scorecardresearch
Thursday, 21 November, 2024
होमविदेशक्या है चीन की ग्लोबल सिक्युरिटी इनीशिएटिव- जिनपिंग को क्या होगा हासिल और भारत पर क्या पड़ेगा असर

क्या है चीन की ग्लोबल सिक्युरिटी इनीशिएटिव- जिनपिंग को क्या होगा हासिल और भारत पर क्या पड़ेगा असर

‘वैश्विक सुरक्षा पहल’ के लिए राष्ट्रपति शी का प्रस्ताव जिसे पिछले सप्ताह उप-विदेश मंत्री ने सामने रखा, ऐसे समय पर आया है जब यूक्रेन युद्ध में रूस के साथ खड़े होने पर चीन की आलोचना हो रही है.

Text Size:

नई दिल्ली: चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की प्रस्तावित वैश्विक सुरक्षा पहल (ग्लोबल सिक्युरिटी इनीशिएटिव, जीएसआई) का लक्ष्य, जिसे उनके उप-विदेश मंत्री ते युचेंग ने स्पष्ट रूप से सामने रखा, एक ऐसा एशियाई सुरक्षा फ्रेमवर्क तैयार करना है, जिसमें ‘टकराव, गठबंधन, तथा ज़ीरो-सम एप्रोच की जगह संवाद, साझेदारी और सबका फायदा ले सके’.

कई सूत्रों ने दिप्रिंट से कहा कि ये क़दम ऐसे समय में उठाया गया है जब बीजिंग में चिंता बढ़ रही है, कि उत्तर अटलांटिक संधि संगठन (नेटो) एशिया-पैसिफिक क्षेत्र में अपने प्रभाव को फैला सकता है, जबकि चीन के ‘बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव’ को बहुत सी भू-राजनीतिक चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है.

हालांकि बढ़ते कोविड मामलों की वजह से चीन अभी भी बाक़ी दुनिया के लिए काफी हद तक बंद है, लेकिन राष्ट्रपति शी सुरक्षा मोर्चे पर एक और नैरेटिव को आकार देने में व्यस्त हैं, कि उनका देश किस तरह बातचीत के ज़रिए साझेदारियां करने की योजना बना रहा है. इससे पहले यूक्रेन पर हमले को लेकर रूस के साथ खड़े होने पर चीन की वैश्विक स्तर पर तीखी आलोचना हो रही थी.

रणनीतिक और सुरक्षा सूत्रों के अनुसार भारत के लिए जीएसआई, लद्दाख़ के पूर्वी क्षेत्र में एकतरफा रूप से यथास्थिति को बदलने की कोशिशों के रूप में सामने आ रहा है, जिसके नतीजे में सैन्य गतिरोध पैदा हुआ जो 2020 के आरंभ में शुरू हुआ था.

सूत्रों ने आगे कहा कि जीएसआई के अंतर्गत बीजिंग भारत और दक्षिण एशिया के दूसरे देशों को अपनी ख़ुद की एक व्यापक एशियाई सुरक्षा संरचना के अंतर्गत लाने के लिए क़दम उठाएगा, जबकि अमेरिका इंडो-पैसिफिक रणनीतिक ढांचे के तहत क्वॉड (‘क्वाड्रीलेटरल सिक्योरिटी डायलॉग’ जिसका भारत सदस्य है) और एयूकेयूएस (ऑस्ट्रेलिया, यूके, और अमेरिका के बीच त्रिपक्षीय सुरक्षा समझौता) के ज़रिए इस क्षेत्र में अपना प्रभाव बढ़ा रहा है.

एक सूत्र के अनुसार, मार्च में चीनी विदेश मंत्री वांग यी के भारत दौरे के दौरान इस आशय का एक संकेत दिया गया था, जब विदेश मंत्री एस जयशंकर के साथ अपनी बैठक में वांग ने इस बात पर ज़ोर दिया था, कि सीमा विवाद को एक समानांतर ट्रैक पर दूर रखते हुए, व्यापार और आर्थिक रिश्तों पर आगे बढ़ा जाए.

