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Thursday, 21 November, 2024
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किस गांव से शुरू हुई हरित क्रांति, गेंहू निर्यात पर रोक से खुश हुए जहां के किसान

जोंती मुख्य रूप से जाटों का गांव हैं. पर इधर वाल्मिकी, ब्राहमण, सैनी और दूसरी जातियों के परिवार भी रहते हैं. जोंती में आपको पंच,पंचायत हुक्का,सिर ढकी महिलाएं दिखती हैं.

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दिल्ली मेट्रो के मुंडका स्टेशन से करीब 7-8 किलोमीटर दूर है जोंती गांव. सरकार ने पिछले दिनों घरेलू स्तर पर बढ़ती कीमतों को नियंत्रित करने के उपायों के तहत गेहूं के निर्यात पर तत्काल प्रभाव से प्रतिबंध लगाई तो जोंती के किसान भी सरकार के फैसले से खुश थे.

आप पूछ सकते हैं कि जोंती के किसानों के खुश होने में कौन सी बड़ी बात है. बात तो है. आप जोंती को हरित क्रांति का गांव कह सकते हैं. इसकी बात किए बगैर हरित क्रांति पर बात अधूरी ही रहेगी. दरअसल राजधानी के भारतीय कृषि अनुसंधान केन्द्र, पूसा में गेंहू की फसल का उत्पादन बढ़ाने के लिए गेंहू के उन्नतशील बीज विकसित किए थे नोबल पुरस्कार विजेता प्रोफेसर नारमन बोरलॉग और कृषि वैज्ञानिक डा.एम.एस.स्वामीनाथन की टीम ने. ये बातें हैं 1960 के दशक की. उसके बाद इन्हीं बीजों को पूसा कैंपस और दिल्ली के किसी गांव में लगाने का फैसला हुआ. इसके पीछे इरादा ये था ताकि पता चला सके कि गेंहूं के इन बीजों से किस तरह की पैदावार होती है.

अब मसला पैदा हुआ कि किस गांव में इन बीजों को लगाया जाए. तब पूसा के एक कृषि वैज्ञानिक अमीर सिंह की खोजबीन के बाद जोंती गांव का चयन हुआ. अमीर सिंह जोंती के पास झज्जर के रहने वाले थे. उन्हें यहां के भूगोल की गहरी समझ थी. वे पूसा के सीड टेस्टिंग टेक्नॉलजी विभाग के प्रमुख भी थे.

कैसे बना हरित क्रांति का गांव

जोंती को मुख्य रूप से इसलिए चुना गया था क्योंकि यहां पर करीब की एक नहर से पानी आता था. इधर सिंचाई व्यवस्था बेहतर थी. क्या इसलिए ही जोंती गांव बना हरित क्रांति का गांव? इससे सटे लाडपुर,कंझालवा और घेवरा कैसे छूट गए? जोंती के एक बुजुर्ग किसान राम सिंह ने एक बार बताया था कि ‘बाकी गांव वाले ताश खेलते थे. हम सब जोंती के किसान मेहनती थे. हम कुछ अलग करने का इरादा रखते थे.’ जोंती के किसान खुद खेती करते थे. उस जमाने में ट्रैक्टर नहीं थे, तब इलेक्ट्रिक या डीजल इंजन वाले ट्यूबवेलों को आने में भी वक्त था. तब किसान बैलगाड़ी से ही अपने खेतों की जुताई करते थे.

कहते हैं कि अमीर सिंह ने एक बार जोंती का चयन किया तो डॉ.एम.एस.स्वामीनाथन जोंती के किसानों से मिले. उन्हें उन्नतशील बीजों के बारे में विस्तार से बताया गया. जोंती के किसानों को बीज दिए गए. ये सारा काम बोरलॉग साहब भी देख रहे थे. वे भी डॉ.स्वामीनाथन के साथ जोंती गांव जाते थे. किसानों ने उन बीजों को अपनी धरती में बोया. फिर कृषि वैज्ञानिकों और किसानों की मेहनत रंग लाने लगी. एक हेक्टेयर में 40 क्विंटल गेंहू की फसल का उत्पादन हुआ जोंती में. पहले होता था 20-25 क्विंटल. यानी गेंहू की पैदावार दो गुना बढ़ गई. ये एक तरह से हरित क्रांति का श्रीगणेश था.

