प्रशंसकों के लिए सुनील छेत्री की ट्विटर याचिका और मुंबई में भरा हुआ स्टेडियम ही उनकी स्थिति को भारतीय फुटबॉल के चेहरे के रूप में पक्का करता है, जो क्रिकेट के लिए पागल इस देश में इस खेल को ऊपर उठा रहे हैं।
नई दिल्ली: अंतिम गणना किये जाने तक, इसने ट्विटर पर 58.2 हज़ार रिट्वीट्स और 123 हज़ार लाइक्स हासिल कर लिए थे। लेकिन सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि माइक्रो-ब्लॉगिंग साइट पर प्रशंसकों से भारतीय फुटबाल टीम को देखने के लिए स्टेडियम आने का आग्रह करते हुए सुनील छेत्री की आवेशपूर्ण अपील ने वह उपलब्धि हासिल की जो इंटरकॉन्टिनेंटल कप के आयोजक नहीं कर सके।
सोमवार को, मुंबई फुटबॉल एरीना में खचाखच भरे दर्शकों ने इंटरकॉन्टिनेंटल कप में भारत और केन्या का मुकाबला देखा, इसके चार दिन पहले हुए मैच में भारतीय टीम ने कमजोर चीनी ताइपेई दल को (5-0) हराया था जिसमें बहुत कम दर्शक आये थे ।
और जोशपूर्ण याचिका के एक दिन बाद, जिसमें उन्होंने वादा किया था कि टीम “इच्छा और दृढ संकल्प’ प्रदर्शन करेगी, छेत्री की टीम ने केन्या के खिलाफ ठीक ऐसा ही किया। पहले फीकी शुरुआत के बाद सेकंड हाफ में ताकत झोंकते हुए टीम ने मैच 3-0 से जीत लिया।
कप्तान ने एक बार फिर टीम के तीसरे गोल के लिए एक उत्कृष्ट शॉट के साथ जीत को 3-0 तक ले जाने से पहले नेट में एक पेनाल्टी गोल डालते हुए सबका ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया।
चाहे जो भी हो, प्रशंसकों के लिए छेत्री की याचिका, मुंबई में उत्तरोत्तर भरे हुए स्टेडियम तथा एक और जीत में उनकी केन्द्रीय भूमिका ही देश में उनकी स्थिति को सबसे प्रमुख फुटबॉल खिलाडी के रूप में पक्की कर देती है। उनकी उपलब्धियां क्रिकेट के लिए पागल इस राष्ट्र में फुटबॉल को आगे बढ़ाती हैं।
कीर्तिमानों की गैलरी
33 साल की उम्र में देश के सबसे प्रभावशाली खिलाड़ी और भारतीय कप्तान को कुछ भी धीमा करता हुआ दिखाई नहीं देता, केन्या के खिलाफ यह मैच उनका 100वां अंतर्राष्ट्रीय मैच था।
केन्या के खिलाफ दो गोल ने छेत्री को फुटबॉल की उच्च मंडली में पहुँचा दिया है। वह अंतर्राष्ट्रीय फुटबॉल में सबसे ज्यादा गोल करने वाले सक्रिय खिलाड़ियों की सूची में तीसरे स्थान पर हैं। 61 गोल के उनके आंकड़े उन्हें लियोनेल मेसी (64 गोल) और क्रिस्टियानो रोनाल्डो (81 गोल) के ठीक पीछे खड़ा करते हैं। उन्होंने डेविड विला के 59 अंतर्राष्ट्रीय गोलों की बराबरी तभी कर ली थी जब उन्होंने चीनी ताईपेई टीम के खिलाफ एक हैट्रिक लगाई थी।
यह स्कोरिंग की एक लम्बी रेखा है जो कि 12 जून 2005 को क्वेटा में पाकिस्तान के खिलाफ एक मैत्री मैच, जो उनका पहला मैच था, में शुरू हुई थी। 2007, 2009 और 2012 में नेहरु कप में भारत की जीतों में यह कप्तान एक प्रमुख भूमिका निभाते हुए टीम का मुख्य आधार रहा है।
