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Wednesday, 20 November, 2024
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व्यापमं व्हिसलब्लोअर ने ‘एग्जाम लीक’ पोस्ट को लेकर लगाया उत्पीड़न का आरोप, MP पुलिस बोली- गिरफ्तारी जायज

कभी व्यापमं घोटाले के बारे में पुलिस को जानकारी देकर सुर्खियों में आए डॉ. आनंद राय को मार्च 2022 में मध्य प्रदेश शिक्षक पात्रता परीक्षा लीक होने का आरोप लगाए जाने के बाद गिरफ्तार किया गया है.

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भोपाल: व्यापमं घोटाले को लेकर सुर्खियों में आए डॉ. आनंद राय, जिन्हें मध्य प्रदेश पुलिस ने दिल्ली में गिरफ्तार किया है और जो पिछले हफ्ते ही इंदौर स्थित लाल हुकुमचंद अस्पताल में नौकरी से निलंबित किए जा चुके हैं- ने आरोप लगाया है कि राज्य सरकार व्हिसलब्लोअर होने के कारण ही उन्हें ‘निशाना’ बना रही है.

एक नेत्र सर्जन राय को 2009 में बहुचर्चित व्यापमं घोटाले की बारे में पुलिस को सूचना देने का श्रेय दिया जाता है, जिसमें मध्य प्रदेश सरकार के व्यावसायिक परीक्षा मंडल (व्यापमं, पेशेवर परीक्षा बोर्ड) द्वारा आयोजित प्रवेश और भर्ती परीक्षा में बड़े पैमाने पर धोखाधड़ी और अनियमितताओं का खुलासा हुआ था.

तबसे ही राय ने अपने सोशल मीडिया प्रोफाइल में खुद को ‘व्हिसलब्लोअर’ बताते हुए राज्य सरकार के प्रति आक्रामक रुख अपना रखा है.

हाल ही में, गत 7 अप्रैल को उनकी गिरफ्तारी मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के विशेष कार्य अधिकारी (ओएसडी) लक्ष्मण सिंह मरकाम की तरफ से दर्ज कराई गई, यह गिरफ़्तारी एक एफआईआर के तहत हुई है.

मानहानि, आपराधिक धमकी और एससी/एसटी समुदाय के लिए अपमानजनक शब्दों के इस्तेमाल के आरोप वाली यह एफआईआर ऐसे समय दर्ज की गई है, जबकि डॉ. राय और राज्य कांग्रेस प्रवक्ता केके मिश्रा ने 26 मार्च को सोशल मीडिया पर 2022 की मध्य प्रदेश शिक्षक पात्रता परीक्षा (टीईटी) के पेपर लीक को लेकर एक पोस्ट की थी.

राय ने एक नाम ‘लक्ष्मण सिंह’ का उल्लेख किया है, जिसकी जांच की जानी चाहिए. हालांकि उन्होंने यह स्पष्ट नहीं किया कि वह मुख्यमंत्री के ओएसडी हैं, जबकि मिश्रा ने मरकाम की कथित संलिप्तता के बारे में सीधा आरोप लगाया है.

राय ने दिप्रिंट से बातचीत में कहा कि राज्य सरकार की ‘मशीनरी’ उन्हें उनके काम के लिए ‘निशाना’ बना रही है और उन्हें और उनके परिवार को ‘परेशान’ कर रही है. उन्होंने कहा कि अस्पताल भी इस अभियान का हिस्सा था क्योंकि उन्हें कथित तौर पर 29 मार्च को मेडिकल लीव के लिए आवेदन करने के कुछ घंटों के भीतर ही निलंबित कर दिया गया.

राय के मुताबिक, उन्हें 7 अप्रैल की रात अचानक नई दिल्ली स्थित एक होटल से गिरफ्तार कर लिया गया, जबकि उन्हें अगले दिन यानी 8 अप्रैल को पुलिस के सामने पेश होने का नोटिस दिया गया था.

