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Friday, 22 November, 2024
होमएजुकेशनपांचवी के छात्र ही टीचर बनकर दे रहे शिक्षा, हाजिरी भी कम; जानें कैसा है गुजरात के स्कूलों का नजारा

पांचवी के छात्र ही टीचर बनकर दे रहे शिक्षा, हाजिरी भी कम; जानें कैसा है गुजरात के स्कूलों का नजारा

गुजरात में इस साल के अंत में चुनाव हैं लेकिन यहां के करीब 700 सरकारी प्राथमिक स्कूलों की हालत खस्ता है. दिप्रिंट ने कच्छ और महीसागर में स्कूलों की स्थिति को जानने की कोशिश की.

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कच्छ/महिसागर: कच्छ जिले के अंगिया नाना गांव के प्राथमिक स्कूल में दो ‘शिक्षक’ बड़ी ईमानदारी के साथ बच्चों से भरी एक क्लास को गुजराती पढ़ना सिखा रहे है. समस्या यह है कि ये दोनों ‘शिक्षक’ कक्षा 5 के छात्र हैं और पालथी मार कर पढ़ाई कर रहे सभी बच्चे किसी एक कक्षा के नहीं बल्कि पहली, दूसरी और तीसरी कक्षा के छात्र हैं.

इस स्कूल के एकमात्र टीचर विजय कुमार पटेल स्कूल से नियमित रूप से गायब रहते हैं. क्योंकि उनके पास करने के लिए और भी बहुत से काम हैं. वह न केवल स्कूल की हर कक्षा के लिए नामित शिक्षक हैं बल्कि प्रिंसिपल, प्रशासक और मिड-डे मील सुपरवाइजर भी हैं.

43 साल के पटेल ने दिप्रिंट को बताया, ‘कभी-कभी जब मैं कागजी कार्रवाई पूरी करने में लगा होता हूं या फिर उनकी नोटबुक जांच रहा होता हूं, तो मैं पांचवी क्लास के अपने कुछ होनहार छात्रों को जूनियर क्लास के बच्चों को पढ़ाने के लिए कह देता हूं.’

पहले वह चौथी और पांचवी क्लास के छात्रों को एक साथ पढ़ाते हैं और उसके बाद पहली से तीसरी क्लास के बच्चों की तरफ रूख करते हैं. इन्हें भी एक ही कमरे में साथ बैठाकर पढ़ाया जाता है. उस बीच बच्चों को होमवर्क देना भी वह नहीं भूलते हैं. ये पटेल की रोज की दिनचर्या है. जरूरी काम आने पर बच्चों को पढ़ाने का काम होनहार छात्रों को सौंप दिया जाता है.

ये कहानी अकेले अंगिया नाना गांव के स्कूल की नहीं है. पूरे गुजरात में कम से कम 700 सरकारी प्राथमिक स्कूलों ऐसे हैं जहां एक ही टीचर पूरे स्कूल को संभाल रहा है. 8,500 अन्य प्राथमिक विद्यालयों की स्थिति इससे मामूली रूप से बेहतर कही जा सकती है क्योंकि वहां एक की बजाय दो शिक्षक स्कूल की जिम्मेदारी संभाले हुए हैं.

गुजरात में इस समय 33,348 सरकारी प्राथमिक स्कूल हैं. हालांकि दूर-दराज के इलाकों में स्थित एक या दो शिक्षक वाले ये स्कूल इनके कुछ ही हिस्से का प्रतिनिधित्व करते हैं लेकिन स्कूली शिक्षा के ‘गुजरात मॉडल’ के बारे में ‘सफलता की कहानियों’ के उलटने के लिए काफी हैं. शिक्षा का वो गुजरात मॉडल जिसका जिक्र हाल-फिलहाल में प्रधानमंत्री मोदी ने किया था. उन्होंने सभी राज्यों और केंद्र सरकार के मंत्रालयों को विद्या समीक्षा केंद्र (प्राथमिक विद्यालयों के लिए कमांड एंड कंट्रोल सेंटर) का दौरा करने और इसके मॉडल का अनुसरण करने की सलाह दी थी.

