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Friday, 22 November, 2024
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क्या चिराग पासवान अभी भी ‘मोदी के हनुमान हैं’? 12 जनपथ से निकाले जाने से बेहद नाराज़, लेकिन ‘विकल्प खुले’

LJP प्रमुख का कहना है कि उनके चाचा, केंद्रीय मंत्री पारस को शर्म आनी चाहिए कि राम विलास पासवान का सामान किस तरह फेंका गया. पारस कहते हैं कि चिराग ने अपने पिता के गठबंधन के साथ धोखा किया.

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पटना: लोक जनशक्ति पार्टी (एलजेपी) प्रमुख चिराग पासवान के पिछले हफ्ते बेआबरू होकर, राष्ट्रीय राजधानी में अपने स्वर्गीय पिता और पूर्व केंद्रीय मंत्री राम विलास पासवान को आवंटित सरकारी बंगले से बाहर निकाले जाने के बाद, उनके और उनसे अलग हो गए चाचा, मौजूदा केंद्रीय कैबिनेट मंत्री पशुपति कुमार पारस के बीच कड़वी तकरार शुरू हो गई.

जहां पासवान ने कहा कि उनके चाचा को ‘शर्म आनी चाहिए कि उनके भाई की तस्वीरें जिन्हें वो भगवान कहा करते थे, उस सरकार द्वारा रौंद डाली गईं जिसमें वो मंत्री हैं’. पारस ने पलटवार करते हुए कहा कि जो कुछ हो रहा था, वो ‘इसलिए कि उसने (चिराग) उस गठबंधन के साथ धोखा किया, जिसका मेरे भाई हिस्सा थे’.

सोमवार को दिप्रिंट से बात करते हुए, चिराग पासवान इस सवाल से कन्नी काट गए, कि क्या वो अभी भी ‘मोदी के हनुमान’ हैं, जैसा कि उन्होंने एक बार ऐलान किया था.

‘मैं पीएम मोदी का हनुमान हूं ये मैने उस समय कहा था, जब मेरे पिता वेंटिलेटर पर थे. पीएम उस समय न केवल मुझे फोन करते रहे, बल्कि उन डॉक्टरों को भी जो उनका (राम विलास पासवान) इलाज कर रहे थे. पीएम मोदी एक संरक्षक की तरह थे और मैं दिल से उनका ऋणी था, कि संकट के समय वो मेरे साथ खड़े रहे’.

उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि उनकी टिप्पणी का असेम्बली चुनावों से कोई लेना-देना नहीं था जो बाद में 2020 में हुए थे, जिसमें वो केंद्र में बीजेपी के एनडीए गठबंधन का हिस्सा होते हुए भी नीतीश कुमार के जेडी (यू) के खिलाफ गए थे. उन्होंने आगे कहा, ‘कुशासन को स्वीकार करना सबसे आसान रास्ता होता. लेकिन मैंने अपने दम पर चुनाव लड़ने का निर्णय किया’.

अब, अगले प्रदेश विधान सभा चुनाव तीन साल दूर हैं, और उनके क़रीबी सहयोगियों ने कहा कि चिराग पासवान ने अपने विकल्प खुले रखे हुए हैं. हालांकि बिहार के नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव और पूर्व सीएम तथा राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) सहयोगी जीतन राम मांझी ने उनके समर्थन में आकर, उस तरीक़े की निंदा की जिस तरह स्वर्गीय राम विलास पासवान का सामान लुटियंस दिल्ली के उस बंगले से बाहर फेंका गया जिसमें वो तीन दशकों तक रहे थे, लेकिन चिराग ने 2025 के लिए अपनी योजना का संकेत नहीं दिया है.

2020 के असेम्बली चुनाव और उनके परिणाम

2020 के बिहार असेम्बली चुनावों से पहले, एलजेपी ने बीजेपी की अगुवाई वाला एनडीए गठबंधन छोड़ दिया, जिससे पहले चिराग ने कथित रूप से कथित रूप से 20 सीटों पर लड़ने का प्रस्ताव ठुकरा दिया था.

उसके बाद 2020 के चुनावों में एलजेपी ने उन सभी 122 सीटों (कुल 243 में से) पर चुनाव लड़ने का फैसला किया, जिनपर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के जनता दल (युनाइटेड) ने एनडीए सहयोगी के तौर पर अपने उम्मीदवार खड़े किए थे.

चुनावों के दौरान, कई वरिष्ठ बीजेपी नेताओं ने अपनी पार्टी छोड़ दी, और एलजेपी के टिकट पर चुनाव लड़े. चिराग की ‘पीएम मोदी का हनुमान’ टिप्पणी ने जेडी (यू) को नाराज़ कर दिया था, और इससे अटकलें लगने लगीं थीं कि जूनियर पासवान बीजेपी का ‘प्लान बी’ थे.