उन्होंने कहा कि यह भी संदेहास्पद है कि उनके सह-आरोपी केके मिश्रा को गिरफ्तार नहीं किया और केवल एक पुलिस अधिकारी के सामने पेश होने के लिए आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 41ए के तहत नोटिस भेजा गया. राय के मुताबिक, वह इलाज के लिए दिल्ली आए हुए थे.

डॉ. राय को भोपाल की विशेष एससी/एसटी कोर्ट ने 9 अप्रैल को जमानत दे दी और उन्हें 50 हजार रुपये के मुचलके पर रिहा कर दिया गया.

सोमवार को, सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के उस आदेश के खिलाफ राय की याचिका खारिज कर दी, जिसमें उनके खिलाफ एफआईआर रद्द करने से इनकार कर दिया गया था. हालांकि, शीर्ष कोर्ट ने राय को इस मामले में आरोपपत्र दायर होने की स्थिति में सीआरपीसी की धारा 482 के तहत हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती देने की आजादी दी है.

एफआईआर में दो आरोपी, लेकिन गिरफ्तारी सिर्फ एक की

26 मार्च को राय ने एमपी टीईटी पेपर के लीक पर्चे का स्क्रीनशॉट पोस्ट करने के लिए सोशल मीडिया का सहारा लिया और आरोप लगाया कि पेपर की यह तस्वीर किसी ‘लक्ष्मण सिंह’ ने छात्रों को भेजी थी—जाहिर है चीटिंग में मदद करने के लिए और इस मामले में सीबीआई जांच की मांग की थी.

वहीं, कांग्रेस नेता केके मिश्रा ने सोशल मीडिया पर एक बयान जारी कर यह पूछा था कि 35 पन्नों का पेपर मुख्यमंत्री के ओएसडी के मोबाइल फोन तक कैसे पहुंचा और मांग की कि उनका मोबाइल जब्त कर जांच की जाए.

अगले दिन सीएम के ओएसडी लक्ष्मण सिंह ने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई. भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की विभिन्न धाराओं के तहत दायर प्राथमिकी में राय और मिश्रा दोनों के नाम हैं—जिसमें धारा 419 (प्रतिरूपण द्वारा धोखाधड़ी), 469 (प्रतिष्ठा को क्षति पहुंचाने के उद्देश्य से जालसाजी), 470 (जाली दस्तावेज), 500 ( मानहानि), 504 (आपराधिक धमकी), 120 बी (आपराधिक साजिश के लिए सजा) के साथ एससी/एसटी (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत आरोप लगाए गए हैं.

इसके जवाब में राय ने ट्वीट कर कहा कि वह ‘झूठी एफआईआर’ से डरने वाले नहीं हैं और घोटालों के खिलाफ आवाज उठाना जारी रखेंगे.

इस बीच, मिश्रा को पुलिस की तरफ से सीआरपीसी की धारा 41ए के तहत नोटिस दिया गया था और इसलिए इस मामले में उन्हें गिरफ्तार नहीं किया गया, जिसे लेकर राय ने अपने साथ कठोर व्यवहार पर सवाल उठाए.

राय ने कहा, ‘मुझे गिरफ्तार किया गया, लेकिन मिश्रा को नहीं. क्यों? क्योंकि मैं एक व्हिसलब्लोअर रहा हूं. मैंने तो यह भी नहीं कहा कि लक्ष्मण सिंह मुख्यमंत्री के ओएसडी हैं—मैंने तो सिर्फ पूछा था कि वह कौन हैं. मुझे नोटिस सीआरपीसी की धारा 41ए के तहत क्यों नहीं दिया गया?’

साथ ही, मिश्रा ने यह भी कहा है कि उन्होंने बयान ऐसे समय पर दिया था जबकि सोशल मीडिया पर पहले से ये आरोप व्यापक तौर पर लगाए जा रहे थे.

मिश्रा ने कहा, ‘व्यापमं मामले में पहले भी, (मुख्यमंत्री) चौहान के पूर्व निजी सचिव प्रेमचंद प्रसाद का नाम सामने आया था. स्क्रीनशॉट में लक्ष्मण सिंह का नाम है, इसलिए मैंने एक आधिकारिक बयान जारी किया.’

