scorecardresearch
Friday, 22 November, 2024
होमसमाज-संस्कृति‘महंगाई मार गई’: ईंधन की क़ीमतों को लेकर केंद्र-राज्यों की खींचतान पर उर्दू प्रेस को याद आया हिट गाना

‘महंगाई मार गई’: ईंधन की क़ीमतों को लेकर केंद्र-राज्यों की खींचतान पर उर्दू प्रेस को याद आया हिट गाना

दिप्रिंट का जायज़ा कि उर्दू मीडिया ने पूरे हफ्ते की विभिन्न ख़बरों को किस तरह कवर किया, और उनमें से कुछ ने क्या संपादकीय रुख़ इख़्तियार किया.

Text Size:

नई दिल्ली: पिछले हफ्ते महंगाई का मुद्दा फिर से चर्चा के केंद्र में आ गया, जब पीएम नरेंद्र मोदी ने एक वर्चुअल कोविड-19 समीक्षा बैठक में ईंधन की क़ीमतों पर टिप्पणी कर दी. महंगाई के अलावा हिजाब, लाउडस्पीकर्स और हनुमान चालीसा जैसे विवादास्पद मुद्दे भी पिछले हफ्ते सुर्ख़ियों में छाए रहे.

दिप्रिंट आपके लिए लाया है इस हफ्ते उर्दू प्रेस की सुर्ख़ियों और संपादकीयों का सार.

महंगाई और ईंधन की क़ीमतें

बुधवार को एक कोविड-19 समीक्षा बैठक की अध्यक्षता करते हुए, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विषय से हटकर ईंधन की क़ीमतों पर राज्यों द्वारा लगाए गए करों के क्षेत्र में चले गए, जिसकी संभावना नहीं थी. उनकी टिप्पणियों ने बढ़ती महंगाई पर रोशनी डाली, जो केंद्र तथा विपक्ष-शासित राज्यों के बीच एक प्रमुख मुद्दा बनकर उभरी है.

इनक़लाब, सियासत औररोज़नामा राष्ट्रीय सहारा ने समीक्षा बैठक के दौरान पीएम मोदी की टिप्पणियों को बृहस्पतिवार को अपनी प्रमुख ख़बर बनाया. जहां पहले दो अख़बारों ने पीएम की राज्यों से पेट्रोल और डीज़ल पर वैट घटाने की अपील को अपनी ख़बरों की सुर्ख़ियां बनाया, वहीं सहारा ने राज्यों से कोविड मोर्चे पर तैयार रहने की प्रधानमंत्री की अपील को अपनी लीड ख़बर बनाया.

अगले दिन,इनक़लाब ने विपक्षी मुख्यमंत्रियों के पीएम मोदी की टिप्पणी पर दिए गए जवाबों को लीड ख़बर बनाया. इस ख़बर में ममता बनर्जी (पश्चिमी बंगाल), अशोक गहलोत (राजस्थान),और के चंद्रशेखर राव (तेलंगाना) के जवाबों के अलावा, कांग्रेस नेता राहुल गांधी का दिया गया एक बयान भी था. पेपर में सीएम बनर्जी के पीएम के बयान को ‘भ्रामक’ क़रार देने, और सीएम केसीआर के उसे ‘शर्मनाक’ बताने का हवाला दिया गया.

28 अप्रैल को अपने संपादकीय में,इनक़लाब ने हिंदी फिल्म ‘रोटी कपड़ा और मकान’ के हिट गाने‘महंगाई मार गई’ का ज़िक्र करते हुए इशारा किया, कि 1974 की फिल्म का गाना आज भी हिट है, क्योंकि इसके बोल आज भी लोगों के कानों में गूंजते हैं. पेपर ने इस बात पर भी ज़ोर दिया कि इंडोनेशिया पर निर्भरता कम करने के लिए, भारत को अपने यहां पाम तेल का उत्पादन बढ़ाने की ज़रूरत है.

