नई दिल्ली: दहेज उत्पीड़न-सह-हत्या के मामले में दोषी ठहराया गया आंध्र प्रदेश का एक निवासी, जिसे सितंबर 2020 में सुप्रीम कोर्ट (एससी) ने जमानत दे दी थी, आखिरकार सुप्रीम कोर्ट के सीधे हस्तक्षेप के बाद ही पिछले हफ्ते जेल से बाहर आ सका.
एससी द्वारा 2020 में जमानत आदेश दिए जाने के बावजूद, डेढ़ साल से भी अधिक समय तक गोपीसेट्टी हरिकृष्णा के रूप में पहचाने गए इस व्यक्ति को जमानत पर रिहा करने के लिए आवश्यक शर्तों को तय करने हेतु ट्रायल कोर्ट द्वारा सुनवाई का समय नहीं दिया गया था.
एससी ने अब नेल्लोर जेल के जेल अधीक्षक, जहां हरिकृष्णा ने अपनी सजा काटी थी, और निचली अदालत, जिसने उसकी जमानत याचिका पर विहार करने से इनकार कर दिया था, से इस देरी के बारे में स्पष्टीकरण मांगा है.
इसने आंध्र प्रदेश सरकार को भी यह जवाब देने के लिए 10 दिन का समय दिया है कि दोषी जेल अधिकारियों के खिलाफ किस तरह की विभागीय कार्रवाई शुरू की जा सकती है.
एससी ने आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट के 2019 के एक आदेश, जिसमें उसने 2015 में ट्रायल कोर्ट द्वारा सुनाई गई सजा और आजीवन कारावास को बरकरार रखा था, के खिलाफ हरिकृष्णा द्वारा दायर अपील पर सुनवाई करते हुए अपना सितंबर 2020 का जमानत वाला आदेश दिया था.
मई 2011 में अपनी पत्नी की हत्या के आरोपी हरिकृष्णा ने जमानत मिलने से पहले नौ साल का समय जेल में बिता लिया था.
सितंबर 2020 के बाद से हरिकृष्णा का मुकदमा पांच बार सुप्रीम कोर्ट में सूचीबद्ध हो चुका है, लेकिन इसकी सुनवाई नहीं हुई. इस साल 13 अप्रैल को ही अदालत उसके मामले को प्राथमिकता के आधार पर सुनाने को सहमत हुई थी. और उसे 20 अप्रैल को रिहा कर दिया गया
एससी अब इस मामले की 9 मई को फिर सुनवाई करेगा.
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9 साल जेल में बिताने के बाद 2020 में मिली अंतरिम जमानत
न्यायमूर्ति यू.यू. ललित ने सोमवार को इस बारे में स्पष्टीकरण मांगा कि हरिकृष्णा को जमानत देने वाले सुप्रीम कोर्ट के 29 सितंबर 2020 के आदेश का पालन क्यों नहीं किया गया?
अदालत ने कहा कि न्यायमूर्ति ललित की ही अध्यक्षता वाली एक पीठ ने उस वक्त हरिकृष्णा के पक्ष में अंतरिम जमानत का आदेश दिया था जब उसे बताया गया था कि वह पहले ही नौ साल जेल में बिता चुका है.
उस आदेश में नेल्लोर जेल के अधीक्षक को हरिकृष्णा को तीन दिनों के भीतर ट्रायल कोर्ट के समक्ष पेश करने का निर्देश भी शामिल था ताकि ट्रायल कोर्ट उसकी जमानत की शर्तों को निर्धारित करते हुए औपचारिक आदेश जारी कर सके.
इस बात पर ध्यान देते हुए कि नेल्लोर जेल को 6 अक्टूबर 2020 को ही जमानत का आदेश मिल गया था, नवीनतम एससी बेंच – जिसमें जस्टिस एस.आर. भट और पी.एस. नरसिम्हा शामिल हैं – ने सोमवार को अदालत की रजिस्ट्री से एक रिपोर्ट मांगी, जिसमें उनसे यह स्पष्ट करने के लिए कहा गया है कि उन्होंने 2020 के जमानत वाले आदेश को कैसे संप्रेषित (कम्युनिकेटेड) किया, और क्या यह इलेक्ट्रॉनिक रूप से भेजा गया था.