गुजरात में इस साल के अंत में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं. राज्य की स्कूली शिक्षा की गुणवत्ता में अंतर पहले से ही एक प्रमुख राजनीतिक मुद्दा बन चुका है.

आम आदमी पार्टी (आप) ने गुजरात के सरकारी स्कूलों की तुलना अपने ‘दिल्ली मॉडल’ से की. इस महीने की शुरुआत में  दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने ट्वीट करते हुए गुजरात में सरकारी स्कूलों की खराब स्थिति का आरोप लगाया था.

कांग्रेस ने भी राज्य सरकार की आलोचना करते हुए कहा कि पिछले दो सालों में 399 प्राइवेट स्कूलों की तुलना में केवल 19 नए सरकारी स्कूल खोले गए हैं. प्राइवेट स्कूल की फीस आम तौर पर काफी ज्यादा है और वह ठीक ढंग से काम भी नहीं करते हैं.

दिप्रिंट से बात करते हुए गुजरात के शिक्षा सचिव डॉ विनोद आर. राव ने कहा कि सरकार विश्व बैंक से सहायता प्राप्त मिशन स्कूल ऑफ एक्सीलेंस प्रोजेक्ट के जरिए इन समस्याओं को दूर करने की कोशिश कर रही है. अगले पांच सालों में 10,000 करोड़ रुपये की अनुमानित लागत से यह कार्यक्रम सभी सरकारी स्कूलों को अपग्रेड करने और स्कूल में शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार करने की तरफ देख रहा है.

लेकिन ग्रामीण गुजरात के कई स्कूलों में जमीनी हकीकत कुछ अलग ही कहानी कहती नजर आती है. ये स्कूल मौजूदा समय के हाई-टेक क्लास और विश्व स्तरीय शिक्षा की दृष्टि से काफी दूर हैं. ऐसा नहीं है कि ये अंतर धीरे-धीरे कम होने की राह पर हो, बल्कि ये बढ़ता जा रहा है. इनमें से कई स्कूलों के शिक्षा के स्तर में पिछले दो या तीन सालों में और अधिक गिरावट देखने को मिली है.

यह जानने के लिए कि गुजरात के दूर-दराज वाले प्राथमिक स्कूलों में शिक्षा व्यवस्था कैसी चल रही है, दिप्रिंट ने दो ग्रामीण जिलों- कच्छ और महिसागर का दौरा किया और वहां के छह स्कूलों का जायजा लिया. इनमें से तीन स्कूल ऐसे थे जहां एक टीचर ही पूरे स्कूल की जिम्मेदारी संभाले हुए था, जबकि अन्य तीन में दो शिक्षक स्कूल को चला रहे थे.


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पढ़ाई भगवान भरोसे, मिड-डे मील स्कूल का मुख्य आकर्षण

दिप्रिंट ने जिन एक शिक्षक वाले स्कूलों का दौरा किया था,  वहां शिक्षक और छात्र दोनों ही पढ़ाई के अलावा दूसरे अन्य कामों में लगे नजर आए. सुविधाओं के नाम पर स्कूल बदहाल नजर आ रहे थे.

कच्छ के धवड़ा नाना गांव में स्थित श्री शक्ति नगर राजकीय प्राथमिक शाला (निम्न प्राथमिक विद्यालय) के परिसर में 21 अप्रैल की तपती धूप में स्कूल यूनिफॉर्म में कुछ छोटे बच्चे पौधों को साफ करने में व्यस्त थे.

Students clear out some overgrowth at the Shree Shakti Nagar government lower primary school at Dhavda Nana village in Kachchh district | Manisha Mondal | ThePrint
कच्छ जिले के धावड़ा नाना गांव में श्री शक्ति नगर सरकारी निचले प्राथमिक विद्यालय के छात्र| मनीषा मंडल | दिप्रिंट

यह किसी प्रकार की सामुदायिक सेवा अभ्यास नहीं था, बल्कि स्कूल के एकमात्र शिक्षक द्वारा प्रशासनिक कार्य पूरा करने के दौरान छात्रों को व्यस्त रखने का प्रयास था. लेकिन उनका ये प्रयास भी कुछ ही हद तक सफल होता दिखा. दो कमरों वाले इस स्कूल के बरामदे और आंगन के चारों ओर बच्चे खेलते और दौड़ते दिखाई पड़ रहे थे. स्कूल में कक्षा एक से लेकर पांचवीं तक कुल 33 कुल छात्र हैं.