आनंद राय / फेसबुक

इस बारे में पूछे जाने पर डीसीपी (अपराध शाखा) अमित कुमार ने कहा कि यह जांच अधिकारी के विवेक पर निर्भर करता है कि किसे 41ए के तहत नोटिस दिया जाना है. उन्होंने कहा, ‘इस मामले में राय पोस्ट के क्रिएटर हैं, जबकि मिश्रा ने इसे साझा किया है.’

उनके मुताबिक, मिश्रा 1 अप्रैल को खुद पुलिस के सामने पेश हुए थे और अपना बयान दर्ज किया था और जांच में ‘सहयोग’ किया था.


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राय की गिरफ्तारी में ‘जल्दबाजी’

2 अप्रैल को राय ने पुलिस को एक बयान दिया था, जिसकी प्रति दिप्रिंट के पास है. इसमें कहा गया था कि वह ‘29 मार्च को उपस्थित होने के इच्छुक थे,’ लेकिन स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के कारण ऐसा नहीं कर पाए. इसमें उन्होंने यह भी उल्लेख किया है कि उन्होंने एफआईआर को एमपी हाई कोर्ट में चुनौती दी है और उन्हें सीएम और ओएसडी की तरफ से निशाना बनाया जा रहा था. बयान में राय ने कहा कि वह मामले में ‘सहयोग’ करने को तैयार हैं.

राय ‘मेडिकल ट्रीटमेंट’ के लिए 5 अप्रैल को दिल्ली रवाना हुए थे.

राय ने बताया, ‘उन्होंने मुझे 8 अप्रैल को सुबह 11 बजे उपस्थित होने का नोटिस देने के बाद 7 अप्रैल को ही गिरफ्तार कर लिया.’ साथ ही जोड़ा कि उन्होंने 9 अप्रैल की सुबह दिल्ली से भोपाल के लिए अपने टिकट पहले ही बुक करा लिए थे. डीसीपी अमित कुमार के मुताबिक गिरफ्तारी जरूरी थी.

उन्होंने कहा, ‘अगर आरोपी के फरार होने और जांच में सहयोग नहीं करने की संभावना हो, तो पुलिस को उसकी गिरफ्तारी का अधिकार है, भले ही किसी अन्य तारीख को पेश होने का नोटिस क्यों न जारी किया गया हो.’

डीसीपी ने कहा कि राय को कुल तीन नोटिस दिए गए थे और पुलिस के कहने पर जांच के लिए अपना फोन देने से उन्होंने साफ इनकार कर दिया था.

राय के खिलाफ शस्त्र अधिनियम सहित आठ मामले होने का जिक्र करते हुए डीसीपी ने कहा, ‘वह अपनी इच्छा से पुलिस के सामने पेश नहीं हो सकते और यह उम्मीद नहीं कर सकते कि उनके मुताबिक जांच की जाएगी.’

एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड वैभव श्रीवास्तव ने आरोप लगाया कि राय को ‘व्हिसलब्लोअर होने के कारण राज्य सरकार की तरफ से निशाना बनाया जा रहा है और उत्पीड़ित किया जा रहा है’ और उन्हें बदनाम किया जा रहा है.

श्रीवास्तव ने कहा, ‘एफआईआर केवल इसलिए दर्ज की गई क्योंकि शिकायतकर्ता सीएम ऑफिस में ओएसडी हैं. केवल इतना ही नहीं, अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति अधिनियम लगाने के लिए उनकी ओर से इरादा दिखना चाहिए था. उन्होंने तो बस सीबीआई जांच के लिए कहा था.’

