एक अध्ययन में पाया गया है कि मोटापे से जुड़ी बीमारियों के लिए बेरियाट्रिक सर्जरी से गुजरने वाले मरीजों में से एक चौथाई मरीजों का वजन बचपन से ही ज्यादा था।
नई दिल्लीः दिल्ली के डॉक्टरों द्वारा 1,000 से अधिक मोटे रोगियों पर किए गए एक अध्ययन में पाया गया है कि एक स्वस्थ आहार और शारीरिक गतिविधि के लिए एक शुरुआती प्रोत्साहन आपके बच्चे को जीवन शैली की बीमारियों के जीवन भर के दर्द से बचा सकता है।
अध्ययन के अनुसार 2010 और 2018 के बीच सर गंगा राम अस्पताल में बेरियाट्रिक सर्जरी के दौरान 1,078 मरीजों में से लगभग एक चौथाई मरीज (23 प्रतिशत) बचपन से ही मोटापे से ग्रस्त थे।
एक और हालिया अध्ययन में यह पाया गया कि दिल्ली के निजी स्कूलों में 30 प्रतिशत छात्र मोटापे से ग्रस्त हैं जो भारत में एक बड़े स्वास्थ्य संकट का कारण बन सकते हैं जबकि शोध से पता चलता है कि भारतपहले से ही बढ़ती बीमारियों के बोझ के नीचे दबा हुआ है।
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बैरियाट्रिक सर्जरी, जिसे ‘ओबेसिटी सर्जरी’ भी कहा जाता है, एक वजन कम करने की प्रक्रिया है जहां पेट का आकार संकुचित हो जाता है, इसलिए रोगी हल्का और कम भोजन करता है। जब जीवनशैली में परिवर्तन से रोगी मोटापा का सामना करने में असफल हो जाता हैतब इसे आम तौर पर एक विकल्प के रूप में प्रस्तुत किया जाता है,और उसे सम्बंधित परिस्थितियों जैसे टाइप-II मधुमेह, ह्रदय रोग जैसे उच्च रक्तचाप, स्लीप एपनिया -एक गंभीर विकार जो अलग-अलग तरीकों से रोगियों को प्रभावित करता है,में आराम देने के लिए इस्तेमाल किया जाता है।
सर गंगा राम अस्पताल में इंस्टिट्यूट ऑफ़ मिनिमल एक्सेस, मेटाबोलिक एंड बेरियाट्रिक सर्जरी के अध्यक्ष डॉ. सुधीर कलहन ने दिप्रिंट को बताया कि “हमने पाया कि 23 प्रतिशत रोगी अपने बचपन या किशोरावस्था से ही मोटापे से ग्रस्त थे, और जिन्हें आगे चलकर अस्वस्थ रूप से मोटापे के कारण मधुमेह, उच्च रक्तचाप, स्लीप एपेना, बांझपन आदि जैसी चिकित्सा स्थितियों के लिए सर्जरी की आवश्यकता थी।”
अस्पताल ने बताया कि बेरिएटिक सर्जरी वाले रोगियों में से 128 रोगी 14 से 28 साल के थे।
शोधकर्ताओं के अनुसार, बचपन में अस्वास्थ्यकर भोजन की आदतें और गतिहीन जीवनशैली वयस्कता में जीवनशैली के कारण होने वाले रोगों के मुख्य कारणों में एक अहम कारक थे।
डॉ. कलहन कहते हैं कि “अगर एक मोटा बच्चा मोटापे से ग्रस्तवयस्क बन जाता है तो यह एक अत्यधिक खराब स्थिति है क्योंकि अपने जीवन के एक हिस्से में वे मोटापे के साथ बड़े हुए हैं। अगर एक वयस्क मोटापे से ग्रस्त हो जाता है तो इसे नियंत्रित करना बचपन के मोटापे की अपेक्षा आसान होता है।”
चिकित्सालय द्वारा किए गए अन्य अध्ययन में,शोधकर्ताओं ने 1000 छात्रों में से अधिकांश को प्री-डायबिटीज और उच्च रक्तचाप वाला पाया। यह अध्ययन आठ निजी स्कूलों पर किया गया था।
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इससे भी ज्यादा खौफनाक बात यह है कि 30 प्रतिशत छात्रों को मोटापे से ग्रस्त पाया गया। इसमें विशेष चिंता की बात यह है कि दिल्ली आर्थिक सर्वेक्षण की नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली के करीब 40 प्रतिशत (लगभग 16 लाख) छात्रों का दाखिला निजी स्कूलों में ही है।
गुरूवार को परिणाम जारी करते हुए शोधकर्ताओं ने बताया कि कई स्कूल अनजाने में छात्रों की अस्वास्थ्यकर आदतों को बढ़ाते हुए पाए गए।
डॉ विवेक बिंदल, एक लैप्रोस्कोपिक परामर्शदाता, सर गंगा राम अस्पताल में ओबेसिटी एंड रोबोटिक सर्जन, ने दिप्रिंट को बताया, “स्कूल कैंटीन उच्च कैलोरी वाले पेय तथा ट्रांस-फैट से भरपूर अस्वास्थ्यकर तेलों में तलकर बनाए गए स्नैक्स परोस रहे थे और उन तेलों को बार बार कई बार गरम किया जाता था। हालांकि,सूचित किए जाने पर वे सुधार करने के लिए तुरंत ही तत्पर थे।”
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