पिछले सप्ताह ‘सीकिंग पीस एंड प्रमोटिंग डेवलपमेंट’ नाम के वैश्विक थिंक टैंक की एक ऑनलाइन बातचीत में, चीन के उप-विदेश मंत्री ले युचेंग ने इन दावों का ज़ोरदार खंडन किया, कि चीन उस समय रूस के यूक्रेन पर हमले की योजना से वाक़िफ था, जब फरवरी में शीतकालीन ओलंपिक्स के दौरान राष्ट्रपति ब्लादिमिर पुतिन राष्ट्रपति शी से मिले थे, और दोनों पक्षों ने ‘सीमा-रहित’ द्विपक्षीय रिश्ते क़ायम करने का संकल्प लिया था.

ली ने जो भारत में चीन के राजदूत का काम कर चुके हैं, आयोजन में कहा, ‘हाल ही में राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने भी दृढ़तापूर्वक एक वैश्विक सुरक्षा पहल का प्रस्ताव रखा था. विचार ये है कि सुरक्षा पर नई परिकल्पना को मार्गदर्शक सिद्धांत के तौर पर लिया जाए, आपसी सम्मान को मूलभूत आवश्यकता समझा जाए, अविभाज्य सुरक्षा को महत्वपूर्ण सिद्धांत माना जाए, और सुरक्षा समुदाय के निर्माण को एक दीर्घ-कालिक लक्ष्य बनाया जाए, जिससे कि एक नई तरह की सुरक्षा तैयार की जा सके, जिसमें ‘संवाद, साझेदारी और सबका फायदा, टकराव, गठबंधन, और शून्य राशि दृष्टिकोण की जगह ले सकें’,

शी ने पिछले महीने बोआओ फोरम फॉर एशिया के वार्षिक सम्मेलन में जीएसआई पेश करने का प्रस्ताव रखा था, जहां उन्होंने कहा था: ‘ये महत्वपूर्ण पहल शांति की कमी को दूर करने के लिए एक मौलिक समाधान पेश करती है, और अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा चुनौतियों का सामना करने में चीनी दृष्टिकोण का योगदान देती है’.

शिव नाडर यूनिवर्सिटी में स्कूल ऑफ ह्यूमैनिटीज़ एंड सोशल साइंसेज़ के इंटरनेशनल रिलेशंस एंड गवर्नेंस स्टडीज़ विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर जेबिन टी जेकब के अनुसार, चीन की जीएसआई ‘विश्व शांति’ को लेकर नहीं है बल्कि उसका मक़सद ये दिखाना है कि अमेरिका विश्व शांति के लिए ख़तरा बन रहा है, चीन अमेरिकी की पैदा की गई समस्या को ठीक करने की कोशिश कर रहा है.’


यह भी पढ़ेंः यूक्रेन, व्यापार, रक्षा व ऊर्जा सुरक्षा; ये हैं PM के यूरोप दौरे के एजेंडा के ख़ास बिंदु


भारत के लिए निहितार्थ

एक सूत्र के अनुसार भारत बहुत क़रीबी नज़र बनाए हुए है कि चीन का आशय क्या है, जब वो ‘अविभाज्य सुरक्षा के एक महत्वपूर्ण सिद्धांत होने’, और जीएसआई के अंतर्गत एक ‘सुरक्षा समुदाय बनाने’ की बात करता है.

सूत्र ने आगे कहा कि चीन को अब नेटो के पूर्व की ओर विस्तार की भी चिंता सता रही है, चूंकि जापान ने एशिया-पैसिफिक साझीदारों के साथ रिश्ते मज़बूत करने की नेटो की कोशिश पर भी अनुकूल रुख़ का संकेत दिया है.

सूत्र ने आगे कहा कि चीन इसे भारत पर पहले ही आज़मा चुका है, जब उसने ‘अपने सक्रिय रक्षा रुख़ से आगे पहले से उठाई गई चालों की तरफ एक क़दम बढ़ाया था’ जैसा कि लद्दाख़ गतिरोध था. सूत्र ने ये भी कहा कि यूक्रेन पर रूस का आक्रमण भी ऐसी ही पहली चाल की मिसाल था.