टीचर और प्रिंसिपल  राजेश रतिलाल पधारिया ने कहा कि वह बस इतना ही संभाल सकते हैं.

वह कहते हैं, ‘ मेरे पास दो-दो जिम्मेदारियां हैं. मैं स्कूल का प्रिंसिपल भी हूं इसलिए मुझे प्रशासनिक कामकाज भी देखना पड़ता. मैं छात्रों को बिजी रखने के लिए उन्हें अलग-अलग काम देकर रखता हूं. वरना वो सिर्फ खेलते हैं और शोर करते रहते हैं. एक बार जब मेरा काम खत्म हो जाता है उसके बाद  मैं क्लास में जाकर उन्हें पढ़ाता हूं’

कुछ ही किलोमीटर दूर अंगिया नाना गांव है. गांव के प्राथमिक स्कूल में 41 बच्चे पढ़ते हैं. यहां के ‘सहायक शिक्षक’ क्लास 5 की दो छात्राएं गीता हीराभाई रब्बारी और वनिता कायाभाई रब्बारी हैं.

दिप्रिंट ने देखा कि दोनों बड़ी तन्मयता और मेहनत के साथ दर्जन भर छोटे बच्चों को गुजराती पढ़ना सिखाने की कोशिश कर रही थीं. वहीं बड़े बच्चे अपना असाइनमेंट करने में व्यस्त थे. एक दूसरे शिक्षक के स्थानांतरण के बाद एक साल से अकेले स्कूल चला रहे शिक्षक विजय कुमार ने इन बच्चों को यह कार्य करने के लिए दिया था.

विजय कुमार पटेल अंगिया नाना के प्राथमिक विद्यालय में एक साथ दो कक्षाओं में पढ़ाते हैं | मनीषा मंडल | दिप्रिंट

बहुत से शिक्षकों ने माना कि प्रशासनिक कार्यों को संभालने, मिड-डे मील मेनू तय करने और अलग-अलग उम्र के बच्चों जरूरतों को पूरा करने में पढ़ाई कहीं पीछे छूट गई है.

महिसागर के सिमलिया गांव के डूंगरी फलिया वर्ग निम्न प्राथमिक विद्यालय के एकमात्र शिक्षक मानसिंहभाई रामजीभाई कटारा ने कहा, ‘ पहली से पांचवीं क्लास के बच्चों को अकेले संभालना मुश्किल है. मुझे पता है कि यह बच्चों की पढ़ाई को प्रभावित कर रहा है, लेकिन मैं कुछ नहीं कर सकता हूं.’

दूर-दराज के इलाके में स्थित इन स्कूलों के अधिकांश बच्चे भील आदिवासी समुदाय से हैं. ये सभी बहुत ही गरीब सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि से आते हैं.

इनमें से कई छात्रों के लिए स्कूल जाने का मकसद सिर्फ मिड-डे मील खाना है. पढ़ाई हो या न हो लेकिन सभी स्कूलों में मिड-डे मील जरूर मिल जाएगा. और यही खाने का लालच इनमें से अधिकांश बच्चों को स्कूल तक खींच कर लाता है.

शिक्षा विभाग के एक अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर स्वीकार किया कि एक शिक्षक वाले स्कूल एक तरह से डे-केयर सेंटर की तरह काम कर रहे हैं. यहां बच्चों को मुफ्त भोजन मिल जाता है.

उन्होंने कहा, ‘बच्चों को उनकी उम्र और कक्षा के हिसाब से नहीं पढ़ाया जा रहा है. जब तक आपके पास 120 से 150 छात्रों की महत्वपूर्ण संख्या नहीं होगी तब तक आप उन्हें उनके ग्रेड के अनुसार शिक्षा कैसे दे पाएंगे.’