हालांकि पीएम मोदी ने चुनाव प्रचार के दौरान चिराग के खिलाफ एक शब्द नहीं कहा, लेकिन उप-मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी और बिहार बीजेपी इकाई प्रमुख संजय जयसवाल ने एक प्रेस कॉनफ्रेंस में दावा किया, कि चिराग पासवान मतदाताओं में भ्रम फैला रहे हैं और एलजेपी बिहार में एनडीए का हिस्सा नहीं थी.

चिराग की पार्टी को असेम्बली चुनावों में केवल एक सीट मिली, लेकिन उसे 5.5 प्रतिशत वोट हासिल हुए और उसने 40 से अधिक असेम्बली सीटों पर जेडी(यू) उम्मीदवारों की हार पक्की कर दी, और केवल 43 सीटों के साथ एनडीए के भीतर नीतीश की पार्टी की हैसियत घटकर ‘जूनियर पार्टनर’ की रह गई.

चिराग पासवान को अपने फैसले की भारी क़ीमत चुकानी पड़ी. जेडी(यू) ने उनकी पार्टी में दलबदल करा दिया, और अप्रैल 2021 में उसके अकेले विधायक को अपने साथ मिला लिया. इस बीच चिराग पासवान को वो राज्यसभा सीट नहीं दी गई, जो उनके पिता के निधन से ख़ाली हुई थी, और जिसे चिराग अपनी मां रीना पासवान के लिए चाहते थे.

एक और तगड़ा झटका उन्हें अक्तूबर 2021 में लगा, जब एलजेपी में दरार पड़ गई और चराग के चाचा पशुपति कुमार पांच लोकसभा सांसदों को अपने साथ ले गए, और उनके भतीजे अलग-थलग पड़ गए.

अप्रैल 2021 में पारस ने एक केंद्रीय कैबिनेट मंत्री के रूप में शपथ ले ली.


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12 जनपथ

30 मार्च को, चिराग को एक तगड़ा झटका लगा जब आवास मंत्रालय के अधिकारी 12 जनपथ में दाख़िल हुए- जो तीन दशकों से अधिक से राम विलास पासवान का अधिकारिक बंगला रहा था- और उनका सामान बाहर फेंक दिया.

चिराग ने दिप्रिंट से कहा, ‘मुझे देखकर बहुत दुख हुआ कि किस तरह से मेरे स्वर्गीय पिता और बीआर आम्बेडकर की तस्वीरें उतारकर फेंकी गईं और पैरों तले रौंदी गईं. केवल दो दिन पहले मुझे एक शीर्ष बीजेपी मंत्री के आवास पर बुलाया गया था. मुझे आश्वासन दिया गया था कि मेरे उस बंगले में बने रहने में कोई समस्या नहीं थी. मैं जानता हूं कि मैं बंगले का पात्र नहीं हूं, और अगर मुझे आश्वासन न दिया जाता, तो मैंने उसे ख़ाली कर दिया होता’.

उन्होंने सीएम नीतीश कुमार और अपने चाचा पशुपति कुमार पारस पर आरोप लगाया कि उन्होंने ही केंद्र पर बंगला ख़ाली कराने का ‘दबाव बनाया’ था.

चिराग ने कहा, ‘मेरे चाचा को ‘शर्म आनी चाहिए कि उनके भाई की तस्वीरें जिन्हें वो भगवान कहा करते थे, उस सरकार द्वारा रौंद डाली गईं जिसमें वो मंत्री हैं’.

पारस ने चिराग के आरोप ख़ारिज कर दिए. उन्होंने दिप्रिंट से कहा, ‘जो कुछ हो रहा है वो इसलिए कि उसने उस गठबंधन के साथ धोखा किया, जिसका मेरे भाई हिस्सा थे’. अगर वो गठबंधन में बना रहता तो उसे किसी दिक़्क़त का सामना न करना पड़ता. जहां तक बंगले का सवाल है उसे छह नोटिस मिले और वो दिल्ली हाईकोर्ट में भी हार गया. उसे बंगला ख़ाली करके अपना सामान ले जाना चाहिए था, और मेरे भाई की तस्वीर को रौंदे जाने के लिए नहीं छोड़ना चाहिए था’.

अपने पत्ते नहीं खोल रहे

एलजेपी प्रमुख ने कोई संकेत नहीं दिया है कि 2025 के प्रदेश विधान सभा चुनावों के लिए उनकी रणनीति क्या होगी. एक पार्टी नेता ने, जो अपना नाम नहीं बताना चाहते थे, दिप्रिंट को बताया, ‘अंतिम फैसला करने के लिए चिराग चुनावी वर्ष का इंतज़ार कर रहे हैं’.

छले साल दो असेम्बली सीटों पर हुए उप-चुनावों में उनके उम्मीदवारों ने अपनी ज़मानतें गंवा दीं, लेकिन फिर भी उन्हें कांग्रेस उम्मीदवारों से ज़्यादा वोट मिले. एक वरिष्ठ बीजेपी नेता ने अज्ञात रहने की शर्त पर दिप्रिंट से कहा, ‘ऐसा माना जाता है कि पासवान वोटों का एक हिस्सा चिराग के साथ जाएगा, जैसे यादव वोट तेजस्वी को जाते हैं’.

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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