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Friday, 22 November, 2024
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श्रीलंका में मोदी पर लगा अडानी के प्रोजेक्ट को आगे बढ़ाने का आरोप, गोटाबाया के इनकार के बाद बयान वापस

सरकारी स्वामित्व वाले सीलोन इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड के चेयरमैन ने दावा किया था कि नई दिल्ली ने विंड पॉवर प्रोजेक्ट का कांटैक्ट अडानी समूह को देने के लिए श्रीलंका पर दबाव डाला था.

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नई दिल्ली: सीलोन इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड (सीईबी) के चेयरमैन की तरफ से यह आरोप लगाए जाने के दो दिन बाद कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक विंड पॉवर प्रोजेक्ट का कांट्रैक्ट अडानी समूह को देने के लिए श्रीलंका सरकार पर दबाव डाला था, राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे ने इन आरोपों को खारिज कर दिया. इसके बाद सीबीई चेयरमैन ने भी अपनी टिप्पणी को वापस ले लिया है.

सीईबी चेयरमैन एम.एम.सी. फर्डिनेंडो ने अपनी टिप्पणी पर विवाद काफी बढ़ जाने के बाद शनिवार देर एक बयान जारी किया और एक दिन पहले संसदीय समिति की बैठक में की गई टिप्पणी को वापस ले लिया.

फर्डिनेंडो ने बयान में कहा कि वह अपनी गवाही के दौरान खुद पर लगे ‘बेवजह के आरोपों और दबाव के कारण भावुक’ हो गए थे.

स्थानीय मीडिया रिपोर्टों ने फर्डिनेंडो के हवाले से कहा, ‘अप्रत्याशित और असीमित दबाव के कारण मेरा अपनी भावनाओं पर नियंत्रण नहीं रहा और मैं ‘इंडिया अगमथी बाला कारा बावा किवा’ (भारत के प्रधानमंत्री ने जोर दिया था) जैसे शब्द बोलने को मजबूर हो गया, जो पूरी तरह गलत हैं. इसलिए मैं अपना यह बयान वापस लेना चाहता हूं और बिना शर्त माफी मांगता हूं.’

फर्डिनेंडो ने कहा, ‘10 जून 2022 को सीओपीई (सार्वजनिक उद्यमों पर संसदीय समिति) की बैठक में मुझे मन्नार और पूनरिन में अडानी ग्रीन एनर्जी लिमिटेड के साथ प्रस्तावित 500 मेगावाट की अक्षय ऊर्जा परियोजनाओं के संदर्भ में मेरे ऊपर लगाए जा रहे आरोपों का जवाब देना था और मैंने दिनांक 25 नवंबर 2021 के अपने पत्र के पीछे की परिस्थितियों के बारे में बताया.’

सरकारी स्वामित्व वाले सीईबी—जो श्रीलंका में सबसे बड़ी बिजली उत्पादन और वितरण कंपनी है—के चेयरमैन ने अपनी टिप्पणी के लिए माफी मांगी है. राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे इससे पहले ही फर्डिनेंडो की तरफ से किए गए दावों को खारिज कर चुके हैं.

राजपक्षे ने 11 जून को एक ट्वीट में लिखा, ‘मैं स्पष्ट रूप से किसी विशिष्ट व्यक्ति या संस्था को यह प्रोजेक्ट दिए जाने की बात से इनकार करता हूं. मुझे विश्वास है कि इस संबंध में जिम्मेदाराना ढंग से कम्युनिकेशन जारी किया जाएगा.’

 

दूसरी ओर, नई दिल्ली की तरफ से अभी तक उस टिप्पणी पर कोई आधिकारिक बयान जारी नहीं किया है, जिसे फर्डिनेंडो अब वापस ले चुके हैं.

अपनी पहचान जाहिर करने से इनकार करते हुए एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया कि सीईबी चेयरमैन के दावे ‘निराधार’ थे. साथ ही जोड़ा कि प्रोटोकॉल के तहत, गवर्नमेंट-टू-गवर्नमेंट और राष्ट्राध्यक्षों के बीच भी होने वाली महत्वपूर्ण चर्चाओं को ‘नोट और रिकॉर्ड’ किया जाता है.

10 जून को सीओपीई के समक्ष अपने बयान में फर्डिनेंडो ने कहा था कि श्रीलंका के राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे ने उन्हें पिछले साल 24 नवंबर को तलब किया था. उन्होंने आगे दावा किया कि राजपक्षे ने कहा था कि ‘भारत के प्रधानमंत्री मोदी उन पर अडानी समूह को प्रोजेक्ट सौंपने का दबाव बना रहे हैं.’

फर्डिनेंडो ने इससे पहले संसदीय समिति की बैठक में कहा था, ‘मैं कह चुका हूं कि यह मामला मुझसे संबंधित नहीं है. मेरा कहना है कि मामला मुझसे या सीईबी से संबंधित नहीं है और यह निवेश बोर्ड से संबंधित है…मैंने बताया है कि यह दोनों सरकारों के बीच हुआ करार है… एमओयू (मेमोरेंडम ऑफ अंडरस्टैंडिंग) में सीईबी ने निकासी संबंधी एक क्लॉज डाला और फिर कंपनी (अडानी) को अपने खर्च पर व्यवहार्यता अध्ययन की अनुमति दी.’

अडानी समूह ने कथित तौर पर पिछले साल दिसंबर में दो विंड पॉवर प्रोजेक्ट का अनुबंध हासिल किया था, जिसमें एक मन्नार में और दूसरा पूनरिन में विकसित किया जाना था. अडानी समूह की एक सहायक कंपनी अडानी ग्रीन एनर्जी ने इस संबंध में श्रीलंका निवेश बोर्ड और सीईबी को अपना प्रस्ताव पेश किया था.

2021 में अडानी समूह ने रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण कोलंबो पोर्ट के वेस्ट इंटरनेशनल कंटेनर टर्मिनल को विकसित करने और चलाने के लिए सरकार संचालित श्रीलंका पोर्ट्स अथॉरिटी (एसएलपीए) के साथ 700 मिलियन डॉलर के सौदे पर हस्ताक्षर किए थे.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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