सिमलिया गांव के डूंगरी फलिया वर्ग प्राथमिक विद्यालय में भी स्थिति कुछ ऐसी ही थी. स्कूल में कुल 48 बच्चे हैं, जिनकी जिम्मेदारी अकेले मानसिंहभाई रामजीभाई कटारा के कंधों पर है. उन्हें हर दिन एक ही कमरे में पहली से पांचवी तक के बच्चों को एक साथ पढ़ाना पड़ता है.

उन्होंने कहा, ‘पहले मैं तीसरी, चौथी और पांचवी क्लास के बच्चों को कुछ असाइनमेंट देता हूं और उसके बाद दूसरी क्लास के बच्चों को पढ़ाता हूं. मुश्किल ये है कि सभी बच्चे इस एक छोटे से कमरे में बैठते है और परेशान रहते हैं.

साल 1991 में ये स्कूल खुला था, तब से 90,000 रुपये प्रति माह वेतन पाने वाले कटारा इस स्कूल में पढ़ा रहे हैं.

दो साल पहले तक स्कूल में तीन शिक्षक थे. एक रिटायर हो गए और दूसरे की कोविड के कारण मृत्यु हो गई. वह कहते हैं, ‘पिछले साल से मैं अकेले ही बच्चों को पढ़ा रहा हूं. मैंने इसकी जानकारी अपने सीनियर्स को दी है, लेकिन अभी तक किसी और शिक्षक की नियुक्ति स्कूल में नहीं की गई है.’

प्राथमिक शिक्षा गुजरात में जिला विकास अधिकारी (DDO) के अधिकार क्षेत्र में आती है. लेकिन महिसागर के डीडीओ के.डी. लखाने ने यहां एक शिक्षक वाले स्कूलों पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया. उन्होंने कहा, ‘जिला प्राथमिक शिक्षा अधिकारी कार्यालय में नहीं है. उनकी गैरमौजूदगी में मेरे लिए कुछ भी कह पाना मुश्किल है’.


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खराब पड़े गैजेट्स और छात्रों की कम संख्या

जब प्रिंट ने अन्य स्कूलों का दौरा किया तो दो स्कूलों को छोड़कर बाकी सभी स्कूल काफी सुनसान नज़र आए. वहां बच्चों की उपस्थित न के बराबर थी.

कच्छ के भुज तालुका के जदुरा गांव के सरकारी निम्न प्राथमिक विद्यालय में 21 अप्रैल को सुबह 11.30 बजे दिप्रिंट वहां पहुंचा तो देखा कि अधिकांश छात्र स्कूल से गायब थे. यह पूछे जाने पर कि वे कहां हैं, शिक्षक तौफीक मंसूरी ने कहा कि यह शादी का मौसम है. इसलिए कुछ बच्चे सुबह तो आते हैं, लेकिन फिर फंक्शन में जाने के लिए स्कूल से भाग जाते हैं. मंसूरी इस स्कूल में एकमात्र शिक्षक हैं.

The government lower primary school in Jadura village of Bhuj taluka, Kachchh. Most students were missing as they had gone for weddings | Manisha Mondal | ThePrint
कच्छ के भुज तालुका के जादुरा गांव में सरकारी प्राथमिक विद्यालय। अधिकांश छात्र गायब थे क्योंकि वे शादियों में गए थे | मनीषा मंडल | दिप्रिंट

इस तरह के स्कूलों में बच्चों की मौजूदगी को लेकर उनके साथ ‘सख्ती’ से पेश आना बेकार है. ये बच्चे बेहद गरीब परिवारों से आते हैं. स्कूल की एक क्लास छह डेस्कटॉप कंप्यूटरों के साथ हाई-टेक नजर आ रही थी. लेकिन मंसूरी ने बताया कि इनका कभी इस्तेमाल ही नहीं किया गया है. क्योंकि कंप्यूटर विषय को पढ़ाने वाला कोई शिक्षक नहीं है.

