नई दिल्ली: भारत की मूर्त विरासत को खत्म किये जाने के गंभीर खतरे ने लगता है इसकी देश वापसी का माहौल बना दिया लगता है. कला के प्रति उत्साही लोगों के एक गैर-लाभकारी समूह इंडिया प्राइड प्रोजेक्ट, जो चोरी की गई भारतीय कलाकृतियों का पता लगाने और उनकी वापसी को सुरक्षित करने के लिए अभिलेखीय सामग्री, सोशल मीडिया और एडवोकेसी (हिमायत) का उपयोग करता है, ने भारत के इस खोए हुए खजाने को पुनः प्राप्त करने का बीड़ा उठाया हुआ है.
उन्होंने हाल ही में आंध्र प्रदेश के नागार्जुनकोंडा में बर्बाद हुए स्तूपों की चुराई गई तीसरी शताब्दी की चूना पत्थर से बनी एक कलाकृति को वापस करने में मदद की, जो फिलहाल बेल्जियम से भारत लौटने की प्रक्रिया में है. इससे पहले, उन्होंने साल 2013 में तमिलनाडु से चुराई गई 500 साल की एक पुरानी कांसे की हनुमान की प्रतिमा को वापस लाने में मदद की थी.
हालांकि, आईपीपी 2014 से ही लगातार अपने दम पर इन मूर्तियों का पता लगाने के लिए इनका पीछा कर रही है, उसकी यह नवीनतम परियोजना यूके स्थित आर्ट रिकवरी इंटरनेशनल (एआरआई) के साथ मिलकर किया गया एक संयुक्त प्रयास था.
यह सब कुछ इस प्रकार हुआ, चूना पत्थर की यह मूर्ति साल 1995 तक एक भारतीय संग्रहालय में रखी गई थी, जब यह वहां से चोरी हो गई. आखिरी बार इसकी तस्वीर 90 के दशक में एक कला इतिहासकार द्वारा खींची गई थीं, जिन्होंने पिछले साल यह पता लगने के बाद आईपीपी से संपर्क किया कि यह कलाकृति बेल्जियम आर्ट फेयर में बिक्री के लिए पेश की जा रही है.
आईपीपी के सह-संस्थापक एस. विजय कुमार के अनुसार, इसके खरीदार ने यूके स्थित एक ऐसे संगठन से मंजूरी के प्रमाण पत्र (सर्टिफिकेट ऑफ़ क्लीयरेंस) पर भरोसा किया था जो बिना उचित प्रक्रिया का पालन किये इस तरह के दस्तावेज ‘पैदा’ करता रहता है. इस साल जनवरी में, कुमार ने एआरआई के संस्थापक क्रिस्टोफर मारिनेलो और उनकी टीम को इस अवैध बिक्री के बारे में सूचित किया और उन्हें इसके खरीदार का पता लगाने के लिए प्रोत्साहित करने के साथ-साथ इस कलाकृति को बिना शर्त भारत सरकार के हवाले करने के लिए बातचीत भी की.
अंततः 11 मार्च को इस मूर्ति को औपचारिक रूप से बेल्जियम में भारतीय राजदूत संतोष झा को सौंप दिया गया. बीमा और निर्यात के लिए जरुरी परमिट को मंजूरी मिलने के बाद इसके जल्द भारत पहुंचने की उम्मीद है.
At a handover ceremony in Brussels on 11 March Amb.@santjha received on behalf of GOI, a 3rd century sculpture, a part of ruined stupas at Nagarjunakonda, that had been gone missing from a museum in India.@MEAIndia @ASIGoI @IndianDiplomacy @artrecovery @IndiaPrideProj pic.twitter.com/7PiolBUpD4
— India in Belgium (@IndEmbassyBru) March 22, 2022
यह पूछे जाने पर कि 1995 तक यह मूर्ति किस भारतीय संग्रहालय में थी, मारिनेलो ने दिप्रिंट को बताया, ‘मैं इस समय उस संग्रहालय का नाम नहीं बता सकता, क्योंकि भारत में कानून का पालन करवाने वाले अधिकारी (लॉ एनफोर्समेंट अथॉरिटीज) इस चोरी की जांच कर रहे हैं.’
