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Monday, 18 November, 2024
होमदेशघोटाला-अभियुक्त पूर्व DHFL प्रमोटर धीरज वधावन ने किस तरह जेल से ज़्यादा ‘5-स्टार’ अस्पताल में समय बिताया

घोटाला-अभियुक्त पूर्व DHFL प्रमोटर धीरज वधावन ने किस तरह जेल से ज़्यादा ‘5-स्टार’ अस्पताल में समय बिताया

दीवान हाउसिंग फाइनेंस कॉर्पोरेशन लिमिटेड (DHFL) के धीरज वधावन को, 2020 में यस बैंक से जुड़े मामले में गिरफ्तार होने के बाद ज़मानत नहीं मिली थी लेकिन उसने पिछले 24 महीनों में से सिर्फ 9 महीने जेल में बिताए.

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मुंबई: दो साल हो गए हैं जब दीवान हाउसिंग फाइनेंस कॉर्पोरेशन लिमिटेड (डीएचएफएल) के पूर्व प्रमोटर धीरज वधावन को यस बैंक ‘मनी लॉन्डरिंग’ मामले में गिरफ्तार किया गया था लेकिन उसने सलाख़ों के पीछे से ज़्यादा समय एक लग्ज़री अस्पताल में बिताया है.

26 अप्रैल को कथित रूप से डीएचएफएल के लिए यस बैंक से 3,700 करोड़ रुपए का निवेश लेकर, बदले में बैंक के  सीईओ राणा कपूर और उसके परिवार को ‘बहुत अधिक अनुचित लाभ’ पहुंचाने के आरोप में गिरफ्तार वधावन की ज़मानत बार बार ख़ारिज हुई है लेकिन उसने केवल नौ महीने के क़रीब ही जेल में बिताए हैं.

बाक़ी क़रीब 15 महीने उसने अपना समय अलग अलग बीमारियों का हवाला देते हुए अस्पतालों में गुजारा है. इनमें मुंबई के ठाठदार कोकिलाबेन धीरूभाई अंबानी अस्पताल में बिताए गए 10 महीने भी शामिल हैं.

अब, पिछले हफ्ते बॉम्बे हाईकोर्ट के उसके ‘जीने के अधिकार’ को लेकर दिए गए आदेश की बदौलत, वधावन थोड़े और समय तक अस्पताल में बने रह सकता है.

मार्च में, एक सीबीआई कोर्ट ने आदेश दिया था कि कि वधावन को कोकिलाबेन अस्पताल से निकालकर तलोजा जेल भेजा जाए जिसके बाद उसने हाईकोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया था.

शुक्रवार को सीबीआई कोर्ट के आदेश को ख़ारिज करते हुए, एचसी ने आदेश दिया कि हालांकि वधावन को लगातार कोकिलाबेन में भर्ती रहने की ज़रूरत नहीं है लेकिन वो वहां पर नाक की सर्जरी करा सकता है (जैसा कि उसके वकीलों के मुताबिक़ एक ईएनटी सर्जन ने सलाह दी है).

हाईकोर्ट ने कहा, ‘उसके बाद अगर ज़रूरत पड़े तो उसे जेजे अस्पताल या केईएम अस्पताल (दोनों सरकारी) ले जाया जाना चाहिए, वरना तलोजा जेल वापस भेज दिया जाना चाहिए’.

आदेश से वधावन को कुछ राहत मिल गई है लेकिन उसके इतने लंबे समय तक अपनी पसंद की एक आलीशान सुविधा में ठहरने से एक घबराहट फैल गई है, जबकि उसके खिलाफ गंभीर आरोप हैं, जिनमें धोखाधड़ी और आपराधिक साज़िश शामिल हैं.

विशेष सरकारी वकील हितेन वेनेगावकर ने दिप्रिंट से कहा, ‘बहुत से फैसलों में ये राय रही है कि जब भी किसी अभियुक्त को मेडिकल इलाज की ज़रूरत हो तो उसे पहले सरकारी अस्पताल में उपलब्ध कराया जाना चाहिए’.

‘केवल उस स्थिति में जब कोई विशेष उपचार किसी सरकारी अस्पताल में उपलब्ध न हो, आप किसी निजी अस्पताल की सोच सकते हैं…वरना, हर पैसे वाला अभियुक्त कहेगा कि वो किसी पांच-सितारा अस्पताल में इलाज कराना चाहता है’.