उसी दिन सियासत ने अपने संपादकीय में लिखा, कि पेट्रोलियम उत्पादों पर केंद्र सरकार द्वारा लगाए गए करों पर विचार करने की बजाय, मोदी विपक्षी राज्यों पर ये ‘ज़िम्मेदारी शिफ्ट’ करने की कोशिश कर रहे हैं. संपादकीय में आगे ये भी कहा गया कि ये साफ नहीं है कि कल्याण योजनाओं की फंडिंग का स्रोत क्या है, और क्या केंद्र इन योजनाओं के लिए राज्यों से एकत्र की गई जीएसटी राशि से पैसा दे रहा है. सियासत ने ये भी कहा कि उन कॉरपोरेट क़र्ज़ों पर भी कोई स्पष्टता नहीं है, जिन्हें बीजेपी ने राजनीतिक फंडिंग के एवज़ माफ किया है.

अगले ही दिन सियासत में एक और संपादकीय में पूछा गया, ‘पेट्रोलियम उत्पाद जीएसटी के दायरे में क्यों नहीं हैं?’ पेट्रोलियम उत्पादों के लिए समान कर नीति के पक्ष में तर्क देते हुए अख़बार ने कहा, कि केंद्र और राज्य को एक दूसरे पर दोष मढ़ना बंद करना चाहिए, और उसकी बजाय समस्या का समाधान करने की दिशा में काम करना चाहिए.

नफरत के भाषण, हनुमान चालीसा और बुलडोज़र्स

 

सुप्रीम की उत्तराखंड सरकार की झिड़की को भी, जिसमें उसे सांप्रदायिक रूप से आरोपित भाषणों को रोकने के लिए ज़िम्मेवार ठहराया गया था, 27 अप्रैल को सभी बड़े उर्दू अख़बारों ने अपने पहले पन्नों पर जगह दी.

एक दिन बाद इनक़लाब ने पहले पन्ने पर ख़बर दी, कि सुप्रीम कोर्ट के रुख़ ने उत्तराखंड सरकार को मजबूरन हरिद्वार में एक महा पंचायत के आयोजन की अनुमति देने से इनकार करना पड़ा, जिसके बाद रुड़की में होने वाली एक धर्म संसद को भी रद्द कर दिया गया. 27 अप्रैल को अख़बार ने ख़बर दी थी कि अमेरिकी अंतर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता आयोग ने प्रस्ताव दिया है, कि भारत में ‘मानवाधिकारों के उल्लंघन’ को देखते हुए उसे रेड लिस्ट में रख दिया जाए.

26 अप्रैल को सियासत के पहले पन्ने पर, कर्नाटक में ‘बाइबिल और हिजाब के मुद्दे पर’ उबल रहे तनाव की ख़बर छपी थी.

25 अप्रैल को सहारा ने बीजेपी सांसद साक्षी महाराज के फेसबुक पोस्ट के बारे में एक फ्लायर छापा, जिन्होंने हिंदुओं को सलाह दी कि अपने ‘तीर और कमान तैयार रखें ताकि ज़रूरत पड़ने पर जिहादियों से निपटा जा सके’.

अख़बारों का फोकस राणा दंपत्ति के खिलाफ क़ानूनी कार्रवाई, और लाउडस्पीकरों के खिलाफ उत्तर प्रदेश सरकार के अभियान पर भी बना रहा.

