उत्तर प्रदेश में मीडिया और लोक चर्चा में इन दिनों ये बात खासी चर्चा में है कि किस तरह लाभार्थियों ने 2022 के विधानसभा चुनाव में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और बीजेपी को इसका किस तरह से फायदा हुआ. लाभार्थी शब्द इस खास संदर्भ में उन लोगों के लिए इस्तेमाल हो रहा है, जिन्हें सरकार की विभिन्न योजनाओं से रुपया या अनाज आदि मिल रहा है. इन योजनाओं का ज्यादातर लाभ गरीबों और निम्नवर्गीय लोगों को होता है.
ये जानने का कोई वैज्ञानिक तरीका नहीं है कि किसी व्यक्ति के वोटिंग व्यवहार में इस बात का कितना योगदान है कि उसे किसी सरकारी योजना का लाभ मिला है. किसी व्यक्ति, परिवार या समुदाय के वोट देने या न देने का फैसला कई बातों पर निर्भर हो सकता है और किस बात का महत्व या वजन कितना है, ये आकलन कर पाना आसान नहीं है.
लेकिन बीजेपी ने जिस तरह से लाभार्थियों के मामले को चुनाव प्रचार में प्राथमिकता दी, बल्कि जिस तरह से इन योजनाओं को चलाया और चुनाव से पहले इन्हें लागू किया, उससे ये तो पता चलता ही है कि बीजेपी इन योजनाओं को कितनी गंभीरता से लेती है. यही नहीं, चुनाव हारने वाले दल और उम्मीदवारों के समर्थक भी अब हार का ठीकरा उन लोगों पर फोड़ रहे हैं जिन्होंने तथाकथित रूप से चंद रुपयों या पांच या दस किलो अनाज के लिए अपना ‘वोट बेच’ दिया!
चुनाव का अध्ययन करने वालों और राजनीतिक दलों और राजनीतिकर्मियों के लिए ये दिलचस्पी का विषय होना चाहिए कि लाभार्थियों का चुनाव पर असर किस तरह पड़ रहा है.
1. यूपी सरकार ने 3 नवंबर, 2021 को ये घोषणा की कि कोविड के दौरान चल रही फ्री राशन स्कीम होली तक यानी चुनाव बाद तक जारी रहेगी. इस योजना के तहत हर परिवार को पांच किलो अनाज, 1 किलो दाल, एक लीटर तेल और एक किलो नमक दिया जाता है. इनके पैकेट पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तस्वीर होती है. मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, यूपी के 75 जिलों के लगभग 15 करोड़ लोग इस योजना के लाभार्थी हैं.
2. चुनाव की घोषणा से ठीक पहले यूपी सरकार ने राज्य सरकार के स्कूलों में पढ़ रहे 1.8 करोड़ बच्चों के अभिभावकों के खाते में प्रति छात्र 1100 रुपए ट्रांसफर किए. ये रकम उन्हें बच्चों की ड्रेस खरीदने के लिए दी गई.
3. चुनाव के दौरान, बीजेपी ने इस बात को लगातार हाइलाइट किया कि सरकार ने किस तरह बड़ी संख्या में लोगों को पक्के घर बनाने के लिए आर्थिक सहायता दी. इस योजना के तहत ग्रामीण इलाकों में प्रति घर 1.25 लाख रुपए और शहरी इलाकों में 2.50 लाख रुपए की रकम दी जाती है. इसके अलावा उज्ज्वला योजना को भी प्रचार में शामिल किया गया, जिसमें गरीब परिवारों को सस्ते गैस सिलेंडर दिए जाते हैं.
4. किसान सम्मान निधि बीजेपी के चुनाव प्रचार का एक प्रमुख हिस्सा रही. इस योजना के तहत छोटे और गरीब किसानों को हर साल 6,000 रुपए बैंक खातों में ट्रांसफर किए जाते हैं. इस योजना का दसवां इंस्टॉलमेंट चुनाव से ठीक पहले 1 जनवरी, 2022 को दिया गया. इसकी घोषणा को बड़ा इवेंट बनाया गया और ये घोषणा खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने की. इस योजना के यूपी में 2.38 करोड़ लाभार्थी हैं.
