नई दिल्ली: ‘जब कोई महिला रैविश्ड (बलात्कार की शिकार) होती है तो उसे केवल शारीरिक चोट ही नहीं पहुंचती है, बल्कि शर्म की भावना भी गहराई तक घर कर जाती है.’
‘…जब हमारी महिलाएं रैविश्ड होती हैं तो इस तरह से प्रतिक्रिया नहीं करती हैं.’
‘रैविश्मेंट के मामले में वर्जिन लड़कियों, अविवाहित या विवाहित महिलाओं के प्रतिरोध करने पर जननांगों के बाहर, पेरिनीअम, पेट, छाती, पीठ, गर्दन और चेहरे आदि अंगों पर हिंसा के निशान, जैसे नील पड़ जाना, नाखूनों की खरोंच आदि पाए जाते हैं. सकिंग प्रेशर और दांतों के काटे जाने के कारण गाल, गर्दन, जांघों आदि पर लव बाइट के निशान भी मिलते हैं.’
ये भारतीय अदालतों के कुछ फैसलों के हिस्से हैं जो उन्होंने पिछले कुछ सालों में बलात्कार और यौन उत्पीड़न के मामलों में जारी किए थे.
देशभर के न्यायाधीश अक्सर अपने फैसलों में बलात्कार के संदर्भ में ‘रैविश्ड’ या ‘रैविश्मेंट’ शब्द इस्तेमाल करते रहे हैं. शब्दकोश की बात करे तो इस शब्द का मायने न केवल ‘पकड़ना और जबरन दूर ले जाना’ और बलात्कार करना होता है, बल्कि ‘भावनाओं (खुशी या उत्साह) का उबाल’ भी होता है.
कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि भले ही अमूमन इस शब्द को ‘रोमांटिक अर्थों’ में इस्तेमाल किया जाता हो, भाषा और इतिहास के साक्ष्य बताते हैं कि यह ‘पुरातन’ शब्द बलात्कार के पर्याय के रूप में इस्तेमाल किया जाता रहा है.
इस शब्द का इस्तेमाल ऐसे समय शुरू हुआ था जब महिलाओं को ‘संपत्ति के रूप में देखा गया’, और इसलिए इसका इस्तेमाल ‘किसी महिला की सेक्सुअलटी को संपत्ति मानने वाली धारणा’ को ही आगे बढ़ाता है.
हाल के महीनों में कई विशेषज्ञों ने जोर देकर कहा है कि ‘इस पुरातन और पितृसत्तात्मक समानार्थक शब्द का उपयोग (फैसलों में) किए जाने का विरोध किया जाना चाहिए, और कानूनी भाषा के संदर्भ में ‘समय आ गया है कि हम इन पुरातन, द्वेषपूर्ण और अस्पष्ट शब्दों का इस्तेमाल बंद कर दें.’
अदालतों में इस तरह की भाषा का इस्तेमाल रोकने की मांग ने खासकर ऐसे समय पर जोर पकड़ा है जब पिछले महीने ही एक जज ने वैवाहिक बलात्कार के विषय पर चर्चा के दौरान ‘रैविशिंग’ शब्द का इस्तेमाल किया.
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‘एक रोमांटिक शब्द’
‘रैविश्ड’ शब्द की उत्पत्ति लैटिन के ‘रैपेरे’ और ‘रैपटस’ से हुई है. दोनों शब्दों का अर्थ है जब्त होना या जब्त करना. मरियम-वेबस्टर डिक्शनरी बताती है कि यह शब्द लैटिन के रैपरे से बना है, जिसका अर्थ है ‘जब्त करना और ले जाना, बलपूर्वक ले जाना, किसी महिला को यौन उत्पीड़न के इरादे से ले जाना.’
ब्लैक लॉ डिक्शनरी के प्रधान संपादक ब्रायन ए. गार्नर अपनी किताब में स्पष्ट करते कि कैसे तकनीकी या कानूनी संदर्भ में यह शब्द बलात्कार के लिए इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए, क्योंकि ‘यह रोमांटिक अर्थों में इस्तेमाल होता है.’
अपनी किताब, ‘गार्नर्स मॉडर्न इंग्लिश यूसेज’ में, वह बताते हैं कि रैविश का अर्थ न केवल ‘रेप करना’ है, बल्कि ‘परमानंद या आनंद से भर देना’ भी है, और इसलिए ‘इस कृत्य (बलात्कार के) को दर्शाने वाले शब्द से आक्रोश झलकना चाहिए; उस तरह की कोई रोमांटिक अमूर्तता नहीं होनी चाहिए, जैसी रैविश से जाहिर होती है.’