चूना पत्थर का यह पुरावशेष उन 265 से अधिक चुराई गई भारतीय कलाकृतियों में से एक है जिन्हें आईपीपी ने भारत वापस लौटाने में मदद की है. इनमें से कुछ कलाकृतियां, जैसे 500 साल पुरानी हनुमान की मूर्ति, के भारत लौटने से पहले उन्हें विदेशी नीलामी में दसियों लाख रुपये में बेचा गया था.
साल 2018 में किये गए एक सरकारी ऑडिट (लेखा परिक्षण) के अनुसार, साल 1992 और 2017 के बीच, पूरे भारत में 3,676 संरक्षित स्मारकों से ऐसे 4,408 आइटम (कलाकृतियां) चोरी हो गए. इनका वास्तविक आंकड़ा इस संख्या से तीन गुना अधिक होने का अनुमान है.
हनुमान की मूर्ति का खोज कर पता लगाना
न्यूयॉर्क में नीलाम होने और ऑस्ट्रेलिया में एक खरीदार द्वारा अपने कब्जे में लिए जाने के बाद इस साल 22 फरवरी को तमिलनाडु के एक मंदिर से चुराई गई 500 साल पुरानी कांसे से बनी हनुमान की मूर्ति भारत लौट आई.
ऐसा माना जाता है कि इस मूर्ति को 2015 में न्यूयॉर्क स्थित एक प्रसिद्ध नीलामी घर, क्रिस्टीस ऑक्शन्स. द्वारा की गई नीलामी में 27.9 लाख रुपये ($ 37,500) में बेचा गया था.
कहा जाता है कि इसे 2013 में तमिलनाडु के अरियालुर जिले – मूर्ति चोरी की घटनाओं के प्रति असुरक्षित क्षेत्र – के एक मंदिर से तस्करी कर लाया गया था. हालांकि, जैसा कि कुमार ने दिप्रिंट को बताया, ‘अगर स्थानीय पुलिस ने मामले को समय से पहले बंद नहीं किया होता तो इस मूर्ति को भारत लौटने में लगभग एक दशक का समय नहीं लगता.’
उन्होंने कहा, ‘यह चोरी साल 2013 में हुई थी. फिर साल 2014 में, तमिलनाडु की स्थानीय पुलिस ने इस मामले को बंद कर दिया. अगर मामला खुला होता तो हम 2015 में इसकी नीलामी को रोक सकते थे.’
इस मूर्ति का पता लगाना एक लंबी प्रक्रिया थी. 2018 में, कुमार को फ्रेंच इंस्टीट्यूट ऑफ पांडिचेरी के अभिलेखागार, जिसमें तमिलनाडु के मंदिरों में 1956 से 1999 तक खींचीं गईं मूर्तियों की तस्वीरों वाला एक विशाल डेटाबेस है, के माध्यम से एक काफी-कुछ परिचित सी दिखने वाली हनुमान की मूर्ति की तस्वीर मिली.
उन्होंने मूर्ति की एक तस्वीर देखी, जिसे उन्होंने क्रिस्टी की वेबसाइट पर क्रॉस-चेक किया. फिर 2019 की शुरुआत में, कुमार ने तमिलनाडु पुलिस की विशेष आइडल विंग के साथ, अमेरिका में लॉ एनफोर्समेंट एजेंसियों के साथ काम करना शुरू किया.
कुमार ने कहा, ‘जब मुझे पता चला कि चोरी के इस मामले को 2014 में ही बंद कर दिया गया था, तो मैं चौंक गया था. भारतीय पुलिस स्टेशनों को अभी भी चालू प्राथमिकी के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है और अपने प्रदर्शन को अच्छा दिखाने के लिए, वे जल्दबाजी में मामलों को बंद कर देते हैं जिससे उचित जांच प्रक्रिया में बाधा उत्पन्न होती है. उसी चोरी के दौरान गायब हुईं भगवान विष्णु की एक प्रतिमा सहित तीन कांस्य प्रतिमाएं ऐसी थीं जो अभी भी गायब हैं. राज्य और केंद्र की सरकारों को मूर्ति चोरी के लिए दर्ज की गईं ऐसी सभी बंद एफआईआर को फिर से खोलने और उन पर हमारे साथ मिलकर काम करने के लिए प्रयास करना चाहिए.’
