नई दिल्ली: आजीविका छिन जाना, अपने बेटे की स्कूल फीस भरने में नाकाम होना और एक हादसे में अपना दोपहिया वाहन जब्त कर लिया जाना—ये सब वो वजहें थीं जिन्होंने कथित तौर पर 32 वर्षीय दिवाकर सरकार को उस दोराहे पर पहुंचा दिया, जहां उसे अपनी किडनी बेचना ही सारी समस्याओं का समाधान लगा.
दिवाकर सरकार उस संदिग्ध किडनी रैकेट के पीड़ितों में एक है जिसका दिल्ली पुलिस ने बुधवार को भंडाफोड़ किया. इस मामले में एक ‘झोलाछाप डॉक्टर’, एक एनेस्थेसियोलॉजिस्ट और पूर्व में अपनी किडनी बेचने वाले तीन लोगों समेत 10 लोगों को गिरफ्तार किया गया है.
दिल्ली पुलिस के एक सूत्र के मुताबिक, दिवाकर सरकार ने बताया कि मार्च 2020 में देशव्यापी कोविड-19 लॉकडाउन के दौरान उसकी आजीविका का साधन रही मोमो की दुकान बंद हो गई थी. सूत्र ने सरकार के हवाले से बताया कि इसके तुरंत बाद, वह एक हादसे का शिकार हो गया और उसके दोपहिया वाहन को दुर्घटना में शामिल कार के मालिक ने जब्त कर लिया.
दिवाकर सरकार ने कहा कि जब वह अपनी वित्तीय स्थिति को लेकर घोर निराशा से जूझ रहा था, तभी अवैध ढंग से अंग दान करने वालों और प्राप्तकर्ताओं के एक फेसबुक समूह के संपर्क में आया और अपनी एक किडनी बेचने का फैसला किया, यह सोचकर कि इससे उसकी समस्याओं का समाधान हो सकता है.
32 वर्षीय दिवाकर ने मई के तीसरे हफ्ते में गुवाहाटी से नई दिल्ली के लिए उड़ान भरी और पश्चिम विहार के एक फ्लैट में ट्रांसप्लांट की प्रतीक्षा कर रहा था, जब पुलिस ने उसे दो अन्य लोगों के साथ बचाया, जिनमें से एक पश्चिम बंगाल का निवासी था और दूसरा केरल का.
दिल्ली के एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर दिप्रिंट को बताया, ‘आरोपी ने उससे (दिवाकर) कहा था कि उसकी उड़ान के टिकट के पैसे चुका दिए जाएंगे. दिवाकर सरकार कर्ज में डूबा था और उसे अपने बेटे की फीस भी चुकानी थी.’
दिल्ली पुलिस का मानना है कि इस रैकेट के सदस्य हरियाणा के सोनीपत स्थित गोहाना में आरोपी सोनू रोहिल्ला (37) के घर पर हर माह कम से कम दो अंग प्रत्यारोपण कर रहे थे और इस घर को एक अस्थायी अस्पताल में बदल दिया गया था. केवल 10वीं कक्षा तक पढ़ाई करने वाले रोहिल्ला के पास पंचकर्म डिप्लोमा है जो उसे आयुर्वेद चिकित्सक की योग्यता प्रदान करता है.
दिप्रिंट द्वारा देखे गए गोहाना के अस्थायी अस्पताल—’श्री रामचंद्र अस्पताल’ के वीडियो फुटेज से पता चला है कि यह इमारत की दोनों मंजिलों पर चल रहा था, और डायलिसिस मशीन, एक ऑपरेशन थिएटर (ओटी) और अन्य उपकरणों से लैस था. दिल्ली पुलिस का कहना है कि आरोपी ने अस्पताल चलाने की कोई औपचारिक अनुमति नहीं ली थी.
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‘खुद को 3 इडियट्स का रणछोड़दास मानता है’
पुलिस ने कुलदीप रे विश्वकर्मा की पहचान मामले में मुख्य आरोपी के तौर पर की है. पुलिस के मुताबिक, 20 साल का अनुभव रखने वाले इस ओटी तकनीशियन विश्वकर्मा ने ही कथित तौर पर यह रैकेट शुरू किया और प्रत्यारोपण किए.
एक सूत्र ने दिप्रिंट को बताया कि पूछताछ के दौरान, विश्वकर्मा ने कहा कि ऑपरेशन टेबल पर उसकी ‘सफलता की दर 99.9 प्रतिशत’ है. सूत्र ने कहा, ‘वह खुद को फिल्म 3 इडियट्स का रणछोड़दास मानता है और मानता है कि वह अच्छा काम कर रहा था. उसका कहना है कि भले ही वह अपनी आंखें बंद कर लें (प्रत्यारोपण करते समय), लेकिन मरीज ठीक हो जाएगा.’
मामले में एक अन्य आरोपी एनेस्थिसियोलॉजिस्ट डॉ. सौरभ मित्तल है, जो मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज से एमबीबीएस स्नातक है और दिल्ली के एक प्रतिष्ठित निजी अस्पताल में काम करता है. मित्तल को कथित तौर पर हर प्रत्यारोपण पर 2,50,000 रुपये मिले.