सहारा ने 29 अप्रैल को एक संपादकीय में, मुम्बई में महाराष्ट्र सीएम उद्धव ठाकरे के निजी आवास के बाहर हनुमान चालीसा का पाठ करने के ऐलान के बाद, (निर्दलीय) सांसद नवनीत राणा और उनके पति- निर्दलीय विधायक रवि राणा- की गिरफ्तारी का ज़िक्र करते हुए लिखा कि हनुमान चालीसा का पाठ एक नया चुनावी मुद्दा बन गया है. अख़बार ने लिखा कि असल मुद्दा ध्वनि प्रदूषण का नहीं बल्कि ‘बीजेपी और उससे जुड़े नेताओं की प्रदूषित सोच का है’. उसने आगे लिखा कि ऐसा लगता है कि महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (एमएनएस) प्रमुख राज ठाकरे ने अपनी दूसरी सियासी पारी की शुरूआत के लिए लाउडस्पीकर का मुद्दा चुना है, इसके बावजूद कि उनकी पार्टी गिरकर महाराष्ट्र की राजनीति के हाशिए पर आ गई है.

27 अप्रैल को एक संपादकीय मेंइनक़लाब ने पूर्व आरबीआई गवर्नर रघुराम राजन के बयान का हवाला दिया, जिसमें उन्होंने कहा था कि ‘अल्पसंख्यक-विरोधी टैग’ से विदेशों में भारतीय चीज़ों की मांग पर असर पड़ सकता है. राजन की प्रभावशाली साख का बखान करते हुए, अख़बार ने लिखा कि सरकारें, नीति निर्धारक या निवेशक, अपने जोखिम पर ही उनकी बात को नज़रअंदाज़ कर सकते हैं.

23 अप्रैल को ‘सियासी बुलडोज़र’ के शीर्षक से इनक़लाब ने लिखा, कि जिस दिन जहांगीरपुरी की सड़कों पर बुलडोज़र चले, उसी दिन दिल्ली में कोविड-19 के मामलों में उछाल देखा गया. अख़बार ने आगे लिखा कि बुलडोज़र्स की आवाज़ ने कोविड-19 के डर को दबा दिया, और बृंदा करात अकेली राजनेता थीं बुलडोज़र्स के सामने डट कर खड़ी हुईं.



कांग्रेस-प्रशांत किशोर गाथा

25 अप्रैल को सियासत ने अपने एक संपादकीय में ख़बर दी, कि तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) ने ऐसे समय पर आईपैक की सेवाएं ली हैं- जो पहले चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर से जुड़ी थी- जब कांग्रेस भी तेलंगाना में पार्टी को फिर से जीवित करने की कोशिश कर रही है. संपादकीय में कहा गया ऐसी स्थिति में किशोर के कांग्रेस में आने का कोई मतलब नहीं रहेगा. उसमें आगे कहा गया कि इस मामले में किसी भी फैसले पर पहुंचने से पहले, कांग्रेस को इन सभी बातों पर ग़ौर करना चाहिए.

इनक़लाब और सियासत ने 26 अप्रैल को अपने पहले पन्नों पर ख़बर दी, कि कांग्रेस ने 2024 के लोकसभा चुनावों से पहले पार्टी को मज़बूत करने के उपाय सुझाने के लिए गठित पैनल की सिफारिशों पर विचार-विमर्श करने के लिए, एक ‘संकल्प चिंतन शिविर’ आयोजित करने का फैसला किया है. ये ‘संकल्प चिंतन शिविर’ 13, 14, और 15 मई को उदयपुर में आयोजित किया जाएगा.

27 अप्रैल को रोज़नामा के पहले पन्ने पर राहुल गांधी एक टिप्पणी छपी, जिसमें कहा गया था कि 2017 और 2022 के बीच देश की कुल श्रम साझेदारी दर में क़रीब 6 प्रतिशत की गिरावट आई है. नरेंद्र मोदी सरकार को निशाने पर लेने के लिए कांग्रेस नेता ने सेंटर फॉर मॉनीटरिंग इंडियन इकॉनमी (सीएमआईई) के आंकड़ों का हवाला दिया था.

