अगर मोदी सरकार नकली खबरों को लेकर सच में गंभीर थी तो उसे अपने आईटी सेल्स और पार्टी के नेताओं समेत सभी मोर्चों पर कोई शून्य सहिष्णुता अपनानी चाहिए थी।
आईटी मंत्री रविशंकर प्रसाद ने सोशल मीडिया प्लेटफार्मों के लिए एक आदेश जारी किया हैः तकनीकी का प्रयोग कर नक़ली खबरों को रोको। लेकिन उन्होंने इस तथ्य को आसानी से छोड़ दिया कि भाजपा सरकार की प्रिय डिजिटल इंडिया परियोजना नक़ली खबरों का कारखाना हो सकती है।
प्रसाद ने कहा कि भारत में “अपराध बढ़ाने” के लिए नक़ली खबरों को बार-बार प्रसारित किया जा रहा है, जो स्वीकार्य नहीं होगा। और उन्होंने मीडिया से कड़ाई से कहा कि तकनीकी समाधान होना चाहिए क्योंकि “किसी विशेष दिन में किसी राज्य विशेष के किसी क्षेत्र विशेष में प्रसारित होने वाले लाखों मैसेजों की पहचान करने के लिए किसी विशेष तकनीकी (रॉकेट साइंस) की आवश्यकता नहीं है।
किसी विशेष दिन पर किसी राज्य विशेष में लाखों मैसेज प्रसारित किये जाते हैं? यह भाजपा के आईटी सेल के लिए सिर्फ एक अच्छे दिन के काम की तरह लगता है।
यदि ऐसा हो सकता है, तो भाजपा के पास स्वच्छ भारत से लेकर नोटबंदी एवं कन्या भ्रूण हत्या तक, सभी के लिए तकनीकी उपाय होंगे। आखिरकार, भाजपा सूचना प्रौद्योगिकी के माध्यम से सार्वजनिक सेवाओं के पूरे पारिस्थितिक तंत्र को “डिजिटल रूप से सशक्त समाज और ज्ञान अर्थव्यवस्था” में परिवर्तित करना चाहती है, जिसमें सभी को बांधने के लिए मात्र एक आधार पहचान पत्र की आवश्यकता है।
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Altnews के अनुसार, जामनगर में भाजपा आईटी सेल के संयोजक द्वारा राहुल गांधी की एक फेक तस्वीर साझा की गई थी जिसमें राहुल गांधी को अपने फोन में छोटे कपड़े पहने हुए महिलाओं की तस्वीरें देखते हुए दिखाया गया था, इस एकाउंट को नरेन्द्र मोदी, पीयूष गोयल और निर्मला सीतारमण फ़ॉलो करते हैं।
सत्तारूढ़ दल के मंत्रियों, विधायकों और सांसदों द्वारा किए गए ऐसे ‘नक़ली’ या ‘असली ’ ट्वीटों के अनगिनत उदाहरण हैं, सभी एक ही तरह की भाषा में और यहाँ तक कि कभी-कभी टाइपिंग में एक ही तरह की गलती के। परेश रावल ने एक बार कांग्रेस की दोहरी चाल के बारे में #JhoothiCongress पर गलती से गूगल डॉक्यूमेंट को ट्वीट कर दिया था। दुर्भाग्यवश, असल में यह ट्वीटर पर #JhoothiCongress को ट्रेंडिंग बनाने के लिए अंग्रेजी और हिन्दी में सुझाए गए ट्वीट के साथ भाजपा का आंतरिक रणनीतिक दस्तावेज था। रविशंकर प्रसाद इसका नेतृत्व करने वाले थे। जैसा कि Altnews ने बताया ,हाय! परेश रावल ने बंदूक झपटी और सभी ‘असली’ ट्वीटों का खुलासा कर दिया। जब नरेन्द्र मोदी चुनाव प्रचार मोड में थे, तब भाजपा कार्यकर्ताओं ने विनम्रतापूर्ण भाव पर जोर देने के लिए आरएसएस के प्रारंभिक दिनों के दौरान की युवा नरेन्द्र मोदी की एक तस्वीर साझा की जिसमें नरेन्द्र मोदी को फर्श पर झाड़ू लगाते हुए दिखाया गया था। लेकिन यह बात सामने आ गई कि इस तस्वीर को कम्प्यूटर द्वारा तोड़ मरोड़ कर बनाया गया है, नरेन्द्र मोदी ने उस तस्वीर को अस्वीकार करते हुए वायरल ही नहीं होने दिया।
ऐसा नहीं है कि अन्य पार्टियाँ अपराधहीन हैं, लेकिन बीजेपी अपने संदेश को फैलाने के लिए सोशल मीडिया का उपयोग करने में माहिर है। यह तकनीकी खेल में अन्य सभी पार्टियों से और अधिक सफल रही है। इसके अतिरिक्त इसमें झूठी खबरें भी शामिल हैं। अब जिन बोतल से बाहर आ चुका है (जो हो गया वह बदला नहीं जा सकता)। अब लोगों द्वारा फैलाई जाने वाली बच्चों की तस्करी और अपहरण की अफवाहों के आधार पर लोग मारे जा रहे हैं और जिन लोगों ने इसे फैलने दिया है उनके लिए सरकार तकनीकी समाधान चाहती है।
