नई दिल्ली: यूनाइटेड किंगडम (यूके) अगर ग्रीनहाउस गैस का उत्सर्जन कम नहीं करता है तो उसकी अर्थव्यवस्था इस सदी के अंत तक काफी प्रभावित हो सकती है. लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स एंड पॉलिटिकल साइंस के ग्रांथम रिसर्च इंस्टीट्यूट की रिपोर्ट में यह बताया गया है.
ग्रांथम रिसर्च इंस्टीट्यूट ऑन क्लाइमेट चेंज एंड द एनवायरमेंट की रिपोर्ट जिसका शीर्षक है- ‘जलवायु परिवर्तन से यूके को कितना नुकसान होगा ‘- के अनुसार इस सदी के अंत तक जलवायु परिवर्तन के कारण यूनाइटेड किंगडम की अर्थव्यवस्था उसकी जीडीपी के आकार से तकरीबन 7.4 प्रतिशत तक घट सकती है.
यूके और संयुक्त राज्य अमेरिका में शोधकर्ताओं की एक टीम ने पुराने अध्ययनों का विश्लेषण कर ‘वैश्विक आर्थिक व्यवस्था’ से जलवायु परिवर्तन पर पड़े प्रतिकूल असर और कृषि, पशुधन, मत्स्य पालन, सूखा, बाढ़ और तटीय क्षति सहित नौ क्षेत्रों में पड़ रहे प्रत्यक्ष असर का अनुमान लगाया.
रिपोर्ट के अनुसार तटीय सुरक्षा (कोस्टल प्रोटेक्शन) जैसे अनुकूलन (एडेप्टेशन) उपायों में सक्रिय निवेश से जलवायु से संबंधित नुकसान के जोखिम को कम किया जा सकता है. वहीं मिटिगेशन उपायों के जरिए यूके की अर्थव्यवस्था पर जलवायु परिवर्तन के कारण पड़ने वाले असर को 2100 तक 7.4 प्रतिशत के अनुमान की तुलना में 2.4 प्रतिशत किया जा सकता है.
शोधकर्ताओं के अनुसार दुनिया भर में मौजूदा जलवायु नीतियों से वैश्विक तापमान 3.9 डिग्री सेल्सियस अधिक हो जाएगा जो कि 2100 तक अपने पूर्व-औद्योगिक स्तर से अधिक है.
इस स्टडी को दुनिया के छह विश्वविद्यालयों के एकेडमिक्स द्वारा किया गया है जिसे लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स ने प्रकाशित किया है.
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यूके की जीडीपी पर पड़ेगा असर और नेट जीरो लक्ष्य
शोधकर्ताओं ने अनुमान लगाया गया कि वर्तमान में जलवायु परिवर्तन के कारण यूके की जीडीपी 1.1 प्रतिशत घट रही है वहीं 2050 तक ये 3.3 प्रतिशत घटेगी और 2100 तक 7.4 प्रतिशत जीडीपी पर असर पड़ेगा.
इस रिपोर्ट का नेतृत्व करने वाले यूनिवर्सिटी ऑफ डेलवेयर के डॉ. जेम्स राइजिंग ने कहा, ‘ये अनुमान भविष्य में यूके को होने वाले आर्थिक नुकसान को लेकर चेताता है.’
उन्होंने कहा, ‘हमारे अनुमान के मुताबिक 2050 तक नेट जीरो की तरफ बढ़ते यूके के कदम से मुश्किल से उनकी जीडीपी का 2 प्रतिशत होगा.’
शोधकर्ताओं ने पाया कि यूके के नेट जीरो लक्ष्य को प्राप्त करने से यूके को जलवायु प्रभावों से बचने को लेकर अतिरिक्त लाभ मिलेगा. वहीं हरित उद्योगों और बुनियादी ढांचे में निवेश को प्रोत्साहित करके यूके की अर्थव्यवस्था को 2.8 प्रतिशत और बढ़ावा मिल सकता है.
शोधकर्ताओं ने पाया कि मौजूदा नीतियों से इस सदी के अंत तक यानी कि 2100 तक यूके को नुकसान पहुंच सकता है, जो 2100 तक सकल घरेलू उत्पाद के 4.1 प्रतिशत के बराबर होगा. वहीं दुनिया के अन्य देशों में जलवायु परिवर्तन से होने वाले नुकसान के रूप में विदेशी व्यापार में व्यवधान से यूके को सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 1.1 प्रतिशत के बराबर अतिरिक्त नुकसान होगा.
शोधकर्ताओं ने यह भी निष्कर्ष निकाला कि मौजूदा नीतियों के तहत मृत्यु दर में प्रति 100,000 लोगों में 7.1 होगी जिससे सन 2100 तक जीडीपी में 0.4 प्रतिशत के बराबर की कमी आएगी. वहीं गैस के उत्सर्जन को कम करके 10 हजार लोगों में 0.9 लोगों को हृदय से जुड़ी बीमारियों से बचाया जा सकता है जो कि जीडीपी के 0.05 प्रतिशत के बराबर है.
विश्लेषण से यह भी पता चला कि जलवायु परिवर्तन के कारण उत्तरी अटलांटिक में गल्फ स्ट्रीम का कमजोर होना यूके की कृषि (जो वर्तमान में यूके जीडीपी का 0.6 प्रतिशत उत्पन्न करता है) को तबाह कर सकता है, जिसके परिणामस्वरूप वर्तमान नीतियों के तहत जीडीपी के 0.25 प्रतिशत के बराबर नुकसान हो सकता है. हालांकि, उत्सर्जन में कटौती कर के नुकसान को कम किया जा सकता है.
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