नई दिल्ली: वरिष्ठ अधिवक्ता राहुल मेहरा का कहना है कि खेल संस्थाएं असीमित कार्यकाल का आनंद लेने वाले व्यक्तियों की ‘निजी जागीर’ बन गई हैं. इस मुद्दे पर लेकर अभियान चला रहे मेहरा का तर्क है कि केंद्र सरकार को न्यायिक दखल से बचने के लिए राष्ट्रीय खेल महासंघों (एनएसएफ) से संबंधित अपने खुद के कानूनों पर अमल सुनिश्चित करना चाहिए.
3 जून को जस्टिस नजमी वजीरी की अध्यक्षता वाली दिल्ली हाईकोर्ट की बेंच ने मेहरा की तरफ से दायर एक जनहित याचिका (पीआईएल) पर अपना आदेश सुनाते हुए केंद्र सरकार को निर्देश दिया कि भारतीय राष्ट्रीय खेल विकास संहिता (एनएससीआई) का अनुपालन न करने वाले खेल महासंघों को वित्तीय सहायता देना बंद किया जाए.
मेहरा ने 2020 में दायर अपनी याचिका में मांग की है कि एसएसएफ अदालत के 2014 के उस फैसले का पालन करें जिसमें एनएससीआई को घोषित तौर पर देश में खेल निकायों से संबंधित कानून माना गया है.
आम तौर पर खेल संहिता कहे जाने वाले इन नियमों में उन आदेशों को समाहित किया गया है जो भारत सरकार ने 1975 से देश में एनएसएफ के लिए जारी किए हैं.
दिशानिर्देशों के एक खंड में कहा गया है कि खेल संघों को यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि उनके 25 प्रतिशत सदस्य मताधिकार के साथ ‘उत्कृष्ट योग्यता वाले प्रतिष्ठित खिलाड़ी’ हों.
मेहरा की याचिका में दावा किया गया है कि भारत में अधिकांश खेल निकाय इस प्रावधान का पालन नहीं करते हैं.
मेहरा ने बुधवार को दिप्रिंट को दिए एक वीडियो इंटरव्यू में कहा कि खेल एक ऐसा क्षेत्र है जहां ‘आप एक खिलाड़ी के अलावा कोई भी हो सकते हैं.’ और फिर ‘खेल निकाय और (सचिन) तेंदुलकर, अभिनव बिंद्रा और नीरज चोपड़ा से लेकर किसी भी स्तर तक के खिलाड़ी पर’ पूर्णतया शासन के हकदार होंगे.
पिछले पांच महीनों के दौरान कम से कम तीन खेल निकाय—टेबल टेनिस फेडरेशन ऑफ इंडिया (टीटीएफआई), अखिल भारतीय फुटबॉल महासंघ (एआईएफएफ), और हॉकी इंडिया—कोर्ट की तरफ से नियुक्त प्रशासकों की समिति (सीओए) के अधीन आ चुके हैं.
यह पूछे जाने पर कि क्या न्यायिक हस्तक्षेप आवश्यक है और क्या अदालतें प्रशासकों के माध्यम से खेल निकायों को चलाने के लिए अधिकृत हैं, मेहरा ने कहा, ‘अगर खेल महासंघ अपना काम ठीक से करें तो अदालतें हस्तक्षेप नहीं करेंगी.’
मेहरा ने एनएसएफ में पारदर्शिता का अभाव बढ़ने के लिए केंद्र सरकारों को ही जिम्मेदार ठहराया.
2014 में एक पीठ, जिसमें जस्टिस वजीरी शामिल थे, ने कहा था कि सरकार ‘कानूनी मदद के बिना इन प्रावधानों (खेल संहिता) के अनुपालन’ पर जोर दे सकती है. कोर्ट ने तब कहा था कि खेल संहिता के प्रावधान ‘न तो मनमाने’ हैं और न ही ‘संविधान के तहत प्रदत्त किसी भी तरह की स्वतंत्रता’ का उल्लंघन करते हैं.
इस साल अप्रैल में केंद्रीय युवा मामले और खेल मंत्रालय ने खेल महासंघों को चेतावनी दी थी कि उन्होंने अभी तक खेल संहिता का पालन नहीं किया है और वह कोई अगली कार्रवाई करने से पहले ‘केवल दो और रिमाइंडर’ भेजेगा.
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‘शुतुरमुर्ग जैसा दृष्टिकोण’
केंद्रीय खेल मंत्रालय ने 3 जून को कोर्ट को बताया कि 15 खेल महासंघों ने पूरी तरह से खेल संहिता का अनुपालन सुनिश्चित किया है, छह को संहिता के कुछ प्रावधानों से छूट दी गई और तीन एनएसएफ का कामकाज न्यायिक आदेशों के तहत प्रशासकों की एक समिति (सीओए) संभाल रही है.
सरकार ने सुनवाई के दौरान यह भी बताया था कि पांच एनएसएफ को खेल संहिता का पालन करने के लिए मामूली बदलाव करने की जरूरत है, जबकि 17 को व्यापक स्तर पर उपाय करने होंगे.
मेहरा ने दिप्रिंट को बताया कि खेल महासंघों के मामलों में न्यायिक हस्तक्षेप पिछले आठ वर्षों में यानी 2014 के आदेश के बाद से ही शुरू हुआ है. उन्होंने खेल निकायों को जवाबदेह नहीं ठहराने को लेकर केंद्र की सरकारों पर ‘शुतुरमुर्ग जैसा दृष्टिकोण’ अपनाने का आरोप लगाया. उन्होंने कहा कि खेल निकायों से ‘70 सालों’ तक कोई जवाब ही नहीं मांगा गया.
उन्होंने कहा, ‘और जब ऐसी स्थिति आई तो वे ताश के पत्तों की तरह ढह गए. केंद्र सरकार, और मुझे गलती किसी एक पक्ष की नहीं लगती है बल्कि इसके लिए सबकी मिलीभगत जिम्मेदार है जिसने (खेल निकायों) को खेलों के मामले में पक्षपात का खेल खेलने की अनुमति दी. एक तरह से इसने भाई-भतीजावाद को भी जारी रहने दिया.’
उन्होंने बताया कि उनका मामला ‘केंद्र सरकार की संहिता के संरक्षण’ से जुड़ा था, जिसे दिल्ली हाईकोर्ट ने खेल निकायों को नियंत्रित करने वाला कानून घोषित किया था.
उन्होंने कहा, ‘(खेल) संहिता में स्पष्ट है कि क्या करें और क्या न करें, और अगर कोई निकाय इसका पालन नहीं कर रहा है तो सरकार को पता है कि उसे क्या करना चाहिए. सरकार को अपनी खुद की खेल संहिता का पालन कराना चाहिए और इसे बिना कोई चेहरा देखे (कि कौन निकाय का मुखिया है) इसे लागू करना चाहिए.’
मेहरा ने जोर देकर कहा कि राजनेताओं को खेल निकायों से बाहर रखा जाना चाहिए.
उन्होंने कहा, ‘राजनेताओं को खेलों से जुड़े मुफ्त उपहार और अन्य तरह का लाभ काफी आकृष्ट करते हैं, जो आप को नहीं दिखते. यह (खेल) एक बेहद पवित्र क्षेत्र है और किसी को इस पर कोई राजनीति नहीं करनी चाहिए.’
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