भाजपा महिला मोर्चा जिलाध्यक्ष गीता कपूर ने दंपत्ति के शरीरों से खून बहने वाली तथा एक किशोर/किशोरी की फोटो साझा की थी जो फेसबुक पोस्ट हिंसा का कारण बनी और तब बशीरहाट में सांप्रदायिक दंगे हुए थे। वास्तव में वह तस्वीर बांग्लादेश से थी। बीजेपी के आईटी प्रमुख अमित मालवीय ने बंगाल के नादिया की हिंसा की, यह बिना बताए कि यह 2015 की है, एक तस्वीर साझा की। नूपुर शर्मा और स्वप्न दासगुप्ता जैसे बीजेपी नेताओं ने #SaveBengal विरोध अभियान के हिस्से के रूप में जलती हुई गाड़ी की तस्वीर साझा की। भयंकर विडंबना यह है कि 2002 के गुजरात दंगों की यह तस्वीर वास्तव में न्यूयॉर्क टाइम्स की थी। हरियाणा राज्य की भाजपा कार्यकारी सदस्या विजेता मलिक ने एक औरत की एक तस्वीर साझा की जिसमें उस पर बशीरघाट की सड़कों पर हमला किया जा रहा था। यह तस्वीर वास्तव में एक भोजपुरी फिल्म ‘औरत खिलौना नहीं’ से थी।
जब फेक न्यूजों को फैलाने को लेकर उनकी ओर उंगली उठी थी, तो किसी एक ने भी माफी नहीं मांगी थी या कोई भी पश्चाताप नहीं किया था, निर्मल सीतारमण जैसे कुछ लोग ने इसका ठीक उलटा करते हुए माफ़ी माँगी। कुछ ने चुपचाप ट्वीट हटा दिए। दूसरों ने मूल रूप अततः अपने आप को न्योचित साबित करने के लिए उलटे इल्ज़ामों का सहारा लिया था। नुपूर शर्मा ने (उद्धत होते हुए) कहा कि उसने सिर्फ एक फ्लावर भेजा था जिसे उसने प्राप्त किया था और “इसने दिल्ली में लुटियन के लोगों को जागृत किया है, जिन्होंने अब तक एक स्थिर चुप्पी बरकरार रखी है।”
फेक न्यूजों का मुकाबला करने में प्रोद्योगिकी और सोशल मीडिया कंपनियों को अपनी भूमिका बनानी चाहिए और हम निश्चित रूप से तर्क दे सकते हैं कि वे पर्याप्त नहीं करते हैं, वे बहुत ही धीमी प्रतिक्रया देते है, अभिव्यक्ति की आजादी की परिभाषा, जो एक आकार सभी में फिट बैठता है, संस्कृतियों में काम नहीं करता जैसा श्रीलंका में पता चला है जहां न्यूयॉर्क टाइम्स ने बताया की कैसे एक देश टिंडरबॉक्स और साथ ही साथ फ़ेस्बुक पर दोस्त हो सकता है। बौद्ध बहुमत को खत्म करने के लिए मुस्लिमों को लेकर कहानी बनाकर फेसबुक पर खबर वायरल की गई थी, लेकिन टाइम्स ने फेसबुक अधिकारियों को सूचना दी, “हिंसा की संभावना की चेतावनी को बार-बार नजरअंदाज कर दिया गया। लगातार प्रयास के बावजूद माडरेटर्ज़ या आपातकालीन संपर्क के लिए कुछ भी नहीं किया गया। पारोमा रॉय चौधरी लिखती हैं कि गूगल जैसी कंपनियां स्वचालित टूल्स जैसे कॉन्वर्सेशन एआई के माध्यम से डिजिटल उत्पीड़न स्थान को सर्च करने का प्रयास कर रही हैं, “जेनरेट की गई सामग्री की अधिकता के कारण सोशल मीडिया प्लेटफार्मों में से किसी की भी सक्रिय रूप से निगरानी नहीं की जा सकती”।
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यहां एक सेकंड में औसतन 6000 ट्वीट्स होते हैं। और 500 मिलियन ट्वीट्स एक दिन में होते है। लेकिन जब आईटी मंत्रालय ने व्हाट्सएप को चेतावनी दी कि “इस खतरे को खत्म करने के लिए तत्काल कार्रवाई करें”, तो रॉय चौधरी ने यह भी लिखा, “इसके कारण फर्जी खबरें और मौतें, प्रौद्योगिकी के मुकाबले, कानूनी साधनों की कमी और कानून-व्यवस्था के बिगड़ने से ज़्यादा सम्बंधित है।” और सरकार का नजरअंदाज करना और विचारशील चुप्पी साधे रखने की इच्छा, ऐसा इसलिए है क्योंकि वे अफवाहों से राजनीतिक लाभांश प्राप्त कर सकते हैं। व्हाट्सएप अफवाहों के आधार पर मवेशी लिंचिंग की कहानियों के दौरान, नेतृत्व की चुप्पी, बार-बार, बोलती है। और अगर किसी को याद हो तो, केंद्रीय मंत्री जयंत सिन्हा ने जाकर उन आरोपियों का माल्यार्पण किया जो लिंचिग के आरोपी थे।
अगर सरकार फर्जी खबरों को लेकर गंभीर है तो वह अपने आईटी सेल और पार्टी के बड़े और छोटे नेताओं को समेत सभी मोर्चों पर फर्जी खबरों के लिए एक सहिष्णु नीति अपनाएगी। जवाबदेही यहां मुख्य बिन्दु है और सोशल मीडिया कंपनियों के लिए उत्तरदायित्व मढ़ना बहुत सुविधाजनक है। या एक तकनीकी समाधान की जरूरत है, जो सरकार के अधिकारों के अन्तर्गत न हो। लेकिन उत्तरदायित्व, उपकार की तरह घर से हाई चालू होता है।
संदीप रॉय एक पत्रकार, टिप्पणीकार और लेखक हैं।
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