जहां तक अदालतों में इस शब्द के इस्तेमाल की बात है, वरिष्ठ अधिवक्ता रेबेका जॉन ने दिप्रिंट को बताया, ‘ऐतिहासिक काल से बलात्कार के बजाये रैविश्ड शब्द के इस्तेमाल ने यौन उत्पीड़न और हिंसा के अपराध को अस्पष्ट कर दिया है, इसने इसे किसी ऐसी चीज का रंग दे दिया जो मर्दाना और स्वीकार्य थी. और यहां तक कि साहित्यिक अलंकारों में भी इसका इस्तेमाल किया गया.’
पूर्व जज और दिल्ली हाई कोर्ट में वकील भरत चुग भी जॉन की राय से सहमति जताते हैं. उन्होंने दिप्रिंट को बताया, ‘यह न केवल एक बेहद पुरातन शब्द है, जो महिलाओं की सेक्सुअलटी को संपत्ति मानने की गलत धारणाओं को सामने लाता है, बल्कि इसके उपयोग से अनावश्यक अस्पष्टता और भ्रम भी उत्पन्न होता है.’
उन्होंने कहा, ‘जब विधायिका और अदालतों ने—अपने सामूहिक विवेक से—इस अपराध को ‘सेक्सुअल अटैक’ के रूप में वर्णित किया है तो कुछ और नहीं तो फैसलों को स्पष्ट और सटीक ढंग से जाहिर करने के लिए ही सही यही शब्द प्रयोग किया जाना चाहिए. यह इस बात को भी सुनिश्चित करता है कि हम कतई असंवेदनशील नहीं हैं और इस तरह के सबसे जघन्य अपराध को मामूली नहीं मानते हैं.’
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‘चोरी का भी एक रूप’
‘रैपटस’ शब्द के कई अर्थों और उपयोग ने मध्यकालीन इंग्लैंड में भी कानूनी मामलों में ‘बलात्कार और अपहरण के बीच भ्रम’ की स्थिति उत्पन्न की थी.
इसके बाद, इंग्लैंड ने ‘रैविश्मेंट’ शब्द के इस्तेमाल को प्रतिबंधित करने वाले कानून पारित किए, क्योंकि शोधकर्ताओं के मुताबिक, यह शब्द यौन उत्पीड़न या बलात्कार और महिलाओं के अपहरण के बीच स्पष्ट तौर पर कोई अंतर नहीं करता था.
यद्यपि इन कानूनों ने रेप को महिलाओं के खिलाफ हिंसा के अपराध के रूप में स्वीकारा है, लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि इसे ‘चोरी का एक रूप’ भी माना जाता था जिसमें महिलाओं की सहमति काफी हद तक अप्रासंगिक थी. ऐसे मामलों में प्राथमिक तौर पर पति या पिता को शिकार माना जाता था, न कि बलात्कार की शिकार महिलाओं को. सुसान ब्राउनमिलर ने अगेंस्ट अवर विल: मेन, वीमेन एंड रेप नामक किताब में लिखा है, कहा जाता है कि रेप शब्द को ‘बैकडोर से कानूनी शब्दावली में लाया गया….जो किसी पुरुष के खिलाफ पुरुष द्वारा किया गया संपत्ति अपराध था. इसमें महिला को, निश्चित तौर पर किसी संपत्ति के रूप में देखा गया.’
फिर, 1872 में जब सर जेम्स स्टीफन ने भारतीय साक्ष्य अधिनियम का मसौदा तैयार किया, तो यह शब्द भारतीय कानून की किताबों में भी आ गया.
अधिनियम की धारा 155 (4)—जैसी उस समय थी—कहती थी कि ‘जब किसी व्यक्ति पर रेप या रैविश के प्रयास का मुकदमा चलाया जाता है, तो आमतौर पर ऐसा माना जा सकता है कि अभियोजन पक्ष का चरित्र अनैतिक था’, ऐसे में उसकी गवाही कोई मायने नहीं रखती.
आरोपी के मामले में स्थिति एकदम विपरीत थी. धारा 53 कहती थी कि ‘आपराधिक कार्यवाही में, यही तथ्य प्रासंगिक है कि आरोपी व्यक्ति अच्छे चरित्र का है. धारा 54 ने भी उसके ‘बुरे चरित्र’ को अप्रासंगिक बना दिया.
साक्ष्य अधिनियम से धारा 155(4) को हटाने के लिए भारत के विधि आयोग की दो रिपोर्टें और विभिन्न संगठनों के सुझाव लिए गए. आखिरकार इस प्रावधान में इसके पेश होने के 130 साल बाद 2002 में संशोधन के जरिये बदलाव हो पाया.
हालांकि, 1872 के कानून में कम से कम चार अन्य स्थानों पर ‘रैविश्ड’ शब्द का इस्तेमाल है, जो प्रावधानों से संबद्ध इलेस्ट्रेशन में शामिल हैं. उदाहरण के तौर पर कानून की धारा 8 के साथ जुड़े एक इलेस्ट्रेशन—जो मकसद, तैयारी और कृत्य के पहले और बाद के आचरण की व्याख्या करता है—में कहा गया है, ‘सवाल यह है कि क्या ‘ए’ को रैविश्ड किया गया.’ और फिर यह बताता है कि ए’ के साथ कथित तौर पर रेप के बाद किस तरह का आचरण प्रासंगिक है.
