शाहबाज शरीफ ने पाकिस्तान के 23वें प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ले ली है. पर उनके दिल के एक कोने में भारत भी कहीं बसता है. अगर कोई ये कहे कि भारत कैसे बस सकता है तो मैं ये कहना चाहता हूं कि भले भारत न भी बसता हो कम से कम एक गांव तो बसता ही है. ये वो गांव हैं जहां उनके पुऱखे चिर निद्रा में हैं. शरीफ 13 दिसंबर,2013 को राजधानी दिल्ली आए तो उनका दिल अपने बुजुर्गों के गांव जाने को बेकरार था. वे यहां आने के बाद प्रधानमंत्री डॉ मननोहन सिंह से मिले. दोनों देशों के संबंधों को बेहतर बनाने की चर्चा की. वे दिल्ली मेट्रो रेल के मैनेजिंग डायरेक्टर मंगू सिंह से भी मिले. मंगू सिंह हाल ही में रिटायर हुए हैं. उसके बाद वे उस समय पंजाब सरकार के मंत्री रहे बिक्रम जीत सिंह मजीठिया तथा अन्य आला अफसरों के साथ लुधियाना चले गए. मजीठिया हाल ही में पंजाब विधान सभा का चुनाव हार गए थे. लुधियाना में उन्होंने एक कबड्डी चैंपियनशिप के फाइनल मैच को देखा. उसके बाद वे निकल पड़े तरण तारण जिले के गांव जट्टी उमरा में.
दरअसल उन्हें जानने वाले जानते हैं कि शाहबाज शरीफ कबड्डी मैच को देखने के बहाने अपने पुऱखों के गांव भी गए थे. शरीफ साहब के पुरखे देश के विभाजन के बाद चले गए थे. लाहौर जाकर उन्होंने जट्टी उमरा से संबंध बनाए रखा. जट्टी उमरा नाम से शरीफ परिवार का कमाल का भावनात्मक संबंध है. शाहबाज शरीफ के लाहौर स्थित निजी आवास का नाम जट्टी उमरा ही है. उनके बड़े भाई नवाज शरीफ जब पहली मर्तबा 1990 में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री बने थे तब उनके पिंड यानी गांव वालों ने जमकर पटाखे छोड़कर अपनी खुशी का इजहार किया था.
शाहबाज शरीफ के अब्बा, जिन्हें सब लोग आदर से अब्बा जी कहते थे, उनकि तो इच्छा थी कि मृत्यु के बाद उन्हें उसी मिट्टी में दफन किया जाए जिससे उनके परिवार का सदियों पुराना नाता है. पर अफसोस कि दोनों पड़ोसी मुल्कों के जिस तरह के संबंध रहे, उसमें यह मुमकिन नहीं हुआ. अब्बा जी का उन दिनों इंतकाल हो गया था, जब नवाज शरीफ को परवेज मुशर्रफ ने देश छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया था और वे दुबई में सपरिवार रहते थे.
भारत की नामवर पंजाबी लोक गायिकाओं- प्रकाश कौर और सुरेन्द्र कौर की गायकी के शैदाई शाहबाज शरीफ अपने गांव जट्टी उमरा 16 दिसंबर, 2013 की सुबह आए. वे गांव पहुंचने के बाद सीधे वहां के कब्रिस्तान में अपने दादा मियां मोहम्मद बख्श की कब्र पर पहुंचे तो वे सच में बहुत भावुक हो गए थे. उनकी आंखें नम थी. उन्होंने वहां फतिया पढ़ा. शरीफ कब्र के पास चंदेक मिनटों तक बैठे रहे. वे भावुक हो रहे थे. वहां उनके गांव के तमाम लोग भी थे.
अंत में वे अपने पुश्तैनी घर भी गए. वहां पर अब एक गुरुद्वारा है. बिक्रमजीत सिंह मजीठिया एक बार बता रहे थे, ‘शाहबाज शरीफ ने अपने घर की दीवारों को छुआ. वे दीवारों को इस तरह से देख रहे थे मानो उनके बुजुर्ग उनके सामने किसी भी पल खड़े हो जाएंगे.’ जट्टी उमरा के बाद शरीफ सड़क मार्ग से लाहौर चले गए. उन्होंने लाहौर जाने के बाद लाहौर की मेट्रो परियोजना को गति दी. दरअसल उसकी भूमिका तब बन गई थी जब वे दिल्ली में दिल्ली मेट्रो रेल के मैनेजिंग डायरेक्टर मंगू तथा अन्य आला अफसरों से मिले थे.
कहा तो यह भी जाता अगर शाहबाज शरीफ ने दिल्ली में मेट्रो रेल का सफर ना किया होता तो मुमकिन है कि लाहौर में मेट्रो का काम रफ्तार ही नहीं पकड़ता. शरीफ तब पाकिस्तान के सबसे अहम सूबे पंजाब के मुख्यमंत्री थे और उनके बड़े भाई नवाज शरीफ देश के प्रधानमंत्री.