उसी दिन सियासत के संपादकीय में कहा गया कि प्रशांत किशोर और कांग्रेस के बीच बातचीत टूटने के बावजूद, पार्टी को अपने वजूद को बचाए रखने की अपनी नाकामियों से सीख लेनी होगी. संपादकीय में आगे कहा गया कि कांग्रेस के लिए अपनी क़िस्मत को बदलना आसान नहीं होगा, जब तक कि नेतृत्व से लेकर बूथ कार्यकर्त्ताओं तक, पूरी पार्टी मशीनरी एक व्यापक कार्ययोजना को लागू करने की दिशा में काम नहीं करेगी.

कश्मीर में PM मोदी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जम्मू-कश्मीर दौरे को 24 अप्रैल को सभी बड़े उर्दू अख़बारों में पहले पन्ने पर जगह दी गई. इनक़लाब की लीड ख़बर में पीएम के उस बयान पर ज़ोर दिया गया, जिसमें केंद्र-शासित क्षेत्र में लोकतंत्र को मज़बूत किए जाने की बात की गई थी.

25 अप्रैल को सहारा ने अपने पहले पन्ने पर ख़बर दी, कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जेएंड में 20,000 करोड़ रुपए की परियोजनाओं की आधारशिला रखी थी. अख़बार ने पीएम मोदी के पहला लता दीनानाथ मंगेशकर पुरस्कार प्राप्त करने, और उनकी ओर से पहले ही ईद तथा अक्षया तृतीय की शुभकामनाएं दिए जाने की ख़बरें भी छापीं. अगले ही दिन, सहारा ने ख़बर दी कि सुप्रीम कोर्ट गर्मी की छुट्टियों के बाद, धारा 370 को हटाए जाने को चुनौती देने वाली याचिकाओं की सुनवाई करेगा.

मेडिकल शिक्षा और CBSE

25 अप्रैल को रोज़नामा ने अपने एक संपादकीय में लिखा, कि किसी ग़रीब बच्चे के लिए मेडिकल शिक्षा हासिल करना किसी सपने से कम नहीं है. संपादकीय में आगे कहा गया कि आर्थिक रूप से वंचित परिवारों के बच्चों के लिए चिकित्सा उपचार हासिल करना भी उतना ही मुश्किल है. संपादकीय में आगे ये भी कहा गया कि सरकार को चीन और यूक्रेन की स्थिति से सीख लेते हुए उचित प्रबंध करने चाहिएं, ताकि सुनिश्चित हो सके कि मेडिकल शिक्षा के लिए भारतीयों को विदेश न जाना पड़े.

26 अप्रैल को रोज़नामा ने अपने पहले पन्ने पर ख़बर दी, कि तमिलनाडु विधान सभा ने एक बिल पास किया है जिसके तहत राज्य सरकार को विभिन्न राज्य-संचालित विश्वविद्यालयों के वाइस-चांसलरों की नियुक्ति का अधिकार दे दिया गया है.

उसी दिन सीबीएसई की पाठ्यपुस्तकों से लोकतंत्र और विविधता, तथा फैज़ अहमद फैज़ की एक कविता के अध्यायों को निकाले जाने की ख़बरों को, इनक़लाब के पहले पन्ने पर जगह दी गई. ख़बर के साथ अख़बार ने एक कार्टून भी छापा, जिसमें रोज़गार, सांप्रदायिक सामंजस्य, और संस्थाओं की आज़ादी के विषयों को कतरन मशीन में डाला जा रहा है.

रोज़नामा ने 27 अप्रैल को अपने पहले पन्ने पर ख़बर की थी, कि केंद्र सरकार ने केंद्रीय विद्यालय संगठन (केवीएस) की ओर से जारी संशोधित एडमिशन गाइडलाइन्स के मुताबिक़, केंद्रीय विद्यालयों (केवीएस) में दाख़िले के लिए सांसदों को उपलब्ध कोटा को ख़त्म करने का फैसला किया है.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें : ‘भारतीय मुस्लिमों पर हमले’: रामनवमी पर हुई हिंसा को लेकर उर्दू प्रेस का क्या रहा नज़रिया


 

share & View comments