तमिलनाडु आइडल विंग के अतिरिक्त पुलिस उपाधीक्षक, राजाराम ने दिप्रिंट को बताया कि हनुमान की इस मूर्ति की चोरी के मामले में आगे की जांच चल रही है ताकि पता लगाया जा सके कि और क्या-क्या गायब है.
राजाराम ने कहा कि कुमार और उनकी टीम ने इस कलाकृति की पहचान करने, उसके वर्तमान स्थान की पुष्टि करने और उसका पता-ठिकाना प्राप्त करने में अहम भूमिका निभाई.
यह भी पढ़ें : सीता दोराईस्वामी जिन्होंने 60 के दशक में जलतरंगम परंपरा को खत्म होने से बचाए रखा
स्वयंसेवकों का एक समर्पित समूह
साल 2014 में स्थापित, आईपीपी अनुसंधान, विधायी हस्तक्षेप और एडवोकेसी के माध्यम से चोरी की कलाकृतियों को वापस करके भारत के गौरव को बहाल करने के प्रति समर्पित स्वयंसेवकों का एक समूह है.
सबसे पहले यह साल 2006 में चेन्नई में रहने वाले एक शिपिंग कंपनी के कार्यकारी अधिकारी, 48 वर्षीय कुमार, की अध्यक्षता में एक छोटे समूह के रूप में शुरू हुआ था. कुमार, जिन्होंने 2000 के दशक की शुरुआत से ही भारतीय कला और आइकनोग्राफी के क्षेत्र में काफी अध्ययन किया है, ने भारतीय विरासत से जुड़े उपेक्षित पड़े स्थलों के दस्तावेजीकरण और उनका अध्ययन करने के लिए यह टीम बनाई थी. ऐसी स्थलों की अपनी यात्राओं के दौरान, उन्होंने कई सारी चोरियों के बारे में जाना तथा अवैध कला बाजार एवं वैश्विक बाजारों में तस्करी की गई भारतीय कलाकृतियों की बिक्री पर ध्यान केंद्रित करना शुरू कर दिया.
2008-2009 तक, इस दल ने भारत के अंदर और बाहर उन लॉ एनफोर्समेंट एजेंसिओं के साथ काम करना शुरू कर दिया, जिन्होंने इस समूह की विशेषज्ञता चाही. साल 2013 में, कुमार ने सिंगापुर में रहने वाले अनुराग सक्सेना से मुलाकात की, जो समूह के एक अन्य सह-संस्थापक थे, और एक साल बाद आधिकारिक तौर पर आईपीपी का गठन हो गया.
आईपीपी में अब 30-40 नियमित रूप से योगदान देने वाले लोग और लगभग 400 स्वयंसेवक शामिल हैं. ऑन-ग्राउंड वालंटियर्स (जमीन पर काम करने वाले स्वयंसेवकों) को विरासत स्थलों की तस्वीरें खींचने या कुछ पुस्तकों और अभिलेखीय सामग्री को स्कैन करने का काम सौंपा जाता है. इससे उन विदेशी स्थानों का पता लगाने में मदद मिलती है जहां तस्करी की कलाकृतियां ले जाई गई हैं.