गुजरात सरकार के ‘स्मार्ट क्लासरूम’ और इसी तरह के विजन को ध्यान में रखते हुए, दिप्रिंट ने और भी कई स्कूलों का दौरा किया. अगर एक स्कूल को छोड़ दिया जाए तो बाकि सभी स्कूलों में कंप्यूटर धूल फांकते नजर आए.

सभी स्कूलों में एक टीवी भी मिला जो ऑनलाइन सीखने में मदद करने के लिए दिया गया था. वो भी बस जगह घेरे हुए एक कोने में पड़ा था.

इस इलाके के जिन स्कूलों में दो शिक्षक हैं वहां कि स्थिति भी ज्यादा बेहतर नहीं है.

महिसागर जिले के बटकवाड़ा गांव में मेना वर्ग-1 सरकारी निम्न प्राथमिक विद्यालय इसका एक जीता-जागता उदाहरण है.

ये स्कूल 1981 में एक सुदूर गांव में शुरु किया गया था. यहां की आबादी में आदिवासी की अच्छी खासी संख्या शामिल है. स्कूल में दो टीचर हैं-मोगाजीभाई गलाभाई और उषाबेन अर्जुनभाई कटारा. दोनों की उम्र 58 साल है. दोनों तकनीकी रूप से 31 मार्च को रिटायर हो चुके हैं लेकिन उन्हें वर्तमान शैक्षणिक सत्र समाप्त होने तक दो महीने का एक्सटेंशन दिया गया है.

गलाभाई ने कहा, ‘जुलाई में नया शैक्षणिक सत्र शुरू होने के बाद एक नए शिक्षक की नियुक्ति की जाएगी. तब तक हम दोनों को यहां पढ़ाना है.’

गुजरात में प्राथमिक स्कूलों ने फरवरी के पहले सप्ताह से कक्षाएं फिर से शुरू कर दीं और 7 मई को गर्मी की छुट्टियां होने तक जारी रहेंगी.

मेना वर्ग स्कूल में 28 बच्चे पढ़ते हैं. लेकिन जब 25 अप्रैल को दिप्रिंट ने स्कूल का दौरा किया तो उनकी उपस्थिति काफी कम थी.

Ushaben Arjunbhai Katara looks on as a student sweeps the veranda at the Mena Varg-I government lower primary school in Batakwada village, Mahisagar district | Manisha Mondal | ThePrint
महिसागर जिले के बटकवाड़ा गांव में मेना वर्ग-I के सरकारी निचले प्राथमिक विद्यालय में बरामदे की सफाई करता एक छात्र. तस्वीर- दिप्रिंट

2004 से स्कूल में पढ़ा रहे गलाभाई ने दिप्रिंट को बताया कि ज्यादातर बच्चे गांव में एक शादी समारोह में शामिल होने के लिए चले गए हैं.

स्कूल के कमरे गलाभाई के ऑफिस से आकार में दोगुने हैं. इन दो कमरों में से एक के अंदर दो लकड़ी की मेज, तीन अलमारी, एक ब्लैकबोर्ड है. साथ ही  स्टील की प्लेटों का ढेर और तीन गैस सिलेंडर भी रखे हैं, जिन्हें मिड डे मील पकाने के लिए इस्तेमाल में लाया जाता है. दो धूल भरे कंप्यूटर और एक टीवी एक खाली बेंच पर बेसुध पड़ा है. इन दोनों में कोई भी एक काम करने की स्थिति में नहीं है.

गलाभाई ने कहा, ‘टीवी दो साल पहले तक काम कर रहा था. लेकिन फिर किसी ने डिश एंटीना चुरा लिया। तब से यह ऐसे ही बेकार पड़ा है’  वह आगे कहते हैं, ‘हो सकता है कि किसी गांव वाले ने इसे चुराया हो, लेकिन शिकायत दर्ज कराने का कोई फायदा नहीं है.’

उषाबेन तीसरी क्लास के बच्चों को पढ़ाती और गलाभाई चौथी और पांचवीं कक्षा के प्रभारी हैं. 75,000 रुपये मासिक वेतन लेने वाले गलाभाई ने कहा, ‘हम बच्चों को गुजराती, हिंदी, अंग्रेजी, संस्कृत, गणित और पर्यावरण विज्ञान पढ़ाते हैं.’