Releasing the 10th instalment under PM-KISAN scheme. https://t.co/KP8nOxD1Bb
— Narendra Modi (@narendramodi) January 1, 2022
आईआईएम-रोहतक के डॉयरेक्टर धीरज शर्मा के मुताबिक, लाभार्थियों तक सीधे पहुंचने वाली इन योजनाओं ने बीजेपी को यूपी का चुनाव जीतने में काफी सहायता की. उनका मानना है कि इन योजनाओं ने जाति और विभाजन की राजनीति को कमजोर कर दिया है.
फिर सवाल उठता है कि ऐसी ही या इससे भी ज्यादा बढ़ चढ़कर की गई विपक्षी पार्टियों की घोषणा का उनको लाभ क्यों नहीं मिला? धीरज शर्मा का तर्क है कि ‘लोग पार्टियों की उन घोषणाओं को शक की नज़र से देखते हैं, जो अवास्तविक नज़र आती हैं. उन्हें लगता है कि ये सिर्फ वोट लेने के लिए बातें कर रहे हैं. लोग इतने समझदार जरूर हैं कि हवा-हवाई घोषणाओं और उन घोषणाओं में फर्क कर सकें, जिन्हें पूरा करना सरकार के लिए संभव है.’
वहीं, यूपी पर काफी समय से लिख रही पत्रकार राधिका रामाशेषन कहती हैं कि बीजेपी ने लोककल्याणकारी हिंदुत्व यानी वेलफेयर हिंदुत्व के विचार पर काम किया. वे तर्क देती हैं कि ‘हिंदुत्व की तरह ही, लोगों को राहत और कैश पहुंचाने के लिए केंद्र और राज्य सरकार द्वारा चलाई गई योजनाओं से भी बीजेपी को वोट मिले.’
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क्या बीजेपी बड़े उद्योगपतियों की हितरक्षक पार्टी है?
कांग्रेस और उसके नेता राहुल गांधी लगातार बीजेपी पर ये आरोप लगा रहे हैं कि बीजेपी बेहद बड़े पूंजीपतियों की पार्टी है. इस संदर्भ में वे देश के दो सबसे बड़े उद्योपतियों को बीजेपी द्वारा लाभ पहुंचाए जाने का जिक्र करते रहते हैं. कांग्रेस नेता बीजेपी पर इस बात को लेकर निशाना साधते रहते हैं कि किस तरह से बीजेपी बड़े पूंजीपतियों को लाभ पहुंचाती है और गरीब किस तरह बर्बाद हो रहे हैं.
Beautiful how the truth reveals itself.
Narendra Modi stadium
– Adani end
– Reliance endWith Jay Shah presiding.#HumDoHumareDo
— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) February 24, 2021
बीजेपी और उसके पुराने अवतार भारतीय जनसंघ पर ये आरोप नया नहीं है कि वह ब्राह्मण-बनिया-जमींदारों की पार्टी है. विरोधियों ने उसे हमेशा अमीरों की पार्टी के तौर पर देखा और उसकी आलोचना की. पार्टी का सामाजिक आधार एक समय तक इन वर्गों में ही सीमित था.
क्या नरेंद्र मोदी के समय की बीजेपी को भी सिर्फ अमीरों की पार्टी कहा जा सकता है? क्या अमीरों के लिए काम करने वाली कोई पार्टी इस तरह करोड़ों गरीबों के लिए राशन और कैश का बंदोबस्त कर सकती है?
दरअसल, बड़े पूंजीपतियों के लिए काम करने और गरीबों को कुछ राहत पहुंचाने में उतना अंतर्विरोध नहीं है, जितना लोग समझते हैं. दोनों काम एक साथ किए जा सकते हैं. बल्कि व्यवस्था को टिकाए रखने और गरीबों के असंतोष को एक सीमा के अंदर रखने के लिए ये जरूरी भी है. कांग्रेस भूल रही है कि मनरेगा, इंदिरा आवास योजना, मिड डे मील जैसी योजनाओं के जरिए वो भी ये काम करती रही है. तब भी उद्योग के हित में नीतियां बन रही थीं और ये गलत भी नहीं है. अर्थव्यवस्था के लिए ये जरूरी है कि उद्योगों का विस्तार हो.