यूके के भारतीय डायस्पोरा के बीच बड़ी संख्या में इस समूह के साथ जुड़े स्वयंसेवक हैं. तीसरी पीढ़ी के ब्रिटिश-इंडियन और समर्पित आईपीपी स्वयंसेवक प्रीतेश पटेल को ‘वाइस’ ने यह कहते हुए उद्धृत किया था, ‘यहां हम अब एक पीढ़ी के रूप में स्थापित हो गए हैं. एक युवा ब्रिटिश-इंडियन शख्श के रूप में, मैं इसे उपनिवेशवाद के खात्मे के इर्द-गिर्द एक वैश्विक वार्तालाप (में भागीदारी) के रूप में देखता हूं.‘
‘भारत ने हर दशक में कला के 10,000 प्रमुख वस्तुओं को खो दिया है’
500 साल पुरानी हनुमान की मूर्ति चोरी की गई उन कई कलाकृतियों में से एक है जिसे आईपीपी ने पता लगाने और भारत वापस लाने में मदद की है. इसने बिहार से गायब हुई 1,200 साल पुरानी बुद्ध की मूर्ति को वापस लाने में भी मदद की, जो इटली में फिर से दिखाई दी थी. साथ ही, इसने ऑस्ट्रेलिया की नेशनल गैलरी से कला की 14 वस्तुएं, जो कुख्यात कला तस्कर सुभाष कपूर से मिले थे, और यहां तक कि युके से 10 वीं शताब्दी की बकरी के सिर वाली योगिनी की मूर्ति भी वापस दिलवाई है.
Privileged to recover for repatriation priceless 10th century Vrishanana Yogini – missing since 1980s from Lokhari Temple, UP, India. Discovered in London in Oct 21, secured in @HCI_London. We thank all collaborators. @DrSJaishankar @harshvshringla @MEAIndia @PMOIndia pic.twitter.com/owyDbH1mKR
— India in the UK (@HCI_London) January 14, 2022
कुमार के अनुमानों के अनुसार, भारत ने 1950 के दशक के बाद से हर दशक में लगभग 10,000 प्रमुख कलाकृतियों को खोया है, और इसलिए अब तक जो कुछ भी बरामद किया गया है, वह सिर्फ एक बड़े खजाने का छोटा सा अंश ही हो सकता है.
संजीव सान्याल, जो भारत सरकार के पूर्व प्रधान आर्थिक सलाहकार और कुमार के एक करीबी दोस्त भी हैं, ने भी पुराने चोरी के रिकॉर्ड तक पहुंचने, संबंधित सरकारी अधिकारियों से संपर्क करने और नौकरशाही की लालफीताशाही से पार पाने में इस समूह की सहायता की है.
सान्याल ने दिप्रिंट को बताया, ‘मैं पहली बार विजय से हमारे एक आपसी मित्र अनंत नागेश्वरन के माध्यम से मिला, जो वर्तमान मुख्य आर्थिक सलाहकार हैं. हम 2010-11 में सिंगापुर में अनंत के घर पर मिले, जहां विजय ने चोरी की मूर्तियों का खोज कर पता लगाने के बारे में एक प्रस्तुति भी दी. तब से, मैंने आईपीपी को जिस तरह से भी हो सके सहायता प्रदान की है.’
सान्याल एक विशेष कलाकृति – बिहार के नालंदा में एक संग्रहालय से चुराई गई 12-शताब्दी की बुद्ध प्रतिमा जिसे 2018 में यूके सरकार द्वारा वापस कर दिया गया था – की पहचान करने के अभियान के एक अभिन्न अंग थे.
सान्याल ने कहा, ‘यह 2017-18 के आसपास की बात है, जब मैं भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के पूर्व महानिदेशक डॉ. विश्वास से मिला. वह मुझसे किसी और काम के सिलसिले में मिलने आये थे और फिर हम चोरी की मूर्तियों के बारे में बात करने लगे. फिर उन्होंने मुझे 1961 और 1962 में चुराई गई मूर्तियों की कुछ तस्वीरें दीं, जो मैंने आगे विजय को दे दीं. अंततः उन्होंने ही लंदन स्थित एक कलाकृतियों के सौदागर (आर्ट्स डीलर) के कब्जे में रखी गई एक मूर्ति को खोज निकाला.‘
कुमार ने बताया कि इन चुराई गई कलाकृतियों का प्रमुख बाजार मुख्य रूप से यूनाइटेड किंगडम यूरोपियन यूनियन और यूनाइटेड स्टेट्स ऑफ़ अमेरिका में हैं.
(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए क्लिक करें)
यह भी पढ़ें : 400 एकड़ के परिसर में गौरवशाली इतिहास की झलक- कैसे आकार ले रहा है नालंदा विश्वविद्यालय 2.0