जब दिप्रिंट ने क्लास के बाहर बैठे छह छात्रों में से एक से पूछा कि उन्होंने स्कूल में क्या सीखा, तो वह हिंदी नहीं समझ पा रहा था. गलाभाई ने कहा, ‘बच्चों को समझने में समय लगता है.’ अधिकांश बच्चे गुजराती के अलावा किसी और भाषा को समझ पाने में सक्षम नहीं थे.

सिमलिया गांव के डूंगरी फलिया वर्ग प्राथमिक विद्यालय के छात्रों ने बताया कि उन्होंने स्कूल में एक बार भी कंप्यूटर का इस्तेमाल नहीं किया है.


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Students wait patiently for their turn to be taught at Dungari Faliya prathmikshala at Simaliya village, Mahisagar district. Their teacher is busy with older students in another room. An unused computer can be seen in the background | Manisha Mondal | ThePrint
महिसागर जिले के सिमलिया गांव के डूंगरी फलिया प्राथमिकशाला में पढ़ाने के लिए छात्र धैर्यपूर्वक अपनी बारी का इंतजार करते हैं. उनके शिक्षक दूसरे कमरे में बड़े छात्रों के साथ व्यस्त हैं. तस्वीर- मनीषा मंडल. दिप्रिंट

पिछले दो-तीन सालों में ‘एक शिक्षक’ वाले स्कूलों की संख्या बढ़ी

शिक्षकों के साथ-साथ शिक्षा विभाग के अधिकारियों के अनुसार, एक शिक्षक वाले स्कूल एक नया मामला है.

शिक्षा विभाग के एक अधिकारी ने नाम जाहिर नहीं करने की शर्त पर कहा, ‘पिछले दो-तीन सालों में एक शिक्षक द्वारा चलाए जा रहे स्कूलों का चलन बढ़ा है. दरअसल कई शिक्षक रिटायर हो गए या फिर उन्होंने ट्रांसफर ले लिया. जबकि खाली पदों को भरने के लिए कोई भर्ती नहीं की गई है.’

अधिकारियों ने बताया कि कच्छ में लगभग 200 शिक्षकों का दूरदराज के गांवों से कस्बों में तबादला कर दिया गया, जबकि अन्य 200 पिछले दो या तीन सालों से जिले के बाहर ट्रांसफर की मांग कर रहे हैं.

कच्छ जिले के एक सरकारी अधिकारी ने कहा, ‘कच्छ में 10,500 रुपये वेतन पर 810 अस्थायी शिक्षकों की भर्ती को मंजूरी दी गई है. लेकिन दूरदराज के इलाकों में हमें प्रशिक्षित शिक्षक नहीं मिल पाए हैं. इसलिए सिर्फ 50 प्रतिशत पदों को ही भरा जा सका है. यही कारण है कि एक शिक्षक वाले स्कूलों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है.’

कच्छ जिले के प्राथमिक शिक्षा अधिकारी नीलेश गोर के अनुसार,  ट्रांसफर और रिटायरमेंट की वजह से कई स्कूलों में एक ही शिक्षक रह गया है. लेकिन नई भर्तियां प्रक्रिया में थीं.

उन्होंने दिप्रिंट को बताया, ‘कच्छ में 355 शिक्षकों की भर्ती की जा रही है. उनकी नियुक्ति अगले महीने हो जाएगी.’

राज्य के शिक्षा विभाग के अधिकारी ने पहले कहा था कि, पूरे गुजरात में, 3,300 शिक्षकों की भर्ती की प्रक्रिया शुरू हो गई है. अधिकारी के अनुसार, ‘नया सत्र शुरू होने के बाद उन्हें नियुक्त किया जाएगा.’

स्कूल में एक ही शिक्षक होने का एक कारण कम छात्र होने पर सभी कक्षाओं को एक साथ मिला देने वाली ‘स्कूल मर्जर पॉलिसी’ भी है.