वधावन लगातार निजी हेल्थकेयर की इच्छा करता रहा है और उसकी याचिकाएं न सिर्फ अदालतों बल्कि महाराष्ट्र मानवाधिकार आयोग तक पहुंची हैं. निजी हेल्थकेयर की सुविधा लेने के लिए उसकी टीम ने, ख़ासकर वधावन की अन्य बीमारियों के मद्देनज़र, कोविड संपर्क में आने के डर की दलील दी थी.


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निजी उपचार की मांगें: कोर्ट से मानवाधिकार आयोग तक

वेनेगावकर ने कहा, ‘पहले दिन से ही, वधावन किसी न किसी चीज़ की शिकायत करता रहा है’.

उनमें से कुछ स्वास्थ्य समस्याएं गिरफ्तारी से पहले की हैं और लगता है कि बाक़ी का पता बाद में चला है लेकिन उनमें अकसर निजी हेल्थकेयर की मांग की गई है.

शुक्रवार के अपने आदेश में बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा कि वधावन को 2018 में हार्ट अटैक हुआ था और उसे एंजियोप्लास्टी की ज़रूरत पड़ी थी. 2019 में भी कथित रूप से उसके फेफड़ों में बेक्टीरियल इनफेक्शन हो गया था. लगता है कि गिरफ्तारी के बाद से उसकी स्वास्थ्य समस्याएं बढ़ गईं हैं.

मई और नवंबर 2020 के बीच, जेल अस्पताल और जेजे अस्पताल में वधावन के कई तरह के मेडिकल टेस्ट कराए गए.

4 नवंबर 2020 को, जब उसकी ज़मानत याचिका ख़ारिज हो गई तो उसने एक निजी मेडिकल सुविधा में भर्ती होने के लिए एक मजिस्ट्रेट कोर्ट में अर्ज़ी दाख़िल की.

अपनी अर्ज़ी में उसने दावा किया तलोजा जेल की उसकी मेडिकल रिपोर्ट्स में, 4 एमएम के कई स्टोन्स पित्ताषय की थैली में थे, 6 एमएम का एक स्टोन उसके दाहिने गुर्दे में था, और साथ ही उसके दाहिने फेफड़े में प्यूरल इनफेक्शन था.

पुलिस हिरासत में धीरज वधावन | फोटो- ANI

लेकिन, मजिस्ट्रेट कोर्ट रिकॉर्ड्स के मुताबिक़, जेजे अस्पताल के डॉक्टरों ने कहा कि वधावन के पित्ताषय में केवल एक 3एमएम का स्टोन था. पहले अस्पताल ने कहा कि उसकी स्थिति को अंदर दख़ल दिए बिना ही संभाला जा कता है, लेकिन फिर 13 नवंबर 2020 को उसे पित्ताषय की सर्जरी कराने की सलाह दे दी गई.

वधावन ने तुरंत ही अपनी सर्जरी जेजे अस्पताल में कराए जाने पर ऐतराज़ जताया. उसने इलाज कराने से मना कर दिया, 14 नवंबर को ‘चिकित्सीय सलाह के खिलाफ छुट्टी ले ली’, और उसके वकील ने अन्य बीमारियों के बीच कोविड के संपर्क में आने के डर का हवाला देते हुए, मजिस्ट्रेट कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया.

वधावन की क़ानूनी टीम ने मजिस्ट्रेट कोर्ट में दलील दी, ‘उनके फेफड़ों में इनफेक्शन है और उनके कोविड वायरस की चपेट में आने की काफी संभावना है. इसलिए उनकी गुज़ारिश है कि उन्हें किसी निजी अस्पताल में भिजवा दिया जाए’.

उन्होंने कोर्ट से अनुरोध किया कि तलोजा जेल अधीक्षक को ‘आवश्यक निर्देश’ दिए जाएं कि वधावन को तुरंत खार स्थित हिंदूजा हॉस्पिटल हेल्थकेयर हॉस्पिटल या सर एचएन रिलायंस फाउंडेशन हॉस्पिटल स्थानांतरित किया जाए. वधावन के वकील पुष्ट किया कि ‘ख़र्च अभियुक्त की ओर से उठाया जाएगा’.