इसने नेल्लोर जेल अधीक्षक से यह भी स्पष्टीकरण मांगा कि सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के अनुसार हरिकृष्णा को निचली अदालत के समक्ष पेश क्यों नहीं किया गया?
‘क्या आप यह कहना चाह रहे हैं कि किसी को भी कोविड के दौरान रिहा नहीं होना चाहिए था?’
इस बीच, आंध्र प्रदेश सरकार के वकील ने अदालत के सामने एक संक्षिप्त रिपोर्ट रखी, जिसमें अदालत द्वारा आदेश पारित किये जाने के बाद की घटनाओं का क्रमवार विवरण था.
इस रिपोर्ट में कहा गया है कि नेल्लोर में एक कानूनी सहायता वकील ने महामारी के बीच जेल में उनकी एक यात्रा के दौरान 29 अक्टूबर 2020 को उस वक्त हरिकृष्णा के लिए जमानत याचिका दायर की थी, जब उन्हें पता चला कि उन्हें जमानत दी जा रही है.
इसमें आगे कहा गया है कि जेल अधिकारियों ने उन्हें बताया कि हरिकृष्णा को कोविड की वजह से लगे प्रतिबंधों के चलते अदालत में पेश नहीं किया जा सकता है.
इस रिपोर्ट के अध्ययन के बाद सुप्रीम कोर्ट ने 20 अप्रैल को हरिकृष्णा की तत्काल रिहाई का आदेश दिया.
जब आंध्र सरकार के वकील महफूज अहसान नाज़की ने इस कैदी की रिहाई में देरी के लिए कोविड को जिम्मेदार ठहराया, तो न्यायमूर्ति ललित ने पलटकर जवाब देते हुए कहा, ‘क्या आप यह सुझाव दे रहे हैं कि किसी को भी कोविड के दौरान रिहा ही नहीं होना चाहिए था? दरअसल, उस समय तो हमने कई विचाराधीन कैदियों को (जेलों की भीड़ कम करने के लिए) जमानत दे दी थी. चाहे जो भी तौर-तरीका (हो सकता) हो, जब (एससी का) आदेश पारित कर दिया गया था तो इस शख्श को रिहा कर दिया जाना चाहिए था.’
पीठ ने 29 अक्टूबर 2020 को हरिकृष्णा द्वारा दायर जमानत याचिका पर विचार करने से नेल्लोर ट्रायल कोर्ट के इनकार पर भी कड़ी आपत्ति जताई. इसने इस अदालत के न्यायाधीश से यह जानना चाहा है कि 20 अप्रैल 2022 को सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप करने से पहले तक उन्होंने इस याचिका पर सुनवाई क्यों नहीं की.
‘हमारी ओर से कोई देरी नहीं’, दोषी के वकील का बयान
हरिकृष्णा की याचिका सुप्रीम कोर्ट लीगल सर्विसेज कमेटी द्वारा दायर की गई थी क्योंकि वह सुप्रीम कोर्ट में किसी वकील का खर्च नहीं उठा सकते थे. पीठ ने उनकी दोषसिद्धि को चुनौती देने वाली उनकी याचिका पर राज्य सरकार को नोटिस भी जारी किया था.
20 अप्रैल को, हरिकृष्णा की वकील, वरिष्ठ अधिवक्ता महालक्ष्मी पावमी, ने पीठ को सूचित किया कि उनके ब्रीफिंग वकील, जिन्होंने सुप्रीम कोर्ट में अपील तैयार की थी और दायर भी की, ने जमानत आदेश के बारे में उसी दिन एससी रजिस्ट्री को सूचित कर दिया था. उन्होंने निवेदित किया कि अदालत के आदेश के बारे में उपयुक्त विभागों को अवगत अथवा सूचित कराने में उनकी टीम की ओर से कोई देरी नहीं हुई थी.
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