अगस्त 2008 में एएफसी चैलेंज कप फाइनल में तजाकिस्तान पर 4-1 की जीत में छेत्री की हैट्ट्रिक ने 27 साल बाद 2011 एएफसी एशिया कप में टीम के लिए जगह पक्की करने में मदद की थी।
हालाँकि भारत एक भी जीत दर्ज करने में असफल रहा था, उस प्रतियोगिता में छेत्री ने दो गोल दागे थे।
भारत, 2015 में मौका गंवाने के बाद, 2019 एशिया कप के लिए क्वॉलिफ़ाइ कर चुका है और उम्मीद है कि छेत्री फॉरवर्ड लाइन से टीम का नेतृत्व करेंगे।
अपने समय के दौरान छेत्री ने 2015 एशिया कप में मौका खोने और 2014 में देश की रैंकिंग 171 अंकों के सबसे निचले स्तर तक पहुँचने समेत ख़राब समय का भी अनुभव किया है। तब से इन्होंने वापसी की है और अब देश की रैंकिंग 97 है।
विदेशी करार
छेत्री, हमेशा अपने देश और विदेशों में क्लबों का ध्यान केंद्रित करते हैं, उनके पास विदेशों क्लबों के लिए खेलने हेतु दो करार थे। 2010 में मेजर लीग सॉकर के कन्सास सिटी विज़ार्ड्स ने उनके साथ करार किया, इसके साथ ही वह उपमहाद्वीप के तीसरे खिलाड़ी बन गए जिन्होंने विदेश में करार किया, जबकि 2012 में वह स्पोर्टिंग लिस्बन बी साइड का हिस्सा थे।
सिकंदराबाद से लम्बा मार्ग
आगे बढ़ते हुए, छेत्री ने वाक द टॉक के साक्षात्कार (नीचे देखें) में शेखर गुप्ता से कहा, कि फुटबॉल उनके खून में था। उनके पिता, एक फौजी थे जो भारतीय सेना के इलेक्ट्रॉनिक्स और मैकेनिकल इंजीनियर्स के दल के लिए खेले, जिसका मुख्यालय सिकंदराबाद में है, जहाँ भारतीय फुटबॉल टीम के कप्तान का जन्म हुआ था। उनकी मां और उनकी जुड़वां बहन नेपाल के लिए फुटबॉल खेली थीं।
वह कहते हैं, छेत्री ने उन दिनों फुटबॉलिंग की वंशावली के साथ अपनी छाप बनानी शुरू की, जब उन्होंने दिल्ली का आर्मी पब्लिक स्कुल छोड़ दिया और राजधानी के एक छोटे से स्कूल ममता माडर्न में पढ़ने लगे।
मोहन बागान के स्काउट्स से पहले वह सिटी एफसी, दिल्ली स्थित क्लब के ध्यान में आ गए थे और उन्होंने 2002 में 17 साल की उम्र में कोलकाता जाइंट्स के साथ करार किया, वहाँ अपने आदर्श भाई चुंग भूटिया के साथ मिलकर खेले।
उन्होंने शेखर गुप्ता से कहा, “यह वह वर्ष था जब भाई चुंग भूटिया ब्युरी से (देन इंग्लिश थर्ड डिविजन साइड) वापस आ गए थे। उन्होंने मुझसे कहा कि मैंने तुम्हारे बारे में काफी सुन रखा है और बच्चे, आप अच्छा खेल रहे हो और मैंने यह बात हर किसी को बताई। “छेत्री साक्षात्कार में कहते हैं कि, इन तीन वर्षों में, दिल्ली में डूरंड कप टूर्नामेंट के दौरान भूटिया से मिलने की कोशिश करते समय वह बाहर कर दिये गए थे। तब वह उनके साथ मंच साझा करना चाहते थे।
2011 में भूटिया के सन्यास लेने तक दोनों ने भारतीय ड्रेसिंग रूम साझा किया और सन्यास के बाद भूटिया ने छेत्री को अपनी जिम्मेदारी सौंपी, जिन्होंने इस समय स्वयं को भारतीय फुटबॉल का चेहरा बना दिया है।
Read in English: Secunderabad to Mumbai, the remarkable captain Chhetri and the fire he lit