लेकिन, जेजे अस्पताल की ओर से पेश किए मेडिकल रिकॉर्ड्स की जांच करने के बाद अदालत इस निष्कर्ष पर पहुंची कि वहां पर वधावन की सर्जरी के लिए आवश्यक सुविधाएं मौजूद हैं.

कोर्ट ने कहा, ‘बीमारी का इलाज सर जेजे अस्पताल में उपलब्ध है और वधावन के जेजे में इलाज से मना करने का कोई वास्तविक कारण नहीं है’. कोर्ट ने आगे कहा कि अगर कोई ऐसा ‘वास्तविक कारण’ या ‘कठिनाई’ होती, जिसकी वजह से किसी निजी सुविधा में इलाज कराना ज़रूरी होता तो कोर्ट अर्ज़ी पर ज़रूर विचार करती.

8 दिसंबर 2020 को कोर्ट ने किसी निजी अस्पताल में शिफ्ट किए जाने की वधावन की अर्ज़ी को ख़ारिज कर दिया.

हार न मानते हुए पूर्व डीएचएफएल प्रमोटर ने महाराष्ट्र मानवाधिकार आयोग (एमएचआरसी) का दरवाज़ा खटखटाया जिसने निर्देश दिया कि वधावन को इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती कराया जाए. 21 दिसंबर 2020 को उसे विधिवत जेजे अस्पताल में शिफ्ट कर दिया गया.

दिप्रिंट ने महाराष्ट्र मानवाधिकार आयोग को ईमेल करके उसकी सिफारिशों का ब्योरा मांगा है. आयोग का जवाब मिलने पर इस रिपोर्ट को अपडेट कर दिया जाएगा.

कोविड मुद्दे’ से मिली निजी केयर

जेजे अस्पताल में इलाज पूरा होने के बाद वधावन को जेल वापस भेज दिया गया लेकिन वो वहां पर मुश्किल से एक-दो हफ्ते रहा जिसके  बाद उसे कथित रूप से कोई दूसरी स्वास्थ्य समस्या पैदा हो गई.

इस बार उसे किंग एडवर्ड मेमोरियल (केईएम) अस्पताल में भर्ती कराया है जिसका संचालन बृहन्मुंबई नगर निगम (बीएमसी) द्वारा किया जाता है.

विशेष सीबीआई अभियोजक वेनेगावकर ने समझाया, ‘जेजे के ह्रदय विभाग में उस समय कुछ मरम्मत चल रही थी और इसलिए उसे केईएम में भर्ती कराया गया’.

वधावन 1 जून 2021 तक केईएम अस्पताल में रहा लेकिन कोविड की दूसरी लहर आने के बाद उसने फिर से किसी निजी अस्पताल में भेजे जाने की अपील की. इस बार उसके वकील पीएमएलए (धन-शोधन निवारण अधिनियम) कोर्ट पहुंचे, जहां प्रवर्त्तन निदेशालय (ईडी) ने वधावन के खिलाफ अलग से आरोप दाख़िल किए हुए थे.

अदालत में उनके निवेदन के अनुसार, देश में कोविड संक्रमण की ऊंची दर के चलते वधावन को अपनी सुरक्षा का डर सता रहा था. उन्होंने केईएम अस्पताल की मेडिकल रिपोर्ट्स का हवाला दिया जिनसे संकेत मिला था उसके पेट के निचले हिस्से में दर्द था, बुख़ार था और कुछ दूसरे लक्षण भी थे. पीएमएलए कोर्ट के साथ साझा की गईं मेडिकल रिपोर्ट्स से पता चलता है कि 19 मई 2021 को उसे सीने में तकलीफ, सांस फूलने और पसीने के साथ बुख़ार की शिकायत पैदा हो गई, जिसके लिए उसे आईसीयू में भर्ती कराया गया था.

वधावन के वकीलों की दलील थी कि इस पृष्ठभूमि में, उसे किसी निजी अस्पताल में इलाज कराने की अनुमति दी जानी चाहिए, चूंकि वो उसके ख़र्च वहन कर सकता है. महामारी की वजह से कोर्ट सहमत हो गई.

वेनेगावकर ने दिप्रिंट से कहा, ‘आमतौर से अभियुक्त ये तय नहीं कर सकता कि वो अपना इलाज किस अस्पताल में कराना चाहता है. इस मामले में महामारी की स्थिति थी…कि ठीक है, कोविड का मसला है, इसलिए अगर आप किसी निजी अस्पताल जाने का ख़र्च उठा सकते हैं, तो सरकारी अस्पताल मत जाईए’.