राय ने कहा कि उनकी कानूनी दिक्कतें लगातार बढ़ती जा रही हैं. उन्होंने कहा कि जब जमानत मिली, उसी दिन उन्हें सूचना मिली कि मानपुर पुलिस (इंदौर) को उनकी तलाश है. मामला जुलाई 2021 में पर्यावरण मुद्दे पर एक प्रदर्शन से जुड़ा है जहां पुलिस ने शुरुआत में 500-600 अज्ञात लोगों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की थी. उन्होंने कहा, ‘पुलिस अचानक जागी है. शुरू में मेरा नाम नहीं था, अब अचानक आ गया है.’

दिप्रिंट से बातचीत में एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने कहा, ‘हमने वीडियो और फुटेज की जांच की. इस दौरान आरोपी उसमें शामिल पाया गया. हम केवल नोटिस देना चाहते थे, गिरफ्तारी का इरादा नहीं था, क्योंकि इस मामले में अपराध के लिए सात साल से कम सजा का प्रावधान है.’

राय का आरोप- मेडिकल बोर्ड का निलंबन भी ‘उत्पीड़न’

राय ने आरोप लगाया कि उन्हें जानबूझकर एक अभियान के तहत निशाना बनाया जा रहा है और इसके तहत ही एक मेडिकल बोर्ड ने उन्हें फर्जी कारणों से नौकरी से निलंबित किया है.

डॉक्टर ने बताया कि उन्होंने ‘किडनी संबंधी समस्या’ के कारण तेज दर्द महसूस करने पर 29 मार्च से 2 अप्रैल के बीच पांच दिन की मेडिकल लीव के लिए आवेदन किया था. उनके मुताबिक, उन्होंने अपने आवेदन के समर्थन में ‘इंदौर स्थित एक अस्पताल के एक बड़े अनुभवी डॉक्टर का मेडिकल सर्टिफिकेट’ भी पेश किया था.

हालांकि, हुकुमचंद अस्पताल में अधिकारियों ने 29 मार्च को इस आवेदन को होल्ड पर डाल दिया.

राय ने कहा, ‘मेरी छुट्टी रद्द करने के कुछ ही घंटों बाद, उन्होंने एक मेडिकल बोर्ड गठित किया और मुझे शाम 5 बजे पेश होने का नोटिस जारी किया. मैं सोनोग्राफी और यूरिन टेस्ट के लिए गया हुआ था. मेरी पत्नी को नोटिस मिला और मुझे इसके बारे में शाम 7 बजे ही पता चल पाया.’ साथ ही जोड़ा कि बोर्ड ने उनका बयान दर्ज करने का इंतजार तक नहीं किया.

राय ने दावा किया कि वह आगे के टेस्ट के लिए 31 मार्च को दिल्ली के नेशनल हार्ट इंस्टीट्यूट गए और 2 अप्रैल को लौट आए, और तभी वह पुलिस के पास गए.

4 अप्रैल को, उन्होंने सिविल सर्जन को एक लिखित बयान दिया, जिसकी एक प्रति दिप्रिंट ने देखी है. इसमें अनुरोध किया गया कि उनकी मेडिकल लीव को आकस्मिक अवकाश में बदल दिया जाए. उन्होंने इस पर विरोध भी जताया कि उनके मेडिकल सर्टिफिकेट जमा करने के तीन घंटे के अंदर ही बोर्ड का गठन कर दिया गया, जो ‘असंवैधानिक’ है. 5 अप्रैल को राय ने कहा कि वह आगे के इलाज और शीर्ष कोर्ट में अपनी विशेष अनुमति याचिका के संबंध में कानूनी औपचारिकताएं पूरा करने के लिए दिल्ली गए थे.

हालांकि, इस मामले की जानकारी रखने वाले एक वरिष्ठ डॉक्टर ने कहा कि राय को शाम पांच से सात बजे के बीच उपस्थित रहने के लिए टेक्स्ट मैसेज भेजे गए थे और उन्होंने बाद में जवाब दिया कि वह मेडिकल टेस्ट करा रहे हैं.