उतरे राजीव चौक पर
शाहबाज शरीफ दिल्ली मेट्रो के कामकाज को देखना चाहते थे. उन्होंने पटेल चौक से राजीव चौक तक मेट्रो में सफर किया था. वे इस छोटे से सफर के दौरान मेट्रो स्टेशनों और इसकी कार्यकुशलता से बहुत प्रभावित हुए थे. राजीव चौक पर उतरने के बाद शाहबाज शरीफ दिल्ली मेट्रो के बाराखंभा रोड स्थित हेड ऑफिस में भी गए थे. वहां मंगू सिंह और अन्य अफसरों से विस्तार से बात हुई. मंगू सिंह ने उन्हें बताया था कि मेट्रो रेल का दिल्ली में जाल बिछने से यहां के लाखों लोगों का रोज का अपने दफ्तरों और अन्य जगहों पर जाने का सफर बहुत आसान हो गया है और देश भर में मेट्रो रेल का जाल बिछाया जा रहा है.
शरीफ ने मेट्रो रेल प्रोजेक्ट रेल के विभिन्न पक्षों को जाना-समझा. उनके साथ उनके प्रतिनिधिमंडल के सदस्यों के अलावा दिल्ली में पाकिस्तान उच्चायोग के कुछ अफसर भी थे.
ऐसे लाहौर मेट्रो प्रोजेक्ट को मिली गति
शाहबाज शरीफ दिल्ली से लौटे तो उन्होंने अपने पंजाब प्रदेश की राजधानी लाहौर में मेट्रो प्रोजेक्ट के काम को गति दी. उधर का मेट्रो रेल प्रोजेक्ट अनेक अवरोधों में फंस हुआ था. लाहौर में मेट्रो रेल 2017 में शुरू हो गई थी. शाहबाज शरीफ ने पटेल चौक में मेट्रो संग्राहलय को भी देखा था. शरीफ सुबह 11 बजे के आसपास पटेल चौक पहुंचे थे. उनके साथ कई पुलिस वाले भी आगे-पीछे चल रहे थे. इसलिए वहां पर लोग समझ गए थे कि ये कोई खास विदेशी मेहमान हैं. उन्हें बाद में पता चला कि पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के भाई मेट्रो स्टेशन पर आए हैं. उन्हें तब किसी ने पहचाना तो नहीं था.
शाहबाज शरीफ को उस यात्रा के समय हजरत निजामउद्दीन औलिया की दरगाह पर भी हाजिरी देने के लिए जाना था. पर बेहद बिजी कार्यक्रम होने के कारण फकीर के दरबार में जा नहीं सके थे.
कैसा शाहबाज शरीफ का अब तक का सफर
पाकिस्तान की सियासत पर नजर रखने वाल जानते हैं कि शाहबाज शरीफ और उनके बड़े भाई और पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के बीच राम-लक्ष्मण वाले संबंध हैं. पाकिस्तान मुस्लिम लीग (नवाज) के सांसद शाहबाज शरीफ 2018 से नेशनल अंसेबली के सदस्य हैं और विपक्ष के नेता भी. वे पाकिस्तान के सबसे अहम समझे जाने वाले पंजाब प्रांत के मुख्यमंत्री भी रह चुके हैं. शरीफ परिवार के पुरखे कश्मीरी थे और पंजाब में आकर बस गए थे. पंजाब में कश्मीरियों के बसने की लंबी दास्तान है.
अल्लामा इकबाल भी कश्मीरी थे और उनके पूर्वज पाकिस्तान के स्यालकोट शहर में आकर बसे थे. पंजाबी और उर्दू के प्रखर वक्ता और गुजारे लायक अंग्रेजी बोलने वाले शाहबाज शरीफ ने पंजाब यूनिवर्सिटी से ग्रैजुएशन किया और वे 1980 के दशक में सियासत में आए. उन्होंने 1988 में पंजाब एंसेबली के लिए पहला चुनाव लड़ा और जीता. वे 1997 में पंजाब के मुख्यमंत्री बने. शाहजाब शरीफ परिवार का सियासत के साथ स्टील के बिजनेस में भी दखल है. उनका भारत की चोटी की स्टील कंपनी जिंदल साउथ वेस्ट (जेएसड्ब्लू) से बिजनेस संबंध भी है.
(विवेक शुक्ला वरिष्ठ पत्रकार और Gandhi’s Delhi के लेखक हैं. व्यक्त विचार निजी हैं)
यह भी पढ़ें: देश के युवाओं को क्रांति के लिए नेहरू के रास्ते पर चलना चाहिए : भगत सिंह