‘किसी अपरिचित द्वारा रैविश्मेंट’
अदालतों की तरफ से अपने फैसलों में रेप के पर्याय के तौर पर ‘रैविश्ड’ या ‘रैविश्मेंट’ शब्द का इस्तेमाल किया जाना जारी है.
लीगल सर्च इंजन IndianKanoon.org पर ‘रैविश्ड’ शब्द खोजने पर देशभर की विभिन्न अदालतों के 95,000 से अधिक नतीजे सामने आते हैं और इनमें से तमाम फैसले आजादी के पूर्व और संविधान लागू होने से पहले के हैं. उदाहरण के तौर पर कलकत्ता हाई कोर्ट में एक अंग्रेज जज द्वारा 1890 में ‘रैविश्ड’ शब्द का इस्तेमाल किए जाने का रिकॉर्ड मिलता है.
हालांकि, जॉन इस पर जोर देते हैं कि ‘फैसलों में इस्तेमाल की जाने वाली भाषा औपचारिक और कानूनी होनी चाहिए.’ और चूंकि भारतीय दंड संहिता में रेप शब्द को परिभाषित किया गया है, इस ‘पुरातन और पितृसत्तात्मक समानार्थक शब्द का उपयोग बंद किया जाना चाहिए.’
जून 2020 में पारित एक फैसले में कर्नाटक हाई कोर्ट ने एक कथित बलात्कार पीड़िता के ‘अशोभनीय’ आचरण, जो ‘रैविश्ड’ किए जाने के बाद सो गई थी, को गंभीरता से लेते हुए रेप के आरोपी को गिरफ्तारी से पहले जमानत दे दी थी.
कोर्ट ने कहा, ‘…शिकायतकर्ता का यह स्पष्टीकरण कि इस कृत्य के बाद वह थक गई थी और सो गई, किसी भारतीय महिला के लिए अशोभनीय है. जब हमारी महिलाएं रैविश्ड होती हैं तो इस तरह से प्रतिक्रिया नहीं करती हैं.’
चुग ने इस आदेश का हवाला देते हुए कहा कि ‘इस तरह के विशेषणों का उपयोग भी यह तय करने का मानक बन जाता है कि अपराध हुआ या नहीं, यह एक बड़ी समस्या है.’
उन्होंने जोर देकर कहा कि ‘ऐसे विशेषण इस बात के प्रतीक बन जाते हैं कि हम पीड़िता के आचरण को कैसे देखते हैं, जो हमेशा एक जैसा नहीं हो सकता.’
हालिया स्तर पर पिछले महीने ही इस शब्द का इस्तेमाल वैवाहिक बलात्कार मामले में दिल्ली हाई कोर्ट के जज सी. हरि शंकर की राय के तौर पर सामने आया. पीठ के अन्य जज से असहमति जताते हुए जस्टिस शंकर ने भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) में अपवाद को बरकरार रखा, जो किसी व्यक्ति को अपनी पत्नी के साथ जबरन यौन संबंध बनाने पर बलात्कार के लिए मुकदमे से छूट देता है.
उन्होंने स्थिति की तुलना किसी एक अजनबी द्वारा एक महिला के साथ जबरन संभोग किए जाने और एक पति द्वारा अपनी पत्नी के साथ जबरन संभोग किए जाने से की.
जस्टिस शंकर ने कहा, ‘अगर पत्नी मना करती है, और पति, फिर भी, उसके साथ यौन संबंध बनाता है तो इस कृत्य को अस्वीकार्य माना जा सकता है, लेकिन इसे किसी अजनबी द्वारा रैविंशिंग के कृत्य के बराबर नहीं रखा जा सकता.’
यह कहते हुए कि ‘समय आ गया है कि हम इन पुरातन, द्वेषपूर्ण और अस्पष्ट शब्दों का उपयोग बंद कर दें,’ चुग ने इस बात को भी रेखांकित किया कि फैसलों में ‘स्पष्टता और सटीकता’ काफी मायने रखती है.
उन्होंने कहा, ‘यह इसलिए भी बेहद अहम है क्योंकि कानून (और आगे फैसलों में) की अनदेखी कोई बहाना नहीं हो सकती और कानून/फैसलों को समझ से परे बनाने वाले शब्दों के इस्तेमाल से बचा जाना चाहिए. यह आम नागरिकों के लिए भी उचित नहीं है, जो निश्चित तौर पर कानूनी सेवा के तौर पर इन फैसलों के सबसे बड़े उपभोक्ता है.’
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