कुछ प्राथमिक स्कूलों में पहले कक्षा 6 और 7 तक के छात्रों को पढ़ाया जाता था. लेकिन बच्चों की संख्या कम होने के कारण, इन्हें पास के स्कूलों में स्थानांतरित कर दिया गया. वहां अधिक छात्र और शिक्षक थे.

गोर ने कहा कि प्राथमिक विद्यालय आरटीई (शिक्षा का अधिकार) नियमों के अनुसार चलाए जा रहे हैं, जिसमें 30 छात्रों के लिए एक शिक्षक होना जरूरी है.

उन्होंने कहा, ‘स्कूल मर्जर पॉलिसी’ के अनुसार एक प्राथमिक स्कूल को कक्षा 6 शुरू करने की मंजूरी तभी मिलती है जब क्लास में कम से कम 20 छात्र हों. वरना उन्हें मर्ज कर दिया जाता.’

गुजरात सरकार ने लगभग 90 सरकारी प्राथमिक स्कूलों को बंद कर दिया है. और अन्य 500 को 2020 से अपनी ‘स्कूल मर्जर पॉलिसी’ के तहत उनका विलय कर दिया गया.

कच्छ के श्री शक्ति नगर प्राथमिकशाला के प्रधानाचार्य और शिक्षक राजेश रैलाल पधारिया बताते हैं कि स्थिति हमेशा से ऐसी नहीं थी.

48 साल के पधारिया याद करते हुए कहते हैं कि 2001 के भूकंप की चपेट में आकर ये स्कूल पूरी तरह से तहस-नहस हो गया था. एक साल बाद इसका पुनर्निर्माण हुआ और तत्कालीन शिक्षा मंत्री आनंदीबेन पटेल ने इसका उद्घाटन किया था. उन्होंने कहा कि उस समय कक्षा 8 तक 70 छात्र और चार शिक्षक थे.

लेकिन समय के साथ छात्रों की संख्या कम होती चली गई. उन्होंने कहा, ‘यहां के बच्चे ज्यादातर गरीब परिवारों से हैं. कई बच्चों के माता-पिता इस जगह को छोड़कर चले गए क्योंकि यहां आमदनी का कोई जरिया नहीं था.’

Rajesh Railal Padhariya, principal-cum-teacher at the Shree Shakti Nagar prathmikshala in Kachchh. He has divided the students of various classes into two groups and teaches each turn by turn | Manisha Mondal | ThePrint
कच्छ में श्री शक्ति नगर प्राथमिकशाला के प्रधानाचार्य सह शिक्षक राजेश रैलाल पधारिया।तस्वीर- मनषी मंडल. दिप्रिंट

2021 में जैसे ही कक्षा 6 और 7 में बच्चों की संख्या कम हुई, इन ग्रेडों को पास के बड़े प्राथमिक विद्यालय में स्थानांतरित कर दिया गया. पढरिया ने कहा, ‘छठी और सातवीं क्लास को पढ़ाने वाले दो शिक्षकों को भी दूसरे स्कूलों में स्थानांतरित कर दिया गया. पिछले अक्टूबर में कोविड के दौरान एक टीचर की मौत हो गई. तब से मैं अकेला ही स्कूल में बच्चों को पढ़ा रहा हूं’

सरकारी प्राथमिक स्कूल जहां एक ओर लगातार संघर्ष कर रहे हैं, वहीं प्राइवेट स्कूल तेजी से फल फूल रहे हैं. यहां तक कि कच्छ और महिसागर जैसे दूर-दराज और आदिवासी जिलों में भी पिछले कुछ सालों में सैकड़ों प्राइवेट स्कूल खुल गए हैं. इन स्कूलों की महंगी फीस अब विपक्षी दलों की आलोचना की एक वजह बन गई है.

सरकार क्या कर रही है?

शिक्षा के ‘गुजरात मॉडल’ को राज्य में कथित औद्योगिक और कृषि प्रगति की तुलना में कुछ हद तक कम प्रशंसा मिली है.