पिछले साल 1 जून से वधावन, उसे वहां से हटाने की कोशिशों के बावजूद, अपने ख़र्च पर कोकिलाबेन अस्पताल में बना हुआ है.


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सुपर-स्पेशियलिटी मेडिकल सुविधाओं का लाभ उठाते हुए उपराध की कमाई का मज़ा ले रहा है

वेनेगावकर ने कहा कि दिसंबर 2021 में जब महामारी धीमी पड़ गई थी तो सीबीआई ने तय किया कि अब मूल्यांकन करने की ज़रूरत है कि क्या वधावन को अनिश्चित समय तक अस्पताल में बने रहने की ज़रूरत है.

उन्होंने आगे कहा, ‘हमें लगा कि वो बहुत महीनों से अस्पताल में ही रुका हुआ है. हम उसकी सेहत का आंकलन कराना चाहते थे क्योंकि उन उपचारों को बंद करने का समय आ गया था जिन्हें उसे किसी निजी अस्पताल में लेने की ज़रूरत थी’.

एक विशेष सीबीआई अदालत को दिए अपने निवेदन में जांच एजेंसी ने तर्क दिया कि क्योंकि वधावन गंभीर रूप से बीमार या वेंटिलेटर पर नहीं था, इसलिए एक दूसरी राय लेने के लिए उसे किसी सरकारी अस्पताल में भेजा जाना चाहिए.

लेकिन इस साल मार्च में कोकिलाबेन अस्पताल ने कोर्ट में एक रिपोर्ट पेश की जिसके अनुसार वधावन को नाक की स्टेप्टोप्लास्टी सर्जरी (सांस लेने में आसानी के लिए) की ज़रूरत थी.

दिप्रिंट ने कोकिलाबेन अस्पताल को उसकी सिफारिशों के बारे में ईमेल किया है. अगर उसका जवाब मिलता है तो इस रिपोर्ट को अपडेट कर दिया जाएगा.

सीबीआई कोर्ट ने 25 मार्च को एक तीखी प्रतिक्रिया दी. पीएमएलए कोर्ट के आदेश के बारे में कि वधावन को किसी निजी अस्पताल में भर्ती किया जाना है, सीबीआई कोर्ट ने कहा, ‘हैरानी की बात है कि कोर्ट के पास सूचना भी नहीं भेजी जाती, जो मौजूदा एफआईआर से पैदा हुई कार्यवाही को देख रही है.

कोर्ट ने पूछा, ‘किसी आम आदमी या अभियुक्त धीरज वधावन के सह-क़ैदी को ये देखकर कैसा महसूस होगा?, फिर उसने जवाब भी दिया: ‘वो अहसास ये होगा कि प्रभावशाली अभियुक्त जेल अधिकारियों की सहायता और सहयोग से कुछ भी कर सकता है’.

कोर्ट ने ये भी कहा कि ‘पृथम दृष्टया साक्ष्य’ हैं कि धीरज और कपिल वधावन ‘अपराध की आय के प्रमुख लाभार्थी’ थे, जो हज़ारों करोड़ में थी.

धीरज वधावन का उल्लेख करते हुए कोर्ट ने कहा कि वो ‘सुपर-स्पेशियलिटी मेडिकल सुविधा का लाभ उठाकर, अपराध की आय के मज़े ले रहा है, जबकि सरकार द्वारा संचालित मुंबई के प्रीमियर सर जेजे अस्पताल में इलाज की सुविधा मौजूद है’.

इन तीखी टिप्पणियों के साथ सीबीआई कोर्ट ने आदेश दिया कि वधावन को तलोजा जेल शिफ्ट किया जाए और जेजे अस्पताल को अधिकृत किया जाए कि उसकी सर्जरी पर एक दूसरी राय दे.

लेकिन वाधवा ने सीबीआई के 24 मार्च के आदेश को बॉम्बे हाईकोर्ट में चुनौती दी, जहां उसके वकील अमित देसाई ने दलील दी: ‘क़ैदी के पास एक अधिकार है, चूंकि ये उसका शरीर, उसका जीवन और उसकी पसंद है कि उसे कहां इलाज कराने की ज़रूरत है’.

