नई दिल्ली: बाराखंभा रोड स्थित दिल्ली दमकल सेवा मुख्यालय के नियंत्रण कक्ष में शुक्रवार रात के 10.50 बजे थे, जब वहां के प्रभारी ने अपने डेली ड्यूटी रजिस्टर में लाल स्याही से ‘स्टॉप’ शब्द दर्ज किया. 27 दमकल गाड़ियों ने छह घंटे से भी अधिक समय के परिश्रम के बाद पश्चिमी दिल्ली के मुंडका स्थित एक इमारत, जिसका इस्तेमाल एक ऑफिस स्पेस (कार्यालय की जगह) के रूप में किया जा रहा था में लगी आग पर काबू पाने में कामयाबी हासिल की.
शनिवार की सुबह इस काले पर चुके ढांचे से धुआं उठ रहा था और अपनों की तलाश कर रहे असहाय परिवारों को मंगोलपुरी के संजय गांधी मेमोरियल अस्पताल ले जाया जा रहा था. जहां इस हादसे में मारे गए लोगों के शव लाए गए थे.
अपने परिवार के एक सदस्य को खोजने के लिए बेताब लोगों में से से एक के रिश्तेदार ने निराशा भरी बोली में अस्पताल में तैनात नागरिक सुरक्षा कर्मचारियों में से एक ने कहा – ‘हरा कुर्ता, सफेद सलवार’. लेकिन यह विवरण उनके किसी काम का नहीं था. इस जली हुई चार मंजिला इमारत से निकाले गए सभी 27 शव पहचान से परे थे.
दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री साहिब सिंह वर्मा की जन्मस्थली मुंडका गांव में लगी इस भीषण आग ने अपने पीछे भारी तबाही और कई सारे सवालों को छोड़ दिया है.
अग्निशमन विभाग, दिल्ली पुलिस और उत्तरी दिल्ली नगर निगम (नार्थ देलही म्युनिसपल कारपोरेशन) के अधिकारियों ने पहले ही पुष्टि की है कि जिस इमारत में आग लगी वह अवैध रूप से बनाई गई थी और उसके पास अग्निशमन विभाग से जारी अनापत्ति प्रमाण पत्र (एनओसी) भी नहीं था. .
उत्तरी दिल्ली नगर निगम आयुक्त किसी भी तरह की बैठक या टिप्पणी के लिए उपलब्ध नहीं थे.
इस इमारत का मालिक मनीष लकड़ा, जो इमारत की सबसे ऊपरी मंजिल पर रहता था, फिलहाल फरार है.
इमारत की अन्य तीन मंजिलें दो भाइयों – हरीश गोयल और वरुण गोयल – को किराए पर दी गई थीं, जो वहां से दो विद्युत उपकरण निर्माण कंपनियों – कोफे इम्पेक्स प्राइवेट लिमिटेड और आई-क्लियर टेक्नोलॉजीज प्राइवेट लिमिटेड – का संचालन कर रहे थे. आई-क्लियर को अक्टूबर 2019 में और कोफे को उसके एक साल बाद, सितंबर 2020, में स्थापित किया गया था.
इस अग्निकांड से बच निकलने वाले इन दोनों भाइयों को भी गिरफ्तार कर लिया गया है.
आग लगने वाले दिन उन दोनों ने 150 कर्मचारियों की अपनी टीम को एक बैठक के लिए इकट्ठा किया था. इन मंजिलों का इस्तेमाल कथित तौर पर सीसीटीवी कैमरों, तारों, वाईफाई राउटर और अन्य बिजली के उपकरणों को स्टोर करने के लिए भी किया जाता था जो बहुत ही ज्वलनशील होते हैं.
आग से बचने में कामयाब रहे कुछ कर्मचारियों ने दिप्रिंट को बताया कि इस इमारत में न तो वेंटिलेशन (हवा के आने जाने का रास्ता) था और न ही फायर अलार्म और स्प्रिंकलर (पानी का छिड़काव करने बाला यंत्र) जैसे अग्नि सुरक्षा उपकरण. इमारत की एकमात्र सीढ़ी धुएं से भर गई थी, जिससे कर्मचारियों का बचना मुश्किल हो गया था.
हालांकि शोकसंतप्त और पीड़ित परिवार इस त्रासदी के साथ अपने आप को ढाल रहे हैं, मगर नगर निगम और अग्निशमन विभाग के कार्यालयों में इस बारे में कोई स्पष्टता नहीं है कि सालों तक बिना किसी की ध्यान में आये एक असुरक्षित इमारत को संचालित करने की अनुमति देने के लिए कौन जिम्मेदार है?
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सुरक्षा नियमों की धज्जियां उड़ाईं गईं
कॉफ़ी और आई-क्लियर के कंपनी के दस्तावेज़ बताते हैं कि वे साल 2019 से इस इमारत का उपयोग कर रहे थे. दिप्रिंट नार्थ देलही म्युनिसपल कारपोरेशन से इस बात की पुष्टि नहीं कर सका कि क्या पिछले तीन वर्षों में इस इमारत का कोई निरीक्षण किया गया था या इसके मालिक को इस परिसंपत्ति को खाली करने के लिए नोटिस दिया गया था.