निलंबन आदेश में कहा गया है कि अनधिकृत तौर पर ड्यूटी से गैरहाजिर रहकर राय ने मध्य प्रदेश सिविल सेवा आचरण नियम 1965 का उल्लंघन किया है, और 29 मार्च की दोपहर को स्वास्थ्य सेवा उप निदेशक ने उन्हें ड्यूटी से नदारत पाया था जबकि हाजिरी रजिस्टर में उनके दस्तखत पाए गए थे.

दिप्रिंट को हासिल निलंबन आदेश से पता चलता है कि पूछताछ करने पर पाया गया कि उन्होंने सिविल सर्जन को छुट्टी का आवेदन दिया था.

आदेश में कहा गया है कि राय सोशल मीडिया पर सरकार और अधिकारियों के खिलाफ ‘नकारात्मक और आपत्तिजनक पोस्ट’ साझा कर रहे थे, और उन्होंने विभाग को अपने खिलाफ प्राथमिकी के बारे में भी सूचित नहीं किया था. इसके अलावा, आदेश में यह आरोप भी लगाया गया है कि 18 फरवरी से 15 मार्च तक, राय केवल 18 दिनों के लिए ड्यूटी पर हाजिर रहे थे.

राय को अब क्षेत्रीय निदेशक, स्वास्थ्य सेवाएं, रीवा से अटैच कर दिया गया है. उन्होंने कहा, ‘वे मुझे यहां कहीं भी भेज सकते थे लेकिन इसके बजाये यूपी की सीमा के पास 600 किलोमीटर दूर भेज रहे हैं.’ उन्होंने कहा कि वह अपने निलंबन को चुनौती देंगे.

कांग्रेस को मिला एक बड़ा मौका

मध्य प्रदेश कांग्रेस ने 2023 के विधानसभा चुनावों में एमपी टीईटी पेपर लीक को एक चुनावी मुद्दा बनाने के अपने इरादे साफ कर दिए हैं. और अब इसमें विरोधियों के कथित उत्पीड़न के आरोप को भी जोड़ा जा रहा है.

कांग्रेस विधायक और राज्य में पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष जीतू पटवारी ने दिप्रिंट को बताया कि सरकार एक ‘तानाशाह’ की तरह काम कर रही है और जो लोग इस पर सवाल उठाते हैं, उन्हें कानून का सहारा लेकर ‘डराया-धमकाया’ जाता है.

पटवारी ने कहा, ‘हम इसे विधानसभा में उठाएंगे और हर गली-मोहल्ले में विरोध प्रदर्शन करेंगे.’ साथ ही जोड़ा कि इस मामले में एससी/एसटी अधिनियम का दुरुपयोग किया गया है. कांग्रेस नेता ने कहा, ‘अगर जनता सरकार से सवाल करती है, तो वे यह कहकर पलटवार कर रहे हैं कि हमारी जाति के कारण सवाल किया जा रहा है.’

भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता डॉ. दुर्गेश केसवानी ने दिप्रिंट से बातचीत में कहा कि पार्टी इस मामले में न्याय सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध है.

उत्पीड़न के आरोपों के बारे में पूछे जाने पर, उन्होंने कहा, ‘अगर कोई कानून के खिलाफ कुछ भी करता है, तो चाहे वह कितना भी बड़ा व्यक्ति हो या उसका कितना भी प्रभाव क्यों न हो, उसे इस सरकार में बख्शा नहीं जाएगा.’

गौरतलब है कि करोड़ों रुपये के व्यापमं घोटाले- जो पुलिस के संज्ञान में तो 2009 में आया, लेकिन 2013 में पहली गिरफ्तारी के बाद मीडिया में सुर्खियों में छाया- से जुड़े सभी मामले सीबीआई को सौंपे जा चुके हैं. सुप्रीम कोर्ट ने 2015 में लगभग 185 करोड़ रुपये के व्यापमं घोटाले से जुड़े मामलों को जांच एजेंसी को ट्रांसफर करने का आदेश दिया था—जिसमें राजनेता, व्यवसायी और अन्य वरिष्ठ अधिकारी शामिल रहे हैं. अब तक कुल 650 लोगों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की जा चुकी है.

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