सवाल उठता है कि गरीबों के लिए राहत पहुंचाने वाली योजनाओं के बावजूद कांग्रेस 2014 में हार क्यों गई? इसकी कई वजहें हैं. एक, बीजेपी ने लोगों के खाते में सीधे कैश पहुंचाने पर जोर दिया, जो कांग्रेस नहीं कर रही थी. दो, आधार नंबर से बैंक खातों को जोड़ने का कांग्रेस के समय शुरू हुआ काम, अब लगभग पूरा हो चुका है. बीपीएल जनगणना की रिपोर्ट आ जाने के कारण गरीब परिवारों की पहचान भी आसान है. यानी अब गरीबों को चिन्हित करके उन्हें सीधे पैसा देना आसान हो चुका है. पहले अगर ये काम किया गया होता तो बड़े पैमाने पर प्रशासनिक भ्रष्टाचार होता. तीन, बीजेपी के दौर में सरकार ने पहली बार इस बात का महत्व समझा कि घरों में टॉयलेट होना कितना महत्वपूर्ण हैं और उसने इसे इज्जत और मान-सम्मान से जोड़ दिया. चार, उज्जवला योजना से महिलाओं की जिंदगी आसान हुई.
इन सबके अलावा, बीजेपी ने साथ में हिंदुत्व और मुसलमान विरोध की पैकेजिंग की, जिसकी वजह से मध्यम वर्ग और उच्च वर्ग ने इस बात की शिकायत नहीं की कि गरीबों पर इस तरह पैसा लुटाया क्यों जा रहा है.
इस बारे में कई सर्वे हो चुके हैं कि गरीबों के बीच बीजेपी की लोकप्रियता किस तरह से बढ़ रही है. सीएसडीएस-लोकनीति के 2019 लोकसभा चुनाव के बाद के सर्वेक्षण का निष्कर्ष है कि 2014 लोकसभा चुनाव के मुकाबले 2019 में गरीबों के बीच बीजेपी ज्यादा लोकप्रिय हुई है. गरीब, निम्न वर्ग और मध्य वर्ग में बीजेपी की लोकप्रियता एक समान हो चुकी है. बेशक, अमीरों के बीच उसकी लोकप्रियता अब भी सबसे ज्यादा है. क्या गरीबों के बीच बीजेपी की लोकप्रियता इसलिए बढ़ी कि उसने 2014 के बाद से लाभार्थियों को मदद पहुंचाई? ऐसा हो भी सकता है.
कोई ये कह सकता है कि बीजेपी की इन कल्याणकारी योजनाओं से गरीबों की हालत में कोई बड़ा सुधार नहीं हुआ है. गरीबों की संख्या में कोई सकारात्मक बदलाव भी नहीं हुआ है. यही नहीं, नोटबंदी, कोविड की पाबंदियों और कई तरह के राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय कारणों से बड़ी संख्या में लोगों की नौकरियां छूटी हैं और नए गरीब बने हैं. दूसरी तरफ महंगाई बढ़ रही है. खासकर, खाद्य पदार्थों, खाने का तेल, पेट्रोल और डीजल तो काफी महंगा हो चुका है. ये संभव है कि सरकार गरीबों को जितनी सहायता दे रही है, उससे ज्यादा रकम महंगाई के कारण उनकी जेबों से निकल जा रहा है.
लेकिन इस बात को समझने की जरूरत है कि बेरोजगारी और महंगाई सिर्फ बीजेपी के शासन में नहीं आई है. इसके लिए लोग पूरी तरह से बीजेपी को जिम्मेदार भी नहीं मानते. कोविड संकट को ईश्वरीय या विदेश से आई आपदा माना गया. लोग शायद इस बात को लेकर भी आश्वस्त नहीं थे कि यूपी में अगर विपक्षी दल सरकार में आ जाएंगे तो वे बेरोजगारी और महंगाई का समाधान कैसे कर देंगे.
फिर ये बात भी है कि गरीबों के जीवन में सरकार अक्सर पुलिस या परेशान करने वाले कर्मचारियों की शक्ल में आती है. ऐसे में जब कोई सरकार लेने की जगह देती नज़र आए तो लोगों को अच्छा लगता है.
(लेखक पहले इंडिया टुडे हिंदी पत्रिका में मैनेजिंग एडिटर रह चुके हैं और इन्होंने मीडिया और सोशियोलॉजी पर किताबें भी लिखी हैं. व्यक्त विचार निजी हैं)
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