कोर्ट को इस तर्क में दम नज़र आया और उसने इस बात पर बल दिया कि क़ैदियों के पास भी स्वास्थ्य का मौलिक अधिकार है जो संविधान के अनुच्छेद 21- जीने के अधिकार के अंतर्गत आता है और उसने आदेश दिया कि वधावन अपनी नाक की सर्जरी और उसके बाद की देखभाल कोकिलाबेन अस्पताल में करा सकता है.

एचसी आदेश के अनुसार वधावन को 12 और 13 अप्रैल को ज़रूरी टेस्टों के लिए कोकिलाबेन अस्पताल ले जाया जाएगा, और फिर अंत में सर्जरी और उसके बाद रिकवरी के लिए वहीं भर्ती कराया जाएगा, जिसमें और दो सप्ताह लग सकते हैं.

दिप्रिंट से बात करते हुए वधावन के बचाव वकीलों में से एक आबाद पौंडा ने कहा कि एचसी आदेश ‘सकारात्मक’ था.

उन्होंने कहा, ‘उसने सीबीआई कोर्ट के उस आदेश को ख़ारिज कर दिया, जिसने पीएमएलए कोर्ट के आदेश को रद्द किया था. अधिकार क्षेत्र के मुद्दों के अलावा उस आदेश के आधार भी तर्कसंगत नहीं थे’.

इस बीच, सीबीआई सिर्फ उम्मीद कर सकती है कि नाक की सर्जरी कोकिलाबेन अस्पताल में वधावन की आख़िरी ज़रूरत होगी और वो एक ज़्यादा उपयुक्त पते पर मुक़दमे का इंतज़ार कर पाएगा. विशेष सरकारी वकील वेनेगावकर ने कहा कि सर्जरी के बाद दो हफ्ते के भीतर ‘वधावन को वापस तलोजा जेल भेज दिया जाना चाहिए’.


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धीरज वधावन के खिलाफ मामले

जांच एजेंसियों के अनुसार, धीरज वधावन और उसका भाई मुश्किल में घिरे यस बैंक के साथ जुड़े संदेहास्पद लेन-देन में संलिप्त थे. उन्होंने कथित रूप से यस बैंक के संस्थापक राणा कपूर के परिवार की कंपनियों को 600 करोड़ रुपए की रिश्वतें दीं जिसके एवज में बैंक से उन्हें 3,700 करोड़ रुपए की वित्तीय सहायता दी गई.

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यस बैंक के पूर्व सीईओ राणा कपूर | फोटो: पीटीआई

मार्च 2020 में प्रवर्त्तन निदेशालय (ईडी) द्वारा राणा कपूर को गिरफ्तार करने के तुरंत बाद जांच के दौरान सीबीआई ने वधावन के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 120बी (आपराधिक षडयंत्र) और 420 (धोखा देना, और झांसा देकर किसी की संपत्ति हड़पना), और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के विभिन्न प्रावधानों के तहत, एक एफआईआर दर्ज करा दी.

कपिल और धीरज वधावन दोनों ने जब तक संभव हो सका अपनी स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं और कोविड महामारी की दुहाई देते हुए, ईडी की पूछताछ से बचने की कोशिश की लेकिन उन्हें आख़िरकार 26 अप्रैल 2020 को महाबलेश्वर की एक क्वारंटीन सुविधा से गिरफ्तार कर लिया गया- जब उनपर मुक़दमा दर्ज हुए क़रीब दो महीने हो गए थे. 10 मई को दोनों भाईयों को न्यायिक हिरासत में, मुंबई की तलोजा जेल भेज दिया गया.

जुलाई 2020 में, ईडी ने विशेष पीएमएलए कोर्ट में भी एक चार्जशीट दाख़िल की जिसमें उसने वधावन बंधुओं पर रिश्वत देने और मनी लॉन्डरिंग का आरोप लगाया.

महामारी और उससे उत्पन्न लॉकडाउन्स का असर ये रहा है कि इन मामलों की प्रगति बहुत धीमी रही है. अगस्त 2020 में मजिस्ट्रेट कोर्ट अभियुक्त की ज़मानत याचिका रद्द कर देती है. इसे बॉम्बे हाईकोर्ट में चुनौती दी गई और उसने भी 4 नवंबर 2020 को ज़मानत नहीं दी. पिछले साल जनवरी में, मुंबई की एक मेट्रोपेलिटन कोर्ट ने भी वधावन बंधुओं को ज़मानत देने से इनकार कर दिया.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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