराधिक मानहानि कानून को भी ख़त्म किया जाय

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आपराधिक मानहानि का सहारा लेकर पहले अंबानी और अडानी अपनी आलोचना करने वालों को चुप कराते थे. अब अकबर और आलोक नाथ इसका इस्तेमाल #मीटू के खिलाफ कर रहे ​हैं.

आपराधिक मानहानि को खत्म करने की मांग करने वाले अभियान को पुनर्जीवित करने का अब से बेहतर समय कोई और नहीं होगा.

यौन उत्पीड़न के कई आरोपों के चलते अपने मंत्री पद से इस्तीफा देने के वाले पूर्व केंद्रीय मंत्री एमजे अकबर ने पत्रकार प्रिया रमानी के खिलाफ अदालत में आपराधिक मानहानि का मामला दायर कर रखा है.

अकबर के वकीलों को मानहानि याचिका स्वीकार कराने के लिए अदालत में जज समर विशाल को सिर्फ इतना दिखाना पड़ा कि रमानी द्वारा किया गया ट्वीट ज्यादा बार रिट्वीट होने के चलते बहुत सारे लोगों के पास पहुंच गया है. यह दिखाता है कि उन लोगों परेशान करना कितना आसान है जो बोलने की हिम्मत करते हैं.

आपराधिक मानहानि का सहारा लेकर पहले अंबानी और अडानी अपनी आलोचना करने वालों को चुप कराते थे. अब अकबर और आलोकनाथ इसका इस्तेमाल #मीटू के खिलाफ कर रहे ​हैं.

यह #मीटू ​अभियान को खत्म कर सकता है जिसके जरिए तमाम बाधाओं के बावजूद महिलाएं अपने शोषण की कहानियां दुनिया को बता रही हैं. दशकों से, महिलाओं की इस पीड़ा को सुनने के कुछ ही तरीके थे, लेकिन सोशल मीडिया ने खेल के नियमों को बदल दिया है.

ताकतवर लोगों को बेनकाब करने के सिर्फ एक ट्वीट और एक हैशटैग ही काफी है और इसने यौन उत्पीड़कों को गंभीर संदेश दिया है. रमानी और एक दर्जन से अधिक महिलाओं ने अकबर पर जिस अपराध का आरोप लगाया है वह उन्हें तीन साल तक जेल की सजा दिला सकता है. यह सिर्फ ​चरित्र हनन करने का प्रयास नहीं है. लेकिन कानून अकबर को यह छूट देता है कि वह रमानी को एक केस दायर करके धमका सके जिसमें उन्हें दो साल तक की सजा हो सकती है.

प्रतिष्ठा के नुकसान की भरपाई करने के लिए नागरिक उपचार (सिविल रेमेडी) मौजूद है और झूठे आरोप बनाने वालों के खिलाफ भारी जुर्माने का भी प्रावधान है. हालांकि आपराधिक उपचार (क्रिमिनल रेमेडी) का मतलब जेल की अवधि होगी, जो शारीरिक रूप से आरोप बनाने वालों की स्वतंत्रता को सीमित कर रहा है.

आपराधिक मानहानि भी समस्याग्रस्त है क्योंकि यह इस अनुमान पर आधारित होती है कि प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाने के इरादे से दुर्भावनापूर्ण बयान दिए गए. ऐसे मामलों में शायद ही कभी सजा होती है लेकिन यह पूरी प्रक्रिया ही अपने आप में सजा है.

एमजे अकबर के खिलाफ बहुत सारी महिलाओं ने समान आरोप लगाया था लेकिन सिर्फ प्रिया रमानी के खिलाफ केस दायर करके उन्होंने अपनी मंशा जाहिर कर दी है. यह परेशान करने, डराने और आवाजों को चुप करना है.

बेंगलुरु में रहने वाली रमानी को अदालती कार्यवाही में भाग लेने के लिए दिल्ली आना होगा जो सांसद एमजे अकबर के लिए पांच मिनट की दूरी पर है. इससे भी बदतर यह है कि अकबर को कार्यवाही में भाग लेने की भी आवश्यकता नहीं होगी और वकीलों की उनकी टीम उनके लिए इसे संभालेगी.आरोपित किए गए लोगों के लिए व्यक्तिगत उपस्थिति से छूट संभव है, लेकिन यह न्यायाधीश के विवेकाधिकार पर निर्भर करती है.

2016 में सुप्रीम कोर्ट के पास यह मौका था कि वह भारतीय दंड संहिता की धारा 500 को रद्द कर दे जो आपराधिक मानहानि को दो साल की जेल की अवधि के साथ दंडनीय अपराध बनाता है.

लेकिन न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने कानून को बरकरार रखा है जो मानहानि को आपराधिक अपराध बनाता है. और यह निर्णय दिया कि बोलने की आजादी के अधिकार पर इससे फर्क नहीं पड़ता है. फ्री स्पीच के महत्व को समझने में संदिग्ध ट्रैक रिकॉर्ड वाले दीपक मिश्रा ने अपने फैसले में प्रतिष्ठा के अधिकार को मौलिक अधिकार के बराबर समझा. कई कानूनी जानकारों ने इस फैसले में हुए त्रुटियों की ओर इशारा भी किया ​था.

भारत आपराधिक मानहानि जारी रखने में पाकिस्तान, बांग्लादेश, तुर्की और दक्षिण अमेरिकी तानाशाही वाले देशों में शुमार है. भारत के समान ब्रिटिश औपनिवेशिक विरासत वाले जिम्बाब्वे ने 2016 में आपराधिक मानहानि को असंवैधानिक घोषित कर दिया.

2016 में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के बावजूद आपराधिक मानहानि को खत्म करने का एक और प्रयास करने लायक है. सुप्रीम कोर्ट ने धारा 377 को खत्म के दौरान यह भी घोषित किया कि औपनिवेशिक कानूनों को स्वचालित रूप से मान्य और संवैधानिक नहीं माना जाएगा. इससे अदालत ने व्यभिचार को खत्म करने में मदद की. भारतीय दंड संहिता की धारा 499 और 500 जो कि आपराधिक मानहानि के लिए जेल की अवधि को परिभाषित और लागू करती है, उस श्रेणी के अंतर्गत आती है.

सांसद तथागत सतपथी ने पिछले साल संसद में आपराधिक मानहानि को रद्द करने के लिए प्राइवेट मेंबर बिल पेश किया था. आपराधिक मानहानि कानूनी डरावनी रणनीति के अलावा कुछ भी नहीं है और यह समय इस इस औपनिवेशिक कानून को खत्म किए जाने का है.

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