2019 और 2021 के बीच राज्य के शिक्षा विभाग ने स्कूलों का मूल्यांकन करने के लिए ‘गुणोत्सव 2.0’ शुरू किया था. प्राथमिक स्कूलों में सीखने के परिणामों के सरकार के अपने आकलन में, 30,681 स्कूलों में से केवल 14 को ए प्लस ग्रेड मिला था. ये ग्रेड सीखने के बेहतर परिणामों का संकेत होता है.

प्राथमिक शिक्षा में इस समस्या से निपटने के लिए राज्य सरकार ने 2019 में जीपीएस वाले टैबलेट के जरिए ‘रिअल टाइम सर्विलांस सिस्टम’ शुरू किया था. ताकि शिक्षकों के स्कूल से गायब रहने और गंभीरता से बच्चों को न पढ़ाए जाने पर नजर रखी जा सके.

अगर जीपीएस पर चीजें थोड़ी गड़बड़ नजर आती हैं, तो गांधीनगर में कमांड-एंड-कंट्रोल सेंटर (विद्या समीक्षा केंद्र) के अधिकारी शिक्षकों को उनके स्थान और गतिविधियों के बारे में अपडेट के लिए किसी भी समय कॉल कर सकते हैं.

पिछले साल विद्या समीक्षा केंद्र 2.0 के अनावरण के साथ इस प्रणाली को और बढ़ावा मिला, जिसका उद्देश्य 55,000 प्राथमिक और माध्यमिक सरकारी स्कूलों में उपस्थिति, नामांकन और सीखने के परिणामों को ट्रैक करना है.

गुजरात के शिक्षा सचिव विनोद आर राव ने कहा, ‘हमने विद्या समीक्षा केंद्र की स्थापना की है, जहां से हम राज्य भर के प्रत्येक सरकारी प्राथमिक विद्यालय के प्रदर्शन का आकलन कर सकते हैं.’

राव ने बताया कि प्रधानमंत्री मोदी इस महीने अपनी यात्रा के दौरान केंद्र से काफी प्रभावित हुए थे. उन्होंने कहा, ‘प्रधानमंत्री ने इसे देश के लिए एक मॉडल और दुनिया के लिए एक आश्चर्य बताया है कि कैसे तकनीक लाखों छात्रों के जीवन को बेहतर बना सकती है.’

दिप्रिंट ने जिन भी स्कूलों का दौरा किया, वहां शिक्षक नियमित रूप से अपनी उपस्थिति ऑनलाइन दर्ज कर रहे थे. लेकिन वो ‘रिअल टाइम सर्विलांस’ कहीं नजर नहीं आ रहा था, जो यह पता लगा सके कि एक शिक्षक वाले इन स्कूलों में कक्षाएं कैसे संचालित की जा रही हैं  या इतने ज्यादा बच्चे अनुपस्थिति क्यों हैं.

राव ने हालांकि जोर देकर कहा कि बड़े बदलाव किए जा रहे हैं.

अप्रैल के पहले सप्ताह में घोषणा की गई थी कि विश्व बैंक और एशियन इंफ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट बैंक(एआईआईबी) ने महत्वाकांक्षी मिशन स्कूल ऑफ एक्सीलेंस परियोजना के लिए 7,500 करोड़ रुपये के ऋण को मंजूरी दे दी है.

राव ने कहा कि  इस पहल के जरिए सरकार छोटे स्कूलों के सामने आ रही समस्याओं को दूर करने और यह सुनिश्चित करने की कोशिश कर रही है कि बच्चों को उनकी उम्र और कक्षा के हिसाब से शिक्षा दी जा सके. उन्होंने कहा, ‘मिशन स्कूल ऑफ एक्सीलेंस प्रोजेक्ट पर काम शुरू हो गया है.’

अगर सब कुछ योजना के अनुसार होता है तो यह परियोजना गुजरात के सभी 35,133 सरकारी और 5,847 अनुदान प्राप्त स्कूलों को कवर करेगी. 1.5 लाख ‘स्मार्ट क्लासरूम’और अन्य चीजों के साथ 20,000 नई कंप्यूटर लैब का निर्माण भी किया जाएगा.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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