प्रो. जेकब ने कहा ‘चीन अब उससे आगे बढ़ेगा जो ज़ाहिरी तौर पर बेल्ट रोड इनीशिएटिव के ज़रिए आर्थिक विकास का रास्ता था, और भारत के पड़ोस में वैश्विक सुरक्षा पहल के ज़्यादा आत्मविश्वासी सुरक्षा केंद्रित दृष्टिकोण की ओर बढ़ेगा’.

उन्होंने आगे कहा, ‘इंडो-पैसिफिक या नेटो के एशिया-प्रशांत संस्करण पर चीन के दिख रहे विरोध से, हमें इस संभावना से आंखें नहीं मूंदनी चाहिएं कि चीन एशिया में अपने ख़ुद के सिक्योरिटी ब्लॉक्स बनाने के अवसर देख रहा है, जैसा कि उसने एक सीमित हद तक शंघाई सहयोग संगठन के ज़रिए करने का प्रयास किया है, और जिसे वो दक्षिण एशियाई साझीदारों के साथ आगे बढ़ा सकता है’.

जेकब ने आगे कहा कि वांग यी के हालिया दौरे से पता चला, कि प्रयास ये रहेगा कि ऐसा नज़र आए कि चीन और भारत ने पूर्वी लद्दाख़ में सीमा पर चल रहे तनाव को पीछे छोड़ दिया है, और जहां तक रूस-यूक्रेन युद्ध का सवाल है दोनों के विचार एक हैं.


यह भी पढ़ेंः चीन वापस जा सकते हैं भारतीय छात्र, लेकिन ‘आवश्यकता-आंकलन के आधार’ पर अनुमति देगा बीजिंग


प्रवाह में BRI और CCP की 20वीं पार्टी कांग्रेस

चीनी कम्यूनिस्ट पार्टी इस साल के उत्तरार्ध में अपनी 20वीं पार्टी कांग्रेस आयोजित करेगी, जिसमें राष्ट्रपति शी अध्यक्ष पद के लिए दावा ठोंक सकते हैं, जिस पर अभी तक केवल चीनी जनवादी गणराज्य के संस्थापक माओ ज़ेदोंग ही आसीन रहे हैं.

ये ऐसे समय होगा जब शी की प्रिय परियोजना बेल्ट एंड रोड इनीशिएटिव बहुत सारी चुनौतियों का सामना कर रही है, जिनमें कोविड महामारी, कर्ज़ में आ रहे देश, अफगानिस्तान में तालिबान की वापसी, और यूक्रेन युद्ध शामिल हैं.

जेकब ने कहा, ‘इसमें कोई शक नहीं कि वैश्विक सुरक्षा पहल पहले से एक प्रचार अभियान का संकेत देती है, जिससे दो साल की महामारी के बाद चीन को अपनी खोई हुई कूटनीतिक ज़मीन फिर से हासिल करने में सहायता मिलेगी. और ये अभियान महत्वपूर्ण है चूंकि कम्यूनिस्ट पार्टी इसी साल होने वाली अपनी 20वीं कांग्रेस की ओर अपने अंतिम दौर में दाख़िल हो रही है’.

उन्होंने आगे कहा, ‘चीन के प्रमुख शहर कड़े लॉकडाउन में हैं,आर्थिक गतिविधियों में गिरावट है, ऐसा लग रहा है कि बीआरआई थम सी गई है या उसे पाकिस्तान में ख़तरे का सामना है, और चीन एक कमज़ोर विकेट पर है जबकि रूस यूक्रेन युद्ध को जल्दी से समाप्त नहीं कर पा रहा है. ऐसे में बीआरआई को संभवत: एक ऐसे अवसर के रूप में देखा जा रहा है, जो चीन की कूटनीति और बाहरी पहलक़दमियों की एक ज़्यादा अच्छी तस्वीर पेश कर सकता है’.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


यह भी पढ़ेंः मोदी के दौरे के बाद यूक्रेन हमले के बावजूद करीब आ सकते हैं भारत और EU


 

share & View comments