नार्थ देलही म्युनिसपल कारपोरेशन के डिप्टी कमिश्नर रंजीत सिंह ने इस बात की पुष्टि की कि लकड़ा के पास इमारत को संचालित करने के लिए कोई लाइसेंस अथवा मंजूरी नहीं थी. उन्होंने कहा कि विभाग के पास अभी तक इस बारे में कोई अन्य पुष्ट जानकारी नहीं है.
इमारतों को नियमन करने वाला कानून चीजों को और भी जटिल बना सकता है: दिल्ली अग्निशमन सेवा अधिनियम, 2007 के अनुसार, 15 मीटर से कम ऊंचाई की इमारतों को अग्निशमन विभाग से एनओसी की आवश्यकता नहीं है. लेकिन अगर उन इमारतों के तरीके में कोई बदलाव होता है, यानी की अगर ऑफिस या रिहायशी जगह को स्टोरेज (सामान जमा करने) या असेंबली प्वाइंट (कल-पुर्जों को जोड़ कर कोई यंत्र बनाने की जगह) के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है तो एनओसी की जरूरत होती है.
यह अधिनियम 12 प्रकार की इमारतों को निर्धारित करता है जिनका संचालन शुरू करने से पहले फायर एनओसी की आवश्यकता होती है. अन्य प्रकारों के साथ-साथ, असेंबली और स्टोरेज के लिए उपयोग की जाने वाली सभी इमारतें, भूमिगत संरचनाएं, होटल एवं अतिथि गृह (गेस्ट हाउस) तथा शैक्षणिक भवन इसमें शामिल हैं.
दिल्ली अग्निशमन सेवा कार्यालय के एक वरिष्ठ अधिकारी, जो मीडिया से बात करने के लिए अधिकृत नहीं है, ने कहा,’ हालांकि, लैंड यूज़ (भूमि अथवा भवन के उपयोग) में इन परिवर्तनों को इन इमारतों के मालिकों द्वारा स्वतः घोषित किया जाना होता है और अग्निशमन विभाग सीधे तौर पर इसे मंजूर अथवा नामंजूर नहीं कर सकता है. फाइलों को नगर निगम के माध्यम से विभाग के पास आना होता है.’
यदि इमारत का उपयोग उस श्रेणी में बदल जाता है जिसे अग्निशमन विभाग से मंजूरी की आवश्यकता होती है, तो 15 अन्य आवश्यकताओं के बीच इमारत में स्पष्ट पहुंच, धुएं के प्रबंधन की प्रणाली, अग्निशामक यंत्र की उपलब्धता, फर्स्ट एड होस रील (पानी पहुंचाने वाले पाइप की एक रील), एक स्वचालित स्प्रिंकलर सिस्टम और निकास के संकेत होने चाहिए.
लेकिन ऐसी घोषणाएं विरले ही होती हैं.
निर्माण विशेषज्ञ सुनील बट्टा, जिन्होंने इस क्षेत्र में चार दशकों से अधिक समय से काम किया है, बताते हैं, ‘एमसीडी के लिए प्रत्येक भवन का निरीक्षण करना और यह देखना असंभव है कि क्या भूमि अथवा भवन का उपयोग केवल उसी उद्देश्य के लिए किया जा रहा है जिसे उसने अपना अनुमोदन प्राप्त करने के समय घोषित किया था.’
उनका कहना है कि इसी कारण से ऑक्यूपेंसी सर्टिफिकेट (दखल का प्रमाण पत्र) जारी करते समय निरीक्षण होना चाहिए. बट्टा कहते हैं, ‘अगर इमारतों का उपयोग कार्यालयों के लिए किया जाता है, तो उनके पास स्मोक डिटेक्टर (धुंए का पता लगने वाल यंत्र) होना चाहिए और भंडारण (स्टोरेज) वाले स्थानों के लिए स्प्रिंकलर की आवश्यकता होती है.’
इसी तरह, सभी सार्वजनिक भवनों, चाहे उन्हें फायर एनओसी की आवश्यकता हो या न हो, के लिए एक साफ सीढ़ी की आवश्यकता होती है.
बट्टा कहते हैं, ‘किसी इमारत में उसकी ऊंचाई के आधार पर एक ही सीढ़ी होना तो ठीक है, लेकिन इसकी चौड़ाई स्पष्ट तौर पर 1.5 मीटर होनी चाहिए, जिसमें रेलिंग और अन्य फिटिंग शामिल नहीं हों. इसके स्टेप्स (दो सीढ़ियों के बीच की ऊंचाई) की ऊंचाई छह इंच से अधिक नहीं होनी चाहिए. ‘
दुर्घटनास्थल से मिली प्रारंभिक जानकारी से पता चलता है कि मुंडका की उस इमारत में कथित तौर पर सुरक्षा के कोई इंतजाम नहीं थे.
अग्निशमन विभाग के एक सूत्र ने कहा, ‘अगर कार्यालय एक ही मंजिल पर इतने लोगों को इकट्ठा कर रहा था, तो उसे इसके लिए एक सभागार बुक करना चाहिए था.’
अग्निशमन विभाग के एक अधिकारी का कहना है कि यह जिम्मेदारी नार्थ देलही म्युनिसपल कारपोरेशन की है जो भवन योजनाओं को मंजूरी देने का अधिकार रखती है.’
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