नई दिल्ली: पिछले हफ्ते ज्ञानवापी मस्जिद वाला विवाद उर्दू प्रेस के पहले पन्नों पर हावी रहा, साथ ही हिंदुत्व समूहों के निशाने पर और मस्जिदों के आने के बारे में खबरें भी आईं.
उर्दू प्रेस में जिन अन्य मुद्दों को प्रमुखता दी गयी उनमें बिहार सरकार का जातिगत जनगणना करने का फैसला, कश्मीर घाटी में लक्षित हत्याओं की हालिया घटनाएं और सिविल सेवा परीक्षा पास करने वाले मुस्लिम उम्मीदवारों की संख्या में कथित तौर पर आई गिरावट शामिल हैं.
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रमुख मोहन भागवत के इस बयान को कि उनके संगठन की अब और कोई मंदिर आंदोलन शुरू करने में कोई दिलचस्पी नहीं है, और कांग्रेस में मची उथल-पुथल को भी इन खबरों में शीर्ष स्थान दिया गया
दिप्रिंट इस सप्ताह आपके लिए उर्दू प्रेस में छपी सुर्खियों और संपादकीय का एक संक्षिप्त विवरण लेकर आया है.
ज्ञानवापी, आरएसएस और भारत की बुनियाद
ज्ञानवापी विवाद के इर्दगिर्द हुए हालिया घटनाक्रम, जिसमें वहां ‘शिवलिंग’ के होने के दावे भी शामिल हैं, और इसके साथ ही अन्य जगहों पर मुश्किलात की शुरआत होने की कुलबुलाहट ने उर्दू के अखबारों में अच्छी खासी जगह बनाई.
1 जून की अपनी प्रमुख खबर में, ‘इंकलाब’ ने बताया कि ज्ञानवापी मस्जिद के सर्वेक्षण वाले एक वीडियो के कथित रूप से लीक होने की घटना ने मुसलमानों के साथ-साथ हिंदुओं में भी सनसनी पैदा कर दी है, और दोनों पक्षों ने अदालत की निगरानी में होने वाली जांच से लेकर इस सारे मामले की सीबीआई जांच तक की मांग उठाई है.’
3 जून को, ‘रोज़नामा राष्ट्रीय सहारा’ ने अपने पहले पन्ने पर एक खबर चलाई कि मामले के अभी भी अदालत में विचाराधीन होने के बावजूद, हिंदू समूहों द्वारा कथित तौर पर ज्ञानवापी मस्जिद में कथित ‘शिवलिंग’ की पूजा करने की घोषणा की गई है. ‘इंकलाब’ ने भी अपने पहले पन्ने पर एक रिपोर्ट छापी थी जिसमें कहा गया था कि 4 जून को ‘शिवलिंग’ के जलाभिषेक की तारीख के रूप में घोषित किया गया है.
इस बीच, ‘सियासत’ ने अपने 29 मई के अंक में पहले पन्ने पर सर्वोच्च न्यायालय में उपासना स्थल अधिनियम, 1991 की कुछ धाराओं की वैधता को चुनौती देने वाली एक याचिका के बारे में एक खबर प्रकाशित की.
2 जून को, अखबार ने इस्लामिक विद्वानों के एक संगठन ‘जमीयत उलेमा-ए-हिंद’ के एक बयान को अपनी प्रमुख खबर के रूप में प्रकाशित किया, जिसमें टेलीविजन चैनलों से ज्ञानवापी मुद्दे पर चर्चा करने से परहेज करने के लिए कहा गया था.
‘सियासत’ ने इस संगठन के हवाले से लिखा था, ‘यह मामला वाराणसी सत्र अदालत में विचाराधीन है और फैसला अदालतों द्वारा ही किया जाएगा, न कि टेलीविजन चैनलों पर.’
2 जून को इंकलाब की मुख्य खबर में कुछ हिंदू समूहों द्वारा 4 जून को कर्नाटक के श्रीरंगपटना स्थित जामिया मस्जिद में पूजा आयोजित करने के आह्वान पर केंद्रित थी. अखबार लिखता है कि इस तरह के दावे किये जा रहे हैं कि इस मस्जिद का निर्माण एक हनुमान मंदिर को तोड़ने के बाद किया गया था.
उसी दिन, अखबार के पहले पन्ने पर छपी एक और खबर वाराणसी के पंचगंगा घाट पर स्थित आलमगीर मस्जिद के बारे में किए जा रहे इसी तरह के दावों का उल्लेख करती है, जिनके अनुसार यहां कभी हिंदू देवता ‘विष्णु’ को समर्पित एक मंदिर खड़ा था.
3 जून को ‘इंकलाब’ के पहले पन्ने में आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत का यह बयान छपा था कि उनका संगठन मंदिरों के लिए कोई और आंदोलन शुरू करने के पक्ष में नहीं है. इस बीच, सियासत ने 29 मई को अपने पहले पन्ने पर श्री राम सेना प्रमुख प्रमोद मुतालिक के उस बयान को जगह दी कि मस्जिदों के निर्माण की राह तैयार करने के लिए नष्ट किये गए ‘सभी 30,000 मंदिरों को वापस ले लिया जाएगा’.
इंकलाब में 31 मई के अंक के संपादकीय में मस्जिद-मंदिर के मुद्दे की ओर इशारा किए बिना कहा गया कि दंगों, जिसका प्रभाव केवल कुछ दिनों तक रहता है, के विपरीत मजहब से जुड़े विवाद देश के सामाजिक ताने-बाने के लिए ज्यादा नुकसानदेह हैं. इस लेख में यह चेतावनी भी दी गई है कि ये विवाद भारतीय समाज की बुनियाद को हिला सकते हैं.
मुस्लिम उम्मीदवार और यूपीएससी
इस बीच, 31 मई को, सहारा और इंकलाब दोनों ने संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) द्वारा घोषित सिविल सेवा परीक्षा के नतीजों के बारे में ख़बरें छापी. इस खबर में कहा गया है कि इस परीक्षा में शीर्ष तीन रैंक पर महिलाओं ने बाजी मारी और कुल 685 उम्मीदवारों (508 पुरुषों और 177 महिलाओं) ने परीक्षा पास की है.
सिविल सेवा परीक्षा के बारे में 31 मई को लिखे गए अपने संपादकीय में सहारा ने कहा कि इसमें सफल होने वाले मुस्लिम उम्मीदवारों का प्रतिशत पिछले सालों की तुलना में कम हो गया है. इसमें में कहा गया है कि इस बार इस परीक्षा पास करने वाले 685 उम्मीदवारों में से मुस्लिम उम्मीदवारों (23) का केवल 4 फीसदी का योगदान है.
संपादकीय में कहा गया है, ‘इसकी क्या वजहें है? ज्यादातर मुस्लिम उम्मीदवारों की नाकामी की वजहों या फिर उनकी तैयारी बेहतरीन क्यों नहीं थी, इस बात का पता लगाने की कोशिश की जानी चाहिए. ‘
पीएम के बयान रहे सुर्ख़ियों में
उर्दू प्रेस ने पिछले सप्ताह प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा की गई घोषणाओं को भी व्यापक रूप से कवर किया.
29 मई को ‘सहारा’ की मुख्य खबर में गुजरात के कलोल में दुनिया का पहला नैनो यूरिया लिक्विड प्लांट बनाने की केंद्र सरकार की योजना के बारे में बताया गया. इस लेख के साथ मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की तस्वीरें भी थीं.
एक दिन बाद, भारत में यूनिकॉर्न कंपनियों के तेजी से विकास के बारे में अपने बयान के साथ प्रधान मंत्री को एक बार फिर ‘सहारा’ के पहले पन्ने पर जगह दी गयी थी.
1 जून को सियासत की मुख्य खबर शिमला में प्रधान मंत्री के द्वारा दिए गए इस बयान के बारे में थी कि आखिकार गरीबों को सरकारी योजनाओं का लाभ मिलना शुरू हो गया है. अखबार ने इस टिप्पणी को ‘प्रधान सेवक की खुशफहमी’ बताया.
2 जून को, मोदी ने फिर से ‘सियासत’ के पहले पन्ने पर जगह बनाई और इस बार वे विश्व मुक्केबाजी चैंपियनशिप की स्वर्ण पदक विजेता निकहत ज़रीन के साथ एक तस्वीर में दिखाई दिए.
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कांग्रेस पार्टी की कवरेज
कांग्रेस पार्टी के बारे में आई खबरों को भी प्रमुखता से छापा गया.
‘सियासत’ ने 1 जून को अपने पहले पन्ने पर छापी गई एक खबर में कांग्रेस नेता राहुल गांधी के उस बयान को प्रमुखता दी कि देश विमुद्रीकरण (नोटबंदी) के ‘दर्द’ को अभी नहीं भूला है. यही बयान इंकलाब के पहले पन्ने पर भी छपा था.
2 जून को, सहारा ने अब निष्क्रिय पड़े नेशनल हेराल्ड समाचार पत्र से जुड़े तथाकथित ‘मनी लॉन्ड्रिंग मामले’ के संबंध में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) द्वारा कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी और राहुल गांधी को जारी किए गए समन के बारे में जानकारी दी.
इंकलाब ने कांग्रेस नेताओं रणदीप सिंह सुरजेवाला और अभिषेक मनु सिंघवी द्वारा आयोजित उस प्रेस कॉन्फ्रेंस की तस्वीर के साथ भी खबर छापी, जहां उन्होंने ईडी के इस नोटिस की आलोचना की थी.
‘सियासत’ के 2 जून के अंक के पहले पन्ने पर कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा का यह बयान था कि पार्टी उत्तर प्रदेश में विजेता बनने तक अपनी लड़ाई जारी रखेगी.
भाजपा और बिहार में हो रही जातीय जनगणना
इंकलाब ने 2 जून को बताया कि बिहार में जाति-आधारित जनगणना करने के लिए हुई सर्वदलीय बैठक के दौरान आम सहमति बन गई है. इस खबर में कहा गया है कि बिहार में भाजपा सहित सभी राजनीतिक दलों ने इस कवायद के लिए अपनी सहमति दे दी है.
2 जून को, सियासत ने अपने एक संपादकीय में बिहार में जाति-आधारित जनगणना की अहमियत को रेखांकित करते हुए कहा कि इस राज्य की राजनीति जातियों के इर्द-गिर्द ही घूमती है.
इस संपादकीय में लिखा गया है, ‘बिहार की राजनीति मुद्दों के बजाय जाति के इर्द-गिर्द घूमती है और यही हाल उत्तर प्रदेश का भी है. अब कई तबकों से यह भी मांग की जा रही है कि यहां भी जाति के आधार पर जनगणना की जाए.’
संपादकीय में आगे कहा गया है कि अन्य राज्यों में भी, जहां पिछड़ी जातियों की आबादी अधिक है, इसी तरह की जनगणना कराकर विभिन्न जातियों के सदस्यों की जनसंख्या निर्धारित करने की मांग की जा रही है.
संपादकीय में कहा गया है, ‘…भाजपा को सवर्णों की पार्टी के रूप में जाना जाता है. इस पार्टी में तमाम महत्वपूर्ण और बड़े पद केवल सवर्णों को दिए जाते हैं जबकि वोट पिछड़े वर्गों से प्राप्त किए जाते हैं. इसलिए भाजपा ने अब तक जाति आधारित जनगणना का खुलकर विरोध नहीं किया है.’
कश्मीरी पंडितों पर हो रहे हमले
‘सहारा’ ने 2 जून को एक खबर छापी जिसमें कहा गया था कि कश्मीरी पंडितों के एक समूह ने आतंकवादियों द्वारा गैर-मुसलमानों की निशाना बनाकर की जा रही हत्याओं के जवाब में कश्मीर घाटी में स्थित अपने गांवों को बड़े पैमाने पर खाली करने की तैयारी शुरू कर दी है.
इस खबर के अनुसार, एक सरकारी योजना के तहत कार्यरत इस समूह के सदस्यों ने कहा कि उन्होंने बुधवार को ट्रक मालिकों के साथ मिलकर माल ढुलाई की दरों पर चर्चा की.
3 जून को, इंकलाब ने भी अपने पहले पन्ने पर कश्मीरी पंडितों को निशाना बनाकर की जा रही हत्याओं के विरोध में प्रदर्शन किये जाने के बारे में एक खबर छापी. इसमें श्रीनगर के बडगाम में एक प्रवासी श्रमिक की हत्या की भी खबरें थीं. इंकलाब की एक अन्य खबर में जम्मू-कश्मीर में सुरक्षा सम्बन्धी हालत की समीक्षा के लिए केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की अध्यक्षता में हुई बैठक का विवरण भी दिया गया था.
‘सहारा’ ने एक सूत्र का हवाला देते हुए बताया कि केंद्रीय गृह मंत्रालय ने घाटी में आम नागरिकों को निशाना बनाकर की जा रही हत्याओं पर जम्मू-कश्मीर प्रशासन से रिपोर्ट मांगी है.
यह कहते हुए कि घाटी के कश्मीरी पंडित अपनी सुरक्षा को लेकर चिंतित हैं, ‘सहारा’ के 3 जून के संपादकीय में पूछा गया: ‘प्रशासन अन्य धर्मों के उन लोगों को कहां स्थानांतरित करेगा और उनकी रक्षा कैसे करेगा जो फ़िलहाल हमले का सामना कर रहे हैं?’
इस मामले की बारीकी से जांच-पड़ताल की जरूरत बताते हुए इस संपादकीय में आगे कहा गया है कि इन हमलों को ‘धार्मिक रंगत’ देने से इस समस्या का समाधान नहीं होगा.
(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
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