अन्य आरोपियों की पहचान सर्वजीत जैलवाल, शैलेश पटेल, मोहम्मद लतीफ, विकास, रंजीत गुप्ता, ओम प्रकाश शर्मा और मनोज तिवारी के रूप में हुई है. एक दूसरे सूत्र ने दिप्रिंट को बताया कि विकास, शैलेश और रंजीत, जो अब हिरासत में हैं, ने सिंडिकेट में शामिल होने से पहले अपनी किडनी बेची थीं.
पुलिस के मुताबिक, पिछले छह महीने से सक्रिय इस सिंडिकेट के हर सदस्य का अपना काम निर्धारित था.
एक दूसरे सूत्र ने बताया कि शैलेश और सर्वजीत संभावित डोनर की पहचान करते. सिंडिकेट के निशाने पर 20 से 30 वर्ष आयु वाले लोग होते थे. वे गुरुद्वारों और मंदिरों के सामने और अस्पतालों के बाहर ‘जरूरतमंद गरीबों’ की तलाश करते थे.
दिल्ली में जो लोग उनके झांसे में आए, उन्हें पैसे का लालच दिया गया, इसके अलावा सिंडिकेट के सदस्य देश के विभिन्न हिस्सों में लोगों के पास पहुंचे और उन्हें इसी तरह की पेशकश की. दवाओं की खरीद और डोनर के टेस्ट के लिए नकली पर्चों का इस्तेमाल किया जाता था.
एक बार संभावित डोनर का टेस्ट हो जाता और उन्हें योग्य पाया जाता, तो उन्हें ट्रांसप्लांट के लिए गोहाना के अस्थायी अस्पताल ले जाया जाता और ऑपरेशन के बाद उपचार के लिए पश्चिम विहार के फ्लैट में ट्रांसफर कर दिया जाता था.
इसके अलावा, शहर की दो पैथोलॉजी लैब दिल्ली पुलिस के राडार पर हैं जिनका उपयोग सिंडिकेट के सदस्य डोनर का टेस्ट कराने के लिए करते थे. आरोपियों में से एक मोहम्मद लतीफ ऐसी ही एक टेस्टिंग लैब का कर्मचारी था.
इस मामले में नामी निजी अस्पतालों से जुड़े दो और डॉक्टरों की भूमिका भी सवालों के घेरे में है.
राजस्थान कनेक्शन?
दिल्ली पुलिस रैकेट के ‘राजस्थान-कनेक्शन’ की भी जांच कर रही है.
एक सूत्र ने दिप्रिंट को बताया, ‘मुख्य आरोपी विश्वकर्मा ने पुलिस को बताया है कि वह करीब दो साल पहले राजस्थान में सक्रिय एक अन्य रैकेट से जुड़ा था. इसके तुरंत बाद, उसने इस गिरोह को जुटाया और इन लोगों ने 14 से अधिक ऐसे किडनी ट्रांसप्लांट किए, जिसमें प्रति सर्जरी 20-25 लाख रुपये की कमाई हुई.’
दूसरे सूत्र ने बताया कि पश्चिम विहार स्थित डीडीए फ्लैट पर छापेमारी के दौरान, जहां दिवाकर सरकार मिला था, पुलिस ने पश्चिम बंगाल के अश्विन पांडे और केरल के रिजवान के गुजरात के रघु शर्मा को भी छुड़ाया, जो करीब एक सप्ताह पहले ट्रांसप्लांट की प्रक्रिया से गुजर चुका है और उसे किडनी बेचने के बदले 3.2 लाख रुपये का भुगतान किया गया था.
21 वर्षीय शर्मा ने पुलिस को बताया कि उसके परिवार ने बहन की शादी के लिए अपना पुश्तैनी घर बेच दिया था और किराए के मकान में रहने लगा, लेकिन आय का साधन न रहने के कारण वह किराए का भुगतान नहीं कर सका. उसने बताया कि उनके पिता एक दिहाड़ी मजदूर हैं और इस समय बीमार हैं और मधुमेह से ग्रस्त उसकी मां भी चलने-फिरने में असमर्थ हैं. शर्मा ने आगे कहा कि अपनी विवाहित बहन और उसके बच्चे की जिम्मेदारी भी उसी पर है, जिन्हें उसके जीजा ने छोड़ दिया था.
सूत्र ने बताया, ‘छापे के दौरान फ्लैट में पाए गए सभी लोग इसी उद्देश्य से दिल्ली आए थे. पुलिस को लैब के बारे में सूचना देने वाले पिंटू यादव को बताया गया था कि पेट दर्द की जांच के लिए उसका टेस्ट किया जा रहा है.’
पुलिस इस मामले में अभी तक केवल एक प्राप्तकर्ता- जतिन आनंद की पहचान कर पाई है, जिसने इस रैकेट की मदद ली थी क्योंकि उसके परिवार का कोई भी सदस्य पात्र डोनर नहीं था. दूसरे सूत्र ने बताया, आनंद की दोनों किडनी काम करना बंद कर चुकी थीं और वह एक दशक से अधिक समय से बीमार चल रहे हैं. पुलिस फिलहाल अन्य डोनर और प्राप्तकर्ताओं का पता लगाने की कोशिश कर रही है, जिनमें इस रैकेट का निशाना बनी महिलाएं भी शामिल हैं.
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