पूसा के एग्रीकल्चर साइंटिस्ट डॉ. अरविंद कान्वा कहते हैं कि हरित क्रान्ति के चलते देश के कृषि क्षेत्र में महत्वपूर्ण प्रगति हुई. खाद्यान्नों में आत्मनिर्भरता आई है. व्यवसायिक कृषि को बढ़ावा मिला है. किसानों के दृष्टिकोण में परिवर्तन हुआ है.


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जोंती में घूमने का सुख

निश्चित ही जोंती गांव में घूमना अपने आप में एक बेहतरीन अनुभव होता है, एक सुखद अनभूति होती है. इधर घूमते हुए आप उस दौर में चले जाते हैं,जब देश हरित क्रांति की तैयारी में जुटा था. जोंती ने देश को एक प्रकार से भरोसा दिलाया था कि अब हमें खाद्यान्नों की कमी से दो-चार नहीं होना पड़ेगा. अरविंद कान्वा मानते हैं कि जोंती ही नहीं बल्कि सारी दिल्ली के किसान बहुत प्रोगेसिव रहे हैं. वे नई तकनीक को अपनाने में पंजाब और हरियाणा से आगे रहे हैं.

किनका गांव जोंती

जोंती मुख्य रूप से जाटों का गांव हैं. पर इधर वाल्मीकि, ब्राहमण, सैनी और दूसरी जातियों के परिवार भी रहते हैं. जोंती में आपको पंच,पंचायत हुक्का, सिर ढकी महिलाएं दिखती हैं.

जोंती तथा हरित क्रांति पर बात करते हुए ये भी बता देना उचित रहेगा कि जोंती में अब भी खेती हो रही है. हालांकि अब राजधानी के दर्जनों गांवों में खेती बंद हो चुकी है. जोंती में अब मुख्य रूप से सब्जियां उगाई जाती है. बोरलॉग साहब के तो दिल में बसता था जोंती. वे जब भी दिल्ली आते तो जोंती जाना नहीं भूलते. वहां अपने किसान मित्रों से बात करते. स्वामीनाथन साहब अब भी जोंती कभी-कभी आ जाते हैं. बता दें कि विश्व स्वास्थ्य संगठन की मुख्य वैज्ञानिक डॉ सौम्या स्वामीनाथ पुत्री हैं डॉ. स्वामीनाथ की.

उत्तरी-पश्चिमी दिल्ली का जोंती गांव मुगलकालीन धरोहरों के लिए मशहूर रहा है. इधर शौचालय, बिजली, पानी की समस्याएं लगभग नहीं हैं. दिल्ली हरियाणा सीमा पर स्थित जोंती गांव 17वीं शताब्दी के ऐतिहासिक इमारतों के लिए प्रसिद्ध है, अब यहां की कुछ इमारतें सही अवस्था में हैं. जोंती में एक मुगलकालीन कुआं भी है, जिसमें अब भी पानी मौजूद है. गांव के दूसरे सभी पुराने कूएं सूख गए, लेकिन मुगलकालीन कुएं में पानी मौजूद है.

कभी आप भी हो आइये जोंती

केन्द्र सरकार की योजना है कि जोंती को ग्रामीण पर्यटन स्थल के तौर पर विकसित किया जाए. देखिए कब जोंती में पर्यटक आने शुरू होंगे. कभी आपको मौका लगे तो आप भी जोंती घूम आइये. ये किसी तीर्थ स्थल से कम नहीं है.

(विवेक शुक्ला वरिष्ठ पत्रकार और Gandhi’s Delhi के लेखक हैं. व